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कभी ठेकेदारी की वजह से गई थी विधायकी, आज उसी नेता ने बचाई बसपा की लाज

यूपी विधानसभा चुनाव के पर‍िणाम आ गए हैं. सत्‍ताधारी पार्टी बीजेपी (BJP) को जनता ने एक बार फिर पूर्ण बहुमत दे दिया है. भाजपा को 255 जबकि सपा को 111 सीटें मिली हैं.कांग्रेस को दो सीटें ही मिली है जबकि किसी तरह बीएसपी ने भी मात्र एक सीट जीत कर खाता खोल ही लिया. बल‍िया की रसड़ा सीट से जीत कर बसपा की लाज बचाने वाला ये विधायक है कौन?

umashankar singh
उमाशंकर सिंह (फाइल फोटो)
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Published : Mar 11, 2022, 6:16 PM IST

लखनऊ: उत्‍तर प्रदेश चुनाव 2022 में बसपा मात्र एक सीट ही जीत पाई. बल‍िया की रसड़ा विधानसभा सीट से मौजूदा विधायक और बसपा विधानमंडल दल के नेता उमाशंकर सिंह ने यह सीट जीती. वे जीतने वाले बसपा के एक मात्र उम्‍मीदवार हैं. उमाशंकर बलिया के रसड़ा विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं और लगातार दो बार, 2012, 2017 में जीत दर्ज कर चुके हैं. वे ठेकेदार भी हैं और संपत्‍त‍ि के मामले में उनका नाम प्रदेश के टॉप 10 विधायकों में आता है.

ठेकेदारी के कारण रद्द को चुकी है विधानसभा सदस्‍यता
उमाशंकर सिंह पहली बार बसपा के टिकट पर 2012 में रसड़ा विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए थे. 2017 में भी बसपा ने उन्‍हें टिकट दिया और इस बार भाजपा की लहर होने के बाद भी जीतने में कामयाब रहे. उत्‍तर प्रदेश के दूसरे छोर पर स्थि‍त बलिया में उनकी अच्‍छी पैठ है. 2012 में जब वे विधायक चुने गए तब उनके खिलाफ एडवोकेट सुभाष चंद्र सिंह ने 18 दिसंबर, 2013 को शपथ पत्र देकर लोकायुक्त संगठन में शिकायत की थी कि वे विधायक होने के बाद भी लोक निर्माण विभाग से सरकारी ठेके लेकर सड़क निर्माण का कार्य कर रहे हैं. मामले की जांच तत्‍कालीन लोकायुक्‍त न्यायमूर्ति एन के मेहरोत्रा ने की.

जब उमाशंकर दोषी पाए गए थे
18 फरवरी 2014 को जांच रिपोर्ट मुख्‍यमंत्री को भेजी गई. मुख्‍यमंत्री ने 19 मार्च 2014 को प्रकरण चुनाव आयोग के परामर्श के लिए राज्‍यपाल को भेजा. तत्कालीन राज्यपाल ने यह प्रकरण तीन अप्रैल 2014 को चुनाव आयोग को भेज दिया. चुनाव आयोग से तीन जनवरी 2015 को अभिमत प्राप्त होने पर उमाशंकर सिंह ने राज्यपाल राम नाईक के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए समय मांगा. राज्यपाल ने 16 जनवरी 2015 को उनका पक्ष सुना.

ये भी पढ़ें - न सियासी सूरमा चले न दलबदलू हुए कामयाब, वोटों की आंधी में कई दिग्गज हुए साफ

राज्यपाल ने उमाशंकर सिंह के खिलाफ लगे आरोपों को सही पाते हुए 29 जनवरी 2015 को उन्हें विधान सभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया. इस फैसले के खिलाफ उमाशंकर हाईकोर्ट गए. 28 मई 2016 को हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को प्रकरण में खुद जांच कर राज्यपाल को अवगत कराने का आदेश दिया. इसके बाद 14 जनवरी 2017 को उनकी विधायकी खत्म कर दी गई. इसी साल विधानसभा चुनाव होते हैं और वे बसपा से एक बार फिर विधायक चुने जाते हैं.

छात्र जीवन से ही राजनीत‍ि कर रहे उमाशंकर

उमाशंकर को अपने विधानसभा क्षेत्र में फ्री वाई-फाई उपलब्‍ध कराने के लिए भी जाना जाता है. वे छात्र जीवन से ही राजनीत‍ि में हैं. बलिया के एए सी कॉलेज से वे पहली बार 1990-91 में छात्रसंघ के महामंत्री निर्वाचित हुए थे. इसके बाद 2000 में वे जिला पंचायत अध्‍यक्ष बने. प्रदेश की राजनीत‍ि में आने से पहले उन्‍होंने ठेकेदारी में हाथ आजमाया जिसमें वे काफी सफल रहे. दूसरी बार साल 2017 में भाजपा की लहर में भी उमाशंकर को जीत मिली. एडीआर (एसोसिएशन आफ डेमोक्रेटिक रिफार्म) की ओर से उत्‍तर प्रदेश के करोड़पति विधायकों की सूची में उमाशंकर टॉप-टेन विधायकों में शामिल हैं.

