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नीतीश-ममता ने 'सहमति' तो बना ली, पर क्या टीएमसी प.बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से एक भी सीट कांग्रेस को देगी ? - congress tmc west bengal

बिहार के मुख्यमंत्री और प.बंगाल के मुख्यंत्री के बीच मुलाकात हुई, विपक्षी दलों को साथ लाने पर सैद्धान्तिक सहमति भी बनी, लेकिन इस गठबंधन में कांग्रेस का क्या रोल होगा, इस पर अलग-अलग राय कायम है. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि टीएमसी के लिए कांग्रेस को जगह देना इतना आसान नहीं है.

nitish kumar, mamata banerjee
बिहार के सीएम नीतीश कुमार, प. बंगाल की सीएम ममता बनर्जी
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Published : Apr 30, 2023, 3:07 PM IST

नई दिल्ली : पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और बिहार में उनके समकक्ष नीतीश कुमार के बीच 24 अप्रैल को 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा विरोधी महागठबंधन का रास्ता साफ करने के लिए महत्वपूर्ण बैठक हुई. अब बैठक को लेकर राज्य के राजनीतिक हलकों में सवाल उठ रहे हैं. पहला सवाल यह है कि क्या नीतीश कुमार को तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो के साथ समझ बनाने के लिए जानबूझकर नियुक्त किया गया था, यह देखते हुए कि ममता बनर्जी के पार्टी नेतृत्व ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया है कि वे भाजपा और कांग्रेस के साथ समान दूरी बनाए रखेंगे और इसके बजाय प्रयास करेंगे देश के सभी क्षेत्रीय दलों के बीच समझ विकसित हो.

दूसरा सवाल यह है कि नीतीश कुमार कांग्रेस और तृणमूल नेतृत्व को एक मंच पर कहां तक ला पाएंगे. इस प्रश्न का उत्तर 24 अप्रैल को संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में अनुत्तरित रहा, जिसमें बनर्जी, कुमार और राजद नेता तेजस्वी यादव ने भाग लिया. उस दिन जब कुछ मीडियाकर्मियों ने विपक्षी गठबंधन मॉडल में कांग्रेस की स्थिति के बारे में सवाल किया, तो ममता बनर्जी ने उन पत्रकारों को रोक दिया और कहा कि मीडिया को इससे परेशान होने की जरूरत नहीं है.

ममता बनर्जी ने उस दिन कहा, आपको इन सभी चीजों के बारे में सोचने की जरूरत नहीं है. हम एक साथ रहेंगे. देश के लोग भाजपा के खिलाफ लड़ेंगे. सभी दल एक साथ चलेंगे. प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने जोर देकर कहा कि सभी विपक्षी दलों को 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ अपने संयुक्त कदम में एकजुट होकर काम करने के लिए अपना अहंकार छोड़ना होगा.

दरअसल, शुरू से ही इस महागठबंधन को लेकर बनर्जी और कुमार की सोच अलग रही है. जहां एक तरफ नीतीश कुमार इस मामले में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे समेत कांग्रेस के शीर्ष नेताओं से करीबी तालमेल बनाए हुए हैं, वहीं तृणमूल कांग्रेस देश की सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी से दूरी बनाए हुए है. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि यहां यह सवाल और अधिक प्रासंगिक हो जाता है कि क्या कुमार आखिरकार दोनों ताकतों को एक साथ लाने में सक्षम होंगे. वे बताते हैं कि कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस दोनों के बीच इस मामले में बहस के कुछ बिंदु हैं, जो वास्तव में कम से कम चुनाव पूर्व परिदृश्य में एक ही मंच पर आने वाली दो ताकतों की एक अच्छी तस्वीर पेश नहीं करते हैं.

अनुभवी राजनीतिक पर्यवेक्षक और विश्लेषक सब्यसाची बंदोपाध्याय के अनुसार, चूंकि चुनाव पूर्व गठबंधन हमेशा सीटों के बंटवारे के समझौते के साथ आता है, पश्चिम बंगाल के मामले में तृणमूल कांग्रेस के लिए कांग्रेस या किसी अन्य पार्टी के लिए 42 लोकसभा सीटों में से एक भी सीट का त्याग करना लगभग असंभव है. ममता बनर्जी का उद्देश्य संसद के निचले सदन में अधिक से अधिक संख्या में उपस्थिति हासिल करना है और वह इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि पश्चिम बंगाल एकमात्र राज्य है, जहां उन्हें सीटें मिलेंगी.

