चमोली: उत्तराखंड के जोशीमठ में आई आपदा ने एक बार फिर से 2013 की यादों को ताजा कर दिया है. रविवार को रैणी और तपोवन में आई आपदा का कितने लोग शिकार हुए है. अभीतक इसके सही आंकड़े किसी के पास नहीं है, लेकिन सरकार ने जो आंकड़े जारी किए है उसके मुताबिक अब तक 32 लोगों के शव मिल चुके हैं और 174 से ज्यादा लोग लापता है. अपनों के तलाश की आश में लापता लोगों के परिजन तपोवन और ऋषि गंगा पहुंचे रहे हैं. इस हादसे में रैणी गांव के भी दो लोग लापता है. जिनके परिवार उनकी खोज रहा है.
रंजीत के कंधों पर था पूरे घर का भार
रैणी गांव निवासी रंजीत सुबह आठ बजे अपने घर से ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट पर काम के लिए निकले थे. रंजीत का घर पावर प्रोजेक्ट के मात्र 500 कदम की दूरी पर है, लिहाजा नाश्ता करने के बाद रंजीत सुबह-सुबह प्लांट पर पहुंच गए थे. हालांकि वैसे तो रंजीत घर के छोटे बेटे हैं, लेकिन पूरे परिवार का जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर है, जो इस आपदा के बाद से लापता है. क्योंकि रंजीत के पिता और बड़े भाई दिव्यांग हैं.
रंजीत के भाई बताते है कि रोज की तरह रविवार को भी उनका भाई घर से काम पर जाने के लिए निकला था, लेकिन तभी अचानक से धुंए का गुब्बार और तेज बादल फटने की आवाज आई. उन्होंने प्लांट की तरफ देखा तो उनके होश उड़ गए. ये सब बताते हुए हुए रंजित के भाई की आंखें भर आईं. तब तक उन्हें नहीं सोचा था कि ये आपदा इतनी भयावह हो सकती है, जो अपने साथ सब कुछ बहाकर ले जाएगी.
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सैलाब के शोर से डरे रंजित के दिव्यांग पिता और भाई ने जैसे-कैसे घर से जंगल की ओर दौड़ पड़े. सैलाब जाने के बाद भी लोग पहाड़ों से नीचे उतरने से डर रहे थे. प्रशासन टीम ने मौके पर पहुंची तो उन्होंने आसपास के ग्रामीणों को बताया कि पावर प्लांट पूरी तरह से तबाह हो गया है. जैसे ही उन्हें ये खबर मिली उनका रो-रोकर बुरा हाल हो गया.
घंटों गुजर जाने के बाद जब वो नीचे आए तो उन्होंने देखा कि जहां उनका भाई रंजित काम करता था, उस ऋषि गंगा पावर प्रोजेक्ट का नमोनिशान मिट चुका है. रंजीत के भाई कहते हैं कि अब उन्हें कमरे में रहने से भी डर लगता है. लिहाजा सरकार उनकी सहायता करें. घर में कमाने वाला जो भाई था, अब वही चला गया है. अब दिव्यांग पिता और बूढ़ी माता की सेवा कौन करेगा?
गोदावरी की कहानी भी रंजीत के परिवार जैसी
ऐसी की कुछ कहानी है रैणी गांव में रहने वाली गोदावरी की. गोदावरी बताती हैं कि लगभग सुबह 10 बजे का वक्त रहा होगा, जब वह अपने खेत में अपनी सास के साथ काम कर रही थी. उस समय अचानक इतनी तेज मलबा आया और हवा के साथ सब कुछ उड़ाकर ले गया. गोदावरी भी उस हादसे का शिकार हुई थी. वह बताती है कि उन्हें याद भी नहीं कि वो खेत से हवा के साथ उड़ कर कब सड़क पर पहुंच गई और जब उन्होंने पीछे देखा तो मलबा उनकी सास को अपनी चपेट में ले चुका था.
वह बताती है कि उन्हें इतना भी वक्त नहीं मिला कि वह अपनी सास को आवाज देकर या खुद चलकर घर तक पहुंच पाती. घंटों सड़क पर बेसुध रहने के बाद गोदावरी किसी तरह से अपने घर पर पहुंचीं.
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गोदावरी कहती हैं कि उस आवाज को याद करके भी बहुत डर लगता है. डर इतना लगता है कि अब ना तो अकेले रह जा रहा है और ना ही घर के अंदर दरवाजा बंद करके रहने की हिम्मत हो रही है. लिहाजा 4 दिनों से यह परिवार भी या तो घर के बरामदे में सो रहा है या फिर घर की छत पर जागकर रातें गुजार रहा है.
रंजीत का परिवार हो या फिर गोदावरी का. दोनों के परिवार अब इस उम्मीद में बैठे हुए हैं कि उनके परिजन किसी तरह उन्हें मिल जाए. उन्हें यह नहीं मालूम कि उनके परिजन अब इस दुनिया में हैं भी या नहीं. वक्त के साथ दोनों ही परिवारों की उम्मीद टूट रही है. दोनों ही परिवार रोज इसी उम्मीद के साथ घटना स्थल पर जाते है कि शायद उनका कुछ पता चल पाए.