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PM मोदी के दौरे से ठीक पहले केदारधाम में 'बवाल', तीर्थ पुरोहितों ने की BJP नेताओं की एंट्री बैन

पीएम मोदी के केदारनाथ धाम दौरे से ठीक पहले बवाल शुरू हो गया है. तीर्थ पुरोहित और पंडा समाज ने धामी सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए बीजेपी नेताओं की एंट्री पर ही बैन लगा दिया है. पढ़ें पूरी खबर...

तीर्थ पुरोहितों के प्रदर्शन और देवस्थानम बोर्ड को लेकर सीएम धामी की प्रतिक्रिया
तीर्थ पुरोहितों के प्रदर्शन और देवस्थानम बोर्ड को लेकर सीएम धामी की प्रतिक्रिया
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Published : Nov 1, 2021, 3:24 PM IST

देहरादून/रुद्रप्रयाग: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 5 नवंबर को केदारनाथ धाम पहुंच रहे हैं. इस बीच सरकार और संगठन प्रधानमंत्री के आगमन की तैयारी में जुटे हैं, लेकिन देवस्थानम बोर्ड को लेकर तीर्थ पुरोहितों ने केदारनाथ धाम में बवाल शुरू कर दिया है. तीर्थ पुरोहितों ने केदारनाथ धाम में बीजेपी नेताओं की एंट्री पर बैन लगा दिया है. ऐसे में पीएम मोदी का केदारनाथ का दौरा कैसे होगा इसको लेकर भी सरकार के माथे पर चिंता की लकीरें दिखाई दे रही हैं.

तीर्थ पुरोहितों के विरोध के बाद उत्तराखंड सीएम पुष्कर सिंह धामी ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा है कि देवस्थानम बोर्ड को लेकर उन्होंने उच्च स्तरीय समिति गठित की है. समिति की अंतिम रिपोर्ट आनी अभी बाकी है. रिपोर्ट आते ही सरकार तीर्थ पुरोहितों का समाधान जरूर निकालेगी.

तीर्थ पुरोहितों के प्रदर्शन और देवस्थानम बोर्ड को लेकर सीएम धामी की प्रतिक्रिया.

बता दें कि आने वाले 5 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केदारनाथ दौरे पर आ रहे हैं. ऐसे में पीएम के दौरे की तैयारियों को लेकर तमाम बीजेपी नेता केदारनाथ धाम पहुंच रहे हैं. इस बीच तीर्थ पुरोहितों और पंडा समाज ने बीजेपी सरकार के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया है. उन्होंने केदारनाथ धाम में बीजेपी नेताओं की एंट्री पर बैन लगा दिया है.

पीएम मोदी के दौरे पर ग्रहण

दरअसल, सोमवार (1 नवंबर) सुबह पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को बिना केदारनाथ धाम पहुंचे ही वापस लौटना पड़ा, जबकि उत्तराखंड के बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक और कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत का तीर्थ पुरोहित समाज ने घेराव कर लिया, जिसके बाद दोनों नेताओं ने तीर्थ पुरोहितों से बातचीत कर उन्हें मनाने की कोशिश की, लेकिन चिंता इस बात की है कि अगर तीर्थ पुरोहित नहीं मानते हैं, तो प्रधानमंत्री के दौरे पर भी ग्रहण लग सकता है.

पुरोहितों ने लगाए Go Back के नारे.

तीर्थ पुरोहित समाज और पंडा समाज की नाराजगी

तीर्थ पुरोहित और पंडा समाज लगातार देवस्थानम बोर्ड को भंग करने की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि सरकार ने उनको दो महीने का समय दिया था, लेकिन सरकार ने उनके साथ वादाखिलाफी की है. ऐसे में उन्होंने केदानाथ धाम में बीजेपी नेताओं की एंट्री पर बैन लगा दिया है.

देवस्थानम बोर्ड क्या है

उत्तराखंड सरकार ने साल 2019 में विश्व विख्यात चारधाम समेत प्रदेश के अन्य 51 मंदिरों को एक बोर्ड के अधीन लाने को लेकर उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड का गठन किया था. देवस्थानम बोर्ड के गठन का नोटिफिकेशन जारी होते ही बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति का अस्तित्व स्वतः समाप्त हो गया. क्योंकि, उत्तराखंड चारधाम यात्रा में साल 2020 तक संचालित परंपरा करीब 80 साल पुरानी थी.

