जौनपुर: मन में हौसला और जज्बा हो तो मुश्किल राह भी आसान हो जाती है. ऐसी ही कुछ कहानी त्रिनिदाद एंड टोबैगो की रहने वाली सुनीति महाराज की है. दरअसल, दशकों से मन में कसक लिए अपने पूर्वजों के गांव की तलाश में लगी सुनीति की मदद गिरमिटिया फाउंडेशन में अध्यक्ष दिलीप गिरी ने की. सोमवार सुबह काशी से सुनीति आदिपुर गांव के लिए निकलीं. गांव के मोड़ पर पहुंचते ही परिजनों और गांव के लोगों ने फूल माला पहनाकर ढोल-नगाड़े के साथ स्वागत किया. सुनीति अपने आसनसोल से आए और गांव के परिजनों संग मिलकर कुछ पलों के लिए भावुक हो गईं. सुनीति का मानना था कि बढ़ती उम्र भी उनके इस मुश्किल खोज के कदमों को न रोक सकी और उनका सपना साकार हुआ.
सुनीति महाराज ने बताया कि ये कहानी आजादी के पहले अंग्रेजों के शाशन काल में 1885 से शुरू होती है. नारायण दुबे बतौर गिरमिटिया मजदूर 1885 में त्रिनिदाद एंड टोबैगो चले गए थे. अपनी जड़ की तलाश में सुनीति ने हिम्मत नहीं हारी. नारायण दुबे की परपोती चौथी पीढ़ी से सुनीति महाराज अपने चाचा नारायण दुबे के साथ अपने पूर्वजों के आदिपुर गांव पहुंचीं. ग्रामीणों ने परिवार की बेटी का ढोल बाजे के साथ भव्य स्वागत किया. पूर्वजों द्वारा बनवाए गए शिव मंदिर में पूजा करते वक्त सुनीति भावुक हो गईं. आंखों में आसूं लिए सुनीति ने कहा, 'यह मेरे खुशी के आंसू हैं, जिसे मैं नहीं रोक सकती.
उन्होंने कहा कि उनके परदादा इस गांव की मिट्टी से जुड़े थे. लेकिन, कभी वो गांव लौट कर नहीं आए. गिरमिटिया फाउंडेशन के सहयोग से आज अपने पूर्वजों की पुण्य भूमि पर पहुंच कर धन्य हो गईं. गौरतलब है कि भारत में गिरमिटिया वंशियों के पूर्वजों के गांव खोजने में गिरमिटिया फाउंडेशन पिछले चार साल से काम कर रहा है. फाउंडेशन के अध्यक्ष दिलीप गिरि ने कहा कि अब तक एक सौ से अधिक गिरमिटिया परिवारों को उत्तर प्रदेश और बिहार के कई गांवों तक पहुंचाया है. जहां से सैकड़ों वर्ष पहले भारतीय लोगों को अंग्रेज गिरमिटिया मजदूर बनाकर ले गए थे. इस सफलतापूर्वक खोज में सीबी तिवारी और वरिष्ठ पत्रकार अमित मुखर्जी ने भी प्रमुख भूमिका निभाई.
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