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एक बार फिर से केंद्र और प.बंगाल आमने-सामने, सीबीआई जांच हो सकती है प्रभावित - face to face bengal and centre

पश्चिम बंगाल सीआईडी ने सीबीआई को नोटिस जारी कर दिया है. नोटिस हिरासत में मौत को लेकर जारी किया गया है. कलकत्ता हाईकोर्ट ने इसकी मंजूरी दी है. अब विशेषज्ञों को लग रहा है कि प.बंगाल में एक बार फिर से राजनीतिक सरगर्मी तेज हो जाएगी. केंद्रीय एजेंसी और राज्य एजेंसी के आमने-सामने आ जाने से अन्य मामलों में जांच प्रगति भी धीमी हो सकती है.

mamata banerjee
ममता बनर्जी
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Published : Dec 18, 2022, 2:48 PM IST

कोलकाता : बोगतुई नरसंहार मामले के मुख्य आरोपी लालन शेख की 12 दिसंबर को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की हिरासत में हुई रहस्यमय मौत ने पश्चिम बंगाल के राजनीतिक और कानूनी स्पेक्ट्रम को पूरी तरह से ढक दिया है. इसने न केवल सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और विपक्षी भाजपा के बीच राजनीतिक गतिरोध पैदा किया है, बल्कि सीबीआई और राज्य पुलिस के आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) के बीच रस्साकशी भी हुई है, जिसने जांच को अपने हाथ में ले लिया है.

एक ओर तृणमूल कांग्रेस सीबीआई हिरासत में लोगों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रही है, तो बीजेपी तृणमूल कांग्रेस पर सीबीआई को बदनाम करने और केंद्रीय एजेंसी द्वारा जांच किए जा रहे अन्य मामलों में जांच की प्रगति को रोकने के लिए साजिश रचने का आरोप लगा रही है. मामले में सीपीआई (एम) और कांग्रेस ने भी शेख की रहस्यमय मौत पर सवाल उठाया है. इस बीच पश्चिम बंगाल सीआईडी ने सात सीबीआई अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के साथ जांच शुरू कर दी है.

सीबीआई ने कलकत्ता उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हुए प्राथमिकी को राजनीतिक रूप से पक्षपाती बताते हुए इस आधार पर चुनौती दी कि जिन सात सीबीआई अधिकारियों का नाम लिया गया है, उनमें से एक पश्चिम बंगाल में पशु तस्करी मामले का एक जांच अधिकारी है. सीबीआई तृणमूल कांग्रेस के नेता वाडू शेख की हत्या और बोगतुई नरसंहार के दो मामलों की समानांतर जांच कर रहा है.

कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जय सेनगुप्ता की एकल न्यायाधीश पीठ ने सीआईडी को अपनी जांच प्रक्रिया आगे बढ़ाने की अनुमति देते हुए राज्य एजेंसी को प्राथमिकी में नामित सीबीआई अधिकारियों में से किसी के खिलाफ एकतरफा कार्रवाई करने से रोक दिया है. अब राजनीतिक खींचतान और जांच की रस्साकशी के बीच पश्चिम बंगाल में सत्ता के गलियारों में यह सवाल घूम रहा है कि क्या यह घटना अन्य महत्वपूर्ण मामलों में केंद्रीय जांच एजेंसियों की प्रगति को धीमा कर देगी?

कानूनी जानकारों का मानना है कि हालांकि कानूनी दृष्टिकोण से इससे अन्य मामलों में सीबीआई की जांच की प्रगति पर असर पड़ने की संभावना नहीं है, लेकिन हिरासत में मौत निश्चित रूप से केंद्रीय एजेंसी को मुश्किल में डाल देगी. कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील कौशिक गुप्ता के अनुसार, अंडरट्रायल लालन शेख के संरक्षक के रूप में सीबीआई जांच अधिकारी उनकी हिरासत में मौत की जिम्मेदारी से इनकार नहीं कर सकते, भले ही यह आत्महत्या का मामला हो.

