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देश के कई राज्यों में कबाड़ हो रहे हैं पीएम केयर्स के तहत मिले वेंटिलेटर - टेक्निशन की कमी

कोरोना संक्रमण के मौजूदा दौर में मरीजों को सांसों की दरकार है. कहीं मरीज बिना ऑक्सीजन के दम तोड़ रहे हैं तो कहीं बिना वेंटिलेटर के जिंदगी मौत को गले लगा रही है. इसके लिए कोरोना के साथ-साथ वो व्यवस्था भी जिम्मेदार है जो सालों से वेंटिलेटर पर पड़ी है. पीएम केयर फंड से राज्यों को मिले वेंटिलेटर धूल फांक रहे हैं. पढ़ें पूरी रिपोर्ट

वेंटिलेटर पर 'व्यवस्था'
वेंटिलेटर पर 'व्यवस्था'
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Published : May 12, 2021, 8:24 PM IST

हैदराबाद : कोरोना संक्रमण के इस दौर में कई जिंदगियां सांसों के लिए तड़प रही हैं. कहीं ऑक्सीजन की आस में सांसों की डोर टूट रही है तो कहीं वक्त पर दवा ना मिलने पर जिंदगियां दम तोड़ रही हैं. कोरोना की इस दूसरी लहर ने जो कहर बरपाया है उसके लिए वो व्यवस्था भी जिम्मेदार है जो खुद वेंटिलेटर पर है ऐसे में सवाल है कि आखिर कोरोना को हराएंगे कैसे.

धूल फांकते वेंटिलेटर
धूल फांकते वेंटिलेटर

दरअसल पीएम केयर्स फंड से राज्यों को वेंटिलेटर्स दिए गए लेकिन कई राज्यों में व्यवस्था ही खुद वेंटिलेटर पर है. अस्पतालों में व्यवस्थाओं का आलम ये है कि पीएम केयर्स फंड से दिए गए वेंटिलेटर या तो धूल फांक रहे हैं या फिर वेंटिलेटर को ऑपरेट करने वाले टेक्नीशियन ही नहीं है. वैसे ये हाल तब है जब सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देशभर में रोजाना औसतन 3800 से 4 हजार लोगों की मौत हो रही है. अस्पतालों में बिलखते परिजन किसी अपने के लिए वेंटिलेटर जुगाड़ने के लिए प्रशासन से मिन्नतें कर रहे हैं, इन्हीं वेंटिलेटर की आस में कई जिंदगियां मौत के आगोश में सो चुकी हैं. लेकिन राज्यों के अस्पतालों में जंग लगी व्यवस्था का हाल देखकर आप अपना माथा पकड़ लेंगे.

राज्यों में कबाड़ होते वेंटिलेटर
राज्यों में कबाड़ होते वेंटिलेटर

बिहार

बिहार का नाम आते ही व्यवस्था शब्द ही जैसे विलुप्त हो जाता है. सुशासन बाबू का तमगा लिए नीतीश कुमार के राज्य में व्यवस्थाओं का आलम जगजाहिर है. राज्य को पीएम केयर्स फंड से पिछले साल 30 वेंटिलेटर मिले थे लेकिन एक का भी इस्तेमाल नहीं हुआ. जिसकी वजह है प्रदेश में टेक्नीशियन्स की कमी. अब जब टेक्नीशियन ही नहीं होंगे तो मशीनों के ठीक होने, सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर की कमी का सवाल पूछना तो बेईमानी है. क्योंकि जिंदगी बचाने वाली ये मशीनें फिलहाल सिर्फ और सिर्फ डिब्बे हैं.

बिहार में वेंटिलेटर्स का हाल
बिहार में वेंटिलेटर्स का हाल

बिहार में व्यवस्थाओं का आलम ये है कि पूरे प्रदेश में 207 वेंटिलेटर टेक्नीशियन्स की कमी के कारण बेकार पड़े हैं. जिनके होने या ना होने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. राज्य के 31 जिलों में तो 6-6 वेंटिलेटर बेकार पड़े हैं वो भी उस कोरोना संक्रमण के दौर में जहां मरीज सांसों की आस में अस्पताल तो पहुंचता है लेकिन वहां वेंटिलेटर होना या ना होना बराबर है. बीते साल 1700 से ज्यादा लैब टेक्नीशियन के पदों पर इंटरव्यू की प्रक्रिया पूरी होने के बावजूद रिजल्ट घोषित नहीं हुआ है.

