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'मालदीव की तर्ज पर क्यों विकसित हो लक्षद्वीप ?'

लक्षद्वीप के नए प्रशासक ने कुछ नए नियमों को लागू करने का प्रस्ताव दिया है. उनका कहना है कि यहां के नेताओं का एक समूह भ्रष्ट चलन में शामिल है. उन पर रोक लगनी जरूरी है. इसलिए ये नियम लाए गए हैं. हालांकि, लक्षद्वीप के पूर्व प्रशासक रह चुके वजाहत हबीबुल्लाह मानते हैं कि नए नियमों की कोई जरूरत नहीं है. पुराने कानून से ही लक्ष्य साधा जा सकता है. उनका कहना है कि लक्षद्वीप को मालदीव मॉडल पर विकसित करने की सोच खतरनाक है. उनसे बातचीत की है ईटीवी भारत उर्दू डेस्क के प्रभारी खुर्शीद वानी ने.

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डिजाइऩ फोटो (वजाहत हबीबुल्लाह)
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Published : Jun 9, 2021, 7:00 PM IST

हैदराबाद : इन दिनों लक्षद्वीप की अचानक से ही चर्चा होने लगी है. वहां के प्रशासक प्रफुल पटेल विवादों में हैं. उन्होंने कुछ नियमों को लेकर प्रस्ताव दिया है. उनका कहना है कि लक्षद्वीप को मालदीव के तर्ज पर विकसित किया जा सकता है. इससे न सिर्फ लोगों की आमदनी बढ़ेगी, बल्कि विश्व पर्यटन मैप पर भी प्रमुखता से उभरेगा. हालांकि, लक्षद्वीप के पूर्व प्रशासक एवं नौकरशाह वजाहत हबीबुल्लाह इसे उचित नहीं मानते हैं. इस मुद्दे पर ईटीवी भारत ने उनसे विशेष बातचीत की.

हबीबुल्लाह का कहना है कि लक्षद्वीप के प्रशासक ने जो भी नियम लाए हैं, वह गैर-जरूरी हैं. हबीबुल्लाह के अनुसार स्थानीय लोगों का कहना है कि बिना उनकी सलाह के बहुत सारे ऐसे नियम बना दिए गए, जिसकी वजह से उनकी संस्कृति प्रभावित होगी. उनकी आजीविका संकट में पड़ सकती है. हालांकि प्रफुल पटेल का कहना है कि उन्होंने द्वीपसमूह में नेताओं के 'भ्रष्ट चलन' को खत्म करने के लिए कुछ खास कदम उठाए हैं. इसे ट्विस्ट न दें.

पूर्व सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह ने कहा कि लक्षद्वीप में कई तरह के बदलाव किए जाने की चर्चा है. उनके अनुसार प्रस्तावित मसौदों में कई सारे ऐसे फैसले हैं, जिनसे वहां की जनजातीय आबादी और उनके अधिकार प्रभावित हो सकते हैं. लिहाजा, प्रशासक को बिना मशविरा किए कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए. उन्होंने कहा कि ये अच्छी बात है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भरोसा दिया है कि प्रस्तावित मसौदों पर वहां के निवासियों के साथ चर्चा की जाएगी.

वजाहत हबीबुल्लाह का साक्षात्कार

आपको बता दें कि लक्षद्वीप के 37 द्वीपों में 11 द्वीपों पर आबादी बसती है. करीब 70 हजार यहां की आबादी है. दिसंबर में प्रफुल खोडा पटेल (Praful Khoda Patel) को यहां के प्रशासक की जिम्मेदारी दी गई थी. उसके बाद उन्होंने कई तरह के बदलावों की घोषणा की है. स्थानीय लोग इन मसौदों के कई प्रस्तावों का विरोध कर रहे हैं.

हबीबुल्लाह बताते हैं कि सुरक्षा, विकास और राज्य के विकास को आधार बताकर ये बदलाव किए जा रहे हैं. लेकिन सरकार इसकी आड़ में कुछ और करना चाहती है.

उन्होंने कहा कि नए कानूनों को थोपने की कोई जरूरत नहीं है. लक्षद्वीप के लिए आईलैंड विकास प्राधिकरण पहले ही नियम और नियमन को तय कर चुका है. इसकी अध्यक्षता खुद पीएम ने की है. इसमें पर्यावरणविद और कई विशेषज्ञ शामिल थे. उनका पालन होना जरूरी है.

