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त्रिपुरा बीजेपी नेता ने CAA का किया विरोध, कोर्ट में दायर की याचिका - त्रिपुरा बीजेपी नेता पाताल कन्या जमातिया

सुप्रीम कोर्ट संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 31 अक्टूबर को सुनवाई करेगा. सीएए को लेकर भाजपा की त्रिपुरा राज्य समिति की उपाध्यक्ष पाताल कन्या जमातिया (Patal Kanya Jamatia) ने भी याचिका दायर की है. वरिष्ठ संवाददाता गौतम देबरॉय की रिपोर्ट.

Patal Kanya Jamatia
पाताल कन्या जमातिया
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Published : Sep 13, 2022, 6:53 PM IST

नई दिल्ली: ऐसे समय में जब केंद्रीय गृह मंत्रालय पूरे भारत में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को लागू करने के लिए नियम तैयार कर रहा है, भाजपा की एक वरिष्ठ नेता ने अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है.

सुनिए भाजपा नेता ने क्या कहा

भाजपा की त्रिपुरा राज्य समिति की उपाध्यक्ष पाताल कन्या जमातिया (Patal Kanya Jamatia) ने सीएए की वैधता को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में एक अलग याचिका दायर की है. उनकी याचिका सीएए के खिलाफ दायर 220 अन्य याचिकाओं में शामिल है. जमातिया ने मंगलवार को नई दिल्ली में 'ईटीवी भारत' से कहा, 'मैंने सीएए के खिलाफ याचिका दायर की है. मुझे उम्मीद है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को भी मान लेगी.'

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को त्रिपुरा और असम सरकार को सीएए को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अगले चार सप्ताह में जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था. जमातिया ने कहा, 'भारत में अलग-अलग राज्यों की अपनी अलग-अलग शर्तें हैं, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने भी इन दोनों राज्यों (असम और त्रिपुरा) के सीएए मामले को अलग-अलग लेने का फैसला किया है.

जमातिया के साथ, त्रिपुरा शाही वंशज और त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (टीटीएएडीसी) के सत्तारूढ़ टीआईपीआरए मोथा के प्रमुख प्रद्योत किशोर देबबर्मा (Pradyot Kishore Debbarma) ने सीएए को चुनौती देने वाली अलग याचिका दायर की. जमातिया ने कहा, 'त्रिपुरा और साथ ही पड़ोसी असम में बेरोकटोक आमद की वजह से पहले ही बड़े पैमाने पर भौगोलिक परिवर्तन हुआ है.'

हालांकि सीएए के खिलाफ 220 याचिकाएं दायर की गई हैं, लेकिन शीर्ष अदालत ने असम और त्रिपुरा के मामले को अलग-अलग उठाने का फैसला किया था. सीएए के साथ केंद्र सरकार का लक्ष्य धार्मिक उत्पीड़न के बाद बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को नागरिकता देना है. इस मुद्दे पर पहले ही पूरे भारत में विशेष रूप से पूर्वोत्तर राज्यों में व्यापक विरोध हुआ है. कुछ राज्यों ने केंद्र सरकार से स्वदेशी समुदाय की पहचान की रक्षा के लिए इनर लाइन परमिट (आईएलपी) लागू करने की मांग की है.

पढ़ें- CAA की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई 31 अक्टूबर को

नई दिल्ली: ऐसे समय में जब केंद्रीय गृह मंत्रालय पूरे भारत में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) को लागू करने के लिए नियम तैयार कर रहा है, भाजपा की एक वरिष्ठ नेता ने अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है.

सुनिए भाजपा नेता ने क्या कहा

भाजपा की त्रिपुरा राज्य समिति की उपाध्यक्ष पाताल कन्या जमातिया (Patal Kanya Jamatia) ने सीएए की वैधता को चुनौती देते हुए शीर्ष अदालत में एक अलग याचिका दायर की है. उनकी याचिका सीएए के खिलाफ दायर 220 अन्य याचिकाओं में शामिल है. जमातिया ने मंगलवार को नई दिल्ली में 'ईटीवी भारत' से कहा, 'मैंने सीएए के खिलाफ याचिका दायर की है. मुझे उम्मीद है कि सरकार सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को भी मान लेगी.'

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को त्रिपुरा और असम सरकार को सीएए को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अगले चार सप्ताह में जवाबी हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था. जमातिया ने कहा, 'भारत में अलग-अलग राज्यों की अपनी अलग-अलग शर्तें हैं, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने भी इन दोनों राज्यों (असम और त्रिपुरा) के सीएए मामले को अलग-अलग लेने का फैसला किया है.

जमातिया के साथ, त्रिपुरा शाही वंशज और त्रिपुरा जनजातीय क्षेत्र स्वायत्त जिला परिषद (टीटीएएडीसी) के सत्तारूढ़ टीआईपीआरए मोथा के प्रमुख प्रद्योत किशोर देबबर्मा (Pradyot Kishore Debbarma) ने सीएए को चुनौती देने वाली अलग याचिका दायर की. जमातिया ने कहा, 'त्रिपुरा और साथ ही पड़ोसी असम में बेरोकटोक आमद की वजह से पहले ही बड़े पैमाने पर भौगोलिक परिवर्तन हुआ है.'

हालांकि सीएए के खिलाफ 220 याचिकाएं दायर की गई हैं, लेकिन शीर्ष अदालत ने असम और त्रिपुरा के मामले को अलग-अलग उठाने का फैसला किया था. सीएए के साथ केंद्र सरकार का लक्ष्य धार्मिक उत्पीड़न के बाद बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को नागरिकता देना है. इस मुद्दे पर पहले ही पूरे भारत में विशेष रूप से पूर्वोत्तर राज्यों में व्यापक विरोध हुआ है. कुछ राज्यों ने केंद्र सरकार से स्वदेशी समुदाय की पहचान की रक्षा के लिए इनर लाइन परमिट (आईएलपी) लागू करने की मांग की है.

पढ़ें- CAA की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई 31 अक्टूबर को

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