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एक रिपोर्ट : महिलाओं की स्थिति सुधरी, लेकिन अब भी बहुत हैं रोड़े

सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने हाल ही में एक रिपोर्ट जारी की है. जिसके आंकड़े देश की जनसंख्या से लेकर शिक्षा, स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था में भागीदारी, निर्णय लेने में भागीदारी जैसे मोर्चों पर महिलाओं और पुरुषों की हिस्सेदारी के बारे में बताते हैं.

देश में महिलाओं की स्थिति
देश में महिलाओं की स्थिति
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Published : Apr 12, 2021, 4:04 PM IST

हैदराबाद: भारत सरकार के सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने साल 2020 की एक रिपोर्ट जारी की गई है. जिसमें देश की जनसंख्या से लेकर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में महिलाओं और पुरुषों से संबंधित आंकड़े जारी किए हैं. साथ ही रिपोर्ट में अर्थव्यवस्था में भागीदारी और निर्णय लेने में भागीदारी के मोर्चे पर महिलाओं की स्थ्ति भी बताई गई है. इसके अलावा महिलाओं के सशक्तिकरण में बाधाओं का भी जिक्र किया गया है. देश की कुल आबादी उस आधी आबादी से मिलकर बनती है जिसके सश्क्तिकरण के दावे और वादे सरकारें करती रहती है. इस रिपोर्ट के आंकड़े इन वादों और दावों की एक तस्वीर पेश करते हैं.

जनसंख्या के आंकड़े

- रिपोर्ट के मुताबिक भारत की जनसंख्या साल 2021 में 136.13 करोड़ हो जाएगी. जिसमें 48.65 फीसदी महिलाएं होंगी. बीते सालों में जनसंख्या में होने वाली सालाना वृद्धि दर में कमी दर्ज की गई है. जो साल 2011 में 1.63 से साल 2016 में 1.27 पहुंच गई और वर्ष 2021 में ये 1.07 तक पहुंच सकती है. इन सालों के दौरान महिला और पुरुषों की जनसंख्या में भी यही चलन देखा गया है.

- साल दर साल जनसंख्या वृद्धि की दर कम भले हुए हो लेकिन लिंगानुपात में इजाफा हुआ है. 2011 में जो लिंगानुपात 943 था वो 2021 में 948 रहने का अनुमान है.

-साल 2018 में देश में महिलाओं की शादी की औसत उम्र 22.3 वर्ष थी जो साल 2017 के मुकाबले 0.2 वर्ष अधिक थी. 2017 से 2018 के दौरान देश के ग्रामीण क्षेत्रों में भी महिलाओं के विवाह की औसत उम्र में 0.1 और शहरी क्षेत्रों में 0.3 वर्ष का इजाफा हुआ. जो बताता है कि महिलाओं की शादी की औसत उम्र बढ़ रही है. जो कि अच्छा संकेत है.

आंकड़ों की जुबानी सेहत की कहानी

-वर्ष 2018 में 25 से 29 साल की महिलाओं के लिए आयु विशिष्ट प्रजनन दर 146.4 दर्ज किया गया जबकि 20- 24 वर्ष की आयु वर्ग में महिलाओं के लिए यह 122.9 था. इसके अलावा, 20-24 वर्ष के आयु वर्ग के आयु विशिष्ट प्रजनन दर 2015 में 173.8 से घटकर 2018 में 122.9 हो गए, जबकि इसी अवधि के दौरान आयु वर्ग 30-34 वर्ष से 77.6 से 94.7 हो गया.

-रिपोर्ट के मुताबिक शिशु मृत्युदर 2014 में 39 थी जो साल 2018 में 32 हो गई. यानि इस दौरान हर 1000 शिशुओं पर 7 और शिशुओं को बचाया गया.

-बीते करीब 15 सालों में मातृ मृत्यु दर में भी कमी दर्ज की गई है. साल 2007 से 2009 तक मातृ मृत्यु दर 212 थी जो साल 2016-18 के बीच घटकर 113 रह गई.

- 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों की साक्षर आबादी में कुल प्रजनन दर 2.3 रही जबकि शहरों में ये 1.7 थी.

-रिपोर्ट के मुताबिक देश में 15 से 19 साल के किशोरों की प्रजनन दर 2017 में 13.0 थी जो साल 2018 में घटकर12.2 हो गई.

