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जब मुंशी प्रेमचंद ने अपने कमरे में लगाई पत्नी की फोटो, फिर हुई बहस, पढ़िए किस्सा

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Published : Dec 22, 2021, 9:36 AM IST

साहित्य सागर में गोते लगाएं तो न सिर्फ शब्दों के नायाब मोती मिलते हैं, बल्कि वे दिलचस्प किस्से भी मिलते हैं, जो साहित्यकारों की जिंदगी को नजदीक से समझने का मौका बनाते हैं. लेखनी की इस कड़ी में चलिए बात करते हैं हिन्दी के ख्यातनाम साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद ( litterateur Munshi Premchand) की. इस नाम को कौन नहीं जानता. या यूं कहें कि इसी नाम से हिन्दी साहित्य जाना जाता है, तो भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी.

मुंशी प्रेमचंद
मुंशी प्रेमचंद

नई दिल्ली : मुंशी प्रेमंचद (Munshi Premchand) की कहानियों में न सिर्फ साहित्य का उत्कृष्ट फलक नजर आता है, बल्कि उनकी लेखनी में उस वक्त की सामाजिक स्थितियों को लेकर साहित्यकार के मन की गहराई का भी पता लगता है. एक अच्छे साहित्यकार की पहचान ही यही है कि वो निजी जीवन को भी साहित्य की ही तरह उतार-चढ़ाव के बावजूद, पठनीय बनाए रखे. मुंशी प्रेमचंद का निजी जीवन भी उतना ही सरल था, जितना कि उनका साहित्य. निजी जीवन में महिलाओं के प्रति उनके मन में क्या भाव थे, ये उस किस्से से पता चलता है, जिसे मुंशी प्रेमचंद ने नहीं बल्कि उनकी पत्नी ने लिखा है. साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद को आप सब जानते हैं, लेकिन एक पति के रूप में मुंशी प्रेमचंद कैसे थे, पढ़िए ये किस्सा.

साल 1931 की बात है. शिवरानी देवी आजादी की लड़ाई में स्वयंसेवक बन चुकी थीं और लखनऊ में महिला आश्रम की संचालिकाओं में से एक थीं. उन्हें 11 नवंबर को कई महिलाओं के साथ गिरफ्तार कर लिया गया. जब उन्हें गिरफ्तार किया गया था तो मुंशी जी बनारस गए हुए थे. गिरफ्तारी के दूसरे दिन वह वापस लखनऊ आए और बहुत परेशान हो गए. उन दिनों उनकी तबीयत भी ठीक नहीं रहती थी. कुछ दिनों बाद शिवरानी देवी को जेल से छोड़ दिया गया.

जेल से छूटने के बाद जब शिवरानी देवी मुंशी जी के कमरे में पहुंची तो उन्होंने देखा कि उनकी एक फोटो लगी हुई है, जिस पर एक चंदन की माला और एक फूल की माला पहनाई गई है. यह देखते ही उन्होंने मुंशी जी से पूछा कि यहां आपने मेरा फोटो क्यों लगाया? इसको यहां नहीं लगाना चाहिए था क्योंकि यहां हर तरह के लोग मिलने-जुलने आते हैं. यह अच्छा नहीं मालूम होता. इसे उतारकर मुझे दे दीजिए. इस पर मुंशी जी ने हंसकर कहा कि क्या इसे हटाने के लिए लगाया है.

इस पर शिवरानी देवी बोलीं- यह अच्छा नहीं लगता साहब, कोई देख लेगा.

मुंशी जी बोले- अरे तो क्या मैंने इसे छिपाकर रखा है. देखने के लिए ही तो लगाया है. इस पर शिवरानी देवी ने कहा कि यह तो एक तरह से मुझे शर्म मालूम होती है.

मुंशी जी ने उत्तर दिया- न मालूम, तुम्हें क्यों शर्म मालूम होती है, मुझे तो कोई शर्म मालूम नहीं होती. तुम्हारे कमरे में भी मेरा फोटा लगा है तो मेरे कमरे में तुम्हारी फोटो तुम्हें क्यों बुरी लगती है. शिवरानी जी ने तर्क दिया- मर्दों के कमरों में औरतों के फोटो अच्छे नहीं लगते.

इसमें बुरा लगने की कोई बात नहीं है. मुंशी जी ने कहा और फिर तुम्हारी फोटो कहां लगाई जाए कि तुमको बुरी न लगे, अच्छी लगे और तुम्हें शर्म भी न लगे ?

मेरा फोटो मेरे कमरे में ही रहे. मेरा भाई लगाए या बेटे लगावें तो मुझे बुरा न लगेगा- शिवरानी देवी ने उत्तर दिया.

