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लाल बहादुर शास्त्री की 118वीं जयंती पर जीवन के अनछुए पल - 118th birth anniversary of lal bahadur shastri

भारत के इतिहास में दो अक्टूबर का विशेष महत्व है. 1904 को आज ही के दिन पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्म हुआ था. आज लाल बहादुर शास्त्री की 118वीं जयंती मनाई जा रही है. बता दें, उन्होंने वर्ष 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया था. Lal Bahadur Shastri Jayanti:

लाल बहादुर शास्त्री की 118वीं जयंती
लाल बहादुर शास्त्री कीलाल बहादुर शास्त्री की 118वीं जयंती
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Published : Oct 2, 2021, 7:36 AM IST

नई दिल्ली: दो अक्टूबर को गांधी जयंती के अलावा देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की भी जयंती (Lal Bahadur Shastri Jayanti) मनाई जाती है. शास्त्री का जन्म दो अक्टूबर, 1904 को हुआ था. उनकी सादगी और साहस से हर कोई परिचित है. बता दें कि वे 9 जून, 1964 को देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने थे.

शास्त्री जी की 118 जयंती के मौके पर पेश है उनकी कुछ विशेषताएं:

1- बचपन में तैरकर जाते थे स्कूल

शास्‍त्री जी बचपन में काफी शरारती हुआ करते थे. घर में लोग उन्हें नन्हे कहते थे. उन्हें गांव के बच्चों के साथ नदी में तैरना बहुत अच्छा लगता था. वे दोस्तों के साथ गंगा में तैरने भी जाते थे. बचपन में उन्होंने अपने साथ पढ़ने वाले एक दोस्‍त को डूबने से बचाया था. काशी के रामनगर के अपने पुश्तैनी घर से रोज माथे पर बस्ता और कपड़ा रखकर वे कई किलोमीटर लंबी गंगा को पार कर स्कूल जाते थे. हरिश्चन्द्र इंटर कॉलेज में पढ़ाई के दौरान वे अक्सर लेट पहुंचते थे और क्लास के बाहर खड़े होकर पूरे नोट्स बना लेते थे.

2-सरकारी संपत्ति का दुरुपयोग नहीं

लाल बहादुर शास्त्री के बेटे सुनील शास्त्री ने अपनी किताब 'लाल बहादुर शास्त्री, मेरे बाबूजी' में देश के पूर्व प्रधानमंत्री के जीवन से जुड़े कई आत्मीय प्रसंग साझा किए हैं. उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि उनके पिता सरकारी खर्चे पर मिली कार का प्रयोग नहीं करते थे. एक बार उन्होंने अपने पिता की कार चला ली तो उन्होंने किलोमीटर का हिसाब कर पैसा सरकारी खाते में जमा करवाया था.

3- गिफ्ट में नहीं ली महंगी साड़ी

शास्त्रीजी एक बार अपनी पत्नी और परिवार की अन्य महिलाओं के लिए साड़ी खरीदने गए थे. उस वक्त वह देश के प्रधानमंत्री भी थे, मिल मालिक ने उन्हें कुछ महंगी साड़ी दिखाई तो उन्होंने कहा कि उनके पास इन्हें खरीदने लायक पैसे नहीं हैं. मिल मालिक ने जब साड़ी गिफ्ट देनी चाही तो उन्होंने इसके लिए इनकार कर दिया था.

4- घर से हटवाया था सरकारी कूलर

शास्त्रीजी मन और कर्म से पूरे गांधीवादी थे. एक बार उनके घर पर सरकारी विभाग की तरफ से कूलर लगवाया गया. जब देश के पूर्व प्रधानमंत्री को इस बारे में पता चला तो उन्होंने परिवार से कहा, इलाहाबाद के पुश्तैनी घर में कूलर नहीं है. कभी धूप में निकलना पड़ सकता है. ऐसे आदतें बिगड़ जाएंगी. उन्होंने तुरंत सरकारी विभाग को फोन कर कूलर हटवा दिया.

5- ​रूमाल के लिए फटे कुर्ते का इस्तेमाल

शास्त्रीजी बहुत कम साधनों में अपना जीवन जीते थे. वह अपनी पत्नी को फटे हुए कुर्ते दे दिया करते थे. उन्हीं पुराने कुर्तों से रूमाल बनाकर उनकी पत्नी उन्हें प्रयोग के लिए देती थीं.

6-अकाल में एक दिन का व्रत

अकाल के दिनों में जब देश में भुखमरी आई तो शास्त्रीजी ने कहा कि देश का हर नागरिक एक दिन का व्रत करे तो भुखमरी खत्म हो जाएगी. खुद शास्त्रीजी नियमित व्रत रखा करते थे और परिवार को भी यही आदेश था.

7-​ मूल्यपरक शिक्षा पर जोर

शास्त्रीजी के बेटे सुनील शास्त्री कहते हैं, बाबूजी देश में शिक्षा सुधारों को लेकर बहुत चिंतित रहते थे. अक्सर हम भाई-बहनों से कहते थे कि देश में रोजगार के अवसर बढ़ें इसके लिए बेहतर मूल्यपरक शिक्षा की जरूरत है.

