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अनोखी शादी : दूल्हा-दुल्हन के बिना उत्तराखंड में पूरे विधि-विधान से हुआ विवाह

दिल्ली में दूल्हे गौतम की रिपोर्ट कोरोना पॉजिटिव आने के बाद दुल्हन किरन ने खुद को आइसोलेट कर लिया. इस कारण वो अपनी ही शादी में जखनोली गांव नहीं पहुंच पाए. ऐसे में परिजनों ने नारियल (श्रीफल) को प्रतीक मानकर शादी करवाई.

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Published : Apr 23, 2021, 5:53 AM IST

बिना दूल्हा-दुल्हन के पौड़ी में हुई शादी.
बिना दूल्हा-दुल्हन के पौड़ी में हुई शादी.

पौड़ी : उत्तराखंड के सतपुली क्षेत्र के जखनोली में एक अजब-गजब विवाह समारोह देखने को मिला है. इस विवाह में दूल्हा और दुल्हन ही नहीं पहुंच पाए. ऐसे में परिजनों और ग्रामीणों ने दूल्हा-दुल्हन के बिना ही नारियल (श्रीफल) को प्रतीक मानकर पूरे विधि-विधान के साथ विवाह को संपन्न कराया. इस अनोखे विवाह समारोह को देखकर लोग काफी अचंभित नजर आए.

दरअसल, सतपुली क्षेत्र के जखनोली गांव में 18-19 अप्रैल को एक विवाह होना था. ग्रामीण अंकित के अनुसार दूल्हा गौतम दिल्ली में नौकरी करता है. जब विवाह से पहले उसने कोरोना जांच करवाई तो वो पॉजिटिव निकला. जिसके बाद दूल्हा दिल्ली में ही रुक गया.

उधर, दुल्हन किरन भी खुद को कोरोना संक्रमित महसूस कर रही थी, जिसके बाद दोनों ही लोग विवाह में शामिल नहीं हो पाए. परिजन लग्न को नहीं छोड़ना चाहते थे. दोनों परिवारों की सहमति से बिना दूल्हा-दुल्हन के ही उत्तराखंड के पारंपरिक विधि-विधान के साथ विवाह संपन्न करवा दिया गया.

बिना दूल्हा-दुल्हन के पौड़ी में हुई शादी.

ग्रामीण अंकित ने बताया कि दूल्हा और दुल्हन दोनों ही विवाह में शामिल नहीं हो पाए. कोरोना का प्रकोप इस विवाह में सीधे देखने को मिला. लेकिन विवाह के तय दिन के अनुसार दोनों ही दूल्हा-दुल्हन का विवाह नारियल (श्रीफल) को प्रतीक मानकर पूरा किया गया. पारंपरिक विधि-विधान के साथ सर्वप्रथम मांगल गीतों और पारंपरिक मिष्ठान को बनाकर दोनों का विवाह संपन्न किया गया. यह पौड़ी जिले का अनोखा विवाह है. जिसे देखकर लोग काफी प्रभावित हुए हैं.

नारियल को प्रतीक मानकर हो सकती है शादी
शास्त्रों और ब्राह्मणों के अनुसार बिना दूल्हा-दुल्हन के शादी हो सकती है. नारियल को प्रतीक मानकर शादी कराई जा सकती है. चूंकि नारियल या श्रीफल को नारियल लक्ष्मी या विष्णु फल भी कहा जाता है तो पौड़ी में इसी को आधार मानकर बिना दूल्हा-दुल्हन के श्रीफल को प्रतीक मानकर विवाह संपन्न कराया गया.

हिंदू धर्म में श्रीफल का महत्व
हिंदू धर्म में नारियल को श्रीफल के नाम से जाना जाता है. ऐसी मान्यता है कि जब भगवान विष्णु ने धरती पर अवतार लिया तो वे अपने साथ तीन चीजें लक्ष्मी, नारियल का वृक्ष और कामधेनु लेकर आए थे. इसलिए नारियल के फल को श्रीफल कहा जाता है. श्री का अर्थ है लक्ष्मी अर्थात नारियल लक्ष्मी या विष्णु का फल.

नारियल में त्रिदेव ब्रह्र्मा, विष्णु और महेश का वास माना जाता है. श्रीफल खाने से शारीरिक दुर्बलता दूर होती है. इष्ट को नारियल चढ़ाने से धन संबंधी समस्या दूर होती है.

महिलाएं नहीं फोड़ती नारियल
पूजन में नारियल का महत्वपूर्ण स्थान है. कोई भी वैदिक या दैविक पूजन नारियल के बलिदान के बिना अधूरी मानी जाती है. यह भी एक तथ्य है कि महिलाएं नारियल नहीं फोड़ती हैं. श्रीफल बीज रूप है, इसलिए इसे उत्पादन अर्थात प्रजनन का कारक माना जाता है. श्रीफल को प्रजनन क्षमता से जोड़ा गया है. स्त्रियां बीज रूप में ही शिशु को जन्म देती हैं. इसलिए नारी के लिये बीज रूपी नारियल को फोड़ना अशुभ माना गया है. देवी-देवताओं को श्रीफल चढ़ाने के बाद पुरुष ही इसे फोड़ते हैं.