पूर्व नौकरशाह हबीबुल्लाह (Ex bureaucrat Habibullah) ने कहा कि पटेल चाहते हैं कि लक्षद्वीप को मालदीव की तर्ज पर विकसित किया जाए. लेकिन पर्यावरणविद पहले ही ऐसे प्रस्ताव को खारिज कर चुके हैं. आईलैंड डेवलपमेंट ऑथरिटी ने मालदीव का दौरा किया था. उसके बाद उन्होंने बहुत ही गंभीरता से मालदीव मॉडल (Maldives Model) को लागू करने से मना कर दिया था. क्या वे चाहते हैं कि लक्षद्वीप (Lakshadweep) में भी मालदीव की तरह अतिवाद और चरमपंथी गतिविधि बढ़े. कृपया आपने दिमाग का इस्तेमाल कीजिए.

हबीबुल्लाह ने कहा कि लक्षद्वीप की आबादी मुख्यतः जनजातीय है. वे मुस्लिम हैं. उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया है. उनका आपस में काफी गहरा संबंध है. अगर कोई बाहर से आ जाए, तो आसानी से वे उनकी पहचान कर सकते हैं. उन्हें तुरंत ही वे पुलिस या नौसेना को सौंप देते हैं. वहां की सुरक्षा की सबसे बड़ी गारंटी वहां की आबादी ही दे सकती है. अभी हाल ही में देखिए वहां पर श्रीलंका के स्मगलर की पहचान की गई थी. वहां के लोगों से उसे पकड़ा था. उसे तुरंत ही अधिकारियों के हवाले कर दिया गया.

भारत के पहले मुख्य सूचना आयुक्त (India's first information commissioner) रह चुके हबीबुल्लाह ने कहा कि लक्षद्वीप प्रशासन इस तरह से काम कर रहा है कि लोगों के दिमाग में शंका पैदा हो रहा है. उन्हें लगता है कि सबकुछ व्यापार के हवाले कर दिया जाएगा. ऐसी स्थिति में लोग कहां जाएंगे. सदियों से वे यहां रहते आ रहे हैं. अंडमान में मुख्य रूप से बंगाल और तमिलनाडु से आकर आबदी बसी थी, लेकिन लक्षद्वीप की आबादी मूल वासी है.

हबीबुल्लाह ने कहा कि अगर यहां की स्थानीय आबादी केरल से भाषा, व्यापार और संचार को लेकर संपर्क रखती है, तो इसमें हर्ज ही क्या है. ये शांति प्रिय लोग हैं. आपराधिक दर काफी कम है. इसके बावजूद यहां पर गुंडा एक्ट लागू करने की क्या जरूरत है.

आपको बता दें कि प्रशासक पटेल ने लक्षद्वीप प्रोटेक्शन ऑफ एंटी सोशल एक्टिविटी रेगुलेशन लगाने का प्रस्ताव दिया है.

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (National Minority commission) के अध्यक्ष रह चुके वजाहत हबीबुल्लाह ने कहा कि लक्षद्वीप के सांसद को अमित शाह (home minister Amit Shah) ने भरोसा दिया है कि नए कानून को लागू करने से पहले वहां के लोगों को विश्वास में लिया जाएगा. पर, लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि लक्षद्वीप के प्रशासक चुप हैं. उनकी चुप्पी ने शंका को जन्म दिया है. अगर प्रशासक दावा करते हैं कि वे लोगों का हाल देखकर दुखी हैं, तो उन्हें उनसे बात करने में क्या दिक्कत है.

हबीबुल्लाह ने लक्षद्वीप के लिए फुल टाइम प्रशासक नियुक्त किए जाने की भी मांग की है. उन्होंने कहा कि वर्तमान प्रशासक कभी-कभार ही दौरा करते हैं. महीने में एक या दो बार. पिछली बार वे आए थे, तो कोविड का मामला चर्चा में आ गया. यह तो भारत के सम्मान की बात नहीं है. इसे रोकना जरूरी है.

