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झारखंड रोपवे हादसे के बाद उत्तराखंड में भी मचा हड़कंप, जानें क्यों - झारखंड में रोपवे एक्सीडेंट

हरिद्वार में प्रसिद्ध मनसा देवी और चंडी देवी मंदिर पहुंचने के लिए रोपवे की सुविधा है. देवघर रोपवे हादसे के बाद लोग अब हवा में सफर करने से थोड़ा कतराने लगे हैं. हरिद्वार की बात करें तो यहां एक ही बार हादसा हुआ है. हालांकि, अभी तक कोई जनहानि नहीं हुई.

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Published : Apr 12, 2022, 9:18 PM IST

हरिद्वार : झारखंड के देवघर रोपवे हादसे (jharkhand ropeway accident) के बाद उत्तराखंड में भी हड़कंप मचा हुआ है. यहां पहाड़ों पर भी जगह-जगह रोपवे लगे हुए हैं. ऐसे में इस हादसे के बाद अब रोपवे में सफर करने से लोग कतराने (uttarakhand ropeway operator on alert) लगे हैं. वहीं, इस हादसे ने अन्य रोपवे की सुरक्षा व्यवस्थाओं पर भी सवालिया निशान लगा दिया है. लिहाजा, ईटीवी भारत की टीम ने हरिद्वार में बीते चार दशकों से रोपवे सेवा देने वाली उषा ब्रेको की व्यवस्थाओं का जायजा (Haridwar Ropeway reality check) लिया. साथ ही यह जानने की कोशिश की कि रोपवे आखिरकार कितने सुरक्षित हैं. हरिद्वार में करीब चार दशक पहले मां मनसा देवी मंदिर तक जाने के लिए (Haridwar Mansa Devi Ropeway) उषा ब्रेको कंपनी ने रोपवे स्थापित की थी. इसके 15 साल बाद 1997 में मां चंडी देवी मंदिर तक जाने के लिए भी इसी तरह के रोपवे की सुविधा दी गई. इतनी लंबे अवधि में एक ही बार हादसा हुआ है. उसके बाद अभी तक इन दोनों रोपवे पर कोई हादसा नहीं हुआ है.

साल 2010 में ट्रॉली से गिरी थी महिला : साल 2010 में कुंभ के दौरान एक महिला की लापरवाही के चलते ट्रॉली डिस्बैलेंस हुई थी, जिससे गिरकर महिला घायल हो गई थी. इसके अलावा आज तक कभी यहां पर कोई घटना घटी नहीं है. इसका सबसे बड़ा कारण यहां की सुरक्षा व्यवस्था है. रोपवे संचालन को लेकर उषा ब्रेको प्रबंधन कई चरणों में सुरक्षा व्यवस्था की समय-समय पर जांच करता रहता है. इसके अलावा साल में दो बार उषा ब्रेको को एक-एक हफ्ते के लिए बंद रखा जाता है. इस दौरान पूरी रोपवे की गहनता से जांच होती है, ताकि उसमें आई किसी भी तरह की खामियों को तत्काल दूर कर यात्रियों को सुरक्षित यात्रा कराई जा सके.

झारखंड रोपवे हादसे के बाद उत्तराखंड में भी मचा हड़कंप

क्या कहते हैं रोपवे संचालन के प्रभारी : उषा ब्रेको प्राइवेट लिमिटेड के प्रभारी मनोज डोभाल का कहना है कि हम मानवीय जिंदगी को ट्रांसपोर्ट कर रहे हैं तो उनकी सुरक्षा हमारी सबसे पहली जिम्मेदारी है. हमारे पास दक्ष इंजीनियर की टीम 24x7 घंटे उपलब्ध रहती है. ये टीम किसी भी तरह की परिस्थिति से निपटने के लिए सक्षम है. मनसा देवी और चंडी देवी रोपवे सेवा शुरू होने का समय रोजाना सुबह आठ बजे है. इस सेवा के शुरू होने से पहले सुबह दो घंटे तक इसकी व्यवस्थाओं को अनिवार्य रूप से जांचा जाता है. इस बात को देखा जाता है कि कहीं रोपवे के संचालन में कोई गड़बड़ी तो नहीं है. रोपवे संचालन के दौरान रोजाना, साप्ताहिक, मासिक के साथ अर्धवार्षिक जांचों को नियमानुसार किया जाता है. ताकि किसी तरह की गड़बड़ी की कोई आशंका न रह जाए.

रेस्क्यूअर दक्ष टीम मौजूद : किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए उषा ब्रेको ने रेस्क्यूअर की एक विशेष टीम को रखा हुआ है, जो हर समय किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए मुस्तैद रहती है. यदि किसी कारणवश रोपवे बीच में ही रुक जाता है तो उस परिस्थिति से निपटने के लिए यह टीम टावर टू टावर जाकर रोपवे में फंसे श्रद्धालुओं को भोजन, पानी जैसी आवश्यक वस्तुएं मुहैया कराती है.

