नई दिल्ली : कोई भी जाति या समुदाय अपनी मर्जी से अपने पैतृक इलाके को छोड़कर विस्थापित नहीं होता है, हालात उन्हें अपनी जमीन से दर-ब-दर कर देते हैं. पिछले कई साल से दुनिया भर में हो रहे युद्ध के साथ रूस और यूक्रेन के बीच लड़ाई के कारण अब तक 100 मिलियन लोगों को अपनी जड़ों को छोड़कर विस्थापित होना पड़ा. इसे यूं समझिए कि यूक्रेन में चल रहे संघर्ष, हिंसा, मानवाधिकारों के उल्लंघन और उत्पीड़न के कारण 10 करोड़ लोग आधिकारिक तौर से विस्थापित शरणार्थी बन चुके हैं. आज तक के इतिहास में यह संख्या अपने आप में रेकॉर्ड है. शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (UNHCR) की रिपोर्ट के अनुसार, यह तादाद दुनिया की आबादी का 1 प्रतिशत से अधिक है.
दुनिया के अग्रणी थिंक-टैंकों में से एक स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट (SIPRI) ने भी सोमवार को एक रिपोर्ट जारी की. इस रिपोर्ट में भी चेतावनी दी गई थी कि दुनिया अचानक आने वाली चुनौतियों और अप्रत्याशित जोखिमों से निपटने में विफल रही है. इससे शांति के प्रयासों को नुकसान हुआ है. SIPRI के अनुसार, पर्यावरण और सुरक्षा संकट एक साथ आते हैं और तेज होते हैं, जिससे बचान के उपाय किए जाने जरूरी हैं. शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (UNHCR) की रिपोर्ट में यह बताया गया कि विस्थापन के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब दस करोड़ लोगों को अपना देश छोड़ना पड़ा हो. अगर इस आबादी की तुलना की जाए तो यह सामने आएगा इतनी आबादी से इजिप्ट जैसे नए देश को बसाया जा सकता है. चिंता का विषय यह है कि अभी भी विस्थापितों की संख्या ही बढ़ती जा रही है.
शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र के उच्चायुक्त फ़िलिपो ग्रांडी ने कहा कि 100 मिलियन का आंकड़ा चिंताजनक है, यह मानवता के लिए चेतावनी भी है. यह एक ऐसा रिकॉर्ड है, जिसे कभी नहीं बनाया जाना चाहिए था. अब विनाशकारी संघर्षों को रोकने, उत्पीड़न को समाप्त करने और निर्दोष लोगों को अपने घरों से भागने के लिए मजबूर करने वाले कारणों का समाधान ढूंढने का वक्त आ गया है. यूएनएचसीआर (UNHCR) की रिपोर्ट के अनुसार 2021 के अंत तक इथियोपिया, बुर्किना फासो, म्यांमार, नाइजीरिया, अफगानिस्तान और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में लड़ाई के कारण विस्थापितों की संख्या 90 मिलियन के पार पहुंच गई थी.
थिंक टैंक SIPRI की रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया में सुरक्षा और पर्यावरण में गहराते दोहरे संकटों के बीच एक ब्लैक होल खींचा जा रहा है. यूरोप में यह युद्ध कोविड -19 महामारी की चुनौतियों के बीच जारी है. एक दशक पहले की तुलना में दुनिया भर में संघर्ष बढ़े हैं और सभी देश हथियोरों पर अधिक खर्च कर रहे हैं. युद्ध के कारण दुनिया भर में मौतों और विस्थापित लोगों की संख्या में वृद्धि हुई है. SIPRI का दावा है कि इसका असर पर्यावरण पर भी पड़ा है. थिंक टैंक ने इसे मौसम चक्र में बदलाव, समुद्र के जलस्तर में बढ़ोतरी, पानी की उपलब्धता में कमी, परागण करने वाले कीड़ों की संख्या में गिरावट, प्लास्टिक प्रदूषण, मर रहे कोरल रीफ और सिकुड़ते जंगलों के रूप में वर्गीकृत किया है.
SIPRI की रिपोर्ट के अनुसार, 2010 के दौरान दुनिया भर में 30 देशों में सशस्त्र संघर्ष चल रहे थे. 2010 और 2020 के बीच ऐसे संघर्षों की संख्या लगभग दोगुनी यानी 56 हो गई. इस कारण मौतों की संख्या में भी इजाफा हुआ. साथ ही विस्थापित आबादी की तादाद भी दोगुनी हो गई. 2020 के दौरान विस्थापित नागरिकों की संख्या 82.4 मिलियन थी, जो 2010 में 41 मिलियन का दोगुना है. दिलचस्प यह है कि पिछले एक दशक के दौरान अधिकतर देशों में आंतरिक संघर्ष हुए. इराक, लीबिया, सीरिया और यमन का संघर्ष देशों के बीच हुआ.
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