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गठबंधन के साथी छोड़ रहे साथ, भाजपा बोली सभी अवसरवादी थे

बिहार में बीजेपी से जेडीयू के अलगाव के किस्से ने बीजेपी के बड़े नेताओं को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि एनडीए में शामिल पार्टियां अगर ऐसे ही अलग होती रहीं, तो लंबे सफर में ये रास्ता मुश्किल हो सकता है. पार्टी के बड़े नेताओं के बीच विचार-मंथन चल रहा है कि क्या गठबंधन के मित्रों की तरफ हमारे नेताओं के तेवर कुछ ज़्यादा ही तल्ख हो गए हैं. आखिर क्या वजह है कि गठबंधन के पुराने सहयोगी बीजेपी पर अपमानित करने का गाहे बगाहे आरोप लगाते रहे हैं. अनामिका रत्ना की रिपोर्ट...

साथी छोड़ रहे साथ, भाजपा बोली सभी अवसरवादी थी
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Published : Aug 11, 2022, 2:06 PM IST

Updated : Aug 11, 2022, 2:27 PM IST

नई दिल्ली : साल भर पहले किसानों के मुद्दे पर जब शिरोमणि अकाली दल ने एनडीए का साथ छोड़ा, तो आरोप लगाया था कि मोदी सरकार में उनकी पार्टी की सुनी नहीं जा रही. शिवसेना ने भी एनडीए से अलग होने से पहले बिलकुल यही कहा था. आरोप लगाया था कि उनके नेताओं को बीजेपी गाहे-बगाहे अपमानित करती रहती है. ये दोनों ही पार्टियां बीजेपी के साथ वाजपेयी के समय से हैं. हालांकि बीजेपी इन पार्टियों को अवसरवादी बताते हुए खुद पर लगाए आरोपों से इनकार करती रही है, लेकिन सच्चाई ये भी है,की गठबंधन की जितनी भी पार्टियां अलग हुईं, उन्हें मनाने या रोकने की कोशिश भी बीजेपी ने नहीं की.

पढ़ें: पीएम मोदी का कांग्रेस पर तंज... काले जादू में भरोसा करने वाले, कभी जनता का भरोसा नहीं जीत पाएंगे

उत्तर प्रदेश पिछले चुनाव में अलग हुए स्वामी प्रसाद मौर्य हों, या छोटी छोटी गठबंधन की पार्टियां, सभी बीजेपी आलाकमान पर यही आरोप लगाकर पार्टी से निकले कि बड़े नेताओं ने उनकी सुनी नहीं. तो क्या ‘बड़े भाई’ वाली भूमिका निभाती आ रही पार्टी के नेताओं के स्वभाव में निरंकुशता आ गई है ? पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह इस बात से इंकार करते हैं. उन्होंने कहा कि जो हमें छोड़ कर चले गए, वे अवसरवादी हैं. जो वास्तविक सहयोगी हैं, वो अभी भी तालमेल बिठाकर चल रहे हैं. सच बात ये है कि अलग अलग राज्यों में कई छोटी बड़ी पार्टियां एनडीए के गठबंधन में आना चाहती हैं.

अरुण सिंह ने कहा कि भाजपा में शुरू से ही आंतरिक अनुशासन है और कोई भी बात हर जगह नही कही जा सकती. किसी भी मुद्दे को उठाने का एक तरीका होता है और उसका प्लेटफार्म बनाया गया है. मगर ये पार्टियां ऐसे मुद्दे भी सार्वजनिक प्लेटफार्म पर उठाती रहीं जिन्हे आपस में बैठकर सुलझाया जा सकता था. इतना ही नहीं, अलग होने के बाद बीजेपी पर निरंकुशता के आरोप लगाती रहीं हैं, जो गलत है.

