हैदराबाद : करीब 20 साल बाद अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हो गया है. 2001 में अमेरिका ने अफगानिस्तान में आतंक के खिलाफ जंग छेड़ी थी. तालिबानियों को अफगानिस्तान से भगा दिया था और नई सरकार का गठन किया था. लेकिन वही अमेरिका जिसने आतंक के खिलाफ जंग छेड़ी थी आज उसी आतंक की वजह से भाग खड़ा हुआ है. अमेरिका ने कई जंगें लड़ी हैं और कई जीती हैं. लेकिन कुछ युद्ध उसके लिए गले की हड्डी बन गए थे. जिसे वह न निगल सकता था और न उगल पा रहा था. ऐसा ही एक युद्ध था वियतनाम का युद्ध जहां अमेरिका को अपने करीब 58,000 सैनिकों को खोना पड़ा.
पेरिस शांति समझौते के बाद भागा अमेरिका
पेरिस शांति समझौते के नाम पर 1973 में अमेरिकी सेना वियतनाम से निकल गई. इसके दो साल के भीतर कम्युनिस्ट सेना अमेरिका समर्थित दक्षिण वियतनाम की राजधानी साइगॉन में घुस गई. वहां फंसे अमेरिकियों को बाहर निकालने के लिए एक हेलीकॉप्टर अमेरिकी दूतावास के करीब एक बिल्डिंग की छत पर उतारा गया. भागते अमेरिकियों की यह तस्वीर महाशक्ति की हार का प्रतीक बन गई. आइए इस युद्ध के बारे में सबकुछ जानते हैं...
वियतनाम को आज भले ही लोग अमेरिका को युद्ध में हराने वाले देश के रूप में जानते हों, लेकिन यह अब पुरानी बात हो गई है. वियतनाम एशिया में हिंद-चीन प्रायद्वीप के पू्र्वी सीमा पर स्थित है, जिसका आधिकारिक नाम समाजवादी वियतनाम गणतंत्र है. लंबे समय से युद्ध में उलझा रहा वियतनाम शीत युद्ध की विभीषिका झेलने वाले देश के रूप में एक सटीक उदाहरण है.
वियतनाम 127,881 वर्ग किलोमीटर (331,689 वर्ग मील) के क्षेत्र में फैला है. यहां की आबादी करीब 9 करोड़ 65 लाख (2019) है. यहां प्रमुख भाषा वियतनामी है, लेकिन अंग्रेजी यहां की दूसरी भाषा बन रही है जबकि कुछ लोग फ्रेंच भी बोल लेते हैं. हनोई यहां की वर्तमान राजधानी है जबकि इससे पहले राजधानी रही हो ची मिन सिटी सबसे बड़ा शहर है.
कब शुरू हुआ वियतनाम का युद्ध
वियतनाम युद्ध में अमेरिका की सक्रिय भागीदारी 1954 में शुरू हुई. हो की साम्यवादी सेना का उत्तरी वियतनाम पर कब्जा होने के बाद उत्तरी और दक्षिणी भाग की सेनाओं के बीच युद्ध शुरू हो गया. मई 1954 में उनके बीच निर्णायक युद्ध हुआ. उसमें वियत मिन्ह सेना जीत गई. युद्ध में फ्रांस की हार के साथ ही वियतनाम में फ्रांस के औपनिवेशिक शासन का अंत हुआ.
जुलाई 1954 में जिनीवा कॉन्फ्रेंस में एक संधि हुई जिसमें वियतनाम को दो भागों में बांट दिया गया. हो के कब्जे में उत्तरी वियतनाम रहा जबकि बाओ के कब्जे में दक्षिणी वियतनाम. संधि में प्रावधान था कि देश का फिर से एकीकरण के लिए 1956 में चुनाव होगा. 1955 में नो दिन डिएम नाम के राजनीतिज्ञ ने सम्राट बाओ का तख्तापलट कर दिया. वह वियतनाम गणराज्य की सरकार (जीवीएन) के राष्ट्रपति बन गए. उस दौरान जीवीएन को दक्षिण वियतनाम के नाम से जाना जाता था.
