नई दिल्ली : ठंड का मौसम आने के साथ लद्दाख में तैनात सैनिकों के लिए पहले से दुर्गम हालात और मुश्किल हो गए हैं. सूत्रों ने ईटीवी भारत को बताया कि पूर्वी लद्दाख में तैनात सैनिक की ठंड के कारण मौत हो गई.
सैनिक की मौत के बारे में परिजनों को बता दिया गया है. एक सूत्र, जिसने ऊंचाई पर स्थित सेना की मेडिकल विंग में काम किया था, ने बताया कि कड़ाके की ठंड में शरीर को गर्म रखने के लिए दिल को ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है. ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ऑक्सीजन की कमी से समस्या बद से बदतर हो जाती है.
लद्दाख में तैनाती से पहले सभी जवानों की अनिवार्य मेडिकल जांच की जाती है. लेकिन दुर्गम स्थितियों में मुश्किल बढ़ जाती है. कई क्षेत्रों में अभी से रात का तापमान -20 डिग्री सेल्सियस तक गिर जाता है और इसमें शीत लहर हालात और खराब कर देती है.
ऐसी दुर्गम परिस्थितियों में विशेष उपकरणों और रसद की जरूरत होती है. इसमें सैन्य उपकरणों के पर्याप्त रख रखाव के अलावा सैनिकों के लिए राशन, कपड़े और गर्म आवास की निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करना शामिल है.
भारतीय सेना की हर इंफेंट्री की ऊंचाई वाले इलाकों में तैनाती अनिवार्य है. इन इलाकों में सियाचिन ग्लेशियर, लद्दाख, उत्तराखंड, उत्तर सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश शामिल हैं.
सियाचिन में बीते 36 वर्षों से भारतीय सेना के जवानों को तैनात किया जा रहा है. सियाचिन में उनकी तैनाती 18,000-25,000 फीट की ऊंचाई पर होती है. वहीं, लद्दाख में 12,000-18,000 फीट की ऊंचाई पर तैनाती होती है.
आकड़ों की मानें तो सियाचिन ग्लेशियर पर 2017, 2018 और 2019 में क्रमश: छह, आठ और आठ सैनिकों की ठंड से मौत हुई थी. रक्षा राज्य मंत्री श्रीपद नाइक ने बताया कि सियाचिन ग्लेशियर पर मृत्यु के मुख्य कारणों में हाई एल्टीट्यूड पल्मनरी एडिमा और पल्मनरी थ्रोम्बो एम्बोलिज्म शामिल हैं. फिलहाल वास्तविक नियंत्रण रेखा के क्षेत्र में भारी सैन्य उपकरणों के साथ-साथ एक लाख से ज्यादा सैनिकों की तैनाती की गई है.
बता दें कि वर्तमान में भारत-चीन गतिरोध को देखते हुए दोनों तरफ की भारी फौज अपनी पूरी लाव-लश्कर के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास डटी हुई है.