मुंशी जी बोले- मैं तो समझता हूं कि तुम्हारा फोटो लगाने का सबसे ज्यादा अधिकार मुझे है. हां अगर, मेरी उमर का कोई दूसरा पुरुष तुम्हारा फोटो लगाए और उसकी उपासना करे तो शायद मैं उसका जानी दुश्मन हो जाऊं.

इसमें उपासक होने की कौन-सी बात है ? आप अपने मित्रों के फोटो नहीं लगाते हैं ? शिवरानी देवी ने फिर पूछा.

मित्रों की फोटो तो मैं लगा सकता हूं, मगर मित्रों की बीबी की फोटो लगाने का मुझे कोई हक़ नहीं. एक मां, बेटी, बहन छोड़कर, इनका फोटो तो लगाया जा सकता है- मुंशी ने जवाब दिया.

तुम खुद सोच सकती हो किसी दूसरी औरत की फोटो मैं अपने कमरे में लगा लूं तो क्या तुमको बुरा नहीं लगेगा- मुंशी जी ने पूछा.

शिवरानी देवी बोलीं- मैं तो कभी भूल से भी ख्याल नहीं करूंगी. मैं तो समझूंगी कि मां-बहन समझकर लगाया होगा.

मुंशी जी झुंझला गए और कहा कि तुम या तो बेवकूफ हो या पागल या फिर तुम्हारे पास सोचने की शक्ति नहीं है.

अच्छा साहब, मैं पागल हूं, बेवकूफ हूं, सब कुछ हूं. मेरा फोटो मुझे उतारकर दे दीजिए. यह मुझे अच्छा नहीं लगता- शिवरानी देवी ने जवाब दिया.

मुंशी जी बोले- यह फोटो मैंने उतारने के लिए नहीं लगाया है. पहले तुम अपने कमरे से हमारा फोटो उतारकर दे दो.

अब खीझने की बारी देवी जी की थी. उन्होंने खीझते हुए कहा- जाओ जी, जाकर हंसी कराओ, मुझे क्या करना है. जो लोग आएंगे आपसे मजाक करेंगे, मैं क्या सुनने के लिए बैठी रहूंगी ?

मुंशी जी बोले- मैं ऐसा नाजुक नहीं हूं कि इन सबसे डरूंगा और न ही मैं ऐसा हूं कि मजाक नहीं कर सकता.

पढ़ें : हेमा मालिनी ने कहा- काशी व अयोध्या की तरह मथुरा में भी बने मंदिर

इसके बाद शिवरानी जी वहां से खीझते हुए चली गईं.

(मुंशी जी के जीवन का यह प्रसंग उनकी जीवनी 'प्रेमचंद: घर में' से लिया गया है. यह जीवनी शिवरानी देवी द्वारा ही लिखी गई है.)

नई दिल्ली : मुंशी प्रेमंचद (Munshi Premchand) की कहानियों में न सिर्फ साहित्य का उत्कृष्ट फलक नजर आता है, बल्कि उनकी लेखनी में उस वक्त की सामाजिक स्थितियों को लेकर साहित्यकार के मन की गहराई का भी पता लगता है. एक अच्छे साहित्यकार की पहचान ही यही है कि वो निजी जीवन को भी साहित्य की ही तरह उतार-चढ़ाव के बावजूद, पठनीय बनाए रखे. मुंशी प्रेमचंद का निजी जीवन भी उतना ही सरल था, जितना कि उनका साहित्य. निजी जीवन में महिलाओं के प्रति उनके मन में क्या भाव थे, ये उस किस्से से पता चलता है, जिसे मुंशी प्रेमचंद ने नहीं बल्कि उनकी पत्नी ने लिखा है. साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद को आप सब जानते हैं, लेकिन एक पति के रूप में मुंशी प्रेमचंद कैसे थे, पढ़िए ये किस्सा.

साल 1931 की बात है. शिवरानी देवी आजादी की लड़ाई में स्वयंसेवक बन चुकी थीं और लखनऊ में महिला आश्रम की संचालिकाओं में से एक थीं. उन्हें 11 नवंबर को कई महिलाओं के साथ गिरफ्तार कर लिया गया. जब उन्हें गिरफ्तार किया गया था तो मुंशी जी बनारस गए हुए थे. गिरफ्तारी के दूसरे दिन वह वापस लखनऊ आए और बहुत परेशान हो गए. उन दिनों उनकी तबीयत भी ठीक नहीं रहती थी. कुछ दिनों बाद शिवरानी देवी को जेल से छोड़ दिया गया.