- 22 राज्यों के पुरुषों के स्वास्थ्य पर नजर डाली गई तो पाया गया कि सबसे अधिक मोटापा अंडमान और निकोबार द्वीप (45.3%) के पुरुषों में देखा गया उसके बाद लक्षद्वीप (41.3%) और लद्दाख (37.3%) के पुरुष मोटापे के शिकार पाए गए. जबकि मेघालय के पुरुषों (13.9%) में सबसे कम मोटापा पाया गया.

शिक्षा है जरूरी

बीते वर्षों में देश में साक्षरता दर में इजाफा हुआ है. साल 2011 में 73 फीसदी थी जो साल 2017 में 77.7 हो गई. साल 2017 में महिलाओं की साक्षरता दर 70.3 और पुरुषों की साक्षरता दर 84.7 थी.

-7 वर्ष या उससे अधिक आयु में साक्षरता दर का आंकड़ा ग्रामीण क्षेत्रों में 73.5 और शहरी क्षेत्रों में 87.7 थी.

-जुलाई 2017-जून 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक 15 साल या उससे अधिक उम्र की सिर्फ 8.3 फीसदी युवतियों ने ही ग्रेजुएशन या उससे अधिक स्तर तक पढ़ाई पूरी की जबकि इसी आयु वर्ग के युवकों की तादाद12.8 फीसदी थी.

-15 वर्ष या उससे अधिक आयु वर्ग की महिलाओं ने प्राथमिक या उससे ऊपरी शिक्षा प्राप्त करने में औसतन 9.4 वर्ष लगे जबकि 25 वर्ष या उससे अधिक आयु वर्ग में ये वक्त 8.9 वर्ष था. जबकि पुरुषों के दोनों आयु वर्गों में ये औसत क्रमश: 9.9 और 9.7 वर्ष था.

अर्थव्यवस्था में भागीदारी

2018-19 की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्र में श्रमिक जनसंख्या अनुपात महिलाओं के लिए 19.0 और पुरुषों के लिए 52.1 था. शहरी क्षेत्र में, महिलाओं के लिए अनुपात 14.5 और पुरुषों के लिए 52.7 है. ये आंकड़ा दिखाता है कि श्रमिक जनसंख्या अनुपात में महिलाओं की तादाद पुरुषों के मुकाबले शहर और ग्रामीण दोनों जगह बहुत कम है.

साल 2018-19 के आंकड़ों के मुताबिक 59.6 फीसदी ग्रामीण महिलाएं और 57.4 फीसदी ग्रामीण पुरुष स्व-रोजगार से जुड़े थे. जबकि शहरों में 54.7 फीसदी महिलाएं और 47.2 फीसदी पुरुष नियमित दिहाड़ी या सैलरी लेते हैं.

-1987-88 से लेकर 2018-19 के बाद तक कृषि क्षेत्र के श्रमिकों की संख्या में लगातार कमी दर्ज की गई है. जबकि व्यापार, होटल, रेस्टोरेंट या अन्य क्षेत्रों में काम करने वालों की तादाद में बढ़ोतरी हुई है.

- 15 वर्ष से अधिक उम्र वाले पुरुष श्रमिकों की श्रम बल भागीदारी दर साल 2011-12 से 2018-19 के बीच 79.8 फीसदी से 75.5 फीसदी तक गिर गई. इसी वक्त के दौरान महिला श्रमिकों की श्रम बल भागीदारी दर 31.2% से घटकर 24.5% रह गई.

- भारतीय रिज़र्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक वाणिज्यिक बैंकों में 31.88 फीसदी ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के खाते हैं. जबकि अर्ध शहरी में 29.51, शहरी क्षेत्र में 31.43 और महानगरों में 30.44 फीसदी खाते महिलाओं के थे.

-टाइम यूज सर्वे की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं का एक दिन में औसतन 247 मिनट घर के काम और घर के सदस्यों की सेवाओं में गुजरता है जिसके लिए उसे कोई भी वेतन नहीं मिलता जबकि दिन में औसतन 61 मिनट रोजगार संबंधी सेवाओं में लगता है. जबकि पुरुषों ने घर के काम में रोजाना औसतन 25 मिनट और रोजगार संबंधी सेवाओं में 263 मिनट दिए.

