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खाकी का दर्द : लंबी ड्यूटी से मिले 'आजादी', हटे बॉर्डर स्कीम तो कुछ बात बने

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Published : Aug 12, 2021, 6:53 PM IST

उत्तर प्रदेश में समय-समय पर दबी जुबान पुलिसकर्मी अपनी मांगों को उठाते रहते हैं. वीक ऑफ, बॉर्डर स्कीम को हटाने और ग्रेड पे बढ़ाने जैसी पुलिसकर्मियों की प्रमुख मांगें हैं. पुलिसकर्मियों का कहना है कि वह प्रतिदिन 14 घंटे काम करते हैं, लेकिन सप्ताह में उन्हें एक दिन भी वीक ऑफ नहीं मिलता है. पढ़ें यूपी में तैनात पुलिसकर्मियों की समस्याओं को लेकर ईटीवी भारत की यह रिपोर्ट.

खाकी का दर्द
खाकी का दर्द

लखनऊ : हमारी ड्यूटी का कोई निर्धारित समय नहीं है. वीक ऑफ जैसी व्यवस्था भी हमारे लिए नहीं है. सैलरी चपरासी से भी कम और काम का बोझ सबसे ज्यादा हम पर ही है. IPS की तरह गृह जनपद में हमारी तैनाती नहीं हो सकती. आंदोलन हम कर नहीं सकते, सीनियर अफसर सुनते नहीं, ऐसे में हम जाएं तो कहां जाएं. राज्य सरकार और मुख्यमंत्री से निवेदन ही कर सकते हैं कि वह हमारी इन बुनियादी जरूरतों पर भी ध्यान दें. ये दर्द सूबे की राजधानी लखनऊ में तैनात एक कॉन्स्टेबल का है. ये पीड़ा सिर्फ एक कॉन्स्टेबल की नहीं, बल्कि सूबे के पुलिस महकमे के सभी पुलिसकर्मियों की है. उत्तर प्रदेश के पुलिसकर्मियों ने साथियों की समस्याओं को लेकर आवाज बुलंद की है.

पुलिसकर्मियों ने विवादित 'बॉर्डर स्कीम' हटाने, सिपाहियों के लिए '2800 ग्रेड पे', ड्यूटी के फिक्स घंटे और 'वीक ऑफ' जैसी मांगों को लेकर उत्तर प्रदेश के नए DGP मुकुल गोयल को पत्र लिखकर गुहार लगाने का मन बनाया है. सिपाहियों का कहना है कि कम से कम इन बेसिक चीजों को सिपाहियों के लिए लागू किया जाए, जिससे वे भी मन लगाकर काम कर सकें और परिवार के साथ भी समय बिता सकें.

जानें विवादित 'बॉर्डर स्कीम'
बात दें कि विवादित 'बॉर्डर स्कीम' नॉन-गजेटेड कर्मचारियों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं है. साल 2010 में मायावती सरकार ने इसे लागू किया था, जिसके तहत किसी कॉन्स्टेबल, हेड कॉन्स्टेबल, दारोगा या इंस्पेक्टर को अपने गृह जनपद और उसकी सीमा से सटे किसी जिले में तैनाती नहीं मिल सकती है. साधारण शब्दों में कहें तो तैनाती वाले जिले और गृह जनपद के बीच एक जिला होना चाहिए. मार्च 2012 में अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री बनते ही इसे हटा दिया था. इससे पुलिसकर्मियों के चेहरे खिल उठे. कुछ महीनों के अंदर ही डिपार्टमेंट में सिपाहियों के खूब ट्रांसफर हुए. हालांकि यह राहत ज्यादा दिन नहीं रही और 2014 में अखिलेश सरकार ने बॉर्डर स्कीम को फिर से लागू कर दिया. इसके बाद से ही समय-समय पर पुलिसकर्मी इस स्कीम के खिलाफ दबी आवाज में विरोध करते रहते हैं, लेकिन खुलकर नहीं बोलते. कहा जाता है कि सिपाहियों की आत्महत्या जैसी घटनाओं में भी इस बॉर्डर स्कीम का ही हाथ है. इसीलिए महकमे में इसे 'हत्यारी बॉर्डर स्कीम' भी बोलते हैं.

