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खुशखबरी : हिमाचल में बढ़ा दुर्लभ हिम तेंदुए का कुनबा, सर्वे में हुआ खुलासा

हिमाचल ने स्नो लैपर्ड के संरक्षण का बीड़ा उठाया है. इसकी गिनती के लिए एक अभियान चलाया गया है. अभी तक के आकलन के अनुसार हिमाचल में इस समय 73 बर्फानी तेंदुओं का पता चला है. हिमालयी राज्यों में सुरक्षित हिमालय प्रोजेक्ट चल रहा है. यह प्रोजेक्ट हिमाचल समेत पांच हिमालयी राज्यों उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल और जम्मू-कश्मीर में लागू है. इन राज्यों में बर्फानी तेंदुओं को बचाने के प्रयास हो रहे हैं.

दुर्लभ हिम तेंदुए का कुनबा
दुर्लभ हिम तेंदुए का कुनबा
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Published : Sep 8, 2021, 11:53 PM IST

शिमला : दुर्लभ वन्य प्राणियों के संरक्षण में हिमाचल से एक अच्छी खबर है. यहां के वनों में विचरण करने वाले दुर्लभ बर्फानी तेंदुए यानी स्नो लैपर्ड का कुनबा निरंतर बढ़ रहा है. हिमाचल में इस समय 73 बर्फानी तेंदुओं का पता चला है. अनुमान लगाया जा रहा है कि इनकी संख्या जल्द ही 100 का आंकड़ा पार कर जाएगी. बड़ी बात यह है कि बर्फानी तेंदुओं का संरक्षण करने के साथ ही उनके मूल्यांकन की प्रक्रिया अपनाने वाला हिमाचल देश का पहला राज्य है.

हिमाचल का वन्य प्राणी प्रभाग प्रकृति संरक्षण फाउंडेशन बेंगलुरु की मदद से स्नो लैपर्ड के जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर काम कर रहा है. राज्य सरकार में वन विभाग की मुखिया डॉ. सविता ने कहा कि विश्व भर में यह दुर्लभ प्राणी विलुप्त हो रहे हैं. ऐसे में हिमालयी राज्य हिमाचल प्रदेश ने इनके संरक्षण में बेहतर काम किया है. वन्य प्राणियों में रूचि रखने वाले जानते हैं कि स्नो लैपर्ड का क्या महत्व है. हिम तेंदुआ अर्थात स्नो लेपर्ड को देखना अपने आप में रोमांचक अनुभव है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट.

हिम के आंचल हिमाचल ने स्नो लैपर्ड के संरक्षण का बीड़ा उठाया है. इसकी गिनती के लिए एक अभियान चलाया गया है. अभी तक के आकलन के अनुसार 73 हिम तेंदुओं का पता चला है. उनके विचरण और आदतों का अध्ययन करने से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि इनकी संख्या 100 के करीब भी हो सकती है. यदि इस दुर्लभ वन्य प्राणी का परिवार और बढ़ता है तो हिमाचल की वाइल्ड लाइफ में यह नया अध्याय जुड़ेगा.

स्नो लैपर्ड हिमाचल प्रदेश का राज्य पशु
हिमाचल प्रदेश में लाहौल स्पीति, किन्नौर और चम्बा के पांगी सहित अन्य सात बर्फानी इलाकों में कुछ समय पहले हुए सर्वे में करीब 49 बर्फानी तेंदुए होने का प्रमाण मिला था. उसके बाद अन्य इलाकों में इसका आकलन किया गया. ताजा अध्ययन के मुताबिक अब इनकी संख्या 73 पाई गई है. उल्लेखनीय है कि बर्फानी तेंदुए और इसका शिकार बनने वाले जानवरों का मूल्यांकन करने वाला हिमाचल प्रदेश देश का पहला राज्य है. स्नो लैपर्ड हिमाचल प्रदेश का राज्य पशु (State Animal of Himachal Pradesh Snow Leopard ) भी है. हिमाचल का यह अध्ययन देश के अन्य हिमालयी राज्यों के लिए मार्गदर्शन का काम करेगा.

