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मायके में ही मैली हो रही 'जीवनदायिनी', जानिए गंगा स्वच्छता की हकीकत

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Published : Jun 11, 2021, 8:00 PM IST

गंगा की सफाई के लिए करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाया गया लेकिन आलम ये है कि जीवनदायिनी कही जाने वाली गंगा अपने मायके में ही मैली हो रही है. केंद्र सरकार की 'नमामि गंगे' योजना उत्तरकाशी जनपद में फेल नजर आ रही है. यहां नगर मुख्यालय क्षेत्र में करीब 90 गंदे नाले गंगा में गिर रहे हैं, जिससे गंगा मैली हो रही है. ऐसे में अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं कि मायके से निकलने के बाद गंगा का हाल क्या होता होगा.

मायके में मैली हो रही गंगा
मायके में मैली हो रही गंगा

उत्तरकाशी (उत्तराखंड): धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गौमुख से निकलने वाली गंगा (भागीरथी) को मां का दर्जा दिया गया है. साथ ही पुराणों के अनुसार गंगा तारणहार भी है. वर्तमान समय में गंगा बहुत ही 'मैली' हो गई है. ऐसे में गंगा को साफ करने के लिए केंद्र सरकार 'नमामि गंगे' जैसी कई योजनाएं चला रही है. इन योजनाओं में करोड़ों रुपये भी खर्च हो चुके हैं, लेकिन हकीकत ये है कि गंगा आज भी साफ नहीं हो पाई है. केंद्र सरकार की ओर से गंगा की स्वच्छता और अविरलता को लेकर नमामि गंगे जैसी योजनाएं चलाई जा रही हैं. साथ ही एनजीटी ने गंगा की स्वच्छता के मानक भी तय किए हैं. लेकिन दुर्भाग्य ये है कि धरातल पर गंगा स्वच्छता की हकीकत कुछ और ही है.

मायके में मैली हो रही गंगा

गंगा में गिर रहे करीब 90 छोटे-बड़े नाले

उत्तरकाशी को गंगा का मायका कहा जाता है, क्योंकि गंगा का उद्गम गौमुख है और यहां से गंगोत्री से होते हुए आगे बढ़ती है. उत्तरकाशी नगर मुख्यालय क्षेत्र में करीब 90 छोटे-बड़े नाले सीधे गंगा में गिर रहे हैं, इसमें सीवरेज शामिल हैं. इन नालों को लेकर अभी तक गंगा स्वच्छता के लिए शासन-प्रशासन ने कोई ठोस योजना तैयार नहीं की है.

पढ़ें- POP से पहले देखें IMA के जेंटलमैन कैडेट अभिषेक राणा का रैपर 'अवतार'

गंगा स्वच्छता के लिए करोड़ों खर्च

मां गंगा दर्शन और जल के लिए देश-विदेश से हर साल लाखों श्रद्धालु उत्तरकाशी पहुंचते हैं. ऐसे में गंगा का पानी जहां धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है. वहीं, इसका पर्यावरणीय और पारिस्थितिकी तंत्र का महत्व पूरे विश्व में है. गंगा के जल को स्वच्छ रखने के लिए करोड़ों का बजट खर्च हो रहा है, लेकिन धरातल पर हकीकत कुछ और ही है. गंगा में गिर रहे नालों के लिए एक मात्र सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट ज्ञानशू में बना है.

पढ़ें- पहली बार रामदेव ने पहना मास्क, कहा- डॉक्टर देवदूत, जल्द लगवाऊंगा वैक्सीन

कम हुई गंगा स्वच्छता की उम्मीद

साल 2013 की आपदा में नगर मुख्यालय के सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बह गए थे. आपदा के 7 साल बीत जाने के बाद भी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण नहीं हो पाया है. वहीं, नमामि गंगे का कार्यालय भी 6 महीने पहले ऋषिकेश हस्तांतरित हो गया. ऐसे में गंगा को साफ करने की बची हुई उम्मीद खत्म हो गई.