IPS को छूट, सिपाहियों से कानून-व्यवस्था को खतरा
'बॉर्डर स्कीम' पर रिटायर्ड सिपाही ज्ञान प्रकाश का दर्द छलक गया. उनका कहना है कि IPS अफसरों के लिए छूट और सिपाहियों की तैनाती में कानून-व्यवस्था पर खतरा उत्पन्न हो जाता है. ये कैसी न्याय व्यवस्था है. उन्होंने आगे बताया कि घर से 200 किमी दूर पोस्टिंग होती है. इसके पीछे वजह यह दी जाती है कि हम घर के नजदीक रहकर कानून-व्यवस्था को प्रभावित कर सकते हैं, जबकि ऐसा नहीं है. राजस्थान में सिपाहियों को गृह जनपद में भी तैनात किया जाता है. वहां इसका कोई बुरा असर नहीं दिखा. कानून-व्यवस्था का तर्क उन ताकतवर IPS अधिकारियों पर क्यों नहीं लागू होता, जिन्हें अपने गृह जनपद और पड़ोसी जिलों में बतौर एसपी तैनात होने की छूट है?

'ग्रेड पे' 2000 से बढ़ाकर 2800 करें
सिपाहियों की मांग है कि उनका शुरुआती 'ग्रेड पे' 2,000 से बढ़ाकर 2,800 किया जाए. मौजूदा व्यवस्था के अनुसार, करीब 16 साल की सर्विस पूरी करने के बाद सिपाहियों को 2,800 ग्रेड पे मिल पाता है. इसमें सुधार किया जाना चाहिए. लखनऊ के एक सिपाही ने बताया कि हम समस्याओं को लेकर धरना/प्रदर्शन नहीं कर सकते, लेकिन अभिभावक जैसी सरकार और सीनियर अफसरों से वह तो मांग ही सकते हैं, जो आमतौर पर सभी सरकारी कर्मचारियों को मिलता है. किसी समय प्राइमरी स्कूल के टीचर और एक सिपाही के वेतन में महज एक रुपये का फर्क था, जो आज हजारों में है.

14 घंटे ऑन ड्यूटी, नहीं मिलता 'वीक ऑफ'
लखनऊ में तैनात एक कॉन्स्टेबल ने बताया कि हम 14 घंटे ऑन ड्यूटी रहते हैं. महकमे में 'वीक ऑफ' जैसी कोई व्यवस्था नहीं है. अवकाश न मिलने की वजह से शारीरिक व मानसिक थकान रहती है. आमतौर पर किसी भी सरकारी विभाग में कार्यत किसी भी व्यक्ति की ड्यूटी 8 घंटे की होती है, वहीं प्राइवेट संस्थानों में भी वर्किंग टाइम 8 से 9 घंटे के बीच की रहती है, लेकिन पुलिसकर्मियों को रोजाना 14 घंटे से ज्यादा ड्यूटी करनी पड़ती है. कोरोना काल में 140 से ज्यादा पुलिसकर्मियों की संक्रमण से मौत के बाद पुलिस महकमे की कार्यशैली को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. एक अधिकारी के मुताबिक, करीब 5 वर्ष पूर्व आईजी कानून-व्यवस्था ने पीएसी कर्मियों को आठ घंटे ड्यूटी का आदेश दिया था, जबकि पुलिस रेगुलेशन एक्ट में काम के घंटे निर्धारित नहीं हैं. इसके अलावा उन्हें छुट्टी हासिल करने के लिए काफी भागदौड़ करनी पड़ती है. पुलिस विभाग में त्योहार व अन्य विशेष मौकों पर छुट्टी रद्द करने का भी प्रावधान है. त्योहारों के समय एसएसपी ही खास परिस्थिति में किसी पुलिसकर्मी की छुट्टी स्वीकृत करते हैं.

नहीं टिक पाई वीक ऑफ की व्यवस्था
राजधानी लखनऊ में साल 2014 में गोमतीनगर थाने से पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश दिए जाने की व्यवस्था की थी. तब IIM (Indian Institute of Management) के प्रोफेसर भारत भाष्कर ने इस व्यवस्था पर शोध भी किया था. उन्होंने पाया था कि पुलिसकर्मी लगातार ड्यूटी की वजह से मानसिक व शारीरिक तनाव का सामना करते हैं. उनके काम के घंटे भी निर्धारित नहीं हैं. लिहाजा उन्हें साप्ताहिक अवकाश दिया जाना जरूरी है, लेकिन यह व्यवस्था कुछ समय बाद ही धराशायी हो गई थी.

सभी बिंदुओं पर शासन में चल रहा विचार
ADG लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार के मुताबिक, पुलिसकर्मियों की सभी मांगें शासन स्तर पर लंबित हैं. सभी मुद्दों पर विचार चल रहा है. बाकी पुलिसकर्मियों को नियमानुसार जरूरत पड़ने पर छुट्टी दी जाती है. चौकी प्रभारी की छुट्टी सीओ स्तर से और सिपाहियों को स्टेशन अफसर (SHO) स्तर से छुट्टी दी जाती है. बलरामपुर अस्पताल के मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. देवाशीष शुक्ला के मुताबिक लगातार ड्यूटी करने से शरीर की इम्युनिटी पॉवर कम हो जाती है. इससे ब्लड प्रेशर, हार्ट संबंधित समस्याएं बढ़ती हैं. इसलिए रेस्ट करना बेहद जरूरी है.

