पणजी : गोवा के दिवंगत मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर के बड़े बेटे उत्पल पर्रिकर ने कहा कि राज्य में उनके पक्ष में मौन लहर है. उन्होंने कहा कि 2019 में उनके पिता की मृत्यु के बाद वह पंसदीदा उम्मीदवार थे, लेकिन स्थानीय राजनीति के कारण भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने उन्हें टिकट नहीं दिया था.
वह पणजी सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं. राज्य में विधानसभा चुनाव के लिए 14 फरवरी को मतदान (February 14 Goa Assembly election) होगा. भाजपा के पणजी के अलावा उन्हें अन्य तीन स्थान से टिकट की पेशकश करने के सवाल पर व्यवसायी पर्रिकर (41) ने कहा कि लड़ाई कभी सीट के विकल्प के लिए नहीं थी.
भाजपा के खिलाफ निर्दलीय चुनाव लड़ रहे उत्पल
पर्रिकर अब पणजी से भाजपा के मौजूदा विधायक अतनासियो मोनसेरेट (BJP MLA Atanasio Monserrate) के खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में हैं. 2019 में मनोहर पर्रिकर के निधन के बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेस की टिकट पर मोनसेरेट ने भाजपा उम्मीदवार को मात दी थी. हालांकि, पिछले महीने मोनसेरेट सहित कांग्रेस के कई विधायक भाजपा में शामिल हो गए थे.
स्थानीय राजनीति के कारण कटा पत्ता
मोनसेरेट की पत्नी जेनिफर तलेगांव विधानसभा क्षेत्र (Taleigao constituency Goa) से विधायक हैं, जबकि उनके बेटे पणजी के महापौर हैं. पर्रिकर ने एक साक्षात्कार में कहा, '2019 में स्थानीय राजनीति के कारण मुझे टिकट नहीं दिया गया और मैंने पार्टी के फैसले का तब सम्मान किया, लेकिन फिर कांग्रेस के एक सदस्य को पार्टी में शामिल किया गया, जिसके खिलाफ ऐसे गंभीर आरोप हैं कि मुझे बोलने में भी शर्म आ रही है.'
कार्यकर्ताओं का समर्थन
पर्रिकर का इशारा अतनासियो मोनसेरेट की ओर था, जो 2016 के बलात्कार के एक मामले में आरोपी हैं. उन्होंने कहा, 'इस निर्वाचन क्षेत्र को ऐसे ही नहीं छोड़ा जा सकता, जिसके लिए मेरे पिता ने खून-पसीना लगा दिया. मैं कैसे शांत बैठ जाता? इसलिए जनता और कार्यकर्ताओं के समर्थन से, मुझे मैदान में उतरना ही था.'
पिता की मौत के बाद उत्पल पर्रिकर
उनके समक्ष पेश होने वाली चुनौतियों के संदर्भ में पर्रिकर ने कहा, 'मेरे समर्थन में एक मौन लहर है.' भाजपा के तीन अन्य निर्वाचन क्षेत्र से टिकट देने के सवाल पर उन्होंने कहा, 'लड़ाई कभी भी विकल्पों की नहीं थी. मैंने कहा था कि एक अच्छा उम्मीदवार लाएं और मैं चुनाव नहीं लड़ूंगा.' उन्होंने कहा कि पार्टी ने मडगांव, कलंगुट या बिचोलिम सीट से चुनाव लड़ने का प्रस्ताव दिया था. यह पूछे जाने पर कि क्या वह अपने पिता की मृत्यु के बाद 2019 का उपचुनाव लड़ना चाहते हैं, उन्होंने कहा कि उनका नाम सूची में था और उन्हें काफी समर्थन भी प्राप्त था.
खंडित जनादेश के बाद गोवा लौटे मनोहर पर्रिकर
मनोहर पर्रिकर के जीत दर्ज करने से पहले पणजी कभी भी भाजपा का गढ़ नहीं था. 1989 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर भाजपा को महज दो प्रतिशत वोट मिले थे. 1994 में मनोहर पर्रिकर ने पणजी से चुनाव लड़ा और उसके बाद लगातार यहां से जीत दर्ज की. 2014 में रक्षा मंत्री के रूप में अपने मंत्रिमंडल में शामिल होने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें बुलाया और इसलिए उन्होंने सीट छोड़ी, लेकिन 2017 चुनाव में खंडित जनादेश के बाद एक बार फिर उन्होंने राज्य का रुख किया. 2019 में कैंसर के कारण उनका निधन होने से मुख्यमंत्री के तौर पर उनका कार्यकाल काफी छोटा रहा.
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भाजपा को समर्थन देने के सवाल पर उत्पल पर्रिकर
मनोहर पर्रिकर के रक्षा मंत्री बनने के बाद सिद्धार्थ कुनकालिंकर (Sidharth Kuncalienker) को पणजी से उम्मीदवार बनाया गया और उन्होंने 2017 चुनाव में जीत भी दर्ज की थी. हालांकि, 2019 चुनाव में अतनासियो मोनसेरेट ने उन्हें मात दी थी. चुनाव जीतने के बाद, सरकार बनाने के लिए भाजपा को समर्थन देने के सवाल पर उत्पल ने कहा, 'अगर मैं, निर्दलीय चुनाव लड़ रहा हूं तो स्वतंत्र ही रहूंगा. इसे करने के कोई दो तरीके नहीं हैं और मैं इसे लेकर बहुत दृढ़ हूं.' बता दें कि 40 सदस्यीय विधानसभा के लिए गोवा में 14 फरवरी को मतदान (goa assembly election) होना है और मतगणना 10 मार्च को की जाएगी.
(पीटीआई-भाषा)