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असम एनआरसी के दो साल: फिर से सत्यापन कराने की प्रक्रिया को लेकर अनिश्चतता

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Published : Sep 1, 2021, 5:16 AM IST

जिन लोगों को अद्यतन सूची में जगह नहीं मिली वे इस बात के लिए दर दर भटक रहे हैं कि कैसे सूची में उनके नाम शामिल हो जाएं लेकिन उनपर अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं.

असम एनआरसी के दो साल
असम एनआरसी के दो साल

गुवाहाटी: असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजी के मसौदे के प्रकाशन के आज दो साल हो गये किंतु वास्तविक नामों के छूट जाने पर काफी शोर मचने के बाद भी इस सूची में संशोधन के प्रयासों में प्रगति नहीं हुई है तथा दस्तावेजों के फिर से सत्यापन की मांग अब तक उच्चतम न्यायालय के समक्ष लंबित है. राष्ट्रीय नागरिक पंजी असम संधि के प्रावधानों के अनुसार तैयार की गयी थी और उसमें देश के असल नागरिकों के नाम हैं. प्रारंभिक दस्तावेज 1951 में बनाया गया था जो स्वतंत्र भारत की पहली जनगणना पर आधारित था.

जिन लोगों को अद्यतन सूची में जगह नहीं मिली वे इस बात के लिए दर दर भटक रहे हैं कि कैसे सूची में उनके नाम शामिल हो जाएं लेकिन उनपर अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं. मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा से जब एनआरसी मसौदे पर लोगों की चिंता के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बस इतना कहा कि मामला उच्चतम न्यायालय में लंबित है इसलिए मैं इस पर टिप्पणी नहीं करूंगा. सरमा ने 10 मई को अपना पदभार ग्रहण करने पर कहा था कि उनकी सरकार सीमावर्ती जिलों में नामों का 20 प्रतिशत और बाकी जिलों में 10 प्रतिशत सत्यापन चाहती है.

उन्होंने तब कहा था कि यदि सामने आयी त्रुटि नगण्य है तो हम वर्तमान एनआरसी के साथ आगे बढ़ सकते हैं. यदि पुनर्सत्यापन के दौरान बड़ी विसंगतियां पायी जाती हैं तो मुझे आशा है कि अदालत उसका संज्ञान लेगी और नये परिप्रेक्ष्य के हिसाब से जरूरी कदम उठायेगी. कई लोगों ने दावा किया कि उच्चतम न्यायालय की निगरानी में सूची को अद्यतन करने के लिए की गयी कवायद 'त्रुटिपूर्ण' रही जिसके बाद पीडि़तों को विदेशी न्यायाधिकरणों में जाने को कहा गया है, लेकिन न्यायाधिकरण के लिए जरूरी अस्वीकृति पर्ची अबतक जारी नहीं की गयी है. भारत के महापंजीयक से अंतिम मसौदा प्रकाशित होना भी अभी बाकी है.

राज्य के एनआरसी समन्वयक हितेश देव सरमा ने इस साल मई में उच्चतम न्यायालय में आवेदन देकर सूची के निश्चित समयसीमा के अंदर पुनर्सत्यापन का अनुरोध किया था क्योंकि 'इस प्रक्रिया में बड़ी खामियां हैं. सरमा का फिलहाल अस्पताल में कोविड-19 का उपचार चल रहा है. एनआरसी अद्यतन पर मूल याचिकाकर्ता असम पब्लिक वर्क्स ने भी ऐसी ही मांग की है और पूर्व राज्य समन्वयक प्रतीक हाजेला को 'विसंगतियों' के लिए जिम्मेदार ठहराया है.

एनजीओ के अध्यक्ष अभिजीत सरमा ने कहा कि हमने आठ हलफनामे दाखिल किये हैं, छह मसौदे के प्रकाशन से पहले और दो सूची के पुनर्सत्यापन की मांग के साथ, लेकिन जनवरी 2020 के बाद से इस मामले पर उच्चतम न्यायलाय में कोविड-19 महामारी के चलते सुनवाई ही नहीं हुई है. उन्होंने सवाल किया कि एनआरसी अद्यतन प्रक्रिया में इतने बडे पैमाने पर वित्तीय अनियमितताओं को लेकर हाजेला के विरूद्ध राज्य सरकार ने कार्रवाई क्यों नहीं की.

सरमा ने कहा कि हमने एनआरसी अद्यतन प्रक्रिया से जुड़ी रकम के भारी हेर-फेर को लेकर सीबीआई और सीआईडी में दस शिकायतें कीं. यदि सरकार वाकई सच्चाई सामने लाने में रूचि ली हेाती है तो वे जरूरी कदम उठा सकती थी. सरमा ने कहा कि उनका एनजीओ इस मुद्दे पर गुवाहाटी उच्च न्यायलाय जा सकता है.

कांग्रेस के लोकसभा सदस्य अब्दुल खालिक ने कहा कि मैंने अस्वीकृति पर्जी जारी का मुद्दा संसद के आखिर सत्र के दौरान उठाया लेकिन केंद्रीय गृहमंत्री (अमित शाह) ने कहा कि महामारी एवं बाढ़ से रूकावटें आयी हैं. हमें उस बहाने पर भरोसा नहीं है क्योंकि ऐसा लगता है कि एनआरसी मामले को आगे ले जाने को छोड़कर भाजपा कुछ भी कर सकती है.

