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बाबा बैद्यनाथ धाम : मोर के मुकुट से होता है भोले का श्रृंगार, इस गांव में होता है तैयार

देवघर के बाबा मंदिर में शिवरात्रि के दिन एक अनूठी परंपरा निभाई जाती है. इस दिन यहां बाबा भोले को मोर का मुकुट चढ़ाया जाता है, जिसे आम बोलचाल की भाषा में शेहरा भी कहा जाता है. इसकी कुछ खासियत भी है.

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Published : Mar 10, 2021, 9:08 PM IST

देवघर : कोरोना काल के बाद एक तरफ जहां शिवरात्रि की धूम है. वहीं, दूसरी तरफ शिव बारात न निकलने से लोगों में नाराजगी भी है. देवघर को जिस प्रकार परंपराओं की नगरी कहा जाता है. ठीक उसी प्रकार यह रीति रिवाज में भी अन्य मंदिरों से भिन्न है.

शिवरात्रि के दिन मोर मुकुट की डिमांड

देवघर के बाबा मंदिर में एक अनूठी परंपरा निभाई जाती है. यहां शिवरात्रि के दिन बाबा भोले पर मोर का मुकुट चढ़ाया जाता है, जिसे आम बोलचाल की भाषा में शेहरा भी कहा जाता है. बाबा भोले पर मोर मुकुट चढ़ाने का बहुत ही प्राचीन परंपरा रही है. कन्याओं की शादी की मनोकामना पूरी करने के लिए इस दिन बाबा भोले पर मोर मुकुट चढ़ाया जाता है. जब मनोकामना पूरी हो जाती है या नई-नई शादी होती है, तो बाबा को मुकुट चढ़ाने की परंपरा रही है. ऐसे में शिवरात्रि के दिन मोर मुकुट का डिमांड काफी रहता है.

बाबा बैद्यनाथ धाम
आज भी बरकरार है प्राचीन परंपरा देवघर से 7 किलोमीटर दूर बसा रोहिणी ग्राम इस मोर मुकुट के लिए प्रसिद्ध है. जानकर बताते हैं कि रोहिणी घटवाल द्वारा से बाबा भोले को मुकुट चढ़ाया जाता है. जिसे यहां के मालाकार परिवार सदियों से बनाते आ रहे है, जो पूरी शुद्धता के साथ बनता है. रोहिणी गांव देवघर का सबसे पुराना गांव माना जाता है और यह परंपरा मालाकार परिवार की ओर से आज भी निभाई जा रही है.

बाबा भोले पर चढ़ने वाले शेहरा बांस, रंगीन कागज, सोनाठी, से कई दिनों की मेहनत से तैयार किया जाता है. सबसे बड़ा मुकुट बाबा भोले के लिए होता है और छोटे-छोटे मुखौटे आम लोगों के लिए होते हैं, जिसे खरीदकर भक्त बाबा भोले पर चढ़ाते हैं. बाबा भोले पर मोर मुकुट की यह प्राचीन परंपरा रोहिणी ग्राम में आज भी बरकरार है.

देवघर : कोरोना काल के बाद एक तरफ जहां शिवरात्रि की धूम है. वहीं, दूसरी तरफ शिव बारात न निकलने से लोगों में नाराजगी भी है. देवघर को जिस प्रकार परंपराओं की नगरी कहा जाता है. ठीक उसी प्रकार यह रीति रिवाज में भी अन्य मंदिरों से भिन्न है.

शिवरात्रि के दिन मोर मुकुट की डिमांड

देवघर के बाबा मंदिर में एक अनूठी परंपरा निभाई जाती है. यहां शिवरात्रि के दिन बाबा भोले पर मोर का मुकुट चढ़ाया जाता है, जिसे आम बोलचाल की भाषा में शेहरा भी कहा जाता है. बाबा भोले पर मोर मुकुट चढ़ाने का बहुत ही प्राचीन परंपरा रही है. कन्याओं की शादी की मनोकामना पूरी करने के लिए इस दिन बाबा भोले पर मोर मुकुट चढ़ाया जाता है. जब मनोकामना पूरी हो जाती है या नई-नई शादी होती है, तो बाबा को मुकुट चढ़ाने की परंपरा रही है. ऐसे में शिवरात्रि के दिन मोर मुकुट का डिमांड काफी रहता है.

बाबा बैद्यनाथ धाम
आज भी बरकरार है प्राचीन परंपरा देवघर से 7 किलोमीटर दूर बसा रोहिणी ग्राम इस मोर मुकुट के लिए प्रसिद्ध है. जानकर बताते हैं कि रोहिणी घटवाल द्वारा से बाबा भोले को मुकुट चढ़ाया जाता है. जिसे यहां के मालाकार परिवार सदियों से बनाते आ रहे है, जो पूरी शुद्धता के साथ बनता है. रोहिणी गांव देवघर का सबसे पुराना गांव माना जाता है और यह परंपरा मालाकार परिवार की ओर से आज भी निभाई जा रही है.

बाबा भोले पर चढ़ने वाले शेहरा बांस, रंगीन कागज, सोनाठी, से कई दिनों की मेहनत से तैयार किया जाता है. सबसे बड़ा मुकुट बाबा भोले के लिए होता है और छोटे-छोटे मुखौटे आम लोगों के लिए होते हैं, जिसे खरीदकर भक्त बाबा भोले पर चढ़ाते हैं. बाबा भोले पर मोर मुकुट की यह प्राचीन परंपरा रोहिणी ग्राम में आज भी बरकरार है.

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