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कश्मीर से कन्याकुमारी तक क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान पहुंचाने का काम करेगा विज्ञान प्रसार - क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान

भारत सरकार की विज्ञान एवं प्रद्योगिकी विभाग की स्वायत्त संस्था विज्ञान प्रसार ने भारतीय भाषाओं में विज्ञान संचार लोकप्रियकरण और विस्तार के लिये SCoPE नामक एक परियोजना शुरू की है, जिसके तहत भारतीय भाषाओं में विज्ञान संचार को देश के सभी क्षेत्रों पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है. इस मौके पर परियोजना में मुदित प्रकाशन का प्रदर्शन बेहतर बताते हुए विज्ञान प्रसार के निदेशक डॉ मुकुल पराशर ने कहा कि देश के सभी राज्यों और क्षेत्रीय विशेषज्ञों से इस कार्यक्रम को सराहना मिल रही है.

विज्ञान प्रसार
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Published : Oct 20, 2021, 9:14 PM IST

नई दिल्ली : भारत सरकार की विज्ञान एवं प्रद्योगिकी विभाग की स्वायत्त संस्था विज्ञान प्रसार ने भारतीय भाषाओं में विज्ञान संचार लोकप्रियकरण और विस्तार के लिये SCoPE नामक एक परियोजना शुरू की है, जिसके तहत भारतीय भाषाओं में विज्ञान संचार को देश के सभी क्षेत्रों पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है.

इसी क्रम में विज्ञान भाषा परियोजना किस समीक्षा और इससे संबंधित आगामी योजना के लिए नई दिल्ली में बुधवार को एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें परियोजना के साथ देशभर में विभिन्न भाषाओं में काम करने वाले विशेषज्ञ प्रतिनिधि भी शामिल हुए.

हिंदी अंग्रेजी के अलावा उर्दू ,कश्मीरी, डोगरी, पंजाबी, गुजराती, मराठी, कन्नड़, तमिल, तेलुगू ,बंगाली, असमिया, मैथिली और नेपाली के करीब 50 SCoPE प्रतिनिधि इस बैठक में शामिल हुए. इस कार्यक्रम में देशभर के विश्वविद्यालय, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी केंद्र, राज्य के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभागों के प्रतिनिधि शामिल है. परियोजना में मुदित प्रकाशन का प्रदर्शन बेहतर बताते हुए विज्ञान प्रसार के निदेशक डॉ मुकुल पराशर ने कहा कि देश के सभी राज्यों और क्षेत्रीय विशेषज्ञों से इस कार्यक्रम को सराहना मिल रही है.

कश्मीर से कन्याकुमारी तक क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान पहुंचाने का काम करेगा विज्ञान प्रसार

उन्होंने कहा कि समाज में सभी स्तरों पर विज्ञान संचार और लोकप्रियकरण के त्वरित और प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए अपनी भाषा के माध्यम से जुड़ना इस दिशा में पहला कदम है. यही कारण है कि हम सभी मीडिया उत्पादकों भारतीय भाषाओं में डिजाइन और विकसित करने के लिए चुना है.

उन्होंने कहा कि इस राह में कई चुनौतियां है लेकिन प्रभावी प्रक्रिया और विज्ञान संचार की समर्पित टीम के साथ परियोजना बहुत ही कम समय में मील के पत्थर पार किए हैं.

कश्मीर से कन्याकुमारी तक क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान पहुंचाने का काम करेगा विज्ञान प्रसार

SCoPE परियोजना के राष्ट्रीय समन्वयक और वैज्ञानिक डॉ टीवी वेंकटेश्वरन ने कहा कि विज्ञान लगातार बदलता रहता है. बदलते समाजिक परिवेश में विज्ञान की बहुत अहम भूमिका होने वाली है और मौजूदा समय में तमाम समस्याएं जो सामने आ रही हैं जैसे कि साइबर सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, वैकल्पिक ईंधन इन सभी की जड़ में विज्ञान और प्रद्योगिकी है. इसलिये इनको सीखते और जानते रहने के लिये लगातार अनौपचारिक संचार की आवश्यकता है.

विज्ञान प्रसार हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में इंडिया साइंस के नाम से अपना OTT प्लेटफॉर्म भी चला रही है जिसके अब तक देश भर में 20 करोड़ से ज्यादा यूजर हैं. OTT प्लेटफॉर्म पर 3200 से ज्यादा वीडियो कंटेंट हिन्दी और अंग्रेजी में हैं जिन्हें अब अन्य 14 भाषाओं में रूपांतरित किये जाने का काम विज्ञान प्रसार द्वारा शुरु किया जा चुका है.

पढ़ें - सरकार ने अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के वास्ते संशोधित दिशानिर्देश जारी किए

विज्ञान प्रसार की भावी योजनाओं के बारे में बताते हुए पदाधिकारियों ने बताया कि विज्ञान एवं प्रद्योगिकी से संबंधित ज्ञान को समझने के लिए मातृभाषा में स्कूली शिक्षा महत्वपूर्ण है. हालांकि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और अनुसंधान क्षेत्र में तेजी से हो रहे विकास के इस युग में केवल स्कूली शिक्षा पर्याप्त नहीं है और यह समय के साथ पुरानी हो जाएगी.

इसके लिये लगातार जानते और सीखते रहना जरूरी है. इसके लिए अनौपचारिक शिक्षण संस्थान जैसे कि विज्ञान क्लब, लोकप्रिय विज्ञान पुस्तकें, समाचार पत्रों में विज्ञान समाचार, और सोशल मीडिया संदेश इत्यादि बेहतर अवसर देते हैं. विज्ञान प्रसार पूरी तरह से सभी भौतिक और मल्टीमीडिया टच पॉइंट का उपयोग करके लोगों के बीच विज्ञान में रूचि जगाने के उद्देश्य से बनाया गया क्षेत्र भाषाओं में विज्ञान प्रसार की वर्तमान गतिविधियों के बारे में जनता की प्रतिकृया भी मिली है जो उत्साहजनक है जिसके और आगे बढ़ने की संभावना है.

