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ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडेरेशन का श्वेत पत्र, कोयला संकट के लिए केंद्र की पॉलिसी जिम्मेदार

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Published : May 13, 2022, 10:45 PM IST

भारत में चल रही कोयले की कमी और बिजली किल्लत सरकार की पॉलिसी में गलतियों से हुई है. ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (AIPEF) की ओर से तैयार किए जा रहे एक श्वेत पत्र (White paper) में यह दावा किया है. क्या रहीं नीतिगत खामियां, बता रहे हैं गौतम देबरॉय.

नई दिल्ली : अप्रैल के महीने से जब गर्मी ने अपने तेवर दिखाने शुरू किए तो बिजली की डिमांड बढ़ गई. तब यह सामने आया कि देश के कई राज्यों में बिजली बनाने वाले पावर स्टेशनों पर कोयले का संकट गहरा रहा है. सरकार ने आनन-फानन में पैसेंजर ट्रेनों को रद्द कर कोयले से लदी स्पेशल ट्रेनें चलवाईं तो हालात काबू में आया. राजनीतिक दलों और सरकारों में भी काफी बहस हुईं कि आखिर इस क्राइसिस के लिए जिम्मेदार कौन है? केंद्रीय बिजली मंत्री और कोयला मंत्री केंद्र सरकार की नीतियों का बचाव करते रहे. कोयले के संकट पर ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (AIPEF) ने श्वेत पत्र (White paper on coal shortage) जारी किया है. इस श्वेत पत्र में इस समस्या के लिए केंद्र सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया गया है. फेडरेशन का कहना है कि रेलवे वैगनों की कमी के कारण हालात और भी बदतर हो गए.

ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (AIPEF) के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने कहा कि 2016 में कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) के 35,000 करोड़ रुपये के संचित राजस्व को हटाने के भारत सरकार के निर्णय ने नई खदानों के विकास और मौजूदा खदानों की क्षमता प्रभावित हुईं. यदि सरप्लस को कोल माइन सेक्टर में जोड़ दिया जाता तो यह दिक्कत नहीं होती है. श्वेत पत्र के हवाले से शैलेंद्र दुबे ने कहा कि सीआईएल के सीएमडी के पद का कार्यकाल समाप्त होने के बाद एक साल तक खाली रहा. यह फैसला बताता है कि कोयले की कमी के लिए सरकार खुद जिम्मेदार थी.

दुबे ने कहा कि शॉर्टेज के बाद सरकार ने कोयले का आयात किया मगर इसके लिए एक्स्ट्रा चार्ज राज्य सरकारों से मांगे गए. इस संबंध में 28 अप्रैल को ऑर्डर जारी किया गया. आयातित कोयले के लिए अतिरिक्त शुल्क केंद्र सरकार को देना चाहिए क्योंकि यह किल्लत उनकी नीतिगत त्रुटि के कारण हुई थी. अप्रैल में पावर मिनिस्ट्री ने सभी पावर जेनरेशन कंपनियों को कुल खपत का दस प्रतिशत कोयला आयात करने के निर्देश दिए थे. दुबे ने कहा कि यदि राज्य कोयले का आयात करने के लिए बाध्य किए जाते हैं तो इसका अतिरिक्त भार केंद्रे सरकार को वहन करना चाहिए. ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (AIPEF) ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों से कहा कि वह इस मुद्दे को केंंद्र सरकार के सामने उठाए.

शैंलेंद्र दुबे ने आयातित कोयले के उपयोग पर भी सवाल उठाया. उनका कहना है कि कई दशक पहले अधिकतर थर्मल स्टेशनों का निर्माण घरेलू कोयला खादानों के आधार पर किया गया था, इसलिए इन प्लांट में इंपोर्ट किए गए कोयले को घरेलू प्रोडक्शन के साथ मिक्स करने की व्यवस्था नहीं की गई. उन्होंने दावा कि कोयले के असमान मिलावट के कारण बॉयलरों ट्यूब में रिसाव की घटना बढ़ सकती है. फेडरेशन का कहना है कि रेलवे वैगनों की कमी के कारण कोयले की किल्लत और बढ़ी है. यह पाया गया कि देश के पावर स्टेशनों को प्रतिदिन 441 रैक की जरूरत है जबकि सप्लाई 405 रैक की ही हो रही है. 2017-18 से 2021-22 की अवधि के दौरान रेलवे ने हर साल औसतन 10,400 वैगन का ऑर्डर दिया गया था, जबकि उसे प्रति वर्ष 23592 वैगन की जरूरत थी. इस कारण रेलवे के पास भी वैगन की कमी होती गई.

