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न्‍यायमित्र का सुप्रीम कोर्ट से सवाल : दोषियों के एमपी/एमएलए चुनाव लड़ने पर सिर्फ 6 साल का प्रतिबंध क्यों ? - amicus curiae on MP MlA convicted

सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका पर न्यायमित्र ने सवाल किया है कि किसी भी दोषी विधायक या सांसद के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध की अवधि मात्र छह साल क्यों है. उन्होंने मांग की है कि ऐसे नेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाए जाने चाहिए.

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By IANS

Published : Sep 14, 2023, 7:36 PM IST

नई दिल्ली : न्‍यायमित्र (एमिकस क्यूरी) और वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एक रिपोर्ट में कहा है कि विधायकों की चुनाव लड़ने की अयोग्यता को उनकी रिहाई, सजा पूरी होने के बाद छह साल की अवधि तक ही क्‍यों सीमित किया जाना चाहिए. दोषी राजनेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने और सांसदों/विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों की शीघ्र सुनवाई की मांग करने वाली जनहित याचिका में हंसारिया को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया गया था.

कानून के तहत उन सभी मामलों में, जहां राजनेताओं को कारावास की सजा दी गई है, चुनाव लड़ने से अयोग्यता उनकी रिहाई के बाद से केवल छह साल की अवधि तक जारी रहती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे कोई व्यक्ति रिहाई के छह साल बाद चुनाव लड़ने के लिए पात्र हो जाता है, भले ही उसे बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों या ड्रग्स से निपटने या आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने या भ्रष्टाचार में लिप्त होने के लिए दोषी ठहराया गया हो.

"(लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 की उप-धारा (1), (2) और (3) के प्रावधान, इस हद तक प्रदान करते हैं कि 'आगे की अवधि के लिए अयोग्य घोषित किया जाना जारी रहेगा' हंसारिया ने शीर्ष अदालत में विचार के लिए दायर अपनी 19वीं रिपोर्ट में कहा, ''उनकी रिहाई के बाद से छह साल की सजा स्पष्ट रूप से मनमाना और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है.''

उन्होंने सुझाव दिया कि एमपी/एमएलए मामलों के लिए विशेष न्यायालय द्वारा आरपी अधिनियम की धारा 8 की संवैधानिक वैधता का मुद्दा, जहां तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्यता "उनकी रिहाई के बाद से छह साल की अवधि तक" सीमित है, मामलों के शीघ्र निपटान के मुद्दे पर स्वतंत्र रूप से विचार किया जा सकता है. अपनी रिपोर्ट के एक अन्य भाग में हंसारिया ने प्रस्तुत किया कि एमपी/एमएलए मामलों के लिए विशेष न्यायालय को उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों और निपटान की मासिक रिपोर्ट और पांच साल से अधिक समय से लंबित मामलों की देरी के कारणों की मासिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जा सकता है.

उन्होंने आगे सुझाव दिया कि उच्च न्यायालय सांसदों/विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों के संबंध में अपनी वेबसाइट पर एक स्वतंत्र आइकन, बटन या टैब बना सकते हैं, जिसमें लंबित मामलों, उच्च न्यायालयों की ऑर्डर शीट और विशेष के सभी मामलों की ऑर्डर शीट जैसे विवरण प्रदान किए जा सकते हैं.

शीर्ष अदालत सांसदों/विधायकों के खिलाफ मामलों की शीघ्र सुनवाई और सीबीआई तथा अन्य एजेंसियों द्वारा त्वरित जांच की मांग करने वाली वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर याचिका पर समय-समय पर कई निर्देश पारित करती रही है. याचिका में दोषी व्यक्तियों को विधायक/सांसद का चुनाव लड़ने, राजनीतिक दल बनाने या राजनीतिक दल का पदाधिकारी बनने से रोकने के निर्देश देने की भी मांग की गई है.

शीर्ष अदालत ने 2018 में सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों की तेजी से सुनवाई के लिए विशेष अदालतें गठित करने का निर्देश जारी किया और तब से उसने कई निर्देश जारी किए हैं, जिसमें केंद्र से जांच में देरी के कारणों की जांच के लिए एक निगरानी समिति गठित करने के लिए कहना भी शामिल है.

