चेन्नईः देशभर में राजनीति समेत हर क्षेत्र में महिलाओं के सशक्तिकरण की चर्चा होती है. लेकिन असल तस्वीर कुछ और ही है. तमिलनाडु में शिक्षा, रोजगार, संपत्ति के अधिकार और आरक्षण के क्षेत्र में महिलाएं काफी आगे हैं, लेकिन जब राज्यसभा या लोकसभा में प्रतिनिधित्व की बात आती है, तब इनकी संख्या काफी कम है.
1967 में सीएन अन्नादुराई के शासनकाल में केवल तीन महिला विधायक थीं. लेकिन 1991 में जब जे जयललिता ने प्रशासन की बागडोर संभाली, तब यह संख्या 32 हो गई. दुर्भाग्य से 2016 में महिला विधायकों की संख्या कम होकर 21 हो गई और हाल ही में हुए 2021 के विधानसभा चुनाव में केवल 12 महिलाएं ही विधानसभा तक पहुंच पाईं हैं.
मौजूद आंकड़ों के मुताबिक, केवल 5 प्रतिशत महिलाओं ने विधानसभा में अपनी जगह बनाई है. हाल ही में संपन्न 2021 के विधानसभा चुनावों में भी जहाँ द्रमुक के मोर्चे ने अच्छाखासा रिकॉर्ड बनाया. वहीं, केवल इस जीत में केवल 5 प्रतिशत महिलाएं ही शामिल रहीं.
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2011 के विधानसभा चुनाव में कुल 323 महिलाएं चुनाव मैदान में उतरी थीं. लेकिन उनमें से केवल 21 को ही जीत हासिल हुई. इसके अलावा, 46 आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में से केवल 5 महिलाएं ही प्रतिनिधि के तौर पर चुनी गईं थी.
चुनावी राजनीति में महिलाओं की भागीदारी के बारे में सामाजिक कार्यकर्ता तथा आईएएस अधिरकारी शिवगामी ने कहा कि ज्यादातर राजनीतिक दल चुनाव में केवल उन उम्मीदवारों को मैदान में उतारते हैं, जो आर्थिक रूप से मजबूत हैं. वे राजनीति में महिला उम्मीदवारों को लाने की आवश्यकता को महत्व नहीं देते हैं.
करीब 200 निर्वाचन क्षेत्रों में पुरुष मतदाताओं से अधिक महिला मतदाता हैं. इसके बावजूद संसद में इनकी भागीदारी सीमित है.
तमिलनाडु में नियम है कि अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षित निर्वाचन क्षेत्रों में 46 महिलाएं चुनाव लड़ सकती हैं. लेकिन हाल के विधानसभा चुनावों में केवल पांच फीसदी महिलाओं ने चुनाव जीता है.
वर्ष और महिला विधायकों की संख्या निम्नलिखित हैः-
वर्ष | महिला विधायकों की संख्या |
1967 | 3 |
1971 | 0 |
1977 | 2 |
1980 | 5 |
1984 | 8 |
1989 | 9 |
1991 | 32 |
1996 | 11 |
2001 | 24 |
2006 | 22 |
2011 | 17 |
2016 | 21 |
2021 | 12 |