नई दिल्ली: जापान की सहायता से बांग्लादेश में बनाए जा रहे नए गहरे बंदरगाह से भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को आर्थिक विकास और कनेक्टिविटी में लाभ होगा. यह बातें शिलांग स्थित थिक टैंक के एक अध्ययन से पता चलती हैं. कॉक्स बाजार जिले के महेशखली उपजिला में निर्माणाधीन मातरबारी बंदरगाह बांग्लादेश का पहला गहरा समुद्री बंदरगाह होगा. हालांकि चटगांव, मोंगला और पायरा के बाद यह देश का चौथा समुद्री बंदरगाह होगा.
बंगाल की समृद्ध खाड़ी की ओर शीर्षक वाले अध्ययन के मुताबिक बंदरगाह क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण निर्यात-आयात केंद्र बन जाएगा. इससे मूल जहाजों को चट्टोग्राम (चटगांव) बंदरगाह के 9.5 मीटर की तुलना में 16 मीटर अधिक जगह मिले सकेगी. वहीं इसकी वजह से देश के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में इसका योगदान 2 प्रतिशत से 3 प्रतिशत होने का अनुमान है. अध्ययन में कहा गया है कि बंदरगाह परियोजना का निर्माण जेआईसीए (जापान अंतरराष्ट्रीय सहयोग एजेंसी) की सहायता से 2020 में शुरू हुआ था. इस परियोजना में दो 600 मेगावाट के बिजली संयंत्र के अलावा एक गहरे समुद्र में बंदरगाह टर्मिनल और 14.5 किलोमीटर लंबे बंदरगाह चैनल का निर्माण शामिल है.
इस बंदरगाह के 2027 में पूरा हो जाने पर भारत के पूर्वोत्तर के साथ कनेक्टिविटी को बढ़ावा मिलेगा. साथ ही बंगाल की खाड़ी में समुद्री सुरक्षा में भी अहम भूमिका अदा करेगा, क्योंकि यह भारत-प्रशांत क्षेत्र के ठीक केंद्र में है. इंडो- पैसिफिक क्षेत्र जो जापान के पूर्वी तट से लेकर अफ्रीका के पूर्वी तट तक फैला हुआ है. बता दें कि भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ, उस क्वाड का हिस्सा है जो क्षेत्र में चीन के आधिपत्य के सामने एक स्वतंत्र और खुले इंडो-पैसिफिक के लिए काम कर रहा है.
इस बारे में एशियन कॉन्फ्लुएंस के फेलो के. योहोम ने ईटीवी भारत को बताया कि जब बांग्लादेश एक गहरे समुद्री बंदरगाह को विकसित करने के लिए निवेशकों की तलाश कर रहा था, तो चीन और जापान दोनों ने रुचि दिखाई थी. वहीं चीन के हित को लेकर भारत सावधान हो गया था और उसने बांग्लादेश से शिकायत की थी. इसके बाद ढाका ने निष्कर्ष निकाला कि चीन के नेतृत्व वाली परियोजना का होना इस क्षेत्र के लिए अच्छा नहीं होगा, उसके बाद, जापान तस्वीर में सामने आया. उन्होंने कहा कि भारत और जापान घनिष्ठ भागीदार हैं और संयुक्त रूप से पूर्वोत्तर और बांग्लादेश सहित पड़ोसी देशों में कई कनेक्टिविटी परियोजनाएं विकसित कर रहे हैं.
वहीं जेआईसीए (जापान अंतरराष्ट्रीय सहयोग एजेंसी) पहले से ही पूर्वोत्तर में प्रमुख कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए विकासात्मक सहायता प्रदान कर रही है. योहोम के अनुसार, कनेक्टिविटी विकसित करने के लिए भारत और जापान के एक साथ आने का कारण यह है कि चीन अपने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के साथ क्या कर रहा है. गौरतलब है कि बीआरआई एक वैश्विक बुनियादी ढांचा विकास रणनीति है जिसे चीनी सरकार ने 2013 में 150 से अधिक देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों में निवेश करने के लिए अपनाया था. इसे चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की विदेश नीति का केंद्रबिंदु माना जाता है. बीआरआई शी की प्रमुख देश कूटनीति रणनीति का एक केंद्रीय घटक है, जो चीन को अपनी बढ़ती शक्ति और स्थिति के अनुसार वैश्विक मामलों के लिए एक बड़ी नेतृत्व भूमिका निभाने के लिए कहता है.