पीटीआई-भाषा

गुवाहाटी: असम में राष्ट्रीय नागरिक पंजी के मसौदे के प्रकाशन के आज दो साल हो गये किंतु वास्तविक नामों के छूट जाने पर काफी शोर मचने के बाद भी इस सूची में संशोधन के प्रयासों में प्रगति नहीं हुई है तथा दस्तावेजों के फिर से सत्यापन की मांग अब तक उच्चतम न्यायालय के समक्ष लंबित है. राष्ट्रीय नागरिक पंजी असम संधि के प्रावधानों के अनुसार तैयार की गयी थी और उसमें देश के असल नागरिकों के नाम हैं. प्रारंभिक दस्तावेज 1951 में बनाया गया था जो स्वतंत्र भारत की पहली जनगणना पर आधारित था.

जिन लोगों को अद्यतन सूची में जगह नहीं मिली वे इस बात के लिए दर दर भटक रहे हैं कि कैसे सूची में उनके नाम शामिल हो जाएं लेकिन उनपर अनिश्चितता के बादल मंडरा रहे हैं. मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा से जब एनआरसी मसौदे पर लोगों की चिंता के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बस इतना कहा कि मामला उच्चतम न्यायालय में लंबित है इसलिए मैं इस पर टिप्पणी नहीं करूंगा. सरमा ने 10 मई को अपना पदभार ग्रहण करने पर कहा था कि उनकी सरकार सीमावर्ती जिलों में नामों का 20 प्रतिशत और बाकी जिलों में 10 प्रतिशत सत्यापन चाहती है.

उन्होंने तब कहा था कि यदि सामने आयी त्रुटि नगण्य है तो हम वर्तमान एनआरसी के साथ आगे बढ़ सकते हैं. यदि पुनर्सत्यापन के दौरान बड़ी विसंगतियां पायी जाती हैं तो मुझे आशा है कि अदालत उसका संज्ञान लेगी और नये परिप्रेक्ष्य के हिसाब से जरूरी कदम उठायेगी. कई लोगों ने दावा किया कि उच्चतम न्यायालय की निगरानी में सूची को अद्यतन करने के लिए की गयी कवायद 'त्रुटिपूर्ण' रही जिसके बाद पीडि़तों को विदेशी न्यायाधिकरणों में जाने को कहा गया है, लेकिन न्यायाधिकरण के लिए जरूरी अस्वीकृति पर्ची अबतक जारी नहीं की गयी है. भारत के महापंजीयक से अंतिम मसौदा प्रकाशित होना भी अभी बाकी है.

राज्य के एनआरसी समन्वयक हितेश देव सरमा ने इस साल मई में उच्चतम न्यायालय में आवेदन देकर सूची के निश्चित समयसीमा के अंदर पुनर्सत्यापन का अनुरोध किया था क्योंकि 'इस प्रक्रिया में बड़ी खामियां हैं. सरमा का फिलहाल अस्पताल में कोविड-19 का उपचार चल रहा है. एनआरसी अद्यतन पर मूल याचिकाकर्ता असम पब्लिक वर्क्स ने भी ऐसी ही मांग की है और पूर्व राज्य समन्वयक प्रतीक हाजेला को 'विसंगतियों' के लिए जिम्मेदार ठहराया है.

एनजीओ के अध्यक्ष अभिजीत सरमा ने कहा कि हमने आठ हलफनामे दाखिल किये हैं, छह मसौदे के प्रकाशन से पहले और दो सूची के पुनर्सत्यापन की मांग के साथ, लेकिन जनवरी 2020 के बाद से इस मामले पर उच्चतम न्यायलाय में कोविड-19 महामारी के चलते सुनवाई ही नहीं हुई है. उन्होंने सवाल किया कि एनआरसी अद्यतन प्रक्रिया में इतने बडे पैमाने पर वित्तीय अनियमितताओं को लेकर हाजेला के विरूद्ध राज्य सरकार ने कार्रवाई क्यों नहीं की.

सरमा ने कहा कि हमने एनआरसी अद्यतन प्रक्रिया से जुड़ी रकम के भारी हेर-फेर को लेकर सीबीआई और सीआईडी में दस शिकायतें कीं. यदि सरकार वाकई सच्चाई सामने लाने में रूचि ली हेाती है तो वे जरूरी कदम उठा सकती थी. सरमा ने कहा कि उनका एनजीओ इस मुद्दे पर गुवाहाटी उच्च न्यायलाय जा सकता है.

कांग्रेस के लोकसभा सदस्य अब्दुल खालिक ने कहा कि मैंने अस्वीकृति पर्जी जारी का मुद्दा संसद के आखिर सत्र के दौरान उठाया लेकिन केंद्रीय गृहमंत्री (अमित शाह) ने कहा कि महामारी एवं बाढ़ से रूकावटें आयी हैं. हमें उस बहाने पर भरोसा नहीं है क्योंकि ऐसा लगता है कि एनआरसी मामले को आगे ले जाने को छोड़कर भाजपा कुछ भी कर सकती है.

पीटीआई-भाषा

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