पीएम केयर्स के तहत मिले थे
पीएम केयर्स के तहत मिले थे

ये भी पढ़ें: बिहार के अस्पतालों में कबाड़ हो रहे वेंटिलेटर, टेक्नीशियन की कमी से टूट रही मरीजों की सांसें

पंजाब

पंजाब को पीएम केयर्स फंड से 809 वेंटिलेटर मिले जिनमें से सिर्फ 558 वेंटिलेटर इंस्टॉल हो पाए जबकि 251 अभी भी सरकारी अस्पतालों में जस के तस रखे हुए हैं. सरकार के मुताबिक पंजाब में वेंटिलेटर इंस्टॉल करने के लिए सिर्फ एक ही इंजीनियर तैनात किया गया है जिसके कारण ये मशीनें मरीजों के काम नहीं आ पा रही.

पंजाब में कूड़ा होते वेंटिलेट
पंजाब में कूड़ा होते वेंटिलेट

उधर पंजाब में आम आदमी पार्टी के विधायक कुलतार सिंह ने ट्वीट कर धूल फांकते वेंटिलेटर्स को लेकर पंजाब सरकार पर निशाना साधा है. कुलतार सिंह के मुताबिक फरीदकोट के गुरु गोविंद सिंह मेडिकल कॉलेज में पीएम केयर्स फंड से मिले करीब 70 वेंटिलेटर धूल फांक रहे हैं. वहीं विश्वविद्यालय के कुलपति से ईटीवी भारत ने बात की तो उन्होंने बताया कि पीएम केयर्स फंड से मेडिकल कॉलेज को 82 वेंटिलेटर मिले थे जिनमें से 62 वेंटिलेटर शुरू से खराब हैं. सवाल है कि अगर वेंटिलेटर खराब थे तो उनकी सुध सरकार या मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने इतने दिन से क्यों नहीं ली. विश्वविद्यालय प्रशासन वेंटिलेटर की क्वालिटी से लेकर टेक्नीशियन की कमी का हवाला तो दे रहा है लेकिन कोरोना काल में जहां मरीजों को वेंटिलेटर जैसी मशीन की सबसे ज्यादा जरूरत है वहां अधिकारियों की बेतुकी दलीलें गले नहीं उतरती.

धूल फांक रहे हैं वेंटिलेटर
धूल फांक रहे हैं वेंटिलेटर

कर्नाटक

कर्नाटक को पीएम केयर्स फंड से 3025 वेंटिलेटर मिले. जिनमें से सिर्फ 1,859 वेंटिलेटर ही इस्तेमाल हो रहे हैं जबकि बाकी 1,166 वेंटिलेटर बेकार पड़े हैं. ये उस कर्नाटक में व्यवस्थाओं की बदहाली है जहां कोरोना संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. कोरोना संक्रमण की जिस दूसरी लहर में मरीज सांसों के लिए तड़प रहे हैं वहां कर्नाटक राज्य में पीएम केयर्स फंड से मिले करीब 40 फीसदी वेंटिलेटर धूल फांक रहे हैं और इसके लिए तकनीकी समस्याओं पर ठीकरा फोड़ा जा रहा है.

कर्नाटक
कर्नाटक

राजस्थान

राजस्थान को पीएम केयर्स फंड से 1900 वेंटिलेटर मिले. स्वास्थ्य विभाग की जानकारी के मुताबिक सभी वेंटिलेटर चेक किए जा चुके हैं. इनमें से 90 फीसदी वेंटिलेटर काम कर रहे हैं जबकि 10 फीसदी में सॉफ्टवेयर, सर्विसिंग या इंस्टॉलेशन से जुड़ी समस्याएं सामने आ रही हैं. राजस्थान में भी कई वेंटिलेटर टेक्नीशियन की कमी के कारण इस्तेमाल नहीं हो पा रहे हैं. कोरोना संक्रमण के इस दौर में खराब पड़े वेंटिलेटर के लिए सर्विस इंजीनियर का जुगाड़ करना भी विभाग के लिए चुनौती बना हुआ है.

