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अध्याय चार : अपने सपनों के घर का द्वार वराहमिहिर की बताई योजना के अनुसार बनवाएं - vaastu story

वास्तु का हमारे जीवन पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ता है. इसलिए हमारी परंपरा में वास्तु का विशेष महत्व है. वास्तुविदों का कहना है कि अपने सपनों के घर का द्वार वराहमिहिर की बताई योजना के अनुसार बनवाना चाहिए. इससे जीवन में नई ऊंचाइयां छूने को मिलेंगी.

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Published : Feb 4, 2021, 6:00 AM IST

Updated : Feb 4, 2021, 2:45 PM IST

हैदराबाद : एक अच्छे द्वार के अतिरिक्त थोड़े वास्तु नियमों का पालन यदि भूखण्ड में कर लिया जाए तो गृहस्वामी अत्यन्त ऊंची स्थिति में आ जाता है और साधन सम्पन्नता के अतिरिक्त संतान सुख और व्यवसाय का सुख भी पूर्ण रूप से भोग पाता है.

मत्स्य पुराण, मयमतम्, मानसार व वृहत्संहिता में एक भूखण्ड में कुल मिलाकर 32 द्वारों की कल्पना की गई है. प्रत्येक दिशा में आठ द्वार परंतु यह सभी द्वार शुभ नहीं होते. शुभ द्वारों की संख्य कम हैं और अशुभ द्वारों की अधिक हैं. इस लेख में शुभ द्वारों का वर्णन किया जा रहा है. चित्र में जहां गहरा रंग किया गया है ये वे द्वार हैं जहां से महालक्ष्मी की कामना की जाती है. इस जगह जो द्वार हैं, उनमें सर्वश्रेष्ठ उत्तर दिशा में है. इस द्वार पर भल्लाट नामक देवता शासन करते हैं. दूसरे नम्बर पर पश्चिम में वरुण और पुष्यदंत हैं तथा पूर्व में जयंत नाम के देवता हैं. ये द्वार पांच साल से अधिक भी खुले रहें तो व्यक्ति को अति सम्पन्न बना देते हैं. यदि हम एक से अधिक द्वार खोल पाएं (ये द्वार भूखण्ड की बाहरी सीमा रेखा पर ही होने चाहिए) तो भूखण्ड बहुत शक्तिशाली ढंग से अपने परिणाम देने में समर्थ हो जाता है.

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जाने वराहमिहिर की बतायी योजना

चित्र के अनुसार पूर्व दिशा में जयन्त व इन्द्र नामक द्वार शुभ बताए गए हैं. दक्षिण दिशा में गृहत्क्षत द्वार को शुभ बताया गया है. पश्चिम दिशा में पुष्पदंत व वरुण को शुभ माना गया है. सबसे अधिक शुभ द्वार उत्तर दिशा में मुख्य, भल्लाट व सोम को बताया गया है. शास्त्रों में प्रदत्त विवरण के अनुसार भूखण्ड जितना बड़ा होगा तो प्रत्येक द्वार को मिलने वाला क्षेत्रफल भी बढ़ता चला जाएगा. ठीक इसी तरह भूखण्ड छोटा होगा तो मुख्य द्वार का क्षेत्रफल भी छोटा ही होगा.

यह भी पढ़ें- अध्याय एक : जानिए वास्तु पुरुष की स्थापना से जुड़ी कथा

यह भी पढ़ें- अध्याय दो : आपके घर के शास्त्रीय पक्ष के रक्षक हैं 'विश्वकर्मा'

यह भी पढ़ें- अध्याय तीन : हर प्लॉट के अंदर होते हैं 45 देवता, जानिए वास्तु चक्र के इन देवताओं के बारे में

अतः छोटे भूखण्ड में बड़ा मुख्य द्वार बनाने के लिए दो-तीन द्वारों को सम्मिलित करना पड़ता है. इस प्रक्रिया से शुभ द्वारों में दोष पूर्ण द्वार भी सम्मिलित हो जाते हैं. यदि भूखण्ड का आकार बड़ा हो तो प्रत्येक द्वार के लिए उचित चौड़ाई उपलब्ध हो जाती है और अशुभ द्वारों को शामिल करने से रोका जा सकता है.

लेखक - पंडित सतीश शर्मा, सुप्रसिद्ध वास्तुशास्त्री

ईमेल - satishsharma54@gmail.com

हैदराबाद : एक अच्छे द्वार के अतिरिक्त थोड़े वास्तु नियमों का पालन यदि भूखण्ड में कर लिया जाए तो गृहस्वामी अत्यन्त ऊंची स्थिति में आ जाता है और साधन सम्पन्नता के अतिरिक्त संतान सुख और व्यवसाय का सुख भी पूर्ण रूप से भोग पाता है.

मत्स्य पुराण, मयमतम्, मानसार व वृहत्संहिता में एक भूखण्ड में कुल मिलाकर 32 द्वारों की कल्पना की गई है. प्रत्येक दिशा में आठ द्वार परंतु यह सभी द्वार शुभ नहीं होते. शुभ द्वारों की संख्य कम हैं और अशुभ द्वारों की अधिक हैं. इस लेख में शुभ द्वारों का वर्णन किया जा रहा है. चित्र में जहां गहरा रंग किया गया है ये वे द्वार हैं जहां से महालक्ष्मी की कामना की जाती है. इस जगह जो द्वार हैं, उनमें सर्वश्रेष्ठ उत्तर दिशा में है. इस द्वार पर भल्लाट नामक देवता शासन करते हैं. दूसरे नम्बर पर पश्चिम में वरुण और पुष्यदंत हैं तथा पूर्व में जयंत नाम के देवता हैं. ये द्वार पांच साल से अधिक भी खुले रहें तो व्यक्ति को अति सम्पन्न बना देते हैं. यदि हम एक से अधिक द्वार खोल पाएं (ये द्वार भूखण्ड की बाहरी सीमा रेखा पर ही होने चाहिए) तो भूखण्ड बहुत शक्तिशाली ढंग से अपने परिणाम देने में समर्थ हो जाता है.

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जाने वराहमिहिर की बतायी योजना

चित्र के अनुसार पूर्व दिशा में जयन्त व इन्द्र नामक द्वार शुभ बताए गए हैं. दक्षिण दिशा में गृहत्क्षत द्वार को शुभ बताया गया है. पश्चिम दिशा में पुष्पदंत व वरुण को शुभ माना गया है. सबसे अधिक शुभ द्वार उत्तर दिशा में मुख्य, भल्लाट व सोम को बताया गया है. शास्त्रों में प्रदत्त विवरण के अनुसार भूखण्ड जितना बड़ा होगा तो प्रत्येक द्वार को मिलने वाला क्षेत्रफल भी बढ़ता चला जाएगा. ठीक इसी तरह भूखण्ड छोटा होगा तो मुख्य द्वार का क्षेत्रफल भी छोटा ही होगा.

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अतः छोटे भूखण्ड में बड़ा मुख्य द्वार बनाने के लिए दो-तीन द्वारों को सम्मिलित करना पड़ता है. इस प्रक्रिया से शुभ द्वारों में दोष पूर्ण द्वार भी सम्मिलित हो जाते हैं. यदि भूखण्ड का आकार बड़ा हो तो प्रत्येक द्वार के लिए उचित चौड़ाई उपलब्ध हो जाती है और अशुभ द्वारों को शामिल करने से रोका जा सकता है.

लेखक - पंडित सतीश शर्मा, सुप्रसिद्ध वास्तुशास्त्री

ईमेल - satishsharma54@gmail.com

Last Updated : Feb 4, 2021, 2:45 PM IST

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