कोलकाता : रथयात्रा या रथ रैली हमेशा किसी भी चुनाव से पहले भाजपा के लिए एक ट्रेडमार्क अभियान की तरह है. स्वाभाविक रूप से पश्चिम बंगाल जहां अब किसी भी दिन विधानसभा चुनाव की तारीखों की घोषणा की जा सकती है, यह अभियान चर्चा में है. भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा भी बंगाल चुनाव से पहले रथयात्रा का आयोजन करने के लिए कमर कस रहे हैं. जिसका एकमात्र उद्देश्य तृणमूल कांग्रेस के दस साल के लंबे शासन को समाप्त करना और राज्य के राजनीतिक मानचित्र में भगवा वर्चस्व स्थापित करना है.
पहले से ही नड्डा राजनीतिक कार्यक्रमों में भाग लेने के लिए राज्य में हैं. हालांकि क्या वह वास्तव में अपने अभियान में रथ लहर स्थापित करने में सक्षम होंगे या नहीं, अभी भी अनिश्चित है. राज्य सरकार को अभी तक रथयात्रा के लिए अपनी अंतिम सहमति देना बाकी है.
अब सवाल यह है कि अगर राज्य सरकार आखिरकार इस बात पर अपनी सहमति देती है कि रथ रैली भगवा खेमे के राजनीतिक लाभ में कितना इजाफा करेगी. इस तरह की पहली रथ रैली को अपार लोकप्रियता मिली थी. हालांकि इस पर अति उत्साह बरसों से फीका रहा और बाद के चुनावों में यह घटना वास्तव में राजनीतिक लाभ के लिए बहुत कुछ नहीं जोड़ पाई.
30 साल पहले हुई शुरुआत
लगभग 30 साल पहले लाल कृष्ण आडवाणी ने इस रथ रैली की परंपरा शुरू की थी. राम मंदिर की चरम लहर ने देश के राजनीतिक परिदृश्य को झकझोरना शुरू कर दिया था. उस मुद्दे पर बढ़ते उन्माद का फायदा उठाने के लिए आडवाणी ने रथयात्रा शुरू की. जिससे 1991 में भाजपा को राजनीतिक लाभ मिला. भगवा खेमे ने विशेषकर उत्तर प्रदेश में अच्छा प्रदर्शन किया.
अगर हम आडवाणी को आगे करते हैं तो 2004 में उप प्रधानमंत्री और केंद्रीय गृह मंत्री ने रथ रैली का एक और दौर शुरू किया. रथ रैली राष्ट्र के विभिन्न हिस्सों से होकर गुजरी जो उस समय के अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में किए गए विकास कार्यों का प्रचार कर रही थी. जिसके कारण केंद्र सरकार और उसकी सफलता का मार्ग प्रशस्त हुआ.
दूसरी बार नहीं मिली थी सफलता
हालांकि रथ रैली ने भाजपा के लिए सकारात्मक परिणाम नहीं दिए और भगवा खेमे को हराकर कांग्रेस ने सत्ता हासिल कर ली. बाद के चुनावों के दौरान रथ रैलियों का दौर जारी रहा, लेकिन उनमें से कोई भी सफल नहीं रहा. हालांकि वे अभी भी रथ रैली के माध्यम से लोगों तक पहुंचना चाहते हैं.
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इस बीच पश्चिम बंगाल में कई अन्य राजनीतिक कार्यक्रमों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा भाग लिया जा रहा है. बंगाल में राजनीतिक हवा धीरे-धीरे धधक रही है.