राजस्थान
राजस्थान

हिमाचल प्रदेश

हिमाचल प्रदेश को पीएम केयर्स फंड से 500 वेंटिलेटर मिले. स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक 12 मई तक इनमें से सिर्फ 48 वेंटिलेटर ही उपयोग में लाए जा रहे हैं जबकि 452 वेंटिलेटर के इस्तेमाल की जरूरत नहीं पड़ी. स्वास्थ्य विभाग के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. रमेश के मुताबिक हिमाचल में ऐसे मरीजों की तादाद काफी कम है जिन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत पड़े इसलिए सिर्फ 48 वेंटिलेटर ही इस्तेमाल में लाए जा रहे हैं. हालांकि सभी वेंटिलेटर्स ठीक हैं और काम करने की स्थिति में हैं.

हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश

केरल

केरल को पीएम केयर्स फंड से 480 वेंटिलेटर मिले. इनमें से सिर्फ 36 वेंटिलेटर का इस्तेमाल नहीं हो रहा है. इसके लिए तकनीकी खराबी या फिर वेंटिलेटर के किसी पार्ट का ना मिलना बताया जा रहा है. स्वास्थ्य महकमे के मुताबिक इन तकनीकी समस्याओं को जल्द ही सुलझा लिया जाएगा.

केरल
केरल

उत्तराखंड

उत्तराखंड को पीएम केयर्स फंड से 700 वेंटिलेटर मिले जिनमें से 670 वेंटिलेटर इंस्टॉल हो चुके हैं और उपयोग में लाए जा रहे हैं. जबकि 30 वेंटिलेटर इंजीनियर की कमी के कारण इंस्टॉल नहीं हो पाए हैं. प्रदेश में इन्हें इंस्टॉल करने के लिए एक भी इंजीनियर नहीं है. स्वास्थ्य महानिदेशक तृप्ति बहुगुणा के मुतबाकि अब कोई वेंटिलेटर खराब नहीं है, मुंबई या दूसरे राज्यों से वेंटिलेटर इंस्टॉल करने के लिए इंजीनियर बुलाए जाते हैं लेकिन कोरोना संक्रमण काल में वो भी मुश्किल हो रहा है.

झारखंड
झारखंड

छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ को पीएम केयर्स फंड से 230 वेंटिलेटर मिले थे. सरकार के मुताबिक 70 वेंटिलेटर्स में तकनीकी खराबी थी जिनमें से 60 को ठीक करवाने के बाद इस्तेमाल में लाया गया. लेकिन अब भी 10 वेंटिलेटर का तकनीकी खराबी के कारण इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है.

छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़

दिल्ली

देश की राजधानी दिल्ली कोरोना संक्रमण का कहर झेल रही है. दिल्ली में कोरोना की चौथी लहर में कई मरीजों की हालत गंभीर हो गई और अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों में से ज्यादातर को आईसीयू या फिर वेंटिलेंटर की जरूरत पड़ने लगी. दिल्ली को पीएम केयर्स फंड से 990 वेंटिलेटर मिले. इन सभी को दिल्ली के अस्पतालों में उपयोग में लाया जा रहा है. अस्पतालों के मुताबिक कोई भी वेंटिलेटर खराब नहीं है. दिल्ली सरकार के अस्पतालों में फिलहाल करीब 1200 वेंटिलेटर हैं.

कबाड़ में तब्दील होते वेंटिलेटर
कबाड़ में तब्दील होते वेंटिलेटर

सौ बात की एक बात

कहीं कम, कहीं ज्यादा लेकिन अव्यवस्था का आलम कमोबेश हर राज्य में है. वेंटिलेटर कबाड़ हो रहे हैं लेकिन सुध लेने वाला कोई नहीं है. सवाल है कि एक भी वेंटिलेटर अगर खराब पड़ा है तो उसे ठीक करवाने के लिए सिस्टम आगे क्यों नहीं आता. क्योंकि वो एक मशीन अगर ठीक होती तो कई मरीजों की जिंदगी की डोर थाम सकती थी. अगर किसी राज्य में वेंटिलेटर की जरूरत कम है तो ऐसा सिस्टम क्यों नहीं बनाया जा सकता कि वो मशीन किसी जरूरतमंद राज्यों के मरीजों तक पहुंचाई जा सके. दरअसल ये ऐसा सिस्टम है जहां सिस्टम नाम की चीज ही नहीं है, कुल मिलाकर ज्यादातर राज्यों का यही हाल है. व्यवस्था खुद वेंटिलेटर पर हो तो बेचारी आम जनता क्या करे.