रोपवे केबिन में लगी है विशेष डोरी : हरिद्वार में उषा ब्रेको की ओर से संचालित मनसा देवी और चंडी देवी रोपवे के प्रत्येक केबिन में विशेष रूप से एक लोहे की मजबूत डोरी की व्यवस्था की गई है. यदि किसी कारणवश रोपवे रास्ते में रुक जाता है तो इस डोरी की मदद से लोगों तक आवश्यक सामान भी पहुंचाया जा सकता है. यानी कुल मिलाकर रोपवे में सुरक्षा के इंतजामात पूरे हैं.

पढ़ें : झारखंड: तीन दिनों तक चला 63 जान बचाने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन, नहीं बचाई जा सकीं तीन जिंदगियां

जब रोपवे में फंसे पिता ने बेटों से कहा, बोतल में यूरिन संभाल कर रखो

झारखंड रोपवे हादसा: जब ट्रॉली को लगे 25 झटके, सहम उठा दरभंगा का ये परिवार

40 साल में नहीं हुआ कोई बड़ा हादसा : उषा ब्रेको के प्रभारी मनोज डोभाल का दावा है कि बीते 40 सालों में उनके यहां रोपवे संचालन के दौरान कोई हादसा पेश नहीं आया है, क्योंकि उनके यहां संचालन को लेकर सख्त नियमों का रोजाना 24 घंटे पालन किया जाता है. बहरहाल, रोपवे पर लगभग सभी व्यवस्थाएं दुरुस्त मिली हैं.

बता दें कि बीती रविवार को करीब शाम 4 बजे झारखंड के देवघर में त्रिकूट पर्वत रोपवे की ट्रॉली कार आपस में टकरा गई थीं. जिसके कारण रोपवे में खराबी आ गई और करीब 60 लोग हवा में ही लटके रह गए. त्रिकूट पर्वत रोपवे हादसे में फंसे लोगों को निकालने के लिए तीन दिनों तक ऑपरेशन चलाया गया. इस दौरान 60 लोग सुरक्षित निकाले गए, जबकि तीन लोगों की जान नहीं बचाई जा सकी.

सेना ने दो दिन में 34 लोगों को रेस्क्यू किया. इस दौरान दो लोगों की मौत हुई, जिसमें एक महिला और एक पुरुष शामिल हैं. 11 अप्रैल को सुबह से एनडीआरएफ की टीम ने 11 जिंदगियां बचाईं, जिसमें एक छोटी बच्ची भी शामिल थी. इससे पहले हादसे के दिन 10 अप्रैल को रोपवे का मेंटिनेंस करने वाले पन्ना लाल ने स्थानीय ग्रामीणों की मदद से 15 लोगों को बचाया था, जबकि एक व्यक्ति की मौत हो गई थी.

हरिद्वार : झारखंड के देवघर रोपवे हादसे (jharkhand ropeway accident) के बाद उत्तराखंड में भी हड़कंप मचा हुआ है. यहां पहाड़ों पर भी जगह-जगह रोपवे लगे हुए हैं. ऐसे में इस हादसे के बाद अब रोपवे में सफर करने से लोग कतराने (uttarakhand ropeway operator on alert) लगे हैं. वहीं, इस हादसे ने अन्य रोपवे की सुरक्षा व्यवस्थाओं पर भी सवालिया निशान लगा दिया है. लिहाजा, ईटीवी भारत की टीम ने हरिद्वार में बीते चार दशकों से रोपवे सेवा देने वाली उषा ब्रेको की व्यवस्थाओं का जायजा (Haridwar Ropeway reality check) लिया. साथ ही यह जानने की कोशिश की कि रोपवे आखिरकार कितने सुरक्षित हैं. हरिद्वार में करीब चार दशक पहले मां मनसा देवी मंदिर तक जाने के लिए (Haridwar Mansa Devi Ropeway) उषा ब्रेको कंपनी ने रोपवे स्थापित की थी. इसके 15 साल बाद 1997 में मां चंडी देवी मंदिर तक जाने के लिए भी इसी तरह के रोपवे की सुविधा दी गई. इतनी लंबे अवधि में एक ही बार हादसा हुआ है. उसके बाद अभी तक इन दोनों रोपवे पर कोई हादसा नहीं हुआ है.

साल 2010 में ट्रॉली से गिरी थी महिला : साल 2010 में कुंभ के दौरान एक महिला की लापरवाही के चलते ट्रॉली डिस्बैलेंस हुई थी, जिससे गिरकर महिला घायल हो गई थी. इसके अलावा आज तक कभी यहां पर कोई घटना घटी नहीं है. इसका सबसे बड़ा कारण यहां की सुरक्षा व्यवस्था है. रोपवे संचालन को लेकर उषा ब्रेको प्रबंधन कई चरणों में सुरक्षा व्यवस्था की समय-समय पर जांच करता रहता है. इसके अलावा साल में दो बार उषा ब्रेको को एक-एक हफ्ते के लिए बंद रखा जाता है. इस दौरान पूरी रोपवे की गहनता से जांच होती है, ताकि उसमें आई किसी भी तरह की खामियों को तत्काल दूर कर यात्रियों को सुरक्षित यात्रा कराई जा सके.