लखनऊ: उत्‍तर प्रदेश चुनाव 2022 में बसपा मात्र एक सीट ही जीत पाई. बल‍िया की रसड़ा विधानसभा सीट से मौजूदा विधायक और बसपा विधानमंडल दल के नेता उमाशंकर सिंह ने यह सीट जीती. वे जीतने वाले बसपा के एक मात्र उम्‍मीदवार हैं. उमाशंकर बलिया के रसड़ा विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं और लगातार दो बार, 2012, 2017 में जीत दर्ज कर चुके हैं. वे ठेकेदार भी हैं और संपत्‍त‍ि के मामले में उनका नाम प्रदेश के टॉप 10 विधायकों में आता है.

ठेकेदारी के कारण रद्द को चुकी है विधानसभा सदस्‍यता
उमाशंकर सिंह पहली बार बसपा के टिकट पर 2012 में रसड़ा विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए थे. 2017 में भी बसपा ने उन्‍हें टिकट दिया और इस बार भाजपा की लहर होने के बाद भी जीतने में कामयाब रहे. उत्‍तर प्रदेश के दूसरे छोर पर स्थि‍त बलिया में उनकी अच्‍छी पैठ है. 2012 में जब वे विधायक चुने गए तब उनके खिलाफ एडवोकेट सुभाष चंद्र सिंह ने 18 दिसंबर, 2013 को शपथ पत्र देकर लोकायुक्त संगठन में शिकायत की थी कि वे विधायक होने के बाद भी लोक निर्माण विभाग से सरकारी ठेके लेकर सड़क निर्माण का कार्य कर रहे हैं. मामले की जांच तत्‍कालीन लोकायुक्‍त न्यायमूर्ति एन के मेहरोत्रा ने की.

जब उमाशंकर दोषी पाए गए थे
18 फरवरी 2014 को जांच रिपोर्ट मुख्‍यमंत्री को भेजी गई. मुख्‍यमंत्री ने 19 मार्च 2014 को प्रकरण चुनाव आयोग के परामर्श के लिए राज्‍यपाल को भेजा. तत्कालीन राज्यपाल ने यह प्रकरण तीन अप्रैल 2014 को चुनाव आयोग को भेज दिया. चुनाव आयोग से तीन जनवरी 2015 को अभिमत प्राप्त होने पर उमाशंकर सिंह ने राज्यपाल राम नाईक के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत करने के लिए समय मांगा. राज्यपाल ने 16 जनवरी 2015 को उनका पक्ष सुना.

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राज्यपाल ने उमाशंकर सिंह के खिलाफ लगे आरोपों को सही पाते हुए 29 जनवरी 2015 को उन्हें विधान सभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया. इस फैसले के खिलाफ उमाशंकर हाईकोर्ट गए. 28 मई 2016 को हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को प्रकरण में खुद जांच कर राज्यपाल को अवगत कराने का आदेश दिया. इसके बाद 14 जनवरी 2017 को उनकी विधायकी खत्म कर दी गई. इसी साल विधानसभा चुनाव होते हैं और वे बसपा से एक बार फिर विधायक चुने जाते हैं.

छात्र जीवन से ही राजनीत‍ि कर रहे उमाशंकर

उमाशंकर को अपने विधानसभा क्षेत्र में फ्री वाई-फाई उपलब्‍ध कराने के लिए भी जाना जाता है. वे छात्र जीवन से ही राजनीत‍ि में हैं. बलिया के एए सी कॉलेज से वे पहली बार 1990-91 में छात्रसंघ के महामंत्री निर्वाचित हुए थे. इसके बाद 2000 में वे जिला पंचायत अध्‍यक्ष बने. प्रदेश की राजनीत‍ि में आने से पहले उन्‍होंने ठेकेदारी में हाथ आजमाया जिसमें वे काफी सफल रहे. दूसरी बार साल 2017 में भाजपा की लहर में भी उमाशंकर को जीत मिली. एडीआर (एसोसिएशन आफ डेमोक्रेटिक रिफार्म) की ओर से उत्‍तर प्रदेश के करोड़पति विधायकों की सूची में उमाशंकर टॉप-टेन विधायकों में शामिल हैं.

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