हैदराबाद: जासूसों की कहानियां या फिल्में देखने का रोमांच आपने भी महसूस किया होगा, लेकिन अगर आपको पता चले कि फिल्मी पर्दे पर जिस जासूस की कहानी आप देख रहे हैं या जिस जासूसी नोवल का किरदार आपके होश उड़ा रहा है वो सब असलियत में हुआ या होता है तो आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी. दरअसल ऐसे कई जासूस हुए हैं जिन्होंने अपनी जान हथेली पर रखकर अपने लक्ष्य को हासिल किया. आपने जासूस के किरदार में ज्यादातर पुरुषों को देखा या पढ़ा होगा. लेकिन हम आज बात करेंगे ऐसी महिलाओं की जिन्होंने जासूसी की दुनिया में ऊंचा मुकाम हासिल किया. उनकी कहानियां आपको भी दांतो तले उंगलियां दबाने पर मजबूर कर देंगी.
इन महिलाओं के किस्से साझा करने से पहले बता दें, कि शनिवार को मध्य प्रदेश पुलिस की क्राइम ब्रांच ने जासूसी के शक में इंदौर के महू से दो युवतियों को हिरासत में लिया. खुफिया सूचना के आधार पर इंदौर क्राइम ब्रांच की टीम ने यह कार्रवाई की है. ऐसा बताया जा रहा है कि दोनों युवतियां पाकिस्तान के लोगों से सोशल मीडिया फेसबुक और अन्य माध्यमों से संपर्क में थीं. पुलिस समेत अन्य विभाग दोनों से पूछताछ में जुटे हैं.
सहमत खान
इस सूची में पहला नाम सहमत खान का इसलिये है क्योंकि उनकी जिंदगी पर आधारित फिल्म राज़ी में आलिया भट्ट ने सहमत का किरदार निभाया है. जिसने भी वो फिल्म देखी होगी वो एक महिला जासूस के जज्बे और जान हथेली पर लेकर देश के लिए कुछ करने के जुनून के गवाह बन होंगे. कश्मीर की एक सीधी सादी लड़की जिसके सपने भी बहुत आम थे. लेकिन कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही उनके पिता ने उन्हें जासूस बनने को कह दिया. पिता और देश की खातिर वो तैयार भी हो गई. अपने देश के लिए उन्होंने एक पाकिस्तानी आर्मी ऑफिसर से शादी की और फिर पाकिस्तानी आर्मी की सारी खुफिया जानकारी भारतीय सेना तक पहुंचाई. वो उन चुनिंदा एजेंट में से एक थी जो जासूसी अपने काम को बखूबी अंजाम देकर अपने देश वापस लौट आईं. सहमत खान ने ही साल 1971 में भारत के आईएनएस विराट को डुबाने के पाकिस्तानी साजिश की जानकारी पहले ही पहुंचा दी थी. उनकी जिंदगी पर एक उपन्यास भी लिखा गया है.
सरस्वती राजमणि
भारत के महिला जासूसों की बात इस नाम के बिना अधूरी है. उनका परिवार रंगून में रहता था. वो नेताजी सुभाष चंद्र बोस से इतनी प्रभावित थीं कि जब नेताजी ने आजादी की जंग के लिए लोगों से आर्थिक मदद मांगी तो 16 साल की सरस्वती राजमणि ने अपने सारे गहने दे दिए. एक छोटी सी लड़की का देशप्रेम देखकर नेताजी भी खुश हुए और उन्हें आजाद हिंद फौज के खुफिया विभाग में शामिल कर लिया. सरस्वती वेश बदलकर अंग्रेजों के यहां काम करती थी और खुफिया जानकरी इकट्ठा करके नेताजी तक पहुंचाती थी. एक बार नेताजी के भेजे जासूसों में से एक जासूस को अंग्रेजों ने पकड़ लिया, वो खुद को गोली नहीं मार पाई थी. दरअसल जासूसी ट्रेनिंग के दौरान ही ये सिखाया गया था कि कभी अंग्रेज पकड़ लें तो खुद को गोली मार लेना ताकि कोई भी जानकारी अंग्रेजों को ना मिल पाए. ऐसे वक्त में सबको डर था कि उस जासूस को प्रताड़ित करके अंग्रेज जानकारी हासिल ना कर लें. इसके बाद सरस्वती ने डांसर का रूप धरकर अंग्रेजों के कैंप में पहुंचकर सभी को नशीला पदार्थ देकर बेहोश कर दिया और अपनी साथी को बचा लाई. लेकिन इस दौरान सरस्वती राजमणि के पैर में गोली लग गई. कहते हैं कि उसके बाद सरस्वती अपनी साथी के साथ एक पेड़ पर चढ़ गई और तीन दिन तक बिना भूख प्यास के तब तक पेड़ पर रहीं जब तक अंग्रेजों की तलाश खत्म नहीं हुई.