जेल से छूटने के बाद जब शिवरानी देवी मुंशी जी के कमरे में पहुंची तो उन्होंने देखा कि उनकी एक फोटो लगी हुई है, जिस पर एक चंदन की माला और एक फूल की माला पहनाई गई है. यह देखते ही उन्होंने मुंशी जी से पूछा कि यहां आपने मेरा फोटो क्यों लगाया? इसको यहां नहीं लगाना चाहिए था क्योंकि यहां हर तरह के लोग मिलने-जुलने आते हैं. यह अच्छा नहीं मालूम होता. इसे उतारकर मुझे दे दीजिए. इस पर मुंशी जी ने हंसकर कहा कि क्या इसे हटाने के लिए लगाया है.

इस पर शिवरानी देवी बोलीं- यह अच्छा नहीं लगता साहब, कोई देख लेगा.

मुंशी जी बोले- अरे तो क्या मैंने इसे छिपाकर रखा है. देखने के लिए ही तो लगाया है. इस पर शिवरानी देवी ने कहा कि यह तो एक तरह से मुझे शर्म मालूम होती है.

मुंशी जी ने उत्तर दिया- न मालूम, तुम्हें क्यों शर्म मालूम होती है, मुझे तो कोई शर्म मालूम नहीं होती. तुम्हारे कमरे में भी मेरा फोटा लगा है तो मेरे कमरे में तुम्हारी फोटो तुम्हें क्यों बुरी लगती है. शिवरानी जी ने तर्क दिया- मर्दों के कमरों में औरतों के फोटो अच्छे नहीं लगते.

इसमें बुरा लगने की कोई बात नहीं है. मुंशी जी ने कहा और फिर तुम्हारी फोटो कहां लगाई जाए कि तुमको बुरी न लगे, अच्छी लगे और तुम्हें शर्म भी न लगे ?

मेरा फोटो मेरे कमरे में ही रहे. मेरा भाई लगाए या बेटे लगावें तो मुझे बुरा न लगेगा- शिवरानी देवी ने उत्तर दिया.

मुंशी जी बोले- मैं तो समझता हूं कि तुम्हारा फोटो लगाने का सबसे ज्यादा अधिकार मुझे है. हां अगर, मेरी उमर का कोई दूसरा पुरुष तुम्हारा फोटो लगाए और उसकी उपासना करे तो शायद मैं उसका जानी दुश्मन हो जाऊं.

इसमें उपासक होने की कौन-सी बात है ? आप अपने मित्रों के फोटो नहीं लगाते हैं ? शिवरानी देवी ने फिर पूछा.

मित्रों की फोटो तो मैं लगा सकता हूं, मगर मित्रों की बीबी की फोटो लगाने का मुझे कोई हक़ नहीं. एक मां, बेटी, बहन छोड़कर, इनका फोटो तो लगाया जा सकता है- मुंशी ने जवाब दिया.

तुम खुद सोच सकती हो किसी दूसरी औरत की फोटो मैं अपने कमरे में लगा लूं तो क्या तुमको बुरा नहीं लगेगा- मुंशी जी ने पूछा.

शिवरानी देवी बोलीं- मैं तो कभी भूल से भी ख्याल नहीं करूंगी. मैं तो समझूंगी कि मां-बहन समझकर लगाया होगा.

मुंशी जी झुंझला गए और कहा कि तुम या तो बेवकूफ हो या पागल या फिर तुम्हारे पास सोचने की शक्ति नहीं है.

अच्छा साहब, मैं पागल हूं, बेवकूफ हूं, सब कुछ हूं. मेरा फोटो मुझे उतारकर दे दीजिए. यह मुझे अच्छा नहीं लगता- शिवरानी देवी ने जवाब दिया.

मुंशी जी बोले- यह फोटो मैंने उतारने के लिए नहीं लगाया है. पहले तुम अपने कमरे से हमारा फोटो उतारकर दे दो.

अब खीझने की बारी देवी जी की थी. उन्होंने खीझते हुए कहा- जाओ जी, जाकर हंसी कराओ, मुझे क्या करना है. जो लोग आएंगे आपसे मजाक करेंगे, मैं क्या सुनने के लिए बैठी रहूंगी ?

मुंशी जी बोले- मैं ऐसा नाजुक नहीं हूं कि इन सबसे डरूंगा और न ही मैं ऐसा हूं कि मजाक नहीं कर सकता.

पढ़ें : हेमा मालिनी ने कहा- काशी व अयोध्या की तरह मथुरा में भी बने मंदिर

इसके बाद शिवरानी जी वहां से खीझते हुए चली गईं.

(मुंशी जी के जीवन का यह प्रसंग उनकी जीवनी 'प्रेमचंद: घर में' से लिया गया है. यह जीवनी शिवरानी देवी द्वारा ही लिखी गई है.)

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