दुनिया भर में शीत युद्ध जोर पकड़ने लगा
इसी बीच दुनिया भर में शीत युद्ध जोर पकड़ने लगा था. अमेरिका ने शीत युद्ध के मद्देनजर सोवियत संघ के सहयोगियों के खिलाफ अपनी पॉलिसी को काफी सख्त कर दिया. 1955 में अमेरिकी राष्ट्रपति ड्विट डी.आइजनहावर ने डिएम और दक्षिण वियतनाम को पुरजोर सहायता करने की बात कही. अमेरिका ने वहां अपने सैनिक भेज दिए. इसके बाद डिएम की सेना ने दक्षिण वियतनाम में वियत मिन्ह के समर्थकों पर शिकंजा कसना शुरू किया. करीब 1 लाख लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया. उनमें से कई को बुरी तरह टॉर्चर किया गया और प्रताड़ना दी गई. 1957 के बाद वियत कॉन्ग और डिएम के अन्य विरोधियों ने सरकारी अधिकारियों एवं अन्य लक्ष्यों को निशाना बनाना शुरू कर दिया. 1959 तक दक्षिणी वियतनाम की सेना के साथ उनकी सशस्त्र लड़ाई शुरू हो गई.
अमेरिकी पोतों पर हमला
नवंबर 1963 में डिएम के जनरलों ने बगावत कर दी. डिएम की सरकार गिरा दी गई. उसकी और उसके भाई की हत्या कर दी गई. ऊधर उससे तीन हफ्ते पहले अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ.केनेडी की हत्या कर दी गई. अगस्त 1964 में अमेरिका के दो जहाजों पर टोंकिन की खाड़ी में हमला हुआ. इसके बाद अमेरिका ने उत्तरी वियतनाम में बदले की कार्रवाई के तौर पर बमबारी का आदेश दिया. अगले साल अमेरिकी जहाजों ने वियतनाम में बमबारी शुरू कर दी. वियतनाम में अमेरिका ने अपने इस ऑपरेशन का नाम ऑपरेशन थंडर रखा. मार्च 1965 में जॉनसन ने वियतनाम के युद्ध में और सैनिकों को भेजने का फैसला लिया.
अपने वादे से मुकरा अमेरिका
जिनीवा संधि के समय अमेरिका ने वियतनाम में 1956 में चुनाव का वादा किया था. लेकिन बाद में उससे मुकर गया जिससे जॉनसन की विश्वसनीयता घटी. ऊधर चीन और सोवियत संघ ने उत्तरी वियतनाम की मदद नाटकीय तौर पर बढ़ा दी. वियतनाम के लोग अपनी सरकार के साथ खड़े थे. वे देश के लिए मरने-मारने को तैयार थे. वियतनाम की सेना के साथ मिलकर वहां के नागरिक भी अमेरिकी सैनिकों को चुन-चुनकर मारने लगे. साल 1968 तक अमेरिकी सैनिकों का हौसला जवाब दे चुका था. वे जीत की उम्मीद छोड़ चुके थे. वे किसी तरह अपनी जान बचाने में जुट गए थे.
अफगानिस्तान से पांच गुना सैनिक और 19 साल की भीषण बमबारी के बावजूद अमेरिका कम्युनिस्ट उत्तरी वियतनाम को झुका नहीं सका. घरेलू दबाव के आगे 1969 में राष्ट्रपति बने रिचर्ड निक्सन ने वियतनाम से बाहर निकलने का मन बना लिया. जनवरी 1973 में पेरिस में अमेरिका, उत्तरी वियतनाम और दक्षिण वियतनाम और वियतकॉन्ग के बीच शांति समझौत हुआ. इस समझौते की आड़ में अमेरिका वियतनाम से अपनी सेना हटाना चाहता था. इसके बाद वियतनाम में भी वही हुआ जो आज अफगानिस्तान में हो रहा है.
आनन-फानन में भागा अमेरिका
अमेरिकी फौज के पूरी तरह निकलने से पहले ही 29 मार्च 1973 को उत्तरी वियतनाम ने दक्षिणी वियतनाम पर हमला बोल दिया. दो साल बाद 30 अप्रैल 1975 को कम्युनिस्ट वियतनाम की फौज साइगॉन में घुस गई और वहां बचे हुए अमेरिकियों को आनन-फानन में भागना पड़ा.
दोनों देशों को नुकसान
युद्ध में दोनों पक्षों को भारी नुकसान उठाना पड़ा. वियतनाम के करीब 20 लाख लोगों को मारे जाने और 30 लाख के करीब लोगों को घायल होने का अनुमान है. करीब 1.2 करोड़ लोगों ने दूसरे देशों में शरण लिया. अमेरिका को अरबों डॉलर पैसा खर्च करना पड़ा और उसके करीब 58,000 सैनिक मारे गए.
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