पौड़ी : उत्तराखंड के सतपुली क्षेत्र के जखनोली में एक अजब-गजब विवाह समारोह देखने को मिला है. इस विवाह में दूल्हा और दुल्हन ही नहीं पहुंच पाए. ऐसे में परिजनों और ग्रामीणों ने दूल्हा-दुल्हन के बिना ही नारियल (श्रीफल) को प्रतीक मानकर पूरे विधि-विधान के साथ विवाह को संपन्न कराया. इस अनोखे विवाह समारोह को देखकर लोग काफी अचंभित नजर आए.

दरअसल, सतपुली क्षेत्र के जखनोली गांव में 18-19 अप्रैल को एक विवाह होना था. ग्रामीण अंकित के अनुसार दूल्हा गौतम दिल्ली में नौकरी करता है. जब विवाह से पहले उसने कोरोना जांच करवाई तो वो पॉजिटिव निकला. जिसके बाद दूल्हा दिल्ली में ही रुक गया.

उधर, दुल्हन किरन भी खुद को कोरोना संक्रमित महसूस कर रही थी, जिसके बाद दोनों ही लोग विवाह में शामिल नहीं हो पाए. परिजन लग्न को नहीं छोड़ना चाहते थे. दोनों परिवारों की सहमति से बिना दूल्हा-दुल्हन के ही उत्तराखंड के पारंपरिक विधि-विधान के साथ विवाह संपन्न करवा दिया गया.

बिना दूल्हा-दुल्हन के पौड़ी में हुई शादी.

ग्रामीण अंकित ने बताया कि दूल्हा और दुल्हन दोनों ही विवाह में शामिल नहीं हो पाए. कोरोना का प्रकोप इस विवाह में सीधे देखने को मिला. लेकिन विवाह के तय दिन के अनुसार दोनों ही दूल्हा-दुल्हन का विवाह नारियल (श्रीफल) को प्रतीक मानकर पूरा किया गया. पारंपरिक विधि-विधान के साथ सर्वप्रथम मांगल गीतों और पारंपरिक मिष्ठान को बनाकर दोनों का विवाह संपन्न किया गया. यह पौड़ी जिले का अनोखा विवाह है. जिसे देखकर लोग काफी प्रभावित हुए हैं.

नारियल को प्रतीक मानकर हो सकती है शादी
शास्त्रों और ब्राह्मणों के अनुसार बिना दूल्हा-दुल्हन के शादी हो सकती है. नारियल को प्रतीक मानकर शादी कराई जा सकती है. चूंकि नारियल या श्रीफल को नारियल लक्ष्मी या विष्णु फल भी कहा जाता है तो पौड़ी में इसी को आधार मानकर बिना दूल्हा-दुल्हन के श्रीफल को प्रतीक मानकर विवाह संपन्न कराया गया.

हिंदू धर्म में श्रीफल का महत्व
हिंदू धर्म में नारियल को श्रीफल के नाम से जाना जाता है. ऐसी मान्यता है कि जब भगवान विष्णु ने धरती पर अवतार लिया तो वे अपने साथ तीन चीजें लक्ष्मी, नारियल का वृक्ष और कामधेनु लेकर आए थे. इसलिए नारियल के फल को श्रीफल कहा जाता है. श्री का अर्थ है लक्ष्मी अर्थात नारियल लक्ष्मी या विष्णु का फल.

नारियल में त्रिदेव ब्रह्र्मा, विष्णु और महेश का वास माना जाता है. श्रीफल खाने से शारीरिक दुर्बलता दूर होती है. इष्ट को नारियल चढ़ाने से धन संबंधी समस्या दूर होती है.

महिलाएं नहीं फोड़ती नारियल
पूजन में नारियल का महत्वपूर्ण स्थान है. कोई भी वैदिक या दैविक पूजन नारियल के बलिदान के बिना अधूरी मानी जाती है. यह भी एक तथ्य है कि महिलाएं नारियल नहीं फोड़ती हैं. श्रीफल बीज रूप है, इसलिए इसे उत्पादन अर्थात प्रजनन का कारक माना जाता है. श्रीफल को प्रजनन क्षमता से जोड़ा गया है. स्त्रियां बीज रूप में ही शिशु को जन्म देती हैं. इसलिए नारी के लिये बीज रूपी नारियल को फोड़ना अशुभ माना गया है. देवी-देवताओं को श्रीफल चढ़ाने के बाद पुरुष ही इसे फोड़ते हैं.

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