दुर्लभ हिम तेंदुए
दुर्लभ हिम तेंदुए
हिमालयी राज्यों में सुरक्षित हिमालय प्रोजेक्ट चल रहा है. यह प्रोजेक्ट हिमाचल समेत पांच हिमालयी राज्यों उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल और जम्मू-कश्मीर में लागू है. इन राज्यों में बर्फानी तेंदुओं को बचाने के प्रयास हो रहे हैं. हिमाचल में इन्हें बचाने के लिए गैर सरकारी संगठनों को जोड़ा गया है. विशेषज्ञ बताते हैं कि दुनिया के 12 से अधिक देशों में बर्फानी तेंदुआ पाया जाता है. भारत में इसकी अनुमानित संख्या 400 से 700 आंकी गई है, जबकि विश्व में यह आंकड़ा 3900 से 6400 के बीच है.

सात जगह बर्फानी तेंदुए का सर्वे
वन्य प्राणी विभाग के मुताबिक सुरक्षित हिमालय प्रोजेक्ट वर्ष 2018-19 में आरंभ हुआ, जो 2024 तक चलेगा. इस पर 130 करोड़ रुपये खर्च होंगे. इसमें 21 करोड़ रुपये की राशि अनुदान और 109 करोड़ रुपये संयुक्त राष्ट्र विकास, केंद्र और राज्य सरकार वहन करेगी. मार्च में प्रोजेक्ट के लिए केंद्र से 72 लाख रुपये आए. केंद्र से परियोजना के तहत आयी मदद से सात जगह बर्फानी तेंदुए का सर्वे हुआ है. लाहौल के कई इलाकों में ये दुर्लभ वन्य प्राणी दिखाई देता है. किन्नौर के किब्बर गांव के आसपास के जंगलों में भी ये दिखाई दिया है.

हिम तेंदुए का घनत्व 0.08 से 0.37 प्रति सौ वर्ग किलोमीटर है. स्पीति, पिन घाटी और ऊपरी किन्नौर के हिमालयी क्षेत्रों में बर्फानी तेंदुए और उसके शिकार जानवरों आइबैक्स और भरल का घनत्व सबसे अधिक पाया गया. पहाड़ी इलाकों में कैमरा ट्रैप की तैनाती किब्बर गांव के आठ स्थानीय युवाओं की एक टीम के नेतृत्व में की गई थी. इस तकनीक के अंतर्गत एचपीएफडी तकनीक के 70 से अधिक फ्रंटलाइन स्टॉफ को भी परियोजना के हिस्से के रूप में प्रशिक्षित किया गया.

यह भी पढ़ें- कृषि कानून : कोर्ट नियुक्त समिति के सदस्यों ने रिपोर्ट को शत प्रतिशत किसानों के पक्ष में बताया

मूल्यांकन करने में लग गए तीन साल
डॉ. सविता बताया कि सभी दस स्थलों- भागा, हिम, चंद्र, भरमौर, कुल्लू, मियार, पिन, बसपा, ताबो और हंगलंग में हिम तेंदुए का पता चला है. भागा के अध्ययन से यह पता भी चला है कि बर्फानी तेंदुए की एक बड़ी संख्या संरक्षित क्षेत्रों के बाहर है. इससे पता चलता है कि स्थानीय समुदाय हिम तेंदुए के परिदृश्य में संरक्षण के लिए सबसे मजबूत सहयोगी हैं. एनसीएफ और वन्य जीव विंग ने इस प्रयास में सहयोग किया और मूल्यांकन को पूरा करने में तीन साल लग गए.

वन विभाग की मुखिया डॉ. सविता ने बताया कि प्रदेश में स्नो लैपर्ड करीब 23 हजार वर्ग किमी में विचरण करते पाए गए हैं. जिनमें धौलाधार, कुल्लू, चंबा, किन्नौर और लाहौल स्पीति का क्षेत्र मुख्य रूप से शामिल है. पिछले दिनों एक स्टडी एनसीएफ ने की थी जिसके अनुसार हिमाचल में करीब 73 स्नो लैपर्ड देखे गए हैं. जिसके अनुसार इस क्षेत्र में .08 से लेकर .37 प्रति सौ किमी के हिसाब से हिम तेंदुए का घनत्व पाया गया है.