पढ़ेंः हेडमास्टर कर रहा था गंदी बात, गांववालों ने जूतों की माला पहनाकर घुमाया

लखनऊ : हमारी ड्यूटी का कोई निर्धारित समय नहीं है. वीक ऑफ जैसी व्यवस्था भी हमारे लिए नहीं है. सैलरी चपरासी से भी कम और काम का बोझ सबसे ज्यादा हम पर ही है. IPS की तरह गृह जनपद में हमारी तैनाती नहीं हो सकती. आंदोलन हम कर नहीं सकते, सीनियर अफसर सुनते नहीं, ऐसे में हम जाएं तो कहां जाएं. राज्य सरकार और मुख्यमंत्री से निवेदन ही कर सकते हैं कि वह हमारी इन बुनियादी जरूरतों पर भी ध्यान दें. ये दर्द सूबे की राजधानी लखनऊ में तैनात एक कॉन्स्टेबल का है. ये पीड़ा सिर्फ एक कॉन्स्टेबल की नहीं, बल्कि सूबे के पुलिस महकमे के सभी पुलिसकर्मियों की है. उत्तर प्रदेश के पुलिसकर्मियों ने साथियों की समस्याओं को लेकर आवाज बुलंद की है.

पुलिसकर्मियों ने विवादित 'बॉर्डर स्कीम' हटाने, सिपाहियों के लिए '2800 ग्रेड पे', ड्यूटी के फिक्स घंटे और 'वीक ऑफ' जैसी मांगों को लेकर उत्तर प्रदेश के नए DGP मुकुल गोयल को पत्र लिखकर गुहार लगाने का मन बनाया है. सिपाहियों का कहना है कि कम से कम इन बेसिक चीजों को सिपाहियों के लिए लागू किया जाए, जिससे वे भी मन लगाकर काम कर सकें और परिवार के साथ भी समय बिता सकें.

जानें विवादित 'बॉर्डर स्कीम'
बात दें कि विवादित 'बॉर्डर स्कीम' नॉन-गजेटेड कर्मचारियों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं है. साल 2010 में मायावती सरकार ने इसे लागू किया था, जिसके तहत किसी कॉन्स्टेबल, हेड कॉन्स्टेबल, दारोगा या इंस्पेक्टर को अपने गृह जनपद और उसकी सीमा से सटे किसी जिले में तैनाती नहीं मिल सकती है. साधारण शब्दों में कहें तो तैनाती वाले जिले और गृह जनपद के बीच एक जिला होना चाहिए. मार्च 2012 में अखिलेश यादव ने मुख्यमंत्री बनते ही इसे हटा दिया था. इससे पुलिसकर्मियों के चेहरे खिल उठे. कुछ महीनों के अंदर ही डिपार्टमेंट में सिपाहियों के खूब ट्रांसफर हुए. हालांकि यह राहत ज्यादा दिन नहीं रही और 2014 में अखिलेश सरकार ने बॉर्डर स्कीम को फिर से लागू कर दिया. इसके बाद से ही समय-समय पर पुलिसकर्मी इस स्कीम के खिलाफ दबी आवाज में विरोध करते रहते हैं, लेकिन खुलकर नहीं बोलते. कहा जाता है कि सिपाहियों की आत्महत्या जैसी घटनाओं में भी इस बॉर्डर स्कीम का ही हाथ है. इसीलिए महकमे में इसे 'हत्यारी बॉर्डर स्कीम' भी बोलते हैं.

IPS को छूट, सिपाहियों से कानून-व्यवस्था को खतरा
'बॉर्डर स्कीम' पर रिटायर्ड सिपाही ज्ञान प्रकाश का दर्द छलक गया. उनका कहना है कि IPS अफसरों के लिए छूट और सिपाहियों की तैनाती में कानून-व्यवस्था पर खतरा उत्पन्न हो जाता है. ये कैसी न्याय व्यवस्था है. उन्होंने आगे बताया कि घर से 200 किमी दूर पोस्टिंग होती है. इसके पीछे वजह यह दी जाती है कि हम घर के नजदीक रहकर कानून-व्यवस्था को प्रभावित कर सकते हैं, जबकि ऐसा नहीं है. राजस्थान में सिपाहियों को गृह जनपद में भी तैनात किया जाता है. वहां इसका कोई बुरा असर नहीं दिखा. कानून-व्यवस्था का तर्क उन ताकतवर IPS अधिकारियों पर क्यों नहीं लागू होता, जिन्हें अपने गृह जनपद और पड़ोसी जिलों में बतौर एसपी तैनात होने की छूट है?