ईटीवी भारत से बात करते हुए हबीबुल्लाह ने कहा कि लक्षद्वीप एनिमल प्रिजरवेशन रेगुलेशन की क्या जरूरत है. क्योंकि यहां के लोगों का मुख्य भोजन नन-वेज है. सी-फूड, क्रैब और ऑक्टोपस खाना पसंद करते हैं. यहां की ब्राह्मण आबादी गोजातीय जानवरों को खाते हैं. व्यक्तिगत रूप से मुझे लगता है कि पारिस्थितिकी के लिए गोजातीय (Bovine) प्राणी सही नहीं होते हैं, फिर भी उनके लिए नियमन की जरूरत नहीं है.

ये भी पढ़ें : विस्तार से समझें क्या है लक्षद्वीप का विवाद

हैदराबाद : इन दिनों लक्षद्वीप की अचानक से ही चर्चा होने लगी है. वहां के प्रशासक प्रफुल पटेल विवादों में हैं. उन्होंने कुछ नियमों को लेकर प्रस्ताव दिया है. उनका कहना है कि लक्षद्वीप को मालदीव के तर्ज पर विकसित किया जा सकता है. इससे न सिर्फ लोगों की आमदनी बढ़ेगी, बल्कि विश्व पर्यटन मैप पर भी प्रमुखता से उभरेगा. हालांकि, लक्षद्वीप के पूर्व प्रशासक एवं नौकरशाह वजाहत हबीबुल्लाह इसे उचित नहीं मानते हैं. इस मुद्दे पर ईटीवी भारत ने उनसे विशेष बातचीत की.

हबीबुल्लाह का कहना है कि लक्षद्वीप के प्रशासक ने जो भी नियम लाए हैं, वह गैर-जरूरी हैं. हबीबुल्लाह के अनुसार स्थानीय लोगों का कहना है कि बिना उनकी सलाह के बहुत सारे ऐसे नियम बना दिए गए, जिसकी वजह से उनकी संस्कृति प्रभावित होगी. उनकी आजीविका संकट में पड़ सकती है. हालांकि प्रफुल पटेल का कहना है कि उन्होंने द्वीपसमूह में नेताओं के 'भ्रष्ट चलन' को खत्म करने के लिए कुछ खास कदम उठाए हैं. इसे ट्विस्ट न दें.

पूर्व सूचना आयुक्त वजाहत हबीबुल्लाह ने कहा कि लक्षद्वीप में कई तरह के बदलाव किए जाने की चर्चा है. उनके अनुसार प्रस्तावित मसौदों में कई सारे ऐसे फैसले हैं, जिनसे वहां की जनजातीय आबादी और उनके अधिकार प्रभावित हो सकते हैं. लिहाजा, प्रशासक को बिना मशविरा किए कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए. उन्होंने कहा कि ये अच्छी बात है कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने भरोसा दिया है कि प्रस्तावित मसौदों पर वहां के निवासियों के साथ चर्चा की जाएगी.

वजाहत हबीबुल्लाह का साक्षात्कार

आपको बता दें कि लक्षद्वीप के 37 द्वीपों में 11 द्वीपों पर आबादी बसती है. करीब 70 हजार यहां की आबादी है. दिसंबर में प्रफुल खोडा पटेल (Praful Khoda Patel) को यहां के प्रशासक की जिम्मेदारी दी गई थी. उसके बाद उन्होंने कई तरह के बदलावों की घोषणा की है. स्थानीय लोग इन मसौदों के कई प्रस्तावों का विरोध कर रहे हैं.

हबीबुल्लाह बताते हैं कि सुरक्षा, विकास और राज्य के विकास को आधार बताकर ये बदलाव किए जा रहे हैं. लेकिन सरकार इसकी आड़ में कुछ और करना चाहती है.

उन्होंने कहा कि नए कानूनों को थोपने की कोई जरूरत नहीं है. लक्षद्वीप के लिए आईलैंड विकास प्राधिकरण पहले ही नियम और नियमन को तय कर चुका है. इसकी अध्यक्षता खुद पीएम ने की है. इसमें पर्यावरणविद और कई विशेषज्ञ शामिल थे. उनका पालन होना जरूरी है.

