पटना: 27 अप्रैल को जिस जी कृष्णैया हत्याकांड में आनंद मोहन की सहरसा जेल से 15 साल बाद रिहाई हुई थी, उस दिवंगत आईएएस की पत्नी उमा कृष्णैया ने इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. अपनी याचिका में उन्होंने कहा कि आनंद मोहन की उम्रकैद की सजा का मतलब जीवनभर के लिए कारावास है. अर्थात उनको आखिरी सांस तक जेल में रखा जाए. उमा ने कहा कि आजीवन कारावास में 14 साल की व्याख्या नहीं हो सकती है. ऐसे में बड़ा सवाल है कि क्या आनंद मोहन फिर जेल जा सकते हैं?
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क्या आनंद मोहन फिर जाएंगे जेल?: उमा कृष्णैया की याचिका के बाद सवाल उठने लगे हैं कि क्या आनंद मोहन को फिर से जेल जाना पड़ेगा? इस प्रश्न पर पटना हाई कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रभात भारद्वाज का कहना है कि आनंद मोहन की रिहाई की प्रक्रिया 2021 में ही शुरू हुई थी. इस बाबत सहरसा से तत्कालीन एसपी से मंतव्य मांगा गया था और उन्होंने लिखकर सरकार को दिया था कि इनकी रिहाई से समाज पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा. उसके बाद सहरसा कोर्ट से भी इसी तरह का आदेश आया. रिहाई की प्रक्रिया तेज हुई पर लोक सेवक की हत्या के मामले को लेकर वर्ष 2012 का कानून आड़े आ रहा था. सरकार ने इस कानून कानून को हटाने में करीब दो साल लगाया है. लिहाजा 2023 में आनंद मोहन की रिहाई हुई. हालांकि सरकार का कानूनी पक्ष मजबूत है लेकिन सुप्रीम कोर्ट को ये पूरा अधिकार है कि वह आनंद मोहन की रिहाई को समाज पर पड़ने वाला प्रभाव के एंगल से देखें.
"देखिये आनंद मोहन की रिहाई की प्रक्रिया 2021 में ही शुरू हुई थी. इस मामले में सरकार का पक्ष भी मजबूत है लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले को आनंद मोहन की रिहाई से समाज पर पड़ने वाला प्रभाव के एंगल से देखकर आदेश दे सकता है. सुप्रीम कोर्ट का आदेश सर्वोपरि है"- प्रभात भारद्वाज, अधिवक्ता, पटना हाईकोर्ट
बिहार सरकार का पक्ष मजबूत, लेकिन.. : उधर, पटना सिविल कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता पीके तिवारी कहना है कि जो कानून सरकार की ओर से लाया गया था, उसी को हटाया गया है. ऐसे में आनंद मोहन सहित 26 अभियुक्तों की रिहाई हुई है. मामला सुप्रीम कोर्ट में है. सर्वोच्च न्यायालय तमाम बिंदुओं पर गौर कुछ भी निर्णय दे सकता है लेकिन सरकार के पक्ष रखने वाले वकील भी सरकारी पक्ष रखते हुए कुछ भी 2012 के कानून को हटाने के सरकार के अधिकार का हवाला देकर बहस करेंगे.
"आनंद मोहन के जेल जाने के बाद राज्य सरकार ने जिस कानून को बनाया था, उसी को अब समाप्त किया गया है. ऐसे में सरकार का पक्ष अपनी जगह मजबूत है. हालांकि कुछ मामलों में सुप्रीम कोर्ट विवेक के आधार पर भी कभी-कभी निर्णय लिए जाते हैं. लिहाजा जब तक फैसला न आ जाए, कुछ भी कहना मुश्किल है"- पीके तिवारी, वरिष्ठ अधिवक्ता, पटना सिविल कोर्ट
उमा कृष्णैया ने याचिका में क्या कहा?: दिवंगत आईएएस जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया ने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा, 'मौत की सजा को लेकर कोर्ट का निर्देश है कि दोषी को आजीवन जेल में रहना होगा, लिहाजा इस निर्देश का सख्ती से पालन होना चाहिए. जब मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदला जाता है, तब अदालत के आजीवन कारावास की सजा का कड़ाई से पालन होना चाहिए.'
जेल नियमों में संशोधन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती: उमा कृष्णैया ने याचिका में तर्क दिया है कि बिहार जेल नियमावली 2012 के नियम 481 (1) (सी) में प्रावधान है कि जिन दोषियों की मौत की सजा को उम्रकैद में बदला गया है, वह 20 साल की सजा पूरी करने के बाद ही किसी प्रकार की छूट का पात्र होगा. आनंद मोहन को 5 अक्टूबर 2007 की मौत की सजा मिली थी. इस हिसाब से वह केवल 14 साल ही जेल में रहे हैं. लिहाजा उनकी रिहाई नहीं हो सकती थी लेकिन बिहार सरकार ने बिहार कारा हस्तक 2012 के नियम 481 (i) में संशोधन कर रिहाई दे दी.
डीएम जी कृष्णैया हत्याकांड में आनंद मोहन को उम्रकैद: आनंद मोहन को डीएम जी कृष्णैया का हत्या में उम्रकैद की सजा मिली थी. उन पर आरोप है कि 5 दिसंबर 1994 को बिहार के मुजफ्फरपुर में जिस भीड़ ने कृष्णैया की बेरहमी से हत्या कर दी थी, उसकी अगुवाई पूर्व सांसद आनंद मोहन ने की थी. इस मामले में उनको 2007 में निचली अदालत से फांसी की सजा मिली थी लेकिन 2008 में पटना हाईकोर्ट ने इसे उम्रकैद में बदल दिया था. बाद में साल 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने भी उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखा था. कृष्णैया गोपलगंज के जिलाधिकारी थे और मुजफ्फरपुर से होकर गुजर रहे थे. वह तेलंगाना (तब आध्र प्रदेश) के रहने वाले थे. वह दलित परिवार से ताल्लुक रखते थे.