8- ​हरी घास से प्यार

पिता के संस्मरण पर लिखी किताब में शास्त्रीजी के बेटे सुनील शास्त्री ने बताया कि बाबूजी की टेबल पर हमेशा हरी घास रहती थी. एक बार उन्होंने बताया था कि सुंदर फूल लोगों को आकर्षित करते हैं, लेकिन कुछ दिन में मुरझाकर गिर जाते हैं. घास वह आधार है जो हमेशा रहती है. मैं लोगों के जीवन में घास की तरह ही एक आधार और खुशी की वजह बनकर रहना चाहता हूं.

नई दिल्ली: दो अक्टूबर को गांधी जयंती के अलावा देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की भी जयंती (Lal Bahadur Shastri Jayanti) मनाई जाती है. शास्त्री का जन्म दो अक्टूबर, 1904 को हुआ था. उनकी सादगी और साहस से हर कोई परिचित है. बता दें कि वे 9 जून, 1964 को देश के दूसरे प्रधानमंत्री बने थे.

शास्त्री जी की 118 जयंती के मौके पर पेश है उनकी कुछ विशेषताएं:

1- बचपन में तैरकर जाते थे स्कूल

शास्‍त्री जी बचपन में काफी शरारती हुआ करते थे. घर में लोग उन्हें नन्हे कहते थे. उन्हें गांव के बच्चों के साथ नदी में तैरना बहुत अच्छा लगता था. वे दोस्तों के साथ गंगा में तैरने भी जाते थे. बचपन में उन्होंने अपने साथ पढ़ने वाले एक दोस्‍त को डूबने से बचाया था. काशी के रामनगर के अपने पुश्तैनी घर से रोज माथे पर बस्ता और कपड़ा रखकर वे कई किलोमीटर लंबी गंगा को पार कर स्कूल जाते थे. हरिश्चन्द्र इंटर कॉलेज में पढ़ाई के दौरान वे अक्सर लेट पहुंचते थे और क्लास के बाहर खड़े होकर पूरे नोट्स बना लेते थे.

2-सरकारी संपत्ति का दुरुपयोग नहीं

लाल बहादुर शास्त्री के बेटे सुनील शास्त्री ने अपनी किताब 'लाल बहादुर शास्त्री, मेरे बाबूजी' में देश के पूर्व प्रधानमंत्री के जीवन से जुड़े कई आत्मीय प्रसंग साझा किए हैं. उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि उनके पिता सरकारी खर्चे पर मिली कार का प्रयोग नहीं करते थे. एक बार उन्होंने अपने पिता की कार चला ली तो उन्होंने किलोमीटर का हिसाब कर पैसा सरकारी खाते में जमा करवाया था.

3- गिफ्ट में नहीं ली महंगी साड़ी

शास्त्रीजी एक बार अपनी पत्नी और परिवार की अन्य महिलाओं के लिए साड़ी खरीदने गए थे. उस वक्त वह देश के प्रधानमंत्री भी थे, मिल मालिक ने उन्हें कुछ महंगी साड़ी दिखाई तो उन्होंने कहा कि उनके पास इन्हें खरीदने लायक पैसे नहीं हैं. मिल मालिक ने जब साड़ी गिफ्ट देनी चाही तो उन्होंने इसके लिए इनकार कर दिया था.

4- घर से हटवाया था सरकारी कूलर

शास्त्रीजी मन और कर्म से पूरे गांधीवादी थे. एक बार उनके घर पर सरकारी विभाग की तरफ से कूलर लगवाया गया. जब देश के पूर्व प्रधानमंत्री को इस बारे में पता चला तो उन्होंने परिवार से कहा, इलाहाबाद के पुश्तैनी घर में कूलर नहीं है. कभी धूप में निकलना पड़ सकता है. ऐसे आदतें बिगड़ जाएंगी. उन्होंने तुरंत सरकारी विभाग को फोन कर कूलर हटवा दिया.

5- ​रूमाल के लिए फटे कुर्ते का इस्तेमाल

शास्त्रीजी बहुत कम साधनों में अपना जीवन जीते थे. वह अपनी पत्नी को फटे हुए कुर्ते दे दिया करते थे. उन्हीं पुराने कुर्तों से रूमाल बनाकर उनकी पत्नी उन्हें प्रयोग के लिए देती थीं.

6-अकाल में एक दिन का व्रत

अकाल के दिनों में जब देश में भुखमरी आई तो शास्त्रीजी ने कहा कि देश का हर नागरिक एक दिन का व्रत करे तो भुखमरी खत्म हो जाएगी. खुद शास्त्रीजी नियमित व्रत रखा करते थे और परिवार को भी यही आदेश था.

7-​ मूल्यपरक शिक्षा पर जोर

शास्त्रीजी के बेटे सुनील शास्त्री कहते हैं, बाबूजी देश में शिक्षा सुधारों को लेकर बहुत चिंतित रहते थे. अक्सर हम भाई-बहनों से कहते थे कि देश में रोजगार के अवसर बढ़ें इसके लिए बेहतर मूल्यपरक शिक्षा की जरूरत है.

8- ​हरी घास से प्यार

पिता के संस्मरण पर लिखी किताब में शास्त्रीजी के बेटे सुनील शास्त्री ने बताया कि बाबूजी की टेबल पर हमेशा हरी घास रहती थी. एक बार उन्होंने बताया था कि सुंदर फूल लोगों को आकर्षित करते हैं, लेकिन कुछ दिन में मुरझाकर गिर जाते हैं. घास वह आधार है जो हमेशा रहती है. मैं लोगों के जीवन में घास की तरह ही एक आधार और खुशी की वजह बनकर रहना चाहता हूं.

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