नयी दिल्ली : विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) उच्च शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ने वाले अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अल्पसंख्यक समुदायों के छात्रों से संबंधित अपने नियमों में बदलाव करने के लिए तैयार है और उसने एक समिति गठित की है, जो इन छात्रों से होने वाले भेदभाव को रोकने के लिए उपचारात्मक कदम सुझाएगी. अधिकारियों ने यह जानकारी दी.
यह कदम तब उठाया गया है, जब उच्चतम न्यायालय ने पिछले महीने उच्च शिक्षण संस्थानों में वंचित समुदायों के छात्रों की मौत को ‘संवदेनशील मुद्दा’ बताते हुए इस पर ‘लीक से हटकर सोचने’’ की आवश्यकता पर बल दिया था.
यूजीसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘उच्च शिक्षण संस्थानों में एससी, एसटी, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), पीडब्ल्यूडी और अल्पसंख्यक समुदायों से जुड़े यूजीसी के नियमों एवं योजनाओं में बदलाव लाने तथा विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में एससी तथा एसटी छात्रों के लिए गैर-भेदभाव वाला माहौल सुनिश्चित करने के वास्ते उपचारात्मक कदम उठाने के लिए एक विशेषज्ञ समिति गठित की गई है.’
आयोग ने 2012 में यूजीसी (उच्च शिक्षण संस्थानों में समानता को बढ़ावा देना) नियम जारी किए थे. इन नियमों में सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में दाखिले के मामले में एससी और एसटी समुदाय के किसी भी छात्र से भेदभाव न करने का प्रावधान है। इसमें इन संस्थानों में जाति, नस्ल, धर्म, भाषा, लिंग या शारीरिक अक्षमता के आधार पर किसी भी छात्र का उत्पीड़न रोकने तथा ऐसा करने वाले लोगों व प्राधिकारियों को दंडित करने का भी प्रावधान है.
यूजीसी ने इस साल अप्रैल में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग तथा महिला प्रतिनिधियों को छात्र शिकायत निवारण समितियों का अध्यक्ष या सदस्य नियुक्त करना अनिवार्य कर दिया था. एससी और एसटी समुदाय के छात्रों की आत्महत्या के मामले उच्च शिक्षण संस्थानों में इन समुदायों के खिलाफ कथित भेदभाव को लेकर चिंता बढ़ा रहे हैं.
उच्चतम न्यायालय की न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश की पीठ ने शैक्षणिक संस्थानों में कथित तौर पर जाति-आधारित भेदभाव के कारण आत्महत्या करने वाले रोहित वेमुला और पायल तडवी की माताओं की ओर से दाखिल याचिका पर यूजीसी से इस दिशा में उठाए गए कदमों का विवरण मांगा है.
(पीटीआई-भाषा)