नई दिल्ली : भारत सरकार की विज्ञान एवं प्रद्योगिकी विभाग की स्वायत्त संस्था विज्ञान प्रसार ने भारतीय भाषाओं में विज्ञान संचार लोकप्रियकरण और विस्तार के लिये SCoPE नामक एक परियोजना शुरू की है, जिसके तहत भारतीय भाषाओं में विज्ञान संचार को देश के सभी क्षेत्रों पहुंचाने का लक्ष्य रखा गया है.

इसी क्रम में विज्ञान भाषा परियोजना किस समीक्षा और इससे संबंधित आगामी योजना के लिए नई दिल्ली में बुधवार को एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें परियोजना के साथ देशभर में विभिन्न भाषाओं में काम करने वाले विशेषज्ञ प्रतिनिधि भी शामिल हुए.

हिंदी अंग्रेजी के अलावा उर्दू ,कश्मीरी, डोगरी, पंजाबी, गुजराती, मराठी, कन्नड़, तमिल, तेलुगू ,बंगाली, असमिया, मैथिली और नेपाली के करीब 50 SCoPE प्रतिनिधि इस बैठक में शामिल हुए. इस कार्यक्रम में देशभर के विश्वविद्यालय, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी केंद्र, राज्य के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभागों के प्रतिनिधि शामिल है. परियोजना में मुदित प्रकाशन का प्रदर्शन बेहतर बताते हुए विज्ञान प्रसार के निदेशक डॉ मुकुल पराशर ने कहा कि देश के सभी राज्यों और क्षेत्रीय विशेषज्ञों से इस कार्यक्रम को सराहना मिल रही है.

कश्मीर से कन्याकुमारी तक क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान पहुंचाने का काम करेगा विज्ञान प्रसार

उन्होंने कहा कि समाज में सभी स्तरों पर विज्ञान संचार और लोकप्रियकरण के त्वरित और प्रभावी क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए अपनी भाषा के माध्यम से जुड़ना इस दिशा में पहला कदम है. यही कारण है कि हम सभी मीडिया उत्पादकों भारतीय भाषाओं में डिजाइन और विकसित करने के लिए चुना है.

उन्होंने कहा कि इस राह में कई चुनौतियां है लेकिन प्रभावी प्रक्रिया और विज्ञान संचार की समर्पित टीम के साथ परियोजना बहुत ही कम समय में मील के पत्थर पार किए हैं.

कश्मीर से कन्याकुमारी तक क्षेत्रीय भाषाओं में विज्ञान पहुंचाने का काम करेगा विज्ञान प्रसार

SCoPE परियोजना के राष्ट्रीय समन्वयक और वैज्ञानिक डॉ टीवी वेंकटेश्वरन ने कहा कि विज्ञान लगातार बदलता रहता है. बदलते समाजिक परिवेश में विज्ञान की बहुत अहम भूमिका होने वाली है और मौजूदा समय में तमाम समस्याएं जो सामने आ रही हैं जैसे कि साइबर सुरक्षा, जलवायु परिवर्तन, वैकल्पिक ईंधन इन सभी की जड़ में विज्ञान और प्रद्योगिकी है. इसलिये इनको सीखते और जानते रहने के लिये लगातार अनौपचारिक संचार की आवश्यकता है.

विज्ञान प्रसार हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में इंडिया साइंस के नाम से अपना OTT प्लेटफॉर्म भी चला रही है जिसके अब तक देश भर में 20 करोड़ से ज्यादा यूजर हैं. OTT प्लेटफॉर्म पर 3200 से ज्यादा वीडियो कंटेंट हिन्दी और अंग्रेजी में हैं जिन्हें अब अन्य 14 भाषाओं में रूपांतरित किये जाने का काम विज्ञान प्रसार द्वारा शुरु किया जा चुका है.

पढ़ें - सरकार ने अंतरराष्ट्रीय यात्रियों के वास्ते संशोधित दिशानिर्देश जारी किए

विज्ञान प्रसार की भावी योजनाओं के बारे में बताते हुए पदाधिकारियों ने बताया कि विज्ञान एवं प्रद्योगिकी से संबंधित ज्ञान को समझने के लिए मातृभाषा में स्कूली शिक्षा महत्वपूर्ण है. हालांकि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और अनुसंधान क्षेत्र में तेजी से हो रहे विकास के इस युग में केवल स्कूली शिक्षा पर्याप्त नहीं है और यह समय के साथ पुरानी हो जाएगी.

इसके लिये लगातार जानते और सीखते रहना जरूरी है. इसके लिए अनौपचारिक शिक्षण संस्थान जैसे कि विज्ञान क्लब, लोकप्रिय विज्ञान पुस्तकें, समाचार पत्रों में विज्ञान समाचार, और सोशल मीडिया संदेश इत्यादि बेहतर अवसर देते हैं. विज्ञान प्रसार पूरी तरह से सभी भौतिक और मल्टीमीडिया टच पॉइंट का उपयोग करके लोगों के बीच विज्ञान में रूचि जगाने के उद्देश्य से बनाया गया क्षेत्र भाषाओं में विज्ञान प्रसार की वर्तमान गतिविधियों के बारे में जनता की प्रतिकृया भी मिली है जो उत्साहजनक है जिसके और आगे बढ़ने की संभावना है.

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