सरकार का कहना है कि मंदिरों के रखरखाव, बुनियादी सुविधाओं और ढांचागत सुविधाओं के लिए देवस्थानम बोर्ड का गठन किया गया है. मुख्यमंत्री को इसका अध्यक्ष, संस्कृति एवं धर्मस्व मंत्री को उपाध्यक्ष और गढ़वाल मंडल के मंडालायुक्त को CEO की जिम्मेदारी दी गई. सरकार का कहना है कि इस बोर्ड का वास्तविक मकसद यात्रा की व्यवस्था को बेहतर किया जाना है.

क्यों हो रहा देवस्थानम बोर्ड का विरोध

बोर्ड के गठन के बाद से ही लगातार धामों से जुड़े तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारी इसका विरोध कर रहे हैं. शुरुआती दौर में तीर्थ पुरोहितों के विरोध करने की मुख्य वजह यह थी कि राज्य सरकार ने बोर्ड का नाम वैष्णो देवी के श्राइन बोर्ड के नाम पर रखा था. बोर्ड बनाने का जो प्रस्ताव तैयार किया गया था उसमें पहले इस बोर्ड का नाम उत्तराखंड चारधाम श्राइन बोर्ड रखा गया था. जिसके बाद राज्य सरकार ने साल 2020 में उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड रख दिया. बावजूद इसके तीर्थ पुरोहितों ने अपना विरोध जारी रखा है.

पुरोहितों का कहना है कि सरकार ने एक्ट बनाने से पहले वहां से जुड़े तीर्थ पुरोहितों, हक हकूकधारी समाज व स्थानीय जनता से किसी प्रकार का संवाद तक नहीं बनाया, जो किसी भी लोकतांत्रिक सरकार के लिए सही नहीं है. तीर्थ पुरोहितों ने यह तर्क दिया था कि चारों धामों की पूजा पद्धति एक दूसरे से अलग है, ऐसे में इन सभी धामों एक बोर्ड के अधीन नहीं लाया जा सकता. क्योंकि, इस बोर्ड के आ जाने से चारों धामों की पारंपरिक व्यवस्था टूट जाएगी, जो कि सनातन धर्म पर कुठाराघात होगा.

पढ़ें : 22 नवंबर को बंद होंगे द्वितीय केदार श्री मध्यमहेश्वर के कपाट, तुंगनाथ के 30 अक्टूबर को

यही नहीं, तीर्थ पुरोहितों ने इस बात का भी जिक्र किया कि सदियों से ही चारों धामों की जो परंपरा चली आ रही है इस बोर्ड के आने के बाद वह परंपरा बदल जाएगी. साथ ही चारों धामों से जुड़े जो तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारी हैं उनके अधिकारों का हनन किया जाएगा.

क्या अरबों का चढ़ावा है विरोध की वजह

एक मुख्य वजह यह भी बताई जा रही है कि हर साल धामों में अरबों रुपए का चढ़ावा चढ़ता है ऐसे में अब इस चढ़ावे का पूरा हिसाब किताब रखा जाएगा यानी जो चढ़ावा चढ़ता है उसकी बंदरबांट नहीं हो पाएगी. जिसके चलते भी तीर्थ पुरोहित और हक हकूकधारी बोर्ड का विरोध कर रहे हैं.

धामों के नाम ही रहेंगी संपत्तियां, बोर्ड करेगा रखरखाव

उत्तराखंड के कई जिलों सहित अन्य प्रांतों के कई स्थानों पर कुल 60 ऐसे स्थान हैं, जहां पर बाबा केदारनाथ और बदरीनाथ के नाम भू-सम्पत्तियां दस्तावेजों में दर्ज हैं. हालांकि इन संपत्तियों का रखरखाव अभी तक बदरी-केदार मंदिर समिति करती थी लेकिन अब बोर्ड बन जाने के बाद इन संपत्तियों का रखरखाव देवस्थानम बोर्ड कर रहा है.