निर्णय लेने में भागीदारी

- बीते कुछ वर्षों में केंद्रीय मंत्रिपरिषद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में गिरावट आई है. साल 2020 में महिला मंत्रियों की तादाद सिर्फ 9.26 फीसदी थी.

- बीते सालों में महिला मतदाताओं की संख्या में भी इजाफा हुआ है. साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में महिला मतदाताओं की संख्या 39.7 करोड़ थी जो साल 2019 में 43 करोड़ से अधिक हो गई. वहीं मतदान करने वाली महिलाओं में भी इस दौरान करीब 2 फीसदी का इजाफा हुआ. साल 2014 में 65.6 फीसदी महिलाओं ने वोट डाले तो साल 2019 के लोकसभा चुनाव में 67.2 फीसदी महलिाओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया.

-2019 के चुनावों में महिला मतदाताओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. बिहार, यूपी, महाराष्ट्र, जम्मू और कश्मीर को छोड़कर सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 60 फीसदी महिलाओं ने वोट डाले

- देश के राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व 11 फीसदी था. सबसे अधिक महिला जनप्रतिनिधि केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी (32%) विधानसभा में थीं. उसके बाद सूची में मिजोरम (26%), बिहार (14%) और छत्तीसगढ़ (14%) और पश्चिम बंगाल (13%) हैं.

- न्यायपालिका में, पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट में महिला न्यायाधीशों की संख्या 10 है और उसके बाद मद्रास उच्च न्यायालय में 9 महिला न्यायाधीश हैं. पटना, मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा और उत्तराखंड के उच्च न्यायालयों में कोई महिला न्यायाधीश नहीं .

-पंचायती राज संस्थाओं में सबसे अधिक महिलाओं की भागीदारी राजस्थान (56.49%), उत्तराखंड (55.66%) और छत्तीसगढ़ (54.78%) में देखी गई.

सशक्तिकरण में अड़चन

-साल 2019 के दौरान महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर के मामलों में "पति और रिश्तेदारों की क्रूरता" 19.3% , चोट पहुंचाते हुए अपमानित करने के 13.6% और अपहरण के 11.2% मामले थे.

-2015-16 में जिन महिलाओं की उम्र 20 से 24 साल के बीच थी उनमें से 26.8 फीसदी की शादी 18 की उम्र में हो गई थी. इस मामले में बिहार का अनुपात सबसे अधिक था.

हैदराबाद: भारत सरकार के सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के तहत राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने साल 2020 की एक रिपोर्ट जारी की गई है. जिसमें देश की जनसंख्या से लेकर शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में महिलाओं और पुरुषों से संबंधित आंकड़े जारी किए हैं. साथ ही रिपोर्ट में अर्थव्यवस्था में भागीदारी और निर्णय लेने में भागीदारी के मोर्चे पर महिलाओं की स्थ्ति भी बताई गई है. इसके अलावा महिलाओं के सशक्तिकरण में बाधाओं का भी जिक्र किया गया है. देश की कुल आबादी उस आधी आबादी से मिलकर बनती है जिसके सश्क्तिकरण के दावे और वादे सरकारें करती रहती है. इस रिपोर्ट के आंकड़े इन वादों और दावों की एक तस्वीर पेश करते हैं.

जनसंख्या के आंकड़े

- रिपोर्ट के मुताबिक भारत की जनसंख्या साल 2021 में 136.13 करोड़ हो जाएगी. जिसमें 48.65 फीसदी महिलाएं होंगी. बीते सालों में जनसंख्या में होने वाली सालाना वृद्धि दर में कमी दर्ज की गई है. जो साल 2011 में 1.63 से साल 2016 में 1.27 पहुंच गई और वर्ष 2021 में ये 1.07 तक पहुंच सकती है. इन सालों के दौरान महिला और पुरुषों की जनसंख्या में भी यही चलन देखा गया है.

- साल दर साल जनसंख्या वृद्धि की दर कम भले हुए हो लेकिन लिंगानुपात में इजाफा हुआ है. 2011 में जो लिंगानुपात 943 था वो 2021 में 948 रहने का अनुमान है.