डॉ. सविता ने कहा कि स्नो तेंदुआ की गणना कैमरा ट्रैप के माध्यम से की जाती है. इसमें स्थानीय जनता का भी महत्वपूर्ण योगदान रहता है. लोगों की सूचना के बाद भी कैमरे फिक्स किए जाते हैं और उसी आधार पर उनकी गणना भी जाती है. हिमाचल एसपीएआई के आधार पर गणना करता है. इसके अलावा यूएनडीपी के सहयोग से सिक्योर हिमालया नाम से एक प्रोजेक्ट भी चला रहे हैं जिसका उद्देश्य स्नो लैपर्ड के विचरण क्षेत्र को सुरक्षित रखना है. इसके अलावा जेनेटिक डाइवर्सिटी बनाए रखना भी उद्देश्य है.

शिमला : दुर्लभ वन्य प्राणियों के संरक्षण में हिमाचल से एक अच्छी खबर है. यहां के वनों में विचरण करने वाले दुर्लभ बर्फानी तेंदुए यानी स्नो लैपर्ड का कुनबा निरंतर बढ़ रहा है. हिमाचल में इस समय 73 बर्फानी तेंदुओं का पता चला है. अनुमान लगाया जा रहा है कि इनकी संख्या जल्द ही 100 का आंकड़ा पार कर जाएगी. बड़ी बात यह है कि बर्फानी तेंदुओं का संरक्षण करने के साथ ही उनके मूल्यांकन की प्रक्रिया अपनाने वाला हिमाचल देश का पहला राज्य है.

हिमाचल का वन्य प्राणी प्रभाग प्रकृति संरक्षण फाउंडेशन बेंगलुरु की मदद से स्नो लैपर्ड के जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर काम कर रहा है. राज्य सरकार में वन विभाग की मुखिया डॉ. सविता ने कहा कि विश्व भर में यह दुर्लभ प्राणी विलुप्त हो रहे हैं. ऐसे में हिमालयी राज्य हिमाचल प्रदेश ने इनके संरक्षण में बेहतर काम किया है. वन्य प्राणियों में रूचि रखने वाले जानते हैं कि स्नो लैपर्ड का क्या महत्व है. हिम तेंदुआ अर्थात स्नो लेपर्ड को देखना अपने आप में रोमांचक अनुभव है.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट.

हिम के आंचल हिमाचल ने स्नो लैपर्ड के संरक्षण का बीड़ा उठाया है. इसकी गिनती के लिए एक अभियान चलाया गया है. अभी तक के आकलन के अनुसार 73 हिम तेंदुओं का पता चला है. उनके विचरण और आदतों का अध्ययन करने से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि इनकी संख्या 100 के करीब भी हो सकती है. यदि इस दुर्लभ वन्य प्राणी का परिवार और बढ़ता है तो हिमाचल की वाइल्ड लाइफ में यह नया अध्याय जुड़ेगा.

स्नो लैपर्ड हिमाचल प्रदेश का राज्य पशु
हिमाचल प्रदेश में लाहौल स्पीति, किन्नौर और चम्बा के पांगी सहित अन्य सात बर्फानी इलाकों में कुछ समय पहले हुए सर्वे में करीब 49 बर्फानी तेंदुए होने का प्रमाण मिला था. उसके बाद अन्य इलाकों में इसका आकलन किया गया. ताजा अध्ययन के मुताबिक अब इनकी संख्या 73 पाई गई है. उल्लेखनीय है कि बर्फानी तेंदुए और इसका शिकार बनने वाले जानवरों का मूल्यांकन करने वाला हिमाचल प्रदेश देश का पहला राज्य है. स्नो लैपर्ड हिमाचल प्रदेश का राज्य पशु (State Animal of Himachal Pradesh Snow Leopard ) भी है. हिमाचल का यह अध्ययन देश के अन्य हिमालयी राज्यों के लिए मार्गदर्शन का काम करेगा.

दुर्लभ हिम तेंदुए
दुर्लभ हिम तेंदुए
हिमालयी राज्यों में सुरक्षित हिमालय प्रोजेक्ट चल रहा है. यह प्रोजेक्ट हिमाचल समेत पांच हिमालयी राज्यों उत्तराखंड, सिक्किम, अरुणाचल और जम्मू-कश्मीर में लागू है. इन राज्यों में बर्फानी तेंदुओं को बचाने के प्रयास हो रहे हैं. हिमाचल में इन्हें बचाने के लिए गैर सरकारी संगठनों को जोड़ा गया है. विशेषज्ञ बताते हैं कि दुनिया के 12 से अधिक देशों में बर्फानी तेंदुआ पाया जाता है. भारत में इसकी अनुमानित संख्या 400 से 700 आंकी गई है, जबकि विश्व में यह आंकड़ा 3900 से 6400 के बीच है.