गंगा स्वच्छता के दावे फेल
गंगा स्वच्छता के दावे फेल

दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट प्रस्तावित- डीएम

डीएम मयूर दीक्षित का कहना है कि नगर मुख्यालय और गंगोरी नगर क्षेत्र में दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट प्रस्तावित हैं. इसके लिए शासन से लगातार वार्ता की जा रही है. इसकी मॉनिटरिंग की जा रही है कि जल्द ही यह प्लांट स्वीकृत हो सकें, जिससे कि गंगा को स्वच्छ रखा जा सकें.

उत्तरकाशी (उत्तराखंड): धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गौमुख से निकलने वाली गंगा (भागीरथी) को मां का दर्जा दिया गया है. साथ ही पुराणों के अनुसार गंगा तारणहार भी है. वर्तमान समय में गंगा बहुत ही 'मैली' हो गई है. ऐसे में गंगा को साफ करने के लिए केंद्र सरकार 'नमामि गंगे' जैसी कई योजनाएं चला रही है. इन योजनाओं में करोड़ों रुपये भी खर्च हो चुके हैं, लेकिन हकीकत ये है कि गंगा आज भी साफ नहीं हो पाई है. केंद्र सरकार की ओर से गंगा की स्वच्छता और अविरलता को लेकर नमामि गंगे जैसी योजनाएं चलाई जा रही हैं. साथ ही एनजीटी ने गंगा की स्वच्छता के मानक भी तय किए हैं. लेकिन दुर्भाग्य ये है कि धरातल पर गंगा स्वच्छता की हकीकत कुछ और ही है.

मायके में मैली हो रही गंगा

गंगा में गिर रहे करीब 90 छोटे-बड़े नाले

उत्तरकाशी को गंगा का मायका कहा जाता है, क्योंकि गंगा का उद्गम गौमुख है और यहां से गंगोत्री से होते हुए आगे बढ़ती है. उत्तरकाशी नगर मुख्यालय क्षेत्र में करीब 90 छोटे-बड़े नाले सीधे गंगा में गिर रहे हैं, इसमें सीवरेज शामिल हैं. इन नालों को लेकर अभी तक गंगा स्वच्छता के लिए शासन-प्रशासन ने कोई ठोस योजना तैयार नहीं की है.

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गंगा स्वच्छता के लिए करोड़ों खर्च

मां गंगा दर्शन और जल के लिए देश-विदेश से हर साल लाखों श्रद्धालु उत्तरकाशी पहुंचते हैं. ऐसे में गंगा का पानी जहां धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है. वहीं, इसका पर्यावरणीय और पारिस्थितिकी तंत्र का महत्व पूरे विश्व में है. गंगा के जल को स्वच्छ रखने के लिए करोड़ों का बजट खर्च हो रहा है, लेकिन धरातल पर हकीकत कुछ और ही है. गंगा में गिर रहे नालों के लिए एक मात्र सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट ज्ञानशू में बना है.

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कम हुई गंगा स्वच्छता की उम्मीद

साल 2013 की आपदा में नगर मुख्यालय के सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट बह गए थे. आपदा के 7 साल बीत जाने के बाद भी सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट का निर्माण नहीं हो पाया है. वहीं, नमामि गंगे का कार्यालय भी 6 महीने पहले ऋषिकेश हस्तांतरित हो गया. ऐसे में गंगा को साफ करने की बची हुई उम्मीद खत्म हो गई.

गंगा स्वच्छता के दावे फेल
गंगा स्वच्छता के दावे फेल

दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट प्रस्तावित- डीएम

डीएम मयूर दीक्षित का कहना है कि नगर मुख्यालय और गंगोरी नगर क्षेत्र में दो सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट प्रस्तावित हैं. इसके लिए शासन से लगातार वार्ता की जा रही है. इसकी मॉनिटरिंग की जा रही है कि जल्द ही यह प्लांट स्वीकृत हो सकें, जिससे कि गंगा को स्वच्छ रखा जा सकें.

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