-साल 2018 में देश में महिलाओं की शादी की औसत उम्र 22.3 वर्ष थी जो साल 2017 के मुकाबले 0.2 वर्ष अधिक थी. 2017 से 2018 के दौरान देश के ग्रामीण क्षेत्रों में भी महिलाओं के विवाह की औसत उम्र में 0.1 और शहरी क्षेत्रों में 0.3 वर्ष का इजाफा हुआ. जो बताता है कि महिलाओं की शादी की औसत उम्र बढ़ रही है. जो कि अच्छा संकेत है.

आंकड़ों की जुबानी सेहत की कहानी

-वर्ष 2018 में 25 से 29 साल की महिलाओं के लिए आयु विशिष्ट प्रजनन दर 146.4 दर्ज किया गया जबकि 20- 24 वर्ष की आयु वर्ग में महिलाओं के लिए यह 122.9 था. इसके अलावा, 20-24 वर्ष के आयु वर्ग के आयु विशिष्ट प्रजनन दर 2015 में 173.8 से घटकर 2018 में 122.9 हो गए, जबकि इसी अवधि के दौरान आयु वर्ग 30-34 वर्ष से 77.6 से 94.7 हो गया.

-रिपोर्ट के मुताबिक शिशु मृत्युदर 2014 में 39 थी जो साल 2018 में 32 हो गई. यानि इस दौरान हर 1000 शिशुओं पर 7 और शिशुओं को बचाया गया.

-बीते करीब 15 सालों में मातृ मृत्यु दर में भी कमी दर्ज की गई है. साल 2007 से 2009 तक मातृ मृत्यु दर 212 थी जो साल 2016-18 के बीच घटकर 113 रह गई.

- 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों की साक्षर आबादी में कुल प्रजनन दर 2.3 रही जबकि शहरों में ये 1.7 थी.

-रिपोर्ट के मुताबिक देश में 15 से 19 साल के किशोरों की प्रजनन दर 2017 में 13.0 थी जो साल 2018 में घटकर12.2 हो गई.

- 22 राज्यों के पुरुषों के स्वास्थ्य पर नजर डाली गई तो पाया गया कि सबसे अधिक मोटापा अंडमान और निकोबार द्वीप (45.3%) के पुरुषों में देखा गया उसके बाद लक्षद्वीप (41.3%) और लद्दाख (37.3%) के पुरुष मोटापे के शिकार पाए गए. जबकि मेघालय के पुरुषों (13.9%) में सबसे कम मोटापा पाया गया.

शिक्षा है जरूरी

बीते वर्षों में देश में साक्षरता दर में इजाफा हुआ है. साल 2011 में 73 फीसदी थी जो साल 2017 में 77.7 हो गई. साल 2017 में महिलाओं की साक्षरता दर 70.3 और पुरुषों की साक्षरता दर 84.7 थी.

-7 वर्ष या उससे अधिक आयु में साक्षरता दर का आंकड़ा ग्रामीण क्षेत्रों में 73.5 और शहरी क्षेत्रों में 87.7 थी.

-जुलाई 2017-जून 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक 15 साल या उससे अधिक उम्र की सिर्फ 8.3 फीसदी युवतियों ने ही ग्रेजुएशन या उससे अधिक स्तर तक पढ़ाई पूरी की जबकि इसी आयु वर्ग के युवकों की तादाद12.8 फीसदी थी.

-15 वर्ष या उससे अधिक आयु वर्ग की महिलाओं ने प्राथमिक या उससे ऊपरी शिक्षा प्राप्त करने में औसतन 9.4 वर्ष लगे जबकि 25 वर्ष या उससे अधिक आयु वर्ग में ये वक्त 8.9 वर्ष था. जबकि पुरुषों के दोनों आयु वर्गों में ये औसत क्रमश: 9.9 और 9.7 वर्ष था.

अर्थव्यवस्था में भागीदारी

2018-19 की रिपोर्ट के मुताबिक ग्रामीण क्षेत्र में श्रमिक जनसंख्या अनुपात महिलाओं के लिए 19.0 और पुरुषों के लिए 52.1 था. शहरी क्षेत्र में, महिलाओं के लिए अनुपात 14.5 और पुरुषों के लिए 52.7 है. ये आंकड़ा दिखाता है कि श्रमिक जनसंख्या अनुपात में महिलाओं की तादाद पुरुषों के मुकाबले शहर और ग्रामीण दोनों जगह बहुत कम है.

