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वेकअप कॉल : पुलिस वर्सेस पुलिस

तेजिंदर बग्गा की गिरफ्तारी की प्रक्रिया ने पूरे देश में पुलिस व्यवस्था पर सवाल उठा दिए हैं. एक राज्य की पुलिस, दूसरे राज्य की पुलिस के सामने आकर खड़ी हो गई. पंजाब पुलिस ने न तो दिल्ली पुलिस को गिरफ्तारी की जानकारी दी, और न ही मजिस्ट्रेट से ट्रांजिट रिमांड पाने की जहमत उठाई. यह स्थिति बताती है कि पुलिस बल में कितनी शीघ्रता से सुधार की जरूरत है. पेश है वरिष्ठ पत्रकार अमित अग्निहोत्री का एक विश्लेषण.

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हरियाणा पुलिस,पंजाब पुलिस
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Published : May 6, 2022, 11:07 PM IST

नई दिल्ली : आज देश ने एक ऐसी घटना देखी, जब दो राज्यों की पुलिस एक दूसरे के आमने-सामने आकर खड़ी हो गई. विशेषज्ञ मानते हैं कि यह बहुत ही चिंताजनक स्थिति है. इसने पूरे देश की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं.

उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने ईटीवी भारत से कहा, 'यह पूरे देश की कानून-व्यवस्था पर बहुत बड़ा सवाल है. यह देश के लिए वेकअप कॉल है, इस तरह के पुलिस बल की जरूरत नहीं है.'

उन्होंने आगे कहा, 'यह कोई संवैधानिक अराजकता नहीं है. ऐसी घटनाएं पहले भी हुईं हैं और उसे आपस में मिलकर सुलझा लिया गया या फिर वरीय अधिकारियों के हस्तक्षेप से इसका समाधान ढूंढ लिया गया. लेकिन आज की घटना गैर पेशेवर और गैर जरूरी थी. मैं पंजाब पुलिस के इस रवैये की निंदा करता हूं.'

सिंह के अनुसार पंजाब पुलिस की कार्रवाई तो सवालों के घेरे में है ही, लेकिन इस तरह की गिरफ्तारियों में दिल्ली पुलिस भी निर्धारित मानदंडों के आधार पर काउंटर नहीं कर सकी.

उन्होंने कहा, 'ऐसे मामले जहां पर सात साल से कम सजा का प्रावधान है, वहां पर ऐसी कार्रवाई का कोई औचित्य नहीं है. वे पटियाला में गिरफ्तार कर सकते थे. पंजाब पुलिस को प्रक्रियाओं का पालन करना चाहिए था और सवाल तो दिल्ली पुलिस से भी पूछे जाने चाहिए.'

पूर्व डीजीपी ने आगे कहा कि पंजाब पुलिस को दिल्ली पुलिस को गिरफ्तारी की अग्रिम सूचना देनी चाहिए थी. इसी तरह से दिल्ली पुलिस को डेली डायरी रिपोर्ट में इसका जिक्र करना चाहिए था. इसके बाद दिल्ली पुलिस पंजाब पुलिस की मदद करती.

सिंह ने कहा कि पंजाब पुलिस ने मजिस्ट्रेट से ट्रांजिट रिमांड की भी जरूरत नहीं समझी. यह तो खुल्लमखुल्ला नियमों को धता बताना है.

वकील अश्विनी दूबे भी विक्रम सिंह की बातों से सहमत दिखे. उन्होंने कहा कि पूरी घटना संवैधानिक अराजकता की थी, यह प्रजातांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरा है. उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर ऐसी घटनाएं तभी होती हैं, जब पुलिस राजनीतिक आकाओं के इशारे पर काम करती है और ऐसी प्रवृत्ति देश के लिए ठीक नहीं है.

ईटीवी भारत से बात करते हुए दूबे ने कहा, 'कल को इस तरह से किसी को भी प्रताड़ित किया जा सकता है. और वे इस हालत में नहीं हो सकते हैं कि उन्हें इतनी जल्द कानूनी सहायता मिल जाए. राजनीतिक प्रतिद्वंद्विंता अपनी जगह है, लेकिन पूरी व्यवस्था कानून से ही चलनी चाहिए.'

विक्रम सिंह ने बताया कि यही वजह है कि नेता पुलिस बल को अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहते हैं. क्योंकि उन्हें यह व्यवस्था सूट करती है. वे पुलिस बल के जरिए अपने हितों को साधते हैं. हालांकि, उन्होंने बताया कि पुलिस प्रशासन में बहुत अधिक संख्या में अच्छे अधिकारी हैं, और वे इस व्यवस्था में आम लोगों का हौंसला बढ़ाते हैं. वे यह दर्शाते हैं कि पुलिस बल में आम आदमी हैं.

