बोलपुर (पश्चिम बंगाल) : विश्व भारती में जमीन पर अवैध तरीके से कब्जा को लेकर आरोप लगने के बाद नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन के वकील ने आज एक पत्र जारी कर विश्वविद्यालय से कहा कि वह अर्थशास्त्री पर जमीन पर अवैध रूप से कब्जा करने का आरोप लगाने के लिए माफी मांगे या फिर कानूनी कार्रवाई का सामना करे. मालूम हो कि विश्व भारती ने नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन पर उसकी जमीन पर अवैध कब्जा का आरोप लगाया है.
विश्व भारती ने इस मामले में अमर्त्य सेन को दो औपचारिक नोटिस भी दिया है. बीते गुरुवार को इस घटना क्रम में एक और विकास यह हुआ कि विवि ने कहा कि वह अर्थशास्त्री के पक्ष के साथ मिलकर जमीन का संयुक्त सर्वे करेगी. विश्वविद्यालय ने एक बयान जारी करके सेन से इस सर्वे के लिए उचित दिन, तारीख और समय पूछा है. सेन को भेजे गए पत्र में विश्वविद्यालय ने कहा है कि संयुक्त सर्वे कम से कम दो दिनों के लिए किया जाएगा.
इस मामले में शनिवार को अमर्त्य सेन के वकील ने विवि को नोटिस भेजा है कि विश्वविद्यालय आरोपों पर माफी मांगे या फिर कानूनी कार्रवाई का सामना करे. उन्होंने एक प्रेस बयान जारी कर कहा कि सेन ने विवि के संयुक्त भूमि सर्वेक्षण के विश्वविद्यालय के अनुरोध को ठुकरा दिया. प्रेस नोट में अमर्त्य सेन की ओर से कहा गया कि विश्व भारती का कहना है कि 13 डेसिमल की जिस जमीन पर मैं बचपन से रह रहा हूं वह मेरी नहीं विश्वविद्यालय की है. यह मुद्दा माप का नहीं स्वामित्व और उपयोग की व्याख्या का है. फिर संयुक्त सर्वे से इसकी जांच कैसे हो सकती है?
विश्वविद्यालय की आलोचना करते हुए, सेन ने कहा कि क्या भूमि सर्वेक्षण से गलत तरीके से निष्कासित छात्रों को न्याय मिल सकेगा. विश्वविद्यालय ने इस संबंध में सेन को तीन पत्र जारी किए हैं. विश्वविद्यालय ने 24 जनवरी को पहले पत्र में आरोप लगाया था कि उसने अपने पैतृक आवास 'प्रातीची' के भूखंड पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया है. 27 जनवरी को दूसरा पत्र जारी कर अर्थशास्त्री से 13 डेसिमल जमीन सौंपने को कहा गया. दो दिन पहले जारी किए गए तीसरे पत्र में विश्व भारती ने भूखंड के संयुक्त सर्वे के लिए तारीख मांगी थी.
बार-बार के आरोपों का जवाब देते हुए, सेन के वकील गोराचंद चक्रवर्ती ने विश्वविद्यालय के अधिकारियों को एक नोटिस भेजा है. जिसमें प्रामाणिक दस्तावेज प्रस्तुत किए बिना नोबेल पुरस्कार विजेता को बदनाम करने का आरोप लगाया गया है. नोटिस में कहा गया है कि पुख्ता कानूनी कारणों और उचित और प्रामाणिक कागज प्रस्तुत किए बिना आप मेरे मुवक्किल को बार-बार पत्र जारी कर रहे हैं. जिसमें आरोप लगाया जा रहा है कि मेरे मुवक्किल के पास बीरभूम में मौजा सुरुल के भीतर 13 डेसमिल की सीमा से अधिक जमीन है.
पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा अपने भूमि और भू-राजस्व विभाग के माध्यम से रखे गए सभी प्रासंगिक अभिलेखों की अनदेखी करते हुए, जो कहता है कि कुल 16 आने क्षेत्र का माप 1.38 दशमलव है, जो मेरे मुवक्किल अमर्त्य सेन के पूर्वजों के कब्जे में था. सेन के वकील ने आरोपों को काल्पनिक और निराधार करार देते हुए कहा कि सेन के प्रति विश्वविद्यालय के रवैये ने उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर असर डाला है.
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मेरे मुवक्किल की ओर से आपसे अनुरोध है कि मेरे मुवक्किल के खिलाफ इस तरह की काल्पनिक, नकली, दुर्भावनापूर्ण, आधारहीन टिप्पणियों के लिए सभी प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में बिना किसी देरी के माफी मांगें. अन्यथा मेरे मुवक्किल के पास एक वरिष्ठ नागरिक की मानसिक शांति भंग करने के लिए आपके खिलाफ उचित कानूनी कदम उठाने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा. बता दें कि यह मुद्दा 2020 से चल रहा है, पत्र 24 जनवरी, 2023 का है. विश्वभारती एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है जिसके कुलाधिपति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. विवि के कुलपति पर लगातार आरोप लगे हैं कि वह रवींद्रनाथ टैगोर द्वारा स्थापित संस्था का भगवाकरण करने की कोशिश कर रहे हैं.