इस बाबत सीईओ रविनाथ रमन का कहना है कि जो मंदिर की संपत्ति है, वह मंदिर की ही रहेगी और बोर्ड भी इस बात को मानता है कि जो भू संपत्तियां मंदिर के नाम हैं वह मंदिर के ही नाम रहेंगी, न कि इस बोर्ड के नाम होंगी. हालांकि, भू-संपत्तियों के मामले में बोर्ड का मकसद सिर्फ और सिर्फ भू संपत्तियों का रखरखाव मेंटेनेंस और संरक्षण करना है.

देहरादून/रुद्रप्रयाग: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 5 नवंबर को केदारनाथ धाम पहुंच रहे हैं. इस बीच सरकार और संगठन प्रधानमंत्री के आगमन की तैयारी में जुटे हैं, लेकिन देवस्थानम बोर्ड को लेकर तीर्थ पुरोहितों ने केदारनाथ धाम में बवाल शुरू कर दिया है. तीर्थ पुरोहितों ने केदारनाथ धाम में बीजेपी नेताओं की एंट्री पर बैन लगा दिया है. ऐसे में पीएम मोदी का केदारनाथ का दौरा कैसे होगा इसको लेकर भी सरकार के माथे पर चिंता की लकीरें दिखाई दे रही हैं.

तीर्थ पुरोहितों के विरोध के बाद उत्तराखंड सीएम पुष्कर सिंह धामी ने अपनी प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा है कि देवस्थानम बोर्ड को लेकर उन्होंने उच्च स्तरीय समिति गठित की है. समिति की अंतिम रिपोर्ट आनी अभी बाकी है. रिपोर्ट आते ही सरकार तीर्थ पुरोहितों का समाधान जरूर निकालेगी.

तीर्थ पुरोहितों के प्रदर्शन और देवस्थानम बोर्ड को लेकर सीएम धामी की प्रतिक्रिया.

बता दें कि आने वाले 5 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केदारनाथ दौरे पर आ रहे हैं. ऐसे में पीएम के दौरे की तैयारियों को लेकर तमाम बीजेपी नेता केदारनाथ धाम पहुंच रहे हैं. इस बीच तीर्थ पुरोहितों और पंडा समाज ने बीजेपी सरकार के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया है. उन्होंने केदारनाथ धाम में बीजेपी नेताओं की एंट्री पर बैन लगा दिया है.

पीएम मोदी के दौरे पर ग्रहण

दरअसल, सोमवार (1 नवंबर) सुबह पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को बिना केदारनाथ धाम पहुंचे ही वापस लौटना पड़ा, जबकि उत्तराखंड के बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक और कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत का तीर्थ पुरोहित समाज ने घेराव कर लिया, जिसके बाद दोनों नेताओं ने तीर्थ पुरोहितों से बातचीत कर उन्हें मनाने की कोशिश की, लेकिन चिंता इस बात की है कि अगर तीर्थ पुरोहित नहीं मानते हैं, तो प्रधानमंत्री के दौरे पर भी ग्रहण लग सकता है.

पुरोहितों ने लगाए Go Back के नारे.

तीर्थ पुरोहित समाज और पंडा समाज की नाराजगी

तीर्थ पुरोहित और पंडा समाज लगातार देवस्थानम बोर्ड को भंग करने की मांग कर रहे हैं. उनका कहना है कि सरकार ने उनको दो महीने का समय दिया था, लेकिन सरकार ने उनके साथ वादाखिलाफी की है. ऐसे में उन्होंने केदानाथ धाम में बीजेपी नेताओं की एंट्री पर बैन लगा दिया है.

देवस्थानम बोर्ड क्या है

उत्तराखंड सरकार ने साल 2019 में विश्व विख्यात चारधाम समेत प्रदेश के अन्य 51 मंदिरों को एक बोर्ड के अधीन लाने को लेकर उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड का गठन किया था. देवस्थानम बोर्ड के गठन का नोटिफिकेशन जारी होते ही बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति का अस्तित्व स्वतः समाप्त हो गया. क्योंकि, उत्तराखंड चारधाम यात्रा में साल 2020 तक संचालित परंपरा करीब 80 साल पुरानी थी.

सरकार का कहना है कि मंदिरों के रखरखाव, बुनियादी सुविधाओं और ढांचागत सुविधाओं के लिए देवस्थानम बोर्ड का गठन किया गया है. मुख्यमंत्री को इसका अध्यक्ष, संस्कृति एवं धर्मस्व मंत्री को उपाध्यक्ष और गढ़वाल मंडल के मंडालायुक्त को CEO की जिम्मेदारी दी गई. सरकार का कहना है कि इस बोर्ड का वास्तविक मकसद यात्रा की व्यवस्था को बेहतर किया जाना है.