पढ़ें: गठबंधन किसके साथ है से ज्यादा मायने रखता है बिहार के लिए काम क्या हो रहा है : प्रशांत किशोर

पार्टी के कई नेता ये मानते हैं कि अनुशासन और अपमानजनक व्यवहार दोनों अलग अलग बातें हैं. गठबंधन में कुछ जोड़ कर, कुछ छोड़ कर चलना पड़ता है. इसलिए छोड़ कर गए साथियों को बेशक अवसरवादी कह कर हाथ झाड़ लिया जाए, लेकिन शिवसेना, जदयू और अकाली दल तीनों ही बड़ी पार्टियां थीं, और अलगाव के तीनों ही मामलों से बचा जा सकता था. बहरहाल बिहार हाथ से निकलना बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका है. सूत्र बताते हैं कि पार्टी के भीतर आत्ममंथन ये चल रहा है कि सहयोगी दलों के प्रति पार्टी का रवैया सदाशयता पूर्ण होना चाहिए, जिससे उनके साथी उनसे अलग हो कर विपक्ष को कोई ‘मौका’ न दें.

नई दिल्ली : साल भर पहले किसानों के मुद्दे पर जब शिरोमणि अकाली दल ने एनडीए का साथ छोड़ा, तो आरोप लगाया था कि मोदी सरकार में उनकी पार्टी की सुनी नहीं जा रही. शिवसेना ने भी एनडीए से अलग होने से पहले बिलकुल यही कहा था. आरोप लगाया था कि उनके नेताओं को बीजेपी गाहे-बगाहे अपमानित करती रहती है. ये दोनों ही पार्टियां बीजेपी के साथ वाजपेयी के समय से हैं. हालांकि बीजेपी इन पार्टियों को अवसरवादी बताते हुए खुद पर लगाए आरोपों से इनकार करती रही है, लेकिन सच्चाई ये भी है,की गठबंधन की जितनी भी पार्टियां अलग हुईं, उन्हें मनाने या रोकने की कोशिश भी बीजेपी ने नहीं की.

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उत्तर प्रदेश पिछले चुनाव में अलग हुए स्वामी प्रसाद मौर्य हों, या छोटी छोटी गठबंधन की पार्टियां, सभी बीजेपी आलाकमान पर यही आरोप लगाकर पार्टी से निकले कि बड़े नेताओं ने उनकी सुनी नहीं. तो क्या ‘बड़े भाई’ वाली भूमिका निभाती आ रही पार्टी के नेताओं के स्वभाव में निरंकुशता आ गई है ? पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव अरुण सिंह इस बात से इंकार करते हैं. उन्होंने कहा कि जो हमें छोड़ कर चले गए, वे अवसरवादी हैं. जो वास्तविक सहयोगी हैं, वो अभी भी तालमेल बिठाकर चल रहे हैं. सच बात ये है कि अलग अलग राज्यों में कई छोटी बड़ी पार्टियां एनडीए के गठबंधन में आना चाहती हैं.

अरुण सिंह ने कहा कि भाजपा में शुरू से ही आंतरिक अनुशासन है और कोई भी बात हर जगह नही कही जा सकती. किसी भी मुद्दे को उठाने का एक तरीका होता है और उसका प्लेटफार्म बनाया गया है. मगर ये पार्टियां ऐसे मुद्दे भी सार्वजनिक प्लेटफार्म पर उठाती रहीं जिन्हे आपस में बैठकर सुलझाया जा सकता था. इतना ही नहीं, अलग होने के बाद बीजेपी पर निरंकुशता के आरोप लगाती रहीं हैं, जो गलत है.

पढ़ें: गठबंधन किसके साथ है से ज्यादा मायने रखता है बिहार के लिए काम क्या हो रहा है : प्रशांत किशोर

पार्टी के कई नेता ये मानते हैं कि अनुशासन और अपमानजनक व्यवहार दोनों अलग अलग बातें हैं. गठबंधन में कुछ जोड़ कर, कुछ छोड़ कर चलना पड़ता है. इसलिए छोड़ कर गए साथियों को बेशक अवसरवादी कह कर हाथ झाड़ लिया जाए, लेकिन शिवसेना, जदयू और अकाली दल तीनों ही बड़ी पार्टियां थीं, और अलगाव के तीनों ही मामलों से बचा जा सकता था. बहरहाल बिहार हाथ से निकलना बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका है. सूत्र बताते हैं कि पार्टी के भीतर आत्ममंथन ये चल रहा है कि सहयोगी दलों के प्रति पार्टी का रवैया सदाशयता पूर्ण होना चाहिए, जिससे उनके साथी उनसे अलग हो कर विपक्ष को कोई ‘मौका’ न दें.

Last Updated : Aug 11, 2022, 2:27 PM IST
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