नूर इनायत खान
मैसूर के शासक रहे टीपू सुल्तान की वंशज रही नूर इनायत खान का जन्म मॉस्को में हुआ. एक जासूस के रूप में उनके किस्से हमेशा के लिए इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं. वो दूसरे विश्व युद्ध में पहली एशियाई मूल की जासूस थी. दूसरे विश्व युद्ध के दौरान वो ब्रिटेन की रॉयल एयरफोर्स में एयरक्राफ्ट अधिकारी के रूप में शामिल हुईं. जल्द ही उन्हें बतौर जासूस फ्रांस भेजा गया. जहां जर्मनी ने फ्रांस पर हमला कर दिया था. फ्रेंच भाषा पर अच्छी पकड़ के कारण उन्हें रेडियो ऑपरेटर बनाकर भेजा गया. जहां उनका कोड नेम मेडेलिन था. इस दौरान वो वेश बदलकर अलग-अलग जगह से खुफिया जानकारी भेजती रहीं. विश्व युद्ध के दौरान वो नर्स के रूप में काम करतीं थी. जासूसी के आरोप में वो पकड़ी तो गईं लेकिन दुश्मनों के प्रताड़ित किए जाने के बाद भी नूर ने कोई राज नहीं बताया. 13 सितंबर 1944 को उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई. कहते हैं कि फ्रांस में जासूसी के दौरान वो विंस्टन चर्चिल के विश्वसनीय लोगों में से एक थी. नूर अपने तीन उपनाम नोरा बेकर, मेडेलीन, जीन-मरी रेनिया के नाम से भी जानी जाती थीं. मौत के सालों बाद नूर को ब्रिटेन ने जॉर्ज क्रॉस से नवाजा गया. लंदन में उनकी प्रतिमा लगाई गई है. फ्रांस ने भी उन्हें अपने सर्वोच्च नागरिक सम्मान से नवाजा है. नूर अपने तीन उपनाम नोरा बेकर, मेडेलीन, जीन-मरी रेनिया के नाम से भी जानी जाती थीं.
पढ़ें: मध्य प्रदेश : जासूसी के शक में हिरासत में ली गईं दो युवतियां
माता हारी
मार्गेथा गीरत्रुइदा मैकलियोड, यही नाम था दुनिया की उस जानी मानी महिला जासूस का जिसे पहले विश्व युद्ध में जासूसी करने के आरोप में साल 1917 में गोली मार दी गई थी. 1876 में हॉलैंड में पैदा हुई मार्गेथा ने खुद को माता हारी नाम दिया और इटली में एक मशहूर डांसर बन गई. जिस पेशे में वो थी उसमें जिंदगी इतनी आसान नहीं थी. इसी वजह से पहले विश्व युद्ध के दौरान जब माताहारी को जर्मनी ने पैसे के बदले जानकारियां देने का प्रस्ताव दिया तो वह मान गई और वो जर्मनी के लिए जासूसी करने लगीं. उनपर जब फ्रांस की खुफिया जानकारियां जर्मनी को देने का आरोप लगा तो दावा किया गया कि उनकी वजह से हजारों सैनिकों की जान गई है. बाद भी उनके जीवन पर एक हॉलीवुड फिल्म भी बन चुकी है.
शी जिआनकिआओ
शी गुलान उस जासूस का नाम है जो अपने पिता की मौत का बदला लेने के लिए जासूस बनीं थी. जासूसी की दुनिया में शी गुलान को शी जिआनकिआओ के नाम से जाना जाता है. चीन के नेता सुन चुआंगफांग ने उनके पिता की हत्या कर दी थी और 10 साल बाद अपनी जासूसी के दम पर उन्होंने चुआंगफांग को गोली मारकर मौत के घाट उतारा और अपने पिता की मौत का बदला लिया. कहते हैं कि वो अपने पिता के हत्यारे को मौत के घाट उतारने के बाद भागी नहीं बल्कि वौ मौका-ए-वारदात पर ही मौजूद रहीं और अपना गुनाह कबूल किया. इस पूरे मामले में जब कोर्ट का फैसला आया तो उन्हें बरी किया गया. कोर्ट ने माना कि उन्होंने ये हत्या अपने पिता की हत्या से आहत होकर की है.
ये भी पढ़ें: क्या सिंधिया ने सोशल मीडिया पर कही दिल की बात, जो डिलीट करना पड़ा ट्वीट