पढ़ें : Coal Crisis: कोयला आयात को लेकर राज्यों को केंद्र की एडवाइजरी पर उठे सवाल

नई दिल्ली : अप्रैल के महीने से जब गर्मी ने अपने तेवर दिखाने शुरू किए तो बिजली की डिमांड बढ़ गई. तब यह सामने आया कि देश के कई राज्यों में बिजली बनाने वाले पावर स्टेशनों पर कोयले का संकट गहरा रहा है. सरकार ने आनन-फानन में पैसेंजर ट्रेनों को रद्द कर कोयले से लदी स्पेशल ट्रेनें चलवाईं तो हालात काबू में आया. राजनीतिक दलों और सरकारों में भी काफी बहस हुईं कि आखिर इस क्राइसिस के लिए जिम्मेदार कौन है? केंद्रीय बिजली मंत्री और कोयला मंत्री केंद्र सरकार की नीतियों का बचाव करते रहे. कोयले के संकट पर ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (AIPEF) ने श्वेत पत्र (White paper on coal shortage) जारी किया है. इस श्वेत पत्र में इस समस्या के लिए केंद्र सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया गया है. फेडरेशन का कहना है कि रेलवे वैगनों की कमी के कारण हालात और भी बदतर हो गए.

ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (AIPEF) के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने कहा कि 2016 में कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) के 35,000 करोड़ रुपये के संचित राजस्व को हटाने के भारत सरकार के निर्णय ने नई खदानों के विकास और मौजूदा खदानों की क्षमता प्रभावित हुईं. यदि सरप्लस को कोल माइन सेक्टर में जोड़ दिया जाता तो यह दिक्कत नहीं होती है. श्वेत पत्र के हवाले से शैलेंद्र दुबे ने कहा कि सीआईएल के सीएमडी के पद का कार्यकाल समाप्त होने के बाद एक साल तक खाली रहा. यह फैसला बताता है कि कोयले की कमी के लिए सरकार खुद जिम्मेदार थी.

दुबे ने कहा कि शॉर्टेज के बाद सरकार ने कोयले का आयात किया मगर इसके लिए एक्स्ट्रा चार्ज राज्य सरकारों से मांगे गए. इस संबंध में 28 अप्रैल को ऑर्डर जारी किया गया. आयातित कोयले के लिए अतिरिक्त शुल्क केंद्र सरकार को देना चाहिए क्योंकि यह किल्लत उनकी नीतिगत त्रुटि के कारण हुई थी. अप्रैल में पावर मिनिस्ट्री ने सभी पावर जेनरेशन कंपनियों को कुल खपत का दस प्रतिशत कोयला आयात करने के निर्देश दिए थे. दुबे ने कहा कि यदि राज्य कोयले का आयात करने के लिए बाध्य किए जाते हैं तो इसका अतिरिक्त भार केंद्रे सरकार को वहन करना चाहिए. ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (AIPEF) ने राज्यों के मुख्यमंत्रियों से कहा कि वह इस मुद्दे को केंंद्र सरकार के सामने उठाए.

शैंलेंद्र दुबे ने आयातित कोयले के उपयोग पर भी सवाल उठाया. उनका कहना है कि कई दशक पहले अधिकतर थर्मल स्टेशनों का निर्माण घरेलू कोयला खादानों के आधार पर किया गया था, इसलिए इन प्लांट में इंपोर्ट किए गए कोयले को घरेलू प्रोडक्शन के साथ मिक्स करने की व्यवस्था नहीं की गई. उन्होंने दावा कि कोयले के असमान मिलावट के कारण बॉयलरों ट्यूब में रिसाव की घटना बढ़ सकती है. फेडरेशन का कहना है कि रेलवे वैगनों की कमी के कारण कोयले की किल्लत और बढ़ी है. यह पाया गया कि देश के पावर स्टेशनों को प्रतिदिन 441 रैक की जरूरत है जबकि सप्लाई 405 रैक की ही हो रही है. 2017-18 से 2021-22 की अवधि के दौरान रेलवे ने हर साल औसतन 10,400 वैगन का ऑर्डर दिया गया था, जबकि उसे प्रति वर्ष 23592 वैगन की जरूरत थी. इस कारण रेलवे के पास भी वैगन की कमी होती गई.

पढ़ें : Coal Crisis: कोयला आयात को लेकर राज्यों को केंद्र की एडवाइजरी पर उठे सवाल

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