हैदराबाद : मात्र 52 सेकेंड में शून्य से 100 किलोमीटर की रफ्तार पकड़ने में बुलेट ट्रेन को भी Vande Bharat Train ने मात दे दी. खुद रेल मंत्री अश्वनी वैष्णव ने कहा कि वंदे भारत ट्रेनों के डिजाइन हवाई जहाज से बेहतर हैं और सबसे आरामदायक यात्रा अनुभव प्रदान कर सकता है. क्या आप जानते हैं इस जबरदस्त रफ्तार वाली शानदार ट्रेन को भारत में तैयार करने के पीछे किसका हाथ है. वह शख्स हैं लखनऊ के सुधांशु मणि. मणि भारत में वंदे भारत ट्रेनों के जनक माने जाते हैं. वह आईसीएफ के पूर्व महाप्रबंधक हैं. इससे पहले, उन्होंने जर्मनी में भारतीय दूतावास में कार्य किया. संक्रांति के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सिकंदराबाद और विशाखापत्तनम के बीच 'वंदे भारत' एक्सप्रेस ट्रेन के शुभारंभ के मद्देनजर ईटीवी भारत ने सुधांशु मणि का साक्षात्कार लिया. पढ़ें इसका संपादित अंश
ईटीवी भारत : क्या वंदे भारत ट्रेन की स्पीड बढ़ाई जा सकती है? उसके लिए क्या किया जाना चाहिए?
सुधांशु मणि: ये ट्रेनें एक क्रांति हैं. ये कम लागत पर डिजाइन किए गए हैं और बहुमूल्य समय बचाते हैं. हमने शुरुआत में इन्हें भविष्य की जरूरतों के हिसाब से 200 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलने के लिए डिजाइन किया है. फिलहाल हमने इसे 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलाने लायक बना दिया है. लेकिन 200 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार के लिए उस स्तर पर इंफ्रास्ट्रक्चर होना चाहिए. फिलहाल तो हमारे पास 130 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ने के लिए कोई उपयुक्त बुनियादी ढांचा नहीं है. अगर दिल्ली-मुंबई, दिल्ली-हावड़ा, सिकंदराबाद-विशाखापत्तनम रूट पर इंफ्रास्ट्रक्चर में सुधार किया जाए तो वह गति हासिल की जा सकती है. सुरक्षा के लिहाज से भी ये ट्रेनें बेहतर हैं.
ईटीवी भारत : क्या नई पीढ़ी की यह ट्रेन देश में बुलेट ट्रेन का विकल्प है?
सुधांशु मणि: बुलेट रेल नेटवर्क 58 साल से भी कम समय पहले अस्तित्व में आया है. यह 210 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से 310 किमी प्रति घंटे की रफ्तार तक पहुंच गई है. हमें उस स्तर तक पहुंचने में कुछ समय लगेगा. बुलेट और हाई स्पीड ट्रेन दोनों जरूरी हैं. इंटरसिटी ट्रेनें 500 किमी के भीतर ही ठीक होती है. लंबी दूरी की यात्रा के लिए स्लीपर कोच की उपलब्धता बहुत जरूरी है.
ईटीवी भारत : आपने इसे 100 करोड़ रुपये से कैसे बनाया जबकि विदेशों में इसकी लागत 250 करोड़ रुपये है. क्या पूरी तकनीक भारतीय है?
सुधांशु मणि: मुझे नहीं लगता कि रेलवे बोर्ड ने हाई स्पीड ट्रेन बनाने वाली टैल्गो कंपनी (स्पेन) से संपर्क करने के बारे में सोचा होगा. अगर हम उनसे सेवा लेना चाहेंगे तो हमें प्रति ट्रेन 250 करोड़ रुपये देने होंगे और कम से कम 15 ट्रेनों का ऑर्डर देना होगा. हमने इसे रेलवे उत्पादों के निर्माण के क्षेत्र में ICF अनुसंधान दल और भारतीय कंपनियों की पहल से घरेलू स्तर पर बनाया है. मैन्युफैक्चरिंग के 100 प्रमुख क्षेत्रों में से केवल तीन क्षेत्र ही विश्वस्तरीय नहीं हैं. किसी एक वस्तु या प्रौद्योगिकी ने बहुराष्ट्रीय निगमों का सहारा नहीं लिया है. हमने घरेलू सलाहकारों और छोटी कंपनियों को चुना. हमने यह सुनिश्चित किया कि काम आईसीएफ की देखरेख और नियंत्रण में हो. यही वजह है कि वंदे भारत ट्रेन की लागत 100 करोड़ रुपये से कम करने में सफल रहे.
ईटीवी भारत : हाई स्पीड ट्रेन को डिजाइन करने का आइडिया कैसे आया?
सुधांशु मणि: दुनिया भर में रेलवे का आधुनिकीकरण हो रहा है. हमारे देश में उस संबंध में कोई प्रगति नहीं हुई है. मुझे इनोवेशन में अधिक दिलचस्पी है. जर्मनी में भारतीय दूतावास में रेल मंत्री के रूप में कुछ समय तक काम किया. जर्मनी से आने के बाद, सपने को साकार करने की इच्छा के साथ..मैंने ICF, चेन्नई में महाप्रबंधक के रूप में पोस्टिंग मांगी. वहां के कर्मचारियों में भी काफी आत्मविश्वास है. हमने इनोवेशन की दिशा में काम किया. और हम वंदे भारत बनाने में सफल रहे.
ईटीवी भारत : मात्र 18 महीनों में यह कैसे संभव हुआ?
सुधांशु मणि: यह साबित करने के लिए एक बेहतरीन केस स्टडी है कि टीम वर्क से कुछ भी संभव है. आईसीएफ द्वारा हासिल की गई यह एकमात्र सफलता नहीं है. भारतीय रेलवे को मैन्युफैक्चरिंग उद्योग से काफी सहयोग मिला है.
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