ये भी पढ़ें: सावधान ! बिना लक्षण के भी जानलेवा है कोरोना, कर्नाटक में 5 दिन में 790 की मौत

हैदराबाद : कोरोना संक्रमण के इस दौर में कई जिंदगियां सांसों के लिए तड़प रही हैं. कहीं ऑक्सीजन की आस में सांसों की डोर टूट रही है तो कहीं वक्त पर दवा ना मिलने पर जिंदगियां दम तोड़ रही हैं. कोरोना की इस दूसरी लहर ने जो कहर बरपाया है उसके लिए वो व्यवस्था भी जिम्मेदार है जो खुद वेंटिलेटर पर है ऐसे में सवाल है कि आखिर कोरोना को हराएंगे कैसे.

धूल फांकते वेंटिलेटर
धूल फांकते वेंटिलेटर

दरअसल पीएम केयर्स फंड से राज्यों को वेंटिलेटर्स दिए गए लेकिन कई राज्यों में व्यवस्था ही खुद वेंटिलेटर पर है. अस्पतालों में व्यवस्थाओं का आलम ये है कि पीएम केयर्स फंड से दिए गए वेंटिलेटर या तो धूल फांक रहे हैं या फिर वेंटिलेटर को ऑपरेट करने वाले टेक्नीशियन ही नहीं है. वैसे ये हाल तब है जब सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देशभर में रोजाना औसतन 3800 से 4 हजार लोगों की मौत हो रही है. अस्पतालों में बिलखते परिजन किसी अपने के लिए वेंटिलेटर जुगाड़ने के लिए प्रशासन से मिन्नतें कर रहे हैं, इन्हीं वेंटिलेटर की आस में कई जिंदगियां मौत के आगोश में सो चुकी हैं. लेकिन राज्यों के अस्पतालों में जंग लगी व्यवस्था का हाल देखकर आप अपना माथा पकड़ लेंगे.

राज्यों में कबाड़ होते वेंटिलेटर
राज्यों में कबाड़ होते वेंटिलेटर

बिहार

बिहार का नाम आते ही व्यवस्था शब्द ही जैसे विलुप्त हो जाता है. सुशासन बाबू का तमगा लिए नीतीश कुमार के राज्य में व्यवस्थाओं का आलम जगजाहिर है. राज्य को पीएम केयर्स फंड से पिछले साल 30 वेंटिलेटर मिले थे लेकिन एक का भी इस्तेमाल नहीं हुआ. जिसकी वजह है प्रदेश में टेक्नीशियन्स की कमी. अब जब टेक्नीशियन ही नहीं होंगे तो मशीनों के ठीक होने, सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर की कमी का सवाल पूछना तो बेईमानी है. क्योंकि जिंदगी बचाने वाली ये मशीनें फिलहाल सिर्फ और सिर्फ डिब्बे हैं.

बिहार में वेंटिलेटर्स का हाल
बिहार में वेंटिलेटर्स का हाल

बिहार में व्यवस्थाओं का आलम ये है कि पूरे प्रदेश में 207 वेंटिलेटर टेक्नीशियन्स की कमी के कारण बेकार पड़े हैं. जिनके होने या ना होने से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता. राज्य के 31 जिलों में तो 6-6 वेंटिलेटर बेकार पड़े हैं वो भी उस कोरोना संक्रमण के दौर में जहां मरीज सांसों की आस में अस्पताल तो पहुंचता है लेकिन वहां वेंटिलेटर होना या ना होना बराबर है. बीते साल 1700 से ज्यादा लैब टेक्नीशियन के पदों पर इंटरव्यू की प्रक्रिया पूरी होने के बावजूद रिजल्ट घोषित नहीं हुआ है.