ये भी पढ़ें : Supreme Court On Identical Evidence: समान साक्ष्य होने पर दो आरोपियों में भेदभाव नहीं कर सकती अदालत- सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली : न्‍यायमित्र (एमिकस क्यूरी) और वरिष्ठ वकील विजय हंसारिया ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर एक रिपोर्ट में कहा है कि विधायकों की चुनाव लड़ने की अयोग्यता को उनकी रिहाई, सजा पूरी होने के बाद छह साल की अवधि तक ही क्‍यों सीमित किया जाना चाहिए. दोषी राजनेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध लगाने और सांसदों/विधायकों के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों की शीघ्र सुनवाई की मांग करने वाली जनहित याचिका में हंसारिया को एमिकस क्यूरी नियुक्त किया गया था.

कानून के तहत उन सभी मामलों में, जहां राजनेताओं को कारावास की सजा दी गई है, चुनाव लड़ने से अयोग्यता उनकी रिहाई के बाद से केवल छह साल की अवधि तक जारी रहती है. रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे कोई व्यक्ति रिहाई के छह साल बाद चुनाव लड़ने के लिए पात्र हो जाता है, भले ही उसे बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों या ड्रग्स से निपटने या आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने या भ्रष्टाचार में लिप्त होने के लिए दोषी ठहराया गया हो.

"(लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8 की उप-धारा (1), (2) और (3) के प्रावधान, इस हद तक प्रदान करते हैं कि 'आगे की अवधि के लिए अयोग्य घोषित किया जाना जारी रहेगा' हंसारिया ने शीर्ष अदालत में विचार के लिए दायर अपनी 19वीं रिपोर्ट में कहा, ''उनकी रिहाई के बाद से छह साल की सजा स्पष्ट रूप से मनमाना और संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है.''

उन्होंने सुझाव दिया कि एमपी/एमएलए मामलों के लिए विशेष न्यायालय द्वारा आरपी अधिनियम की धारा 8 की संवैधानिक वैधता का मुद्दा, जहां तक चुनाव लड़ने के लिए अयोग्यता "उनकी रिहाई के बाद से छह साल की अवधि तक" सीमित है, मामलों के शीघ्र निपटान के मुद्दे पर स्वतंत्र रूप से विचार किया जा सकता है. अपनी रिपोर्ट के एक अन्य भाग में हंसारिया ने प्रस्तुत किया कि एमपी/एमएलए मामलों के लिए विशेष न्यायालय को उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों और निपटान की मासिक रिपोर्ट और पांच साल से अधिक समय से लंबित मामलों की देरी के कारणों की मासिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया जा सकता है.

उन्होंने आगे सुझाव दिया कि उच्च न्यायालय सांसदों/विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों के संबंध में अपनी वेबसाइट पर एक स्वतंत्र आइकन, बटन या टैब बना सकते हैं, जिसमें लंबित मामलों, उच्च न्यायालयों की ऑर्डर शीट और विशेष के सभी मामलों की ऑर्डर शीट जैसे विवरण प्रदान किए जा सकते हैं.

शीर्ष अदालत सांसदों/विधायकों के खिलाफ मामलों की शीघ्र सुनवाई और सीबीआई तथा अन्य एजेंसियों द्वारा त्वरित जांच की मांग करने वाली वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर याचिका पर समय-समय पर कई निर्देश पारित करती रही है. याचिका में दोषी व्यक्तियों को विधायक/सांसद का चुनाव लड़ने, राजनीतिक दल बनाने या राजनीतिक दल का पदाधिकारी बनने से रोकने के निर्देश देने की भी मांग की गई है.

शीर्ष अदालत ने 2018 में सांसदों और विधायकों के खिलाफ मामलों की तेजी से सुनवाई के लिए विशेष अदालतें गठित करने का निर्देश जारी किया और तब से उसने कई निर्देश जारी किए हैं, जिसमें केंद्र से जांच में देरी के कारणों की जांच के लिए एक निगरानी समिति गठित करने के लिए कहना भी शामिल है.

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