गुप्ता ने कहा, जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने कहा है, हिरासत में मौत, भले ही यह आत्महत्या हो, अस्वाभाविक थी और सीबीआई इस मामले में जिम्मेदारी से इनकार नहीं कर सकती है. हालांकि यह नहीं कहा जा सकता है कि यह शिक्षक भर्ती घोटाले जैसे अन्य मामलों में सीबीआई की जांच की प्रगति को बाधित करेगा. किसी भी समय, अगर सीबीआई को लगता है कि इन मामलों में उनके अधिकारियों को जांच प्रक्रिया को सुचारु रूप से चलाने में किसी भी प्रशासनिक या राजनीतिक तंत्र द्वारा बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, तो वे अदालत को सूचित कर सकते हैं और अदालत उचित निर्देश देगी.

कलकत्ता उच्च न्यायालय के वकील ज्योति प्रकाश खान के अनुसार लालन शेख की हिरासत में मौत के मामले में राज्य पुलिस की प्राथमिकी में नामजद सात सीबीआई अधिकारियों में पशु-तस्करी घोटाले में सीबीआई के जांच अधिकारी सुशांत भट्टाचार्य के नाम ने स्थिति को और जटिल बना दिया. खान ने कहा- यह जांच करने की जिम्मेदारी राज्य पुलिस या सीआईडी की है कि सुशांत भट्टाचार्य किसी तरह वाडू शेख की हत्या और बोगतुई नरसंहार की जांच कर रही सीबीआई की अलग टीम से जुड़े थे. हालांकि सीबीआई ने कहा है कि भट्टाचार्य का कोई संबंध नहीं था.

अरुंधति मुखर्जी जैसी वरिष्ठ राजनीतिक पर्यवेक्षक और टिप्पणीकार को लगता है कि पश्चिम बंगाल जैसे राज्य में, जहां हर जगह राजनीति हावी है, हिरासत में मौत और वह भी सीबीआई की हिरासत में, कुछ समय के लिए राजनीतिक बहस के मूल में रहेगा. मुखर्जी ने कहा: मेरा अनुभव कहता है कि इस मुद्दे पर राजनीतिक गतिरोध तब तक जारी रहेगा जब तक कि कोई समान या अधिक ज्वलंत मुद्दा सामने नहीं आ जाता. मुझे इस बात का डर है कि लगातार बदलते राजनीतिक टकराव के बीच शेख की हिरासत में मौत के पीछे की असली कहानी कभी सामने नहीं आ सकती.

ये भी पढ़ें : Lalan Sheikh Case : प.बंगाल सीआईडी ने सीबीआई को जारी किया नोटिस

(आईएएनएस)

कोलकाता : बोगतुई नरसंहार मामले के मुख्य आरोपी लालन शेख की 12 दिसंबर को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) की हिरासत में हुई रहस्यमय मौत ने पश्चिम बंगाल के राजनीतिक और कानूनी स्पेक्ट्रम को पूरी तरह से ढक दिया है. इसने न केवल सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस और विपक्षी भाजपा के बीच राजनीतिक गतिरोध पैदा किया है, बल्कि सीबीआई और राज्य पुलिस के आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) के बीच रस्साकशी भी हुई है, जिसने जांच को अपने हाथ में ले लिया है.

एक ओर तृणमूल कांग्रेस सीबीआई हिरासत में लोगों की सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रही है, तो बीजेपी तृणमूल कांग्रेस पर सीबीआई को बदनाम करने और केंद्रीय एजेंसी द्वारा जांच किए जा रहे अन्य मामलों में जांच की प्रगति को रोकने के लिए साजिश रचने का आरोप लगा रही है. मामले में सीपीआई (एम) और कांग्रेस ने भी शेख की रहस्यमय मौत पर सवाल उठाया है. इस बीच पश्चिम बंगाल सीआईडी ने सात सीबीआई अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने के साथ जांच शुरू कर दी है.

सीबीआई ने कलकत्ता उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाते हुए प्राथमिकी को राजनीतिक रूप से पक्षपाती बताते हुए इस आधार पर चुनौती दी कि जिन सात सीबीआई अधिकारियों का नाम लिया गया है, उनमें से एक पश्चिम बंगाल में पशु तस्करी मामले का एक जांच अधिकारी है. सीबीआई तृणमूल कांग्रेस के नेता वाडू शेख की हत्या और बोगतुई नरसंहार के दो मामलों की समानांतर जांच कर रहा है.

कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जय सेनगुप्ता की एकल न्यायाधीश पीठ ने सीआईडी को अपनी जांच प्रक्रिया आगे बढ़ाने की अनुमति देते हुए राज्य एजेंसी को प्राथमिकी में नामित सीबीआई अधिकारियों में से किसी के खिलाफ एकतरफा कार्रवाई करने से रोक दिया है. अब राजनीतिक खींचतान और जांच की रस्साकशी के बीच पश्चिम बंगाल में सत्ता के गलियारों में यह सवाल घूम रहा है कि क्या यह घटना अन्य महत्वपूर्ण मामलों में केंद्रीय जांच एजेंसियों की प्रगति को धीमा कर देगी?

कानूनी जानकारों का मानना है कि हालांकि कानूनी दृष्टिकोण से इससे अन्य मामलों में सीबीआई की जांच की प्रगति पर असर पड़ने की संभावना नहीं है, लेकिन हिरासत में मौत निश्चित रूप से केंद्रीय एजेंसी को मुश्किल में डाल देगी. कलकत्ता उच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील कौशिक गुप्ता के अनुसार, अंडरट्रायल लालन शेख के संरक्षक के रूप में सीबीआई जांच अधिकारी उनकी हिरासत में मौत की जिम्मेदारी से इनकार नहीं कर सकते, भले ही यह आत्महत्या का मामला हो.

गुप्ता ने कहा, जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने कहा है, हिरासत में मौत, भले ही यह आत्महत्या हो, अस्वाभाविक थी और सीबीआई इस मामले में जिम्मेदारी से इनकार नहीं कर सकती है. हालांकि यह नहीं कहा जा सकता है कि यह शिक्षक भर्ती घोटाले जैसे अन्य मामलों में सीबीआई की जांच की प्रगति को बाधित करेगा. किसी भी समय, अगर सीबीआई को लगता है कि इन मामलों में उनके अधिकारियों को जांच प्रक्रिया को सुचारु रूप से चलाने में किसी भी प्रशासनिक या राजनीतिक तंत्र द्वारा बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है, तो वे अदालत को सूचित कर सकते हैं और अदालत उचित निर्देश देगी.

कलकत्ता उच्च न्यायालय के वकील ज्योति प्रकाश खान के अनुसार लालन शेख की हिरासत में मौत के मामले में राज्य पुलिस की प्राथमिकी में नामजद सात सीबीआई अधिकारियों में पशु-तस्करी घोटाले में सीबीआई के जांच अधिकारी सुशांत भट्टाचार्य के नाम ने स्थिति को और जटिल बना दिया. खान ने कहा- यह जांच करने की जिम्मेदारी राज्य पुलिस या सीआईडी की है कि सुशांत भट्टाचार्य किसी तरह वाडू शेख की हत्या और बोगतुई नरसंहार की जांच कर रही सीबीआई की अलग टीम से जुड़े थे. हालांकि सीबीआई ने कहा है कि भट्टाचार्य का कोई संबंध नहीं था.

अरुंधति मुखर्जी जैसी वरिष्ठ राजनीतिक पर्यवेक्षक और टिप्पणीकार को लगता है कि पश्चिम बंगाल जैसे राज्य में, जहां हर जगह राजनीति हावी है, हिरासत में मौत और वह भी सीबीआई की हिरासत में, कुछ समय के लिए राजनीतिक बहस के मूल में रहेगा. मुखर्जी ने कहा: मेरा अनुभव कहता है कि इस मुद्दे पर राजनीतिक गतिरोध तब तक जारी रहेगा जब तक कि कोई समान या अधिक ज्वलंत मुद्दा सामने नहीं आ जाता. मुझे इस बात का डर है कि लगातार बदलते राजनीतिक टकराव के बीच शेख की हिरासत में मौत के पीछे की असली कहानी कभी सामने नहीं आ सकती.

ये भी पढ़ें : Lalan Sheikh Case : प.बंगाल सीआईडी ने सीबीआई को जारी किया नोटिस

(आईएएनएस)

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