पूर्व नौकरशाह हबीबुल्लाह (Ex bureaucrat Habibullah) ने कहा कि पटेल चाहते हैं कि लक्षद्वीप को मालदीव की तर्ज पर विकसित किया जाए. लेकिन पर्यावरणविद पहले ही ऐसे प्रस्ताव को खारिज कर चुके हैं. आईलैंड डेवलपमेंट ऑथरिटी ने मालदीव का दौरा किया था. उसके बाद उन्होंने बहुत ही गंभीरता से मालदीव मॉडल (Maldives Model) को लागू करने से मना कर दिया था. क्या वे चाहते हैं कि लक्षद्वीप (Lakshadweep) में भी मालदीव की तरह अतिवाद और चरमपंथी गतिविधि बढ़े. कृपया आपने दिमाग का इस्तेमाल कीजिए.

हबीबुल्लाह ने कहा कि लक्षद्वीप की आबादी मुख्यतः जनजातीय है. वे मुस्लिम हैं. उन्हें अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया गया है. उनका आपस में काफी गहरा संबंध है. अगर कोई बाहर से आ जाए, तो आसानी से वे उनकी पहचान कर सकते हैं. उन्हें तुरंत ही वे पुलिस या नौसेना को सौंप देते हैं. वहां की सुरक्षा की सबसे बड़ी गारंटी वहां की आबादी ही दे सकती है. अभी हाल ही में देखिए वहां पर श्रीलंका के स्मगलर की पहचान की गई थी. वहां के लोगों से उसे पकड़ा था. उसे तुरंत ही अधिकारियों के हवाले कर दिया गया.

भारत के पहले मुख्य सूचना आयुक्त (India's first information commissioner) रह चुके हबीबुल्लाह ने कहा कि लक्षद्वीप प्रशासन इस तरह से काम कर रहा है कि लोगों के दिमाग में शंका पैदा हो रहा है. उन्हें लगता है कि सबकुछ व्यापार के हवाले कर दिया जाएगा. ऐसी स्थिति में लोग कहां जाएंगे. सदियों से वे यहां रहते आ रहे हैं. अंडमान में मुख्य रूप से बंगाल और तमिलनाडु से आकर आबदी बसी थी, लेकिन लक्षद्वीप की आबादी मूल वासी है.

हबीबुल्लाह ने कहा कि अगर यहां की स्थानीय आबादी केरल से भाषा, व्यापार और संचार को लेकर संपर्क रखती है, तो इसमें हर्ज ही क्या है. ये शांति प्रिय लोग हैं. आपराधिक दर काफी कम है. इसके बावजूद यहां पर गुंडा एक्ट लागू करने की क्या जरूरत है.

आपको बता दें कि प्रशासक पटेल ने लक्षद्वीप प्रोटेक्शन ऑफ एंटी सोशल एक्टिविटी रेगुलेशन लगाने का प्रस्ताव दिया है.

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (National Minority commission) के अध्यक्ष रह चुके वजाहत हबीबुल्लाह ने कहा कि लक्षद्वीप के सांसद को अमित शाह (home minister Amit Shah) ने भरोसा दिया है कि नए कानून को लागू करने से पहले वहां के लोगों को विश्वास में लिया जाएगा. पर, लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि लक्षद्वीप के प्रशासक चुप हैं. उनकी चुप्पी ने शंका को जन्म दिया है. अगर प्रशासक दावा करते हैं कि वे लोगों का हाल देखकर दुखी हैं, तो उन्हें उनसे बात करने में क्या दिक्कत है.

हबीबुल्लाह ने लक्षद्वीप के लिए फुल टाइम प्रशासक नियुक्त किए जाने की भी मांग की है. उन्होंने कहा कि वर्तमान प्रशासक कभी-कभार ही दौरा करते हैं. महीने में एक या दो बार. पिछली बार वे आए थे, तो कोविड का मामला चर्चा में आ गया. यह तो भारत के सम्मान की बात नहीं है. इसे रोकना जरूरी है.

ईटीवी भारत से बात करते हुए हबीबुल्लाह ने कहा कि लक्षद्वीप एनिमल प्रिजरवेशन रेगुलेशन की क्या जरूरत है. क्योंकि यहां के लोगों का मुख्य भोजन नन-वेज है. सी-फूड, क्रैब और ऑक्टोपस खाना पसंद करते हैं. यहां की ब्राह्मण आबादी गोजातीय जानवरों को खाते हैं. व्यक्तिगत रूप से मुझे लगता है कि पारिस्थितिकी के लिए गोजातीय (Bovine) प्राणी सही नहीं होते हैं, फिर भी उनके लिए नियमन की जरूरत नहीं है.

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