सिंह ने कहा, 'हमारे पास अच्छे पुलिस बल हैं, लेकिन आज की घटना ने फिर से पुलिस सुधार को जल्द से जल्द लागू करने पर विचार करने की शीघ्रता पर बल दिया है.'

ये भी पढ़ें : बग्गा की गिरफ्तारी 'खतरनाक प्रवृ्त्ति', एक-दूसरे के सामने खड़ी हो रहीं राज्य सरकारें

नई दिल्ली : आज देश ने एक ऐसी घटना देखी, जब दो राज्यों की पुलिस एक दूसरे के आमने-सामने आकर खड़ी हो गई. विशेषज्ञ मानते हैं कि यह बहुत ही चिंताजनक स्थिति है. इसने पूरे देश की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं.

उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने ईटीवी भारत से कहा, 'यह पूरे देश की कानून-व्यवस्था पर बहुत बड़ा सवाल है. यह देश के लिए वेकअप कॉल है, इस तरह के पुलिस बल की जरूरत नहीं है.'

उन्होंने आगे कहा, 'यह कोई संवैधानिक अराजकता नहीं है. ऐसी घटनाएं पहले भी हुईं हैं और उसे आपस में मिलकर सुलझा लिया गया या फिर वरीय अधिकारियों के हस्तक्षेप से इसका समाधान ढूंढ लिया गया. लेकिन आज की घटना गैर पेशेवर और गैर जरूरी थी. मैं पंजाब पुलिस के इस रवैये की निंदा करता हूं.'

सिंह के अनुसार पंजाब पुलिस की कार्रवाई तो सवालों के घेरे में है ही, लेकिन इस तरह की गिरफ्तारियों में दिल्ली पुलिस भी निर्धारित मानदंडों के आधार पर काउंटर नहीं कर सकी.

उन्होंने कहा, 'ऐसे मामले जहां पर सात साल से कम सजा का प्रावधान है, वहां पर ऐसी कार्रवाई का कोई औचित्य नहीं है. वे पटियाला में गिरफ्तार कर सकते थे. पंजाब पुलिस को प्रक्रियाओं का पालन करना चाहिए था और सवाल तो दिल्ली पुलिस से भी पूछे जाने चाहिए.'

पूर्व डीजीपी ने आगे कहा कि पंजाब पुलिस को दिल्ली पुलिस को गिरफ्तारी की अग्रिम सूचना देनी चाहिए थी. इसी तरह से दिल्ली पुलिस को डेली डायरी रिपोर्ट में इसका जिक्र करना चाहिए था. इसके बाद दिल्ली पुलिस पंजाब पुलिस की मदद करती.

सिंह ने कहा कि पंजाब पुलिस ने मजिस्ट्रेट से ट्रांजिट रिमांड की भी जरूरत नहीं समझी. यह तो खुल्लमखुल्ला नियमों को धता बताना है.

वकील अश्विनी दूबे भी विक्रम सिंह की बातों से सहमत दिखे. उन्होंने कहा कि पूरी घटना संवैधानिक अराजकता की थी, यह प्रजातांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरा है. उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर ऐसी घटनाएं तभी होती हैं, जब पुलिस राजनीतिक आकाओं के इशारे पर काम करती है और ऐसी प्रवृत्ति देश के लिए ठीक नहीं है.

ईटीवी भारत से बात करते हुए दूबे ने कहा, 'कल को इस तरह से किसी को भी प्रताड़ित किया जा सकता है. और वे इस हालत में नहीं हो सकते हैं कि उन्हें इतनी जल्द कानूनी सहायता मिल जाए. राजनीतिक प्रतिद्वंद्विंता अपनी जगह है, लेकिन पूरी व्यवस्था कानून से ही चलनी चाहिए.'

विक्रम सिंह ने बताया कि यही वजह है कि नेता पुलिस बल को अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहते हैं. क्योंकि उन्हें यह व्यवस्था सूट करती है. वे पुलिस बल के जरिए अपने हितों को साधते हैं. हालांकि, उन्होंने बताया कि पुलिस प्रशासन में बहुत अधिक संख्या में अच्छे अधिकारी हैं, और वे इस व्यवस्था में आम लोगों का हौंसला बढ़ाते हैं. वे यह दर्शाते हैं कि पुलिस बल में आम आदमी हैं.

सिंह ने कहा, 'हमारे पास अच्छे पुलिस बल हैं, लेकिन आज की घटना ने फिर से पुलिस सुधार को जल्द से जल्द लागू करने पर विचार करने की शीघ्रता पर बल दिया है.'

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