मैसुरु: बिहार सरकार ने हाल ही में जाति सर्वेक्षण के आंकड़े जारी किए हैं. राज्य की सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक जनगणना, जिसे 'जाति जनगणना' (Caste Census) के नाम से जाना जाता है. बिहार में आंकड़े जारी होने के बाद से कर्नाटक सरकार पर भी दबाव है. इस बीच कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया (Chief Minister Siddaramaiah) ने शनिवार को कहा कि अगले महीने रिपोर्ट मिलने के बाद निर्णय लिया जाएगा.
इस सप्ताह की शुरुआत में कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष के. जयप्रकाश ने कहा था कि वह नवंबर में राज्य सरकार को जाति जनगणना रिपोर्ट सौंपेंगे. सिद्धारमैया ने यहां संवाददाताओं से कहा, 'जब कंथाराज (Kantharaj) की अध्यक्षता वाले आयोग ने रिपोर्ट दी, तो तत्कालीन मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने इसे नहीं लिया, अब आयोग के लिए एक अलग अध्यक्ष है. मैंने उनसे कंथाराज द्वारा दायर रिपोर्ट को ज्यों का त्यों प्रस्तुत करने को कहा है. उन्होंने कहा है कि 'रिपोर्ट नवंबर में दी जाएगी, देखते हैं.'
सबसे पिछड़े वर्गों के अलग वर्गीकरण की मांग के बारे में पूछे जाने पर सीएम ने कहा, 'सरकार अपने आप यह नहीं कर सकती, इसके लिए एक रिपोर्ट होनी चाहिए... एक बार पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट आ जाए तो हम इस पर विचार करेंगे.'
2015 में तत्कालीन सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने राज्य में 170 करोड़ रुपये की अनुमानित लागत से सामाजिक-आर्थिक और शैक्षिक सर्वेक्षण शुरू किया था, जिसके निष्कर्ष अभी तक सार्वजनिक नहीं किए गए हैं. तत्कालीन अध्यक्ष एच कंथाराज के नेतृत्व में राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग को जाति जनगणना रिपोर्ट तैयार करने का काम सौंपा गया था.
कुछ विश्लेषकों के अनुसार, क्रमिक सरकारें इसे जारी करने से कतराती रही हैं क्योंकि सर्वेक्षण के निष्कर्ष कथित तौर पर कर्नाटक में विभिन्न जातियों, विशेष रूप से प्रमुख लिंगायत और वोक्कालिगाओं की संख्यात्मक ताकत की 'पारंपरिक धारणा' के विपरीत हैं, जिससे यह एक राजनीतिक मुद्दा बन गया है. राज्य में राजनीतिक दल सर्वेक्षण को स्वीकार नहीं करने और इसे सार्वजनिक नहीं करने को लेकर आरोप-प्रत्यारोप में लग गए हैं.
अधिकारियों ने राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के तत्कालीन सदस्य-सचिव द्वारा अंतिम रिपोर्ट पर हस्ताक्षर नहीं करने को भी तकनीकी बाधा बताया है, जिसके कारण रिपोर्ट जारी होने में बाधा उत्पन्न हुई है. उन्होंने कहा कि जाति जनगणना रिपोर्ट वर्तमान में कर्नाटक राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के पास है, और एक बार इसे जमा करने के बाद, कैबिनेट निर्णय लेगी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस कथित बयान पर एक सवाल का जवाब देते हुए, जिसमें उन्होंने कांग्रेस और उसके सहयोगियों पर जाति जनगणना के जरिए समाज को बांटने की कोशिश करने का आरोप लगाया था, सिद्धारमैया ने कहा कि 'नहीं (यह समाज को विभाजित नहीं करेगा), निश्चित रूप से नहीं....तथ्य अलग हैं और वह जो कह रहे हैं वह अलग है.'
उन्होंने कहा कि गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों और एक समान समाज के निर्माण के लिए विभिन्न समुदायों की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक स्थितियों के बारे में जानना आवश्यक है. उन्होंने कहा कि 'हमारा समाज कुल मिलाकर जाति व्यवस्था वाला है. असमानताओं से छुटकारा पाने और सभी को मुख्यधारा में लाने के लिए हमारे पास सांख्यिकी की आवश्यकता है, इसलिए सामाजिक आर्थिक और जाति सर्वेक्षण की आवश्यकता है.'
शराब दुकानों के लाइसेंस पर भी की बात : मुख्यमंत्री ने यह भी दोहराया कि राज्य सरकार शराब की दुकानें खोलने के लिए कोई नया लाइसेंस नहीं देगी. वह उपमुख्यमंत्री डी के शिवकुमार द्वारा नीति में बदलाव की वकालत करने के बारे में एक सवाल का जवाब दे रहे थे. उन्होंने कहा कि कोई भी लोगों को शराब पीने से नहीं रोक सकता, उनके (सिद्धारमैया) के बयान के बाद कि सरकार नई शराब की दुकानें नहीं खोलेगी.
उन्होंने कहा कि 'उन्होंने (शिवकुमार) ने कहा है कि शराब पीना बंद नहीं किया जा सकता. क्या उन्होंने कहा है कि सरकार नई शराब की दुकानों की अनुमति देगी? ....उन्होंने अपनी राय रखी है, हम कैबिनेट में फैसला लेंगे.'
उन्होंने कहा कि 'मेरे विचार से नए लाइसेंस देने की कोई जरूरत नहीं है....जनता की राय भी महत्वपूर्ण है. मेरे हिसाब से अभी ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है, हम शराब की दुकानों को नए लाइसेंस नहीं देंगे.'