सात जगह बर्फानी तेंदुए का सर्वे
वन्य प्राणी विभाग के मुताबिक सुरक्षित हिमालय प्रोजेक्ट वर्ष 2018-19 में आरंभ हुआ, जो 2024 तक चलेगा. इस पर 130 करोड़ रुपये खर्च होंगे. इसमें 21 करोड़ रुपये की राशि अनुदान और 109 करोड़ रुपये संयुक्त राष्ट्र विकास, केंद्र और राज्य सरकार वहन करेगी. मार्च में प्रोजेक्ट के लिए केंद्र से 72 लाख रुपये आए. केंद्र से परियोजना के तहत आयी मदद से सात जगह बर्फानी तेंदुए का सर्वे हुआ है. लाहौल के कई इलाकों में ये दुर्लभ वन्य प्राणी दिखाई देता है. किन्नौर के किब्बर गांव के आसपास के जंगलों में भी ये दिखाई दिया है.

हिम तेंदुए का घनत्व 0.08 से 0.37 प्रति सौ वर्ग किलोमीटर है. स्पीति, पिन घाटी और ऊपरी किन्नौर के हिमालयी क्षेत्रों में बर्फानी तेंदुए और उसके शिकार जानवरों आइबैक्स और भरल का घनत्व सबसे अधिक पाया गया. पहाड़ी इलाकों में कैमरा ट्रैप की तैनाती किब्बर गांव के आठ स्थानीय युवाओं की एक टीम के नेतृत्व में की गई थी. इस तकनीक के अंतर्गत एचपीएफडी तकनीक के 70 से अधिक फ्रंटलाइन स्टॉफ को भी परियोजना के हिस्से के रूप में प्रशिक्षित किया गया.

यह भी पढ़ें- कृषि कानून : कोर्ट नियुक्त समिति के सदस्यों ने रिपोर्ट को शत प्रतिशत किसानों के पक्ष में बताया

मूल्यांकन करने में लग गए तीन साल
डॉ. सविता बताया कि सभी दस स्थलों- भागा, हिम, चंद्र, भरमौर, कुल्लू, मियार, पिन, बसपा, ताबो और हंगलंग में हिम तेंदुए का पता चला है. भागा के अध्ययन से यह पता भी चला है कि बर्फानी तेंदुए की एक बड़ी संख्या संरक्षित क्षेत्रों के बाहर है. इससे पता चलता है कि स्थानीय समुदाय हिम तेंदुए के परिदृश्य में संरक्षण के लिए सबसे मजबूत सहयोगी हैं. एनसीएफ और वन्य जीव विंग ने इस प्रयास में सहयोग किया और मूल्यांकन को पूरा करने में तीन साल लग गए.

वन विभाग की मुखिया डॉ. सविता ने बताया कि प्रदेश में स्नो लैपर्ड करीब 23 हजार वर्ग किमी में विचरण करते पाए गए हैं. जिनमें धौलाधार, कुल्लू, चंबा, किन्नौर और लाहौल स्पीति का क्षेत्र मुख्य रूप से शामिल है. पिछले दिनों एक स्टडी एनसीएफ ने की थी जिसके अनुसार हिमाचल में करीब 73 स्नो लैपर्ड देखे गए हैं. जिसके अनुसार इस क्षेत्र में .08 से लेकर .37 प्रति सौ किमी के हिसाब से हिम तेंदुए का घनत्व पाया गया है.

डॉ. सविता ने कहा कि स्नो तेंदुआ की गणना कैमरा ट्रैप के माध्यम से की जाती है. इसमें स्थानीय जनता का भी महत्वपूर्ण योगदान रहता है. लोगों की सूचना के बाद भी कैमरे फिक्स किए जाते हैं और उसी आधार पर उनकी गणना भी जाती है. हिमाचल एसपीएआई के आधार पर गणना करता है. इसके अलावा यूएनडीपी के सहयोग से सिक्योर हिमालया नाम से एक प्रोजेक्ट भी चला रहे हैं जिसका उद्देश्य स्नो लैपर्ड के विचरण क्षेत्र को सुरक्षित रखना है. इसके अलावा जेनेटिक डाइवर्सिटी बनाए रखना भी उद्देश्य है.

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