झारखंड रोपवे हादसे के बाद उत्तराखंड में भी मचा हड़कंप

क्या कहते हैं रोपवे संचालन के प्रभारी : उषा ब्रेको प्राइवेट लिमिटेड के प्रभारी मनोज डोभाल का कहना है कि हम मानवीय जिंदगी को ट्रांसपोर्ट कर रहे हैं तो उनकी सुरक्षा हमारी सबसे पहली जिम्मेदारी है. हमारे पास दक्ष इंजीनियर की टीम 24x7 घंटे उपलब्ध रहती है. ये टीम किसी भी तरह की परिस्थिति से निपटने के लिए सक्षम है. मनसा देवी और चंडी देवी रोपवे सेवा शुरू होने का समय रोजाना सुबह आठ बजे है. इस सेवा के शुरू होने से पहले सुबह दो घंटे तक इसकी व्यवस्थाओं को अनिवार्य रूप से जांचा जाता है. इस बात को देखा जाता है कि कहीं रोपवे के संचालन में कोई गड़बड़ी तो नहीं है. रोपवे संचालन के दौरान रोजाना, साप्ताहिक, मासिक के साथ अर्धवार्षिक जांचों को नियमानुसार किया जाता है. ताकि किसी तरह की गड़बड़ी की कोई आशंका न रह जाए.

रेस्क्यूअर दक्ष टीम मौजूद : किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए उषा ब्रेको ने रेस्क्यूअर की एक विशेष टीम को रखा हुआ है, जो हर समय किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए मुस्तैद रहती है. यदि किसी कारणवश रोपवे बीच में ही रुक जाता है तो उस परिस्थिति से निपटने के लिए यह टीम टावर टू टावर जाकर रोपवे में फंसे श्रद्धालुओं को भोजन, पानी जैसी आवश्यक वस्तुएं मुहैया कराती है.

रोपवे केबिन में लगी है विशेष डोरी : हरिद्वार में उषा ब्रेको की ओर से संचालित मनसा देवी और चंडी देवी रोपवे के प्रत्येक केबिन में विशेष रूप से एक लोहे की मजबूत डोरी की व्यवस्था की गई है. यदि किसी कारणवश रोपवे रास्ते में रुक जाता है तो इस डोरी की मदद से लोगों तक आवश्यक सामान भी पहुंचाया जा सकता है. यानी कुल मिलाकर रोपवे में सुरक्षा के इंतजामात पूरे हैं.

पढ़ें : झारखंड: तीन दिनों तक चला 63 जान बचाने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन, नहीं बचाई जा सकीं तीन जिंदगियां

जब रोपवे में फंसे पिता ने बेटों से कहा, बोतल में यूरिन संभाल कर रखो

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40 साल में नहीं हुआ कोई बड़ा हादसा : उषा ब्रेको के प्रभारी मनोज डोभाल का दावा है कि बीते 40 सालों में उनके यहां रोपवे संचालन के दौरान कोई हादसा पेश नहीं आया है, क्योंकि उनके यहां संचालन को लेकर सख्त नियमों का रोजाना 24 घंटे पालन किया जाता है. बहरहाल, रोपवे पर लगभग सभी व्यवस्थाएं दुरुस्त मिली हैं.

बता दें कि बीती रविवार को करीब शाम 4 बजे झारखंड के देवघर में त्रिकूट पर्वत रोपवे की ट्रॉली कार आपस में टकरा गई थीं. जिसके कारण रोपवे में खराबी आ गई और करीब 60 लोग हवा में ही लटके रह गए. त्रिकूट पर्वत रोपवे हादसे में फंसे लोगों को निकालने के लिए तीन दिनों तक ऑपरेशन चलाया गया. इस दौरान 60 लोग सुरक्षित निकाले गए, जबकि तीन लोगों की जान नहीं बचाई जा सकी.

सेना ने दो दिन में 34 लोगों को रेस्क्यू किया. इस दौरान दो लोगों की मौत हुई, जिसमें एक महिला और एक पुरुष शामिल हैं. 11 अप्रैल को सुबह से एनडीआरएफ की टीम ने 11 जिंदगियां बचाईं, जिसमें एक छोटी बच्ची भी शामिल थी. इससे पहले हादसे के दिन 10 अप्रैल को रोपवे का मेंटिनेंस करने वाले पन्ना लाल ने स्थानीय ग्रामीणों की मदद से 15 लोगों को बचाया था, जबकि एक व्यक्ति की मौत हो गई थी.

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