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पेगासस मामले में याचिका दायर करने में देरी क्यों, पुलिस में शिकायत क्यों नहीं की : सुप्रीम कोर्ट

पेगासस जासूसी मामला (pegasus snooping row) सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में पहुंच चुका है. गुरुवार को मामले में सुनवाई हुई. शीर्ष कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि याचिका दायर करने में देरी क्यों की गई. साथ ही सवाल किया कि उनके पास कोर्ट आने से पहले पुलिस में जाकर शिकायत दर्ज कराने का भी रास्ता था, ऐसा क्यों नहीं किया गया. जानिए कोर्ट ने और क्या कहा.

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Aug 5, 2021, 3:45 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कथित पेगासस जासूसी मामले (pegasus snooping row) की स्वतंत्र जांच के अनुरोध वाली याचिकाओं पर गुरुवार को सुनवाई के दौरान कहा कि अगर इसके बारे में रिपोर्ट्स सही हैं तो जासूसी के आरोप गंभीर हैं. इस मामले में देरी क्यों हो रही है अब तक पुलिस कंप्लेंट क्यों नहीं की गई.

मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने मामले की सुनवाई की. अदालत ने अंततः मामले में नोटिस जारी नहीं किया लेकिन याचिकाकर्ताओं से केंद्र सरकार को याचिकाओं की प्रति देने को कहा. मामले की सुनवाई मंगलवार को भी जारी रहेगी. सुनवाई के दौरान शीर्ष कोर्ट ने खास तौर पर ये टिप्पणियां कीं.

याचिका दायर करने में देरी क्यों की गई?

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट कहा कि याचिका दायर करने में देरी क्यों की गई. CJI ने कहा, 'मैंने रिटों से जो पढ़ा उससे पता चहता है कि पेगासस मामला मई 2019 में सामने आया था. मुझे नहीं पता (क्यों) इस मुद्दे पर कोई गंभीर चिंता नहीं की गई. यह मुद्दा दो साल बाद अचानक क्यों सामने आया.'

एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने जवाब दिया कि 'निगरानी की सीमा हमें नहीं पता थी, तो याचिका कैसे दायर की जाती. हमें आज सुबह पता चला कि अदालत के रजिस्ट्रारों के नंबर भी जासूसी वाली सूची में हैं, उनके फोन भी एक्सेस किए गए थे. न्यायपालिका के कुछ सदस्यों का भी नाम था.

याचिकाकर्ताओं ने पुलिस में शिकायत क्यों नहीं दर्ज कराई?

कोर्ट ने ये सवाल भी उठाया कि याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय जाने से पहले आपराधिक कानून के तहत शिकायत क्यों नहीं दर्ज कराई. सीजेआई रमना ने कहा, 'उन्होंने (याचिकाकर्ता) आपराधिक शिकायत दर्ज करने के प्रयास नहीं किए हैं. मेरा सवाल यह है कि अगर आप जानते हैं कि फोन हैक हो गया है तो प्राथमिकी क्यों नहीं दर्ज की गई.'

वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने जवाब दिया कि 'इस मामले में तथ्य खोज समिति (fact finding committee) से एक अलग जांच की जरूरत है. वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि यह एक ऐसा मुद्दा है जिसमें संवैधानिकता शामिल है न कि केवल आपराधिकता. सीजेआई रमना ने कहा कि उन्होंने रिपोर्ट पढ़ी थी कि पेगासस को इजराइल की कंपनी एनएसओ केवल जांच पड़ताल के बाद सीधे सरकार को बेचती है. उन्होंने दिलचस्प सवाल किया कि इसे राज्य सरकारों को भी बेचा जा सकता था. क्या यह राज्य सरकारों द्वारा भी खरीदा जा सकता है?.'

इस पर सिब्बल ने कहा, 'इसका जवाब भारत सरकार को देना चाहिए, हम सभी जवाब नहीं दे सकते क्योंकि हमारे पास पहुंच नहीं है, ये केवल सरकार के पास है.'

आईटी अधिनियम के तहत क्या हो सकता है?

कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि क्या सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत शिकायतों के निवारण की गुंजाइश है. सीजेआई ने पूछा 'धारा 66 ए के बारे में क्या कहना है. इस पर याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने कहा, 'इसे रद्द कर दिया गया है.' उन्होंने यह भी बताया कि कैसे अदालत ने जम्मू कश्मीर पर अनुराधा भसीन मामले में सरकार को समय-समय पर इंटरनेट अवरुद्ध करने के आदेशों की समीक्षा करने का आदेश दिया था.

कोर्ट ने कहा, केंद्र को सुने बिना आगे नहीं बढ़ सकते

अदालत ने कहा कि चूंकि बहुत सारी याचिकाएं हैं, उनमें से कुछ जनहित याचिका इसी तरह की हैं. ऐसे में अदालत को आगे बढ़ने से पहले केंद्र सरकार का पक्ष सुनना होगा. हालांकि कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करने से परहेज किया. इसके बजाय पार्टियों को सरकार को याचिकाओं की प्रतियां देने के लिए कहा. मामले की सुनवाई अगले 10 अगस्त को होगी.

दरअसल कथित पेगासस जासूसी मामले की स्वतंत्र जांच के अनुरोध वाली एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और वरिष्ठ पत्रकारों द्वारा दायर याचिकाओं सहित नौ याचिकाओं पर फिलहाल सुनवाई चल रही है.

ये याचिकाएं इजराइली कंपनी एनएसओ के स्पाईवेयर पेगासस का उपयोग करके प्रमुख नागरिकों, नेताओं और पत्रकारों पर सरकारी एजेंसियों द्वारा कथित तौर पर जासूसी की रिपोर्ट से संबंधित हैं.

पढ़ें- पेगासस मामले पर बोला सुप्रीम कोर्ट, अगर मीडिया रिपोर्ट सही हैं तो आरोप गंभीर हैं

पढ़ें- पेगासस कांड: शीर्ष इजराइली रक्षा समिति आक्रामक साइबर हथियार के इस्तेमाल पर विशेष बैठक करेगी

पढ़ें- जासूसी कांड: NSO ने कुछ सरकारी ग्राहकों को पेगासस का उपयोग करने से रोका

एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया संघ ने बताया है कि 300 से अधिक सत्यापित भारतीय मोबाइल फोन नंबर पेगासस स्पाईवेयर का उपयोग करके निगरानी के संभावित लक्ष्यों की सूची में थे.

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने कथित पेगासस जासूसी मामले (pegasus snooping row) की स्वतंत्र जांच के अनुरोध वाली याचिकाओं पर गुरुवार को सुनवाई के दौरान कहा कि अगर इसके बारे में रिपोर्ट्स सही हैं तो जासूसी के आरोप गंभीर हैं. इस मामले में देरी क्यों हो रही है अब तक पुलिस कंप्लेंट क्यों नहीं की गई.

मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने मामले की सुनवाई की. अदालत ने अंततः मामले में नोटिस जारी नहीं किया लेकिन याचिकाकर्ताओं से केंद्र सरकार को याचिकाओं की प्रति देने को कहा. मामले की सुनवाई मंगलवार को भी जारी रहेगी. सुनवाई के दौरान शीर्ष कोर्ट ने खास तौर पर ये टिप्पणियां कीं.

याचिका दायर करने में देरी क्यों की गई?

कोर्ट ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट कहा कि याचिका दायर करने में देरी क्यों की गई. CJI ने कहा, 'मैंने रिटों से जो पढ़ा उससे पता चहता है कि पेगासस मामला मई 2019 में सामने आया था. मुझे नहीं पता (क्यों) इस मुद्दे पर कोई गंभीर चिंता नहीं की गई. यह मुद्दा दो साल बाद अचानक क्यों सामने आया.'

एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने जवाब दिया कि 'निगरानी की सीमा हमें नहीं पता थी, तो याचिका कैसे दायर की जाती. हमें आज सुबह पता चला कि अदालत के रजिस्ट्रारों के नंबर भी जासूसी वाली सूची में हैं, उनके फोन भी एक्सेस किए गए थे. न्यायपालिका के कुछ सदस्यों का भी नाम था.