बीआरआई में वह भी शामिल है जिसे पश्चिमी पर्यवेक्षक चीन की स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति कहते हैं. यह चीनी सैन्य और वाणिज्यिक सुविधाओं और संचार की समुद्री लाइनों के साथ संबंधों के नेटवर्क को न केवल संदर्भित करती है बल्कि चीन की मुख्य भूमि से अफ्रीका के हॉर्न में पोर्ट सूडान तक फैला हुआ है. इतना ही नहीं समुद्री रेखाएं कई प्रमुख समुद्री अवरोध बिंदुओं से होकर गुजरती हैं जो मंडेब जलडमरूमध्य, मलक्का जलडमरूमध्य, होर्मुज जलडमरूमध्य और लोम्बोक जलडमरूमध्य के साथ-साथ सोमालिया, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, मालदीव और अन्य रणनीतिक समुद्री केंद्रों से होकर गुजरती हैं. रक्षा विश्लेषकों का कहना है कि स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति से भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा है. क्योंकि यह भारत को घेर लेगा और इसकी वजह से व्यापार, समुद्री और क्षेत्रीय अखंडता को खतरे पैदा हो सकता है.
दूसरी तरफ भारत चीनी स्ट्रिंग ऑफ पर्ल्स रणनीति का मुकाबला करने के लिए बहुआयामी रणनीति का उपयोग कर रहा है. इस रणनीति में बंदरगाहों का निर्माण, चीनी युद्धपोतों और पनडुब्बियों पर नज़र रखने के लिए व्यापक तटीय निगरानी रडार (सीएसआर) प्रणाली, अत्याधुनिक निगरानी विमानों का आयात करना जो चीनी पनडुब्बियों को ट्रैक कर सकते हैं. इसके अलावा चीन के साथ सीमा के पास हवाई अड्डों का संचालन, रक्षा संबंधों को गहरा करना शामिल है. साथ ही दक्षिण एशियाई देशों, हिंद महासागर क्षेत्र में द्वीप देशों, दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के साथ द्विपक्षीय संबंधों का विस्तार करना और अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया की नौसेनाओं के साथ नियमित सैन्य अभ्यास करना शामिल है. यही कारण है कि जापानी के सहयोग से बनाया जा रहा मातरबारी गहरे समुद्री का बंदरगाह भारत की रक्षा रणनीति के लिए एक बड़ा झटका है.
हालांकि भारत ने पहले ही म्यांमार में मातरबारी बंदरगाह के पूर्व में सिटवे बंदरगाह का निर्माण कर लिया है, जबकि पश्चिम बंगाल में हल्दिया बंदरगाह मटरबारी के पश्चिम में है. योहोम ने बताया कि भारत और जापान चीन के बीआरआई का विकल्प प्रदान करने के लिए एक साथ आए हैं. इसमें क्षेत्र में चीन के प्रभाव को कम करना भारत के लिए रणनीतिक हित में है. उन्होंने कहा कि हिंद महासागर को प्रशांत महासागर से जोड़ने के लिए भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के अलावा भारत के पूर्वी तट और बांग्लादेश का विकास महत्वपूर्ण है. योहोम ने कहा कि कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का एक एकीकृत नेटवर्क बनाना महत्वपूर्ण है. इसी दृष्टिकोण से मटरबारी बंदरगाह महत्वपूर्ण है. यह बंगाल की खाड़ी क्षेत्र के भीतर व्यापार और कनेक्टिविटी का एक प्रमुख केंद्र हो सकता है.
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