पीएम केयर्स के तहत मिले थे
पीएम केयर्स के तहत मिले थे

ये भी पढ़ें: बिहार के अस्पतालों में कबाड़ हो रहे वेंटिलेटर, टेक्नीशियन की कमी से टूट रही मरीजों की सांसें

पंजाब

पंजाब को पीएम केयर्स फंड से 809 वेंटिलेटर मिले जिनमें से सिर्फ 558 वेंटिलेटर इंस्टॉल हो पाए जबकि 251 अभी भी सरकारी अस्पतालों में जस के तस रखे हुए हैं. सरकार के मुताबिक पंजाब में वेंटिलेटर इंस्टॉल करने के लिए सिर्फ एक ही इंजीनियर तैनात किया गया है जिसके कारण ये मशीनें मरीजों के काम नहीं आ पा रही.

पंजाब में कूड़ा होते वेंटिलेट
पंजाब में कूड़ा होते वेंटिलेट

उधर पंजाब में आम आदमी पार्टी के विधायक कुलतार सिंह ने ट्वीट कर धूल फांकते वेंटिलेटर्स को लेकर पंजाब सरकार पर निशाना साधा है. कुलतार सिंह के मुताबिक फरीदकोट के गुरु गोविंद सिंह मेडिकल कॉलेज में पीएम केयर्स फंड से मिले करीब 70 वेंटिलेटर धूल फांक रहे हैं. वहीं विश्वविद्यालय के कुलपति से ईटीवी भारत ने बात की तो उन्होंने बताया कि पीएम केयर्स फंड से मेडिकल कॉलेज को 82 वेंटिलेटर मिले थे जिनमें से 62 वेंटिलेटर शुरू से खराब हैं. सवाल है कि अगर वेंटिलेटर खराब थे तो उनकी सुध सरकार या मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने इतने दिन से क्यों नहीं ली. विश्वविद्यालय प्रशासन वेंटिलेटर की क्वालिटी से लेकर टेक्नीशियन की कमी का हवाला तो दे रहा है लेकिन कोरोना काल में जहां मरीजों को वेंटिलेटर जैसी मशीन की सबसे ज्यादा जरूरत है वहां अधिकारियों की बेतुकी दलीलें गले नहीं उतरती.

धूल फांक रहे हैं वेंटिलेटर
धूल फांक रहे हैं वेंटिलेटर

कर्नाटक

कर्नाटक को पीएम केयर्स फंड से 3025 वेंटिलेटर मिले. जिनमें से सिर्फ 1,859 वेंटिलेटर ही इस्तेमाल हो रहे हैं जबकि बाकी 1,166 वेंटिलेटर बेकार पड़े हैं. ये उस कर्नाटक में व्यवस्थाओं की बदहाली है जहां कोरोना संक्रमण के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. कोरोना संक्रमण की जिस दूसरी लहर में मरीज सांसों के लिए तड़प रहे हैं वहां कर्नाटक राज्य में पीएम केयर्स फंड से मिले करीब 40 फीसदी वेंटिलेटर धूल फांक रहे हैं और इसके लिए तकनीकी समस्याओं पर ठीकरा फोड़ा जा रहा है.

कर्नाटक
कर्नाटक

राजस्थान

राजस्थान को पीएम केयर्स फंड से 1900 वेंटिलेटर मिले. स्वास्थ्य विभाग की जानकारी के मुताबिक सभी वेंटिलेटर चेक किए जा चुके हैं. इनमें से 90 फीसदी वेंटिलेटर काम कर रहे हैं जबकि 10 फीसदी में सॉफ्टवेयर, सर्विसिंग या इंस्टॉलेशन से जुड़ी समस्याएं सामने आ रही हैं. राजस्थान में भी कई वेंटिलेटर टेक्नीशियन की कमी के कारण इस्तेमाल नहीं हो पा रहे हैं. कोरोना संक्रमण के इस दौर में खराब पड़े वेंटिलेटर के लिए सर्विस इंजीनियर का जुगाड़ करना भी विभाग के लिए चुनौती बना हुआ है.

राजस्थान
राजस्थान

हिमाचल प्रदेश

हिमाचल प्रदेश को पीएम केयर्स फंड से 500 वेंटिलेटर मिले. स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक 12 मई तक इनमें से सिर्फ 48 वेंटिलेटर ही उपयोग में लाए जा रहे हैं जबकि 452 वेंटिलेटर के इस्तेमाल की जरूरत नहीं पड़ी. स्वास्थ्य विभाग के डिप्टी डायरेक्टर डॉ. रमेश के मुताबिक हिमाचल में ऐसे मरीजों की तादाद काफी कम है जिन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत पड़े इसलिए सिर्फ 48 वेंटिलेटर ही इस्तेमाल में लाए जा रहे हैं. हालांकि सभी वेंटिलेटर्स ठीक हैं और काम करने की स्थिति में हैं.

हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश

केरल

केरल को पीएम केयर्स फंड से 480 वेंटिलेटर मिले. इनमें से सिर्फ 36 वेंटिलेटर का इस्तेमाल नहीं हो रहा है. इसके लिए तकनीकी खराबी या फिर वेंटिलेटर के किसी पार्ट का ना मिलना बताया जा रहा है. स्वास्थ्य महकमे के मुताबिक इन तकनीकी समस्याओं को जल्द ही सुलझा लिया जाएगा.

केरल
केरल

उत्तराखंड

उत्तराखंड को पीएम केयर्स फंड से 700 वेंटिलेटर मिले जिनमें से 670 वेंटिलेटर इंस्टॉल हो चुके हैं और उपयोग में लाए जा रहे हैं. जबकि 30 वेंटिलेटर इंजीनियर की कमी के कारण इंस्टॉल नहीं हो पाए हैं. प्रदेश में इन्हें इंस्टॉल करने के लिए एक भी इंजीनियर नहीं है. स्वास्थ्य महानिदेशक तृप्ति बहुगुणा के मुतबाकि अब कोई वेंटिलेटर खराब नहीं है, मुंबई या दूसरे राज्यों से वेंटिलेटर इंस्टॉल करने के लिए इंजीनियर बुलाए जाते हैं लेकिन कोरोना संक्रमण काल में वो भी मुश्किल हो रहा है.

झारखंड
झारखंड

छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ को पीएम केयर्स फंड से 230 वेंटिलेटर मिले थे. सरकार के मुताबिक 70 वेंटिलेटर्स में तकनीकी खराबी थी जिनमें से 60 को ठीक करवाने के बाद इस्तेमाल में लाया गया. लेकिन अब भी 10 वेंटिलेटर का तकनीकी खराबी के कारण इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है.

छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़

दिल्ली

देश की राजधानी दिल्ली कोरोना संक्रमण का कहर झेल रही है. दिल्ली में कोरोना की चौथी लहर में कई मरीजों की हालत गंभीर हो गई और अस्पतालों में भर्ती होने वाले मरीजों में से ज्यादातर को आईसीयू या फिर वेंटिलेंटर की जरूरत पड़ने लगी. दिल्ली को पीएम केयर्स फंड से 990 वेंटिलेटर मिले. इन सभी को दिल्ली के अस्पतालों में उपयोग में लाया जा रहा है. अस्पतालों के मुताबिक कोई भी वेंटिलेटर खराब नहीं है. दिल्ली सरकार के अस्पतालों में फिलहाल करीब 1200 वेंटिलेटर हैं.

कबाड़ में तब्दील होते वेंटिलेटर
कबाड़ में तब्दील होते वेंटिलेटर

सौ बात की एक बात

कहीं कम, कहीं ज्यादा लेकिन अव्यवस्था का आलम कमोबेश हर राज्य में है. वेंटिलेटर कबाड़ हो रहे हैं लेकिन सुध लेने वाला कोई नहीं है. सवाल है कि एक भी वेंटिलेटर अगर खराब पड़ा है तो उसे ठीक करवाने के लिए सिस्टम आगे क्यों नहीं आता. क्योंकि वो एक मशीन अगर ठीक होती तो कई मरीजों की जिंदगी की डोर थाम सकती थी. अगर किसी राज्य में वेंटिलेटर की जरूरत कम है तो ऐसा सिस्टम क्यों नहीं बनाया जा सकता कि वो मशीन किसी जरूरतमंद राज्यों के मरीजों तक पहुंचाई जा सके. दरअसल ये ऐसा सिस्टम है जहां सिस्टम नाम की चीज ही नहीं है, कुल मिलाकर ज्यादातर राज्यों का यही हाल है. व्यवस्था खुद वेंटिलेटर पर हो तो बेचारी आम जनता क्या करे.

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