साल 2018-19 के आंकड़ों के मुताबिक 59.6 फीसदी ग्रामीण महिलाएं और 57.4 फीसदी ग्रामीण पुरुष स्व-रोजगार से जुड़े थे. जबकि शहरों में 54.7 फीसदी महिलाएं और 47.2 फीसदी पुरुष नियमित दिहाड़ी या सैलरी लेते हैं.

-1987-88 से लेकर 2018-19 के बाद तक कृषि क्षेत्र के श्रमिकों की संख्या में लगातार कमी दर्ज की गई है. जबकि व्यापार, होटल, रेस्टोरेंट या अन्य क्षेत्रों में काम करने वालों की तादाद में बढ़ोतरी हुई है.

- 15 वर्ष से अधिक उम्र वाले पुरुष श्रमिकों की श्रम बल भागीदारी दर साल 2011-12 से 2018-19 के बीच 79.8 फीसदी से 75.5 फीसदी तक गिर गई. इसी वक्त के दौरान महिला श्रमिकों की श्रम बल भागीदारी दर 31.2% से घटकर 24.5% रह गई.

- भारतीय रिज़र्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक वाणिज्यिक बैंकों में 31.88 फीसदी ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के खाते हैं. जबकि अर्ध शहरी में 29.51, शहरी क्षेत्र में 31.43 और महानगरों में 30.44 फीसदी खाते महिलाओं के थे.

-टाइम यूज सर्वे की 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं का एक दिन में औसतन 247 मिनट घर के काम और घर के सदस्यों की सेवाओं में गुजरता है जिसके लिए उसे कोई भी वेतन नहीं मिलता जबकि दिन में औसतन 61 मिनट रोजगार संबंधी सेवाओं में लगता है. जबकि पुरुषों ने घर के काम में रोजाना औसतन 25 मिनट और रोजगार संबंधी सेवाओं में 263 मिनट दिए.

निर्णय लेने में भागीदारी

- बीते कुछ वर्षों में केंद्रीय मंत्रिपरिषद में महिलाओं के प्रतिनिधित्व में गिरावट आई है. साल 2020 में महिला मंत्रियों की तादाद सिर्फ 9.26 फीसदी थी.

- बीते सालों में महिला मतदाताओं की संख्या में भी इजाफा हुआ है. साल 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में महिला मतदाताओं की संख्या 39.7 करोड़ थी जो साल 2019 में 43 करोड़ से अधिक हो गई. वहीं मतदान करने वाली महिलाओं में भी इस दौरान करीब 2 फीसदी का इजाफा हुआ. साल 2014 में 65.6 फीसदी महिलाओं ने वोट डाले तो साल 2019 के लोकसभा चुनाव में 67.2 फीसदी महलिाओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया.

-2019 के चुनावों में महिला मतदाताओं ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. बिहार, यूपी, महाराष्ट्र, जम्मू और कश्मीर को छोड़कर सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में 60 फीसदी महिलाओं ने वोट डाले

- देश के राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के प्रतिनिधित्व 11 फीसदी था. सबसे अधिक महिला जनप्रतिनिधि केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी (32%) विधानसभा में थीं. उसके बाद सूची में मिजोरम (26%), बिहार (14%) और छत्तीसगढ़ (14%) और पश्चिम बंगाल (13%) हैं.

- न्यायपालिका में, पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट में महिला न्यायाधीशों की संख्या 10 है और उसके बाद मद्रास उच्च न्यायालय में 9 महिला न्यायाधीश हैं. पटना, मणिपुर, मेघालय, त्रिपुरा और उत्तराखंड के उच्च न्यायालयों में कोई महिला न्यायाधीश नहीं .

-पंचायती राज संस्थाओं में सबसे अधिक महिलाओं की भागीदारी राजस्थान (56.49%), उत्तराखंड (55.66%) और छत्तीसगढ़ (54.78%) में देखी गई.

सशक्तिकरण में अड़चन

-साल 2019 के दौरान महिलाओं के खिलाफ अपराध की दर के मामलों में "पति और रिश्तेदारों की क्रूरता" 19.3% , चोट पहुंचाते हुए अपमानित करने के 13.6% और अपहरण के 11.2% मामले थे.

-2015-16 में जिन महिलाओं की उम्र 20 से 24 साल के बीच थी उनमें से 26.8 फीसदी की शादी 18 की उम्र में हो गई थी. इस मामले में बिहार का अनुपात सबसे अधिक था.

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