'ग्रेड पे' 2000 से बढ़ाकर 2800 करें
सिपाहियों की मांग है कि उनका शुरुआती 'ग्रेड पे' 2,000 से बढ़ाकर 2,800 किया जाए. मौजूदा व्यवस्था के अनुसार, करीब 16 साल की सर्विस पूरी करने के बाद सिपाहियों को 2,800 ग्रेड पे मिल पाता है. इसमें सुधार किया जाना चाहिए. लखनऊ के एक सिपाही ने बताया कि हम समस्याओं को लेकर धरना/प्रदर्शन नहीं कर सकते, लेकिन अभिभावक जैसी सरकार और सीनियर अफसरों से वह तो मांग ही सकते हैं, जो आमतौर पर सभी सरकारी कर्मचारियों को मिलता है. किसी समय प्राइमरी स्कूल के टीचर और एक सिपाही के वेतन में महज एक रुपये का फर्क था, जो आज हजारों में है.

14 घंटे ऑन ड्यूटी, नहीं मिलता 'वीक ऑफ'
लखनऊ में तैनात एक कॉन्स्टेबल ने बताया कि हम 14 घंटे ऑन ड्यूटी रहते हैं. महकमे में 'वीक ऑफ' जैसी कोई व्यवस्था नहीं है. अवकाश न मिलने की वजह से शारीरिक व मानसिक थकान रहती है. आमतौर पर किसी भी सरकारी विभाग में कार्यत किसी भी व्यक्ति की ड्यूटी 8 घंटे की होती है, वहीं प्राइवेट संस्थानों में भी वर्किंग टाइम 8 से 9 घंटे के बीच की रहती है, लेकिन पुलिसकर्मियों को रोजाना 14 घंटे से ज्यादा ड्यूटी करनी पड़ती है. कोरोना काल में 140 से ज्यादा पुलिसकर्मियों की संक्रमण से मौत के बाद पुलिस महकमे की कार्यशैली को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं. एक अधिकारी के मुताबिक, करीब 5 वर्ष पूर्व आईजी कानून-व्यवस्था ने पीएसी कर्मियों को आठ घंटे ड्यूटी का आदेश दिया था, जबकि पुलिस रेगुलेशन एक्ट में काम के घंटे निर्धारित नहीं हैं. इसके अलावा उन्हें छुट्टी हासिल करने के लिए काफी भागदौड़ करनी पड़ती है. पुलिस विभाग में त्योहार व अन्य विशेष मौकों पर छुट्टी रद्द करने का भी प्रावधान है. त्योहारों के समय एसएसपी ही खास परिस्थिति में किसी पुलिसकर्मी की छुट्टी स्वीकृत करते हैं.

नहीं टिक पाई वीक ऑफ की व्यवस्था
राजधानी लखनऊ में साल 2014 में गोमतीनगर थाने से पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश दिए जाने की व्यवस्था की थी. तब IIM (Indian Institute of Management) के प्रोफेसर भारत भाष्कर ने इस व्यवस्था पर शोध भी किया था. उन्होंने पाया था कि पुलिसकर्मी लगातार ड्यूटी की वजह से मानसिक व शारीरिक तनाव का सामना करते हैं. उनके काम के घंटे भी निर्धारित नहीं हैं. लिहाजा उन्हें साप्ताहिक अवकाश दिया जाना जरूरी है, लेकिन यह व्यवस्था कुछ समय बाद ही धराशायी हो गई थी.

सभी बिंदुओं पर शासन में चल रहा विचार
ADG लॉ एंड ऑर्डर प्रशांत कुमार के मुताबिक, पुलिसकर्मियों की सभी मांगें शासन स्तर पर लंबित हैं. सभी मुद्दों पर विचार चल रहा है. बाकी पुलिसकर्मियों को नियमानुसार जरूरत पड़ने पर छुट्टी दी जाती है. चौकी प्रभारी की छुट्टी सीओ स्तर से और सिपाहियों को स्टेशन अफसर (SHO) स्तर से छुट्टी दी जाती है. बलरामपुर अस्पताल के मानसिक रोग विशेषज्ञ डॉ. देवाशीष शुक्ला के मुताबिक लगातार ड्यूटी करने से शरीर की इम्युनिटी पॉवर कम हो जाती है. इससे ब्लड प्रेशर, हार्ट संबंधित समस्याएं बढ़ती हैं. इसलिए रेस्ट करना बेहद जरूरी है.

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