बंदोपाध्याय ने कहा कि यही कारण है कि वे, अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ चुनावों के बाद ही विपक्ष के नेता की पसंद पर जोर दे रही हैं. इसलिए, तृणमूल कांग्रेस के दृष्टिकोण से यह कांग्रेस के साथ सौहार्दपूर्ण समझ के लिए प्रमुख बाधा है. बंदोपाध्याय ने कहा, कांग्रेस के दृष्टिकोण से, विशेष रूप से पार्टी की पश्चिम बंगाल इकाई से, तृणमूल कांग्रेस के साथ एक सौहार्दपूर्ण समझ का विकल्प आसान काम नहीं होगा. सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाली वाम मोर्चा के साथ कांग्रेस की मौजूदा समझ से तृणमूल असहमत है.

बंधोपाध्याय ने कहा, मुर्शिदाबाद जिले में अल्पसंख्यक बहुल सागरदिघी विधानसभा क्षेत्र के लिए हाल ही में संपन्न उपचुनाव, जहां वाम मोर्चा समर्थित कांग्रेस उम्मीदवार ने भारी बहुमत से जीत हासिल की थी, ने दोनों दलों को 2024 के लोकसभा चुनावों तक समझ को आगे बढ़ाने के लिए और अधिक उत्साहित कर दिया है. उसी समय, कांग्रेस तृणमूल कांग्रेस के बजाय वाम मोर्चे के साथ सीट बंटवारे के समझौते पर सौदेबाजी की स्थिति में होगी. इसलिए, कांग्रेस के तर्क के अनुसार, तृणमूल कांग्रेस को एक भागीदार के रूप में स्वीकार करना इतना आसान नहीं होगा.

हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक और स्तंभकार अमल इस बात से सहमत नहीं हैं कि सागरदिघी उपचुनाव के नतीजे हर समय कांग्रेस-वाममोर्चा समीकरणों के अंतिम संकेतक हो सकते हैं. सीपीआई (एम) या वाम मोर्चा एक संगठित ताकत होने के नाते गठबंधन के फॉर्मूले के तहत हमेशा अपने पारंपरिक मतदाताओं को कांग्रेस उम्मीदवार के पीछे लामबंद कर सकते हैं. लेकिन क्या कांग्रेस नेतृत्व वाम मोर्चा के उम्मीदवार के समर्थन में अपने समर्पित मतदाताओं की उसी लामबंदी को हासिल कर सकता है? इसलिए, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि सागरदिघी मॉडल की सफलता एकमात्र कारक होगी, जो 2024 तक कांग्रेस-वाम मोर्चा की समझ सुनिश्चित करेगी. अमल के मुताबिक आगामी त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में भाजपा, तृणमूल व वाम-कांग्रेस गठबंधन का प्रदर्शन आगामी लोकसभा चुनाव के लिए महत्वपूर्ण संकेतक होगा.

ये भी पढ़ें : Opposition unity: ममता और नीतीश कुमार से मुलाकात, कहा-बीजेपी के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने को तैयार

(आईएएनएस)

नई दिल्ली : पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और बिहार में उनके समकक्ष नीतीश कुमार के बीच 24 अप्रैल को 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा विरोधी महागठबंधन का रास्ता साफ करने के लिए महत्वपूर्ण बैठक हुई. अब बैठक को लेकर राज्य के राजनीतिक हलकों में सवाल उठ रहे हैं. पहला सवाल यह है कि क्या नीतीश कुमार को तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो के साथ समझ बनाने के लिए जानबूझकर नियुक्त किया गया था, यह देखते हुए कि ममता बनर्जी के पार्टी नेतृत्व ने पहले ही यह स्पष्ट कर दिया है कि वे भाजपा और कांग्रेस के साथ समान दूरी बनाए रखेंगे और इसके बजाय प्रयास करेंगे देश के सभी क्षेत्रीय दलों के बीच समझ विकसित हो.

दूसरा सवाल यह है कि नीतीश कुमार कांग्रेस और तृणमूल नेतृत्व को एक मंच पर कहां तक ला पाएंगे. इस प्रश्न का उत्तर 24 अप्रैल को संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में अनुत्तरित रहा, जिसमें बनर्जी, कुमार और राजद नेता तेजस्वी यादव ने भाग लिया. उस दिन जब कुछ मीडियाकर्मियों ने विपक्षी गठबंधन मॉडल में कांग्रेस की स्थिति के बारे में सवाल किया, तो ममता बनर्जी ने उन पत्रकारों को रोक दिया और कहा कि मीडिया को इससे परेशान होने की जरूरत नहीं है.

ममता बनर्जी ने उस दिन कहा, आपको इन सभी चीजों के बारे में सोचने की जरूरत नहीं है. हम एक साथ रहेंगे. देश के लोग भाजपा के खिलाफ लड़ेंगे. सभी दल एक साथ चलेंगे. प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने जोर देकर कहा कि सभी विपक्षी दलों को 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ अपने संयुक्त कदम में एकजुट होकर काम करने के लिए अपना अहंकार छोड़ना होगा.

