शिमला/दिल्ली : ''ये साल हमारे लिए बहुत अहम है. हमें 9 राज्यों में चुनाव लड़ना है. कमर कस लीजिये क्योंकि हमें सभी 9 राज्यों में जीत दर्ज करनी है". मंगलवार को दिल्ली में जेपी नड्डा का ये बयान उसी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में आया जहां उन्हें बुधवार को राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में एक्सटेंशन दे दिया गया. औपचारिक ऐलान भले 24 घंटे बाद हुआ लेकिन बयान में साफ झलक रहा था नड्डा मिशन 2024 को लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में तैयार हैं.
एक साल के एक्सटेंशन पर सवाल- बीजेपी के संविधान के मुताबिक राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यकाल 3 साल का होता है और राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में अधिकतम दो कार्यकाल मिल सकते हैं. जनवरी 2020 में अध्यक्ष बने नड्डा का कार्यकाल 20 जनवरी 2023 को खत्म होने वाला है लेकिन उससे पहले ही नड्डा को एक्सटेंशन मिल गई है. हालांकि ये कार्यकाल सिर्फ एक साल के लिए बढ़ाया गया है. उन्हें लोकसभा चुनाव 2024 तक यानी जून 2024 तक का एक्सटेंशन मिला है. सवाल है कि आखिर क्यों बीजेपी ने फिर से जेपी नड्डा पर ही भरोसा जताया ? इस सवाल के उठने की कई वजहें हैं.
हिमाचल में हुई हार- दरअसल बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में जेपी नड्डा को सबसे बड़ी हार अपने गृह राज्य हिमाचल में ही झेलनी पड़ी. जहां साल 2022 के आखिर में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी सत्ता में वापसी नहीं कर पाई. हिमाचल चुनाव में टिकट बंटवारे से लेकर प्रचार की प्लानिंग तक हर चीज को नड्डा पर्सनली ले रहे थे लेकिन 2017 में 44 सीटें जीतकर सत्ता में आई बीजेपी 2022 में 25 सीटों पर सिमट गई. बीजेपी ने हिमाचल में रिवाज बदलने यानी हर 5 साल में सरकार बदलने वाली रवायत को बदलते हुए सरकार रिपीट करने का दावा किया था लेकिन हिमाचल में 1985 से चला आ रहा ये रिवाज इस बार भी जारी रहा और बीजेपी चुनाव हार गई. जिसके बाद नड्डा की अगुवाई पर भी सवाल उठने लगे.
दिल्ली में हार, बिहार में सरकार- जून 2019 में बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष और जनवरी 2020 में अध्यक्ष की कुर्सी संभालते ही जेपी नड्डा के सामने दिल्ली चुनाव आ गए. जहां बीजेपी 70 में से 8 सीटें ही जीत पाई. वैसे 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में बीजेपी सिर्फ 3 सीटें ही जीत पाई थी. उसी साल नड्डा बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में बिहार के दंगल में उतरे और नीतीश कुमार के साथ मिलकर सरकार बना ली, वो बात और है कि अब बिहार में नीतीश बाबू आरजेडी की लालटेन के सहारे अपनी सरकार चला रहे हैं.
बंगाल में विपक्षी दल, दक्षिण में बंटाधार- साल 2021 में बंगाल और असम के अलावा 3 दक्षिणी राज्यों केरल, तमिलनाडु, पुडुचेरी में चुनाव हुए. बीजेपी ने असम में फिर से कमल खिलाया और बंगाल में ममता बनर्जी को कड़ी टक्कर देते हुए मुख्य विपक्षी दल का दर्जा हासिल किया. वो बात और है कि चुनाव प्रचार में बीजेपी दीदी की विदाई का शोर करती रही लेकिन सियासी जानकारों के मुताबिक बंगाल में बीजेपी का प्रदर्शन काबिलेतारीफ रहा. पार्टी का ये प्रदर्शन जेपी नड्डा की अगुवाई में हुआ था, सो कई सियासी पंडित बंगाल में 3 सीट से 77 सीट तक पहुंचने को नड्डा के कार्यकाल की सबसे बड़ी उपलब्धि बताते हैं. पुडुचेरी में गठबंधन की सरकार बनाने के अलावा बीजेपी के पास दक्षिण के राज्यों को कुछ खास हाथ नहीं लगा था.
2022 में खिलाया कमल- पिछले साल हुए 7 राज्यों के चुनावी नतीजों पर नजर डालें तो हिमाचल में सरकार गंवाने और पंजाब में सिर्फ दो सीट पर सिमटने के अलावा जेपी नड्डा और बीजेपी के लिए 2022 का साल शानदार कहा जाएगा. साल के शुरुआत में देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में 35 साल बाद सरकार रिपीट कर इतिहास बनाया और उत्तराखंड में भी राज्य गठन के बाद दो दशक में पहली बार कोई सरकार रिपीट हुई. दोनों राज्यों में कमल खिलाने का श्रेय जेपी नड्डा को जाता है. इसके अलावा गुजरात से लेकर गोवा और मणिपुर तक फिर से बीजेपी की सरकारें बनी.