क्यों हो रहा देवस्थानम बोर्ड का विरोध

बोर्ड के गठन के बाद से ही लगातार धामों से जुड़े तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारी इसका विरोध कर रहे हैं. शुरुआती दौर में तीर्थ पुरोहितों के विरोध करने की मुख्य वजह यह थी कि राज्य सरकार ने बोर्ड का नाम वैष्णो देवी के श्राइन बोर्ड के नाम पर रखा था. बोर्ड बनाने का जो प्रस्ताव तैयार किया गया था उसमें पहले इस बोर्ड का नाम उत्तराखंड चारधाम श्राइन बोर्ड रखा गया था. जिसके बाद राज्य सरकार ने साल 2020 में उत्तराखंड चारधाम देवस्थानम प्रबंधन बोर्ड रख दिया. बावजूद इसके तीर्थ पुरोहितों ने अपना विरोध जारी रखा है.

पुरोहितों का कहना है कि सरकार ने एक्ट बनाने से पहले वहां से जुड़े तीर्थ पुरोहितों, हक हकूकधारी समाज व स्थानीय जनता से किसी प्रकार का संवाद तक नहीं बनाया, जो किसी भी लोकतांत्रिक सरकार के लिए सही नहीं है. तीर्थ पुरोहितों ने यह तर्क दिया था कि चारों धामों की पूजा पद्धति एक दूसरे से अलग है, ऐसे में इन सभी धामों एक बोर्ड के अधीन नहीं लाया जा सकता. क्योंकि, इस बोर्ड के आ जाने से चारों धामों की पारंपरिक व्यवस्था टूट जाएगी, जो कि सनातन धर्म पर कुठाराघात होगा.

पढ़ें : 22 नवंबर को बंद होंगे द्वितीय केदार श्री मध्यमहेश्वर के कपाट, तुंगनाथ के 30 अक्टूबर को

यही नहीं, तीर्थ पुरोहितों ने इस बात का भी जिक्र किया कि सदियों से ही चारों धामों की जो परंपरा चली आ रही है इस बोर्ड के आने के बाद वह परंपरा बदल जाएगी. साथ ही चारों धामों से जुड़े जो तीर्थ पुरोहित और हक-हकूकधारी हैं उनके अधिकारों का हनन किया जाएगा.

क्या अरबों का चढ़ावा है विरोध की वजह

एक मुख्य वजह यह भी बताई जा रही है कि हर साल धामों में अरबों रुपए का चढ़ावा चढ़ता है ऐसे में अब इस चढ़ावे का पूरा हिसाब किताब रखा जाएगा यानी जो चढ़ावा चढ़ता है उसकी बंदरबांट नहीं हो पाएगी. जिसके चलते भी तीर्थ पुरोहित और हक हकूकधारी बोर्ड का विरोध कर रहे हैं.

धामों के नाम ही रहेंगी संपत्तियां, बोर्ड करेगा रखरखाव

उत्तराखंड के कई जिलों सहित अन्य प्रांतों के कई स्थानों पर कुल 60 ऐसे स्थान हैं, जहां पर बाबा केदारनाथ और बदरीनाथ के नाम भू-सम्पत्तियां दस्तावेजों में दर्ज हैं. हालांकि इन संपत्तियों का रखरखाव अभी तक बदरी-केदार मंदिर समिति करती थी लेकिन अब बोर्ड बन जाने के बाद इन संपत्तियों का रखरखाव देवस्थानम बोर्ड कर रहा है.

इस बाबत सीईओ रविनाथ रमन का कहना है कि जो मंदिर की संपत्ति है, वह मंदिर की ही रहेगी और बोर्ड भी इस बात को मानता है कि जो भू संपत्तियां मंदिर के नाम हैं वह मंदिर के ही नाम रहेंगी, न कि इस बोर्ड के नाम होंगी. हालांकि, भू-संपत्तियों के मामले में बोर्ड का मकसद सिर्फ और सिर्फ भू संपत्तियों का रखरखाव मेंटेनेंस और संरक्षण करना है.

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