याचिकाकर्ताओं ने पुलिस में शिकायत क्यों नहीं दर्ज कराई?

कोर्ट ने ये सवाल भी उठाया कि याचिकाकर्ताओं ने न्यायालय जाने से पहले आपराधिक कानून के तहत शिकायत क्यों नहीं दर्ज कराई. सीजेआई रमना ने कहा, 'उन्होंने (याचिकाकर्ता) आपराधिक शिकायत दर्ज करने के प्रयास नहीं किए हैं. मेरा सवाल यह है कि अगर आप जानते हैं कि फोन हैक हो गया है तो प्राथमिकी क्यों नहीं दर्ज की गई.'

वरिष्ठ अधिवक्ता श्याम दीवान ने जवाब दिया कि 'इस मामले में तथ्य खोज समिति (fact finding committee) से एक अलग जांच की जरूरत है. वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि यह एक ऐसा मुद्दा है जिसमें संवैधानिकता शामिल है न कि केवल आपराधिकता. सीजेआई रमना ने कहा कि उन्होंने रिपोर्ट पढ़ी थी कि पेगासस को इजराइल की कंपनी एनएसओ केवल जांच पड़ताल के बाद सीधे सरकार को बेचती है. उन्होंने दिलचस्प सवाल किया कि इसे राज्य सरकारों को भी बेचा जा सकता था. क्या यह राज्य सरकारों द्वारा भी खरीदा जा सकता है?.'

इस पर सिब्बल ने कहा, 'इसका जवाब भारत सरकार को देना चाहिए, हम सभी जवाब नहीं दे सकते क्योंकि हमारे पास पहुंच नहीं है, ये केवल सरकार के पास है.'

आईटी अधिनियम के तहत क्या हो सकता है?

कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि क्या सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम के तहत शिकायतों के निवारण की गुंजाइश है. सीजेआई ने पूछा 'धारा 66 ए के बारे में क्या कहना है. इस पर याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अरविंद दातार ने कहा, 'इसे रद्द कर दिया गया है.' उन्होंने यह भी बताया कि कैसे अदालत ने जम्मू कश्मीर पर अनुराधा भसीन मामले में सरकार को समय-समय पर इंटरनेट अवरुद्ध करने के आदेशों की समीक्षा करने का आदेश दिया था.

कोर्ट ने कहा, केंद्र को सुने बिना आगे नहीं बढ़ सकते

अदालत ने कहा कि चूंकि बहुत सारी याचिकाएं हैं, उनमें से कुछ जनहित याचिका इसी तरह की हैं. ऐसे में अदालत को आगे बढ़ने से पहले केंद्र सरकार का पक्ष सुनना होगा. हालांकि कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करने से परहेज किया. इसके बजाय पार्टियों को सरकार को याचिकाओं की प्रतियां देने के लिए कहा. मामले की सुनवाई अगले 10 अगस्त को होगी.

दरअसल कथित पेगासस जासूसी मामले की स्वतंत्र जांच के अनुरोध वाली एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और वरिष्ठ पत्रकारों द्वारा दायर याचिकाओं सहित नौ याचिकाओं पर फिलहाल सुनवाई चल रही है.

ये याचिकाएं इजराइली कंपनी एनएसओ के स्पाईवेयर पेगासस का उपयोग करके प्रमुख नागरिकों, नेताओं और पत्रकारों पर सरकारी एजेंसियों द्वारा कथित तौर पर जासूसी की रिपोर्ट से संबंधित हैं.

पढ़ें- पेगासस मामले पर बोला सुप्रीम कोर्ट, अगर मीडिया रिपोर्ट सही हैं तो आरोप गंभीर हैं

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एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया संघ ने बताया है कि 300 से अधिक सत्यापित भारतीय मोबाइल फोन नंबर पेगासस स्पाईवेयर का उपयोग करके निगरानी के संभावित लक्ष्यों की सूची में थे.

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