जेपी नड्डा का रिपोर्ट कार्ड- हिमाचल, पंजाब, दिल्ली जैसी हार भले नड्डा के कार्यकाल में मिली हो लेकिन यूपी, उत्तराखंड, असम तक में सरकार रिपीट करना और बंगाल जैसे राज्य में बीजेपी के तृणमूल कांग्रेस के सामने विपक्ष के रूप में खड़ा करने का श्रेय भी नड्डा को ही जाना चाहिए. हिमाचल को छोड़ दें तो नड्डा के कार्यकाल में कोई बड़ी हार नहीं कही जा सकती. हिमाचल में बीजेपी की सरकार थी लेकिन दिल्ली से लेकर पंजाब तक बीजेपी के पल्ले कुछ खास नहीं था, दिल्ली में दो दशक से बीजेपी सत्ता से बाहर है और 2022 से पहले पंजाब में बीजेपी अकाली दल के सहारे थी. हिमाचल चुनाव के बाद जेपी नड्डा पर सवालों की उंगलियां तो उठीं हैं लेकिन अगर नड्डा को हटाया जाता तो इसका गलत संदेश जा सकता था जो आगामी चुनावों के लिए विपक्ष को एक मुद्दा दे देता.
पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक नवनीत शर्मा के मुताबिक जिस प्रकार किसी नेता की सफलता का आकलन उसकी थोड़ी सी सफलताओं से नहीं हो सकता, उसी प्रकार उसकी थोड़ी सी असफलताएं उसकी बड़ी सफलताओं को नहीं ओझल कर सकती. नड्डा ने भाजपा के जगत को अपने प्रयासों से प्रकाश दिया है जिसे पार्टी समझती है. नड्डा के कार्यकाल के दौरान पार्टी ने कई राज्यों में ऐतिहासिक जीत दर्ज की है. यही कारण है कि प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और तमाम पदाधिकारियों ने उन पर एक बार फिर विश्वास व्यक्त किया है.
पत्रकार धनंजय शर्मा का कहना है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर जेपी नड्डा को दूसरा कार्यकाल मिलना तय था. इसकी दो वजह हैं, पहली वजह नड्डा का पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की चुनावी रणनीति को कारगर ढंग से अमलीजामा पहनाना है. दूसरी वजह भाजपा संविधान का वो प्रावधान है जिसके मुताबिक 50 फीसदी राज्य इकाइयों के चुनाव संपन्न होने से पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव नहीं हो सकता. मौजूदा समय में भाजपा की 50 फीसदी राज्य इकाइयों के चुनाव नहीं हुए हैं. बेशक जेपी नड्डा के गृह राज्य हिमाचल में भाजपा चुनाव में रिवाज बदलने में कामयाब नहीं हुई, मगर उत्तराखंड और गुजरात समेत आधा दर्जन राज्यों में उनके नेतृत्व में पार्टी चुनाव जीती है. बंगाल में भाजपा का ग्राफ बढ़ा है. पंजाब और दिल्ली में भाजपा के पास खोने के लिए बहुत कुछ नहीं था.
बीजेपी की टेंशन, नड्डा को एक्सटेंशन- जेपी नड्डा को फिर से पार्टी की कमान देने की सबसे बड़ी वजह साल 2023 के 9 राज्यों में होने वाले चुनाव कहे जा सकते हैं. जिन्हें लोकसभा चुनाव 2024 का सेमीफाइनल कहा जा रहा है. फाइनल से पहले यही सेमीफाइनल बीजेपी की वो टेंशन है जिसने जेपी नड्डा को एक्सटेंशन दिलाया है. दरअसल इन 9 राज्यों में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ के अलावा दक्षिण भारत में तेलंगाना, कर्नाटक और उत्तर पूर्व में त्रिपुरा, मेघालय, मिजोरम और नागालैंड में चुनाव होने हैं. इनमें मध्य प्रदेश और कर्नाटक में बीजेपी की सरकार है तो पार्टी राजस्थान और छत्तीसगढ़ में सत्ता में वापसी की राह तलाशने के साथ-साथ तेलंगाना जैसे राज्यों में नए मौकों की तलाश में है. जानकार मानते हैं कि 2024 में पिछले दो लोकसभा चुनाव की तरह बंपर बहुमत क लिए बीजेपी को इस बार दक्षिण भारतीय और उत्तर पूर्वी राज्यों में अच्छा प्रदर्शन करना होगा. जिसे देखते हुए 2023 में होने वाले 9 राज्यों के चुनाव बीजेपी के लिए सबसे अहम होंगे.
2023 में मिशन 2024 का सेमीफाइनल- इन 9 राज्यों के चुनाव संपन्न होते ही 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं. 2020 में राष्ट्रीय अध्यक्ष का कार्यकाल संभालने के बाद से अब तक 14 राज्यों के विधानसभा चुनाव हो चुके हैं, 2023 के आखिर तक 23 राज्यों के चुनाव का अनुभव जेपी नड्डा के साथ होगा. 2024 को देखते हुए पार्टी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती. जेपी नड्डा की छवि एक अच्छे रणनीतिकार की रही है. उनका संगठनात्मक कौशल ही है जिसकी बदौलत अमित शाह के बाद उनके हाथ पार्टी की बागडोर दी गई. ऐसे में पार्टी उनके कार्यकाल के दौर में कमाए गए उनके अनुभव और उनकी बनाई रणनीति का फायदा उठाना चाहेगी. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के सामने अब इस साल होने वाले 9 राज्यों के विधानसभा चुनाव के साथ-साथ अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक लगाने का भी दबाव होगा.
नड्डा को मिले एक्सटेंशन के बाद खुद बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और गृह मंत्री अमित शाह ने जेपी नड्डा के कार्यकाल की खबियां बताई. शाह ने महाराष्ट्र से लेकर बिहार तक में NDA को बहमत दिलाने और यूपी में जीत दिलाने का जिक्र करने के साथ-साथ बंगाल के प्रदर्शन की भी तारीफ की. गुजरात में एक और जीत के साथ-साथ उत्तर पूर्व में पार्टी के बेहतर प्रदर्शन की तारीफ करते हुए अमित शाह ने कहा कि 2024 में पीएम मोदी और जेपी नड्डा की अगुवाई में 2019 से भी बड़ी जीत हासिल करेंगे.
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