दरअसल, शुरू से ही इस महागठबंधन को लेकर बनर्जी और कुमार की सोच अलग रही है. जहां एक तरफ नीतीश कुमार इस मामले में कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे समेत कांग्रेस के शीर्ष नेताओं से करीबी तालमेल बनाए हुए हैं, वहीं तृणमूल कांग्रेस देश की सबसे पुरानी राष्ट्रीय पार्टी से दूरी बनाए हुए है. राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि यहां यह सवाल और अधिक प्रासंगिक हो जाता है कि क्या कुमार आखिरकार दोनों ताकतों को एक साथ लाने में सक्षम होंगे. वे बताते हैं कि कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस दोनों के बीच इस मामले में बहस के कुछ बिंदु हैं, जो वास्तव में कम से कम चुनाव पूर्व परिदृश्य में एक ही मंच पर आने वाली दो ताकतों की एक अच्छी तस्वीर पेश नहीं करते हैं.

अनुभवी राजनीतिक पर्यवेक्षक और विश्लेषक सब्यसाची बंदोपाध्याय के अनुसार, चूंकि चुनाव पूर्व गठबंधन हमेशा सीटों के बंटवारे के समझौते के साथ आता है, पश्चिम बंगाल के मामले में तृणमूल कांग्रेस के लिए कांग्रेस या किसी अन्य पार्टी के लिए 42 लोकसभा सीटों में से एक भी सीट का त्याग करना लगभग असंभव है. ममता बनर्जी का उद्देश्य संसद के निचले सदन में अधिक से अधिक संख्या में उपस्थिति हासिल करना है और वह इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि पश्चिम बंगाल एकमात्र राज्य है, जहां उन्हें सीटें मिलेंगी.

बंदोपाध्याय ने कहा कि यही कारण है कि वे, अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ चुनावों के बाद ही विपक्ष के नेता की पसंद पर जोर दे रही हैं. इसलिए, तृणमूल कांग्रेस के दृष्टिकोण से यह कांग्रेस के साथ सौहार्दपूर्ण समझ के लिए प्रमुख बाधा है. बंदोपाध्याय ने कहा, कांग्रेस के दृष्टिकोण से, विशेष रूप से पार्टी की पश्चिम बंगाल इकाई से, तृणमूल कांग्रेस के साथ एक सौहार्दपूर्ण समझ का विकल्प आसान काम नहीं होगा. सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाली वाम मोर्चा के साथ कांग्रेस की मौजूदा समझ से तृणमूल असहमत है.

बंधोपाध्याय ने कहा, मुर्शिदाबाद जिले में अल्पसंख्यक बहुल सागरदिघी विधानसभा क्षेत्र के लिए हाल ही में संपन्न उपचुनाव, जहां वाम मोर्चा समर्थित कांग्रेस उम्मीदवार ने भारी बहुमत से जीत हासिल की थी, ने दोनों दलों को 2024 के लोकसभा चुनावों तक समझ को आगे बढ़ाने के लिए और अधिक उत्साहित कर दिया है. उसी समय, कांग्रेस तृणमूल कांग्रेस के बजाय वाम मोर्चे के साथ सीट बंटवारे के समझौते पर सौदेबाजी की स्थिति में होगी. इसलिए, कांग्रेस के तर्क के अनुसार, तृणमूल कांग्रेस को एक भागीदार के रूप में स्वीकार करना इतना आसान नहीं होगा.

हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक और स्तंभकार अमल इस बात से सहमत नहीं हैं कि सागरदिघी उपचुनाव के नतीजे हर समय कांग्रेस-वाममोर्चा समीकरणों के अंतिम संकेतक हो सकते हैं. सीपीआई (एम) या वाम मोर्चा एक संगठित ताकत होने के नाते गठबंधन के फॉर्मूले के तहत हमेशा अपने पारंपरिक मतदाताओं को कांग्रेस उम्मीदवार के पीछे लामबंद कर सकते हैं. लेकिन क्या कांग्रेस नेतृत्व वाम मोर्चा के उम्मीदवार के समर्थन में अपने समर्पित मतदाताओं की उसी लामबंदी को हासिल कर सकता है? इसलिए, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता है कि सागरदिघी मॉडल की सफलता एकमात्र कारक होगी, जो 2024 तक कांग्रेस-वाम मोर्चा की समझ सुनिश्चित करेगी. अमल के मुताबिक आगामी त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में भाजपा, तृणमूल व वाम-कांग्रेस गठबंधन का प्रदर्शन आगामी लोकसभा चुनाव के लिए महत्वपूर्ण संकेतक होगा.

ये भी पढ़ें : Opposition unity: ममता और नीतीश कुमार से मुलाकात, कहा-बीजेपी के खिलाफ एकजुट होकर लड़ने को तैयार

(आईएएनएस)

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