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tribal movement in bastar : इंद्रावती नदी पर पुल के खिलाफ आदिवासियों का आंदोलन तेज, बढ़ सकती है सरकार की परेशानी - आदिवासियों का आंदोलन

बस्तर में आदिवासियों का आंदोलन बड़ा रुप लेता जा रहा है.पेसा कानून और ग्राम सभा की अनुमति को लेकर आदिवासी प्रदेश सरकार से नाराज हैं.वहीं अब आदिवासियों के आंदोलन को कई दूसरे वर्गों का भी साथ मिलने लगा है.जो कहीं ना कहीं सरकार के लिए चिंता बढ़ाने वाला है.tribals protest against bridge on indravati river

tribal movement in bastar
आदिवासियों का आंदोलन तेज
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Published : Jan 18, 2023, 6:12 PM IST

इंद्रावती नदी पर पुल निर्माण का विरोध

बीजापुर: छत्तीसगढ़ में सुकमा से सरगुजा तक आदिवासियों ने राज्य की भूपेश बघेल सरकार के खिलाफ हल्ला बोल 15 जनवरी से शुरू किया. लेकिन इस आंदोलन ने 16 जनवरी से बड़ा का रूप ले लिया है. अब इस आंदोलन को स्थानीय लोगों का भी समर्थन मिलने लगा है.17 जनवरी को महाराष्ट्र राज्य के ग्रामीणों ने भी इस आंदोलन को अपना समर्थन देकर इसे व्यापक रुप दे दिया है. वहीं इस आंदोलन में सहयोग के लिए स्कूल के बच्चे और दिल्ली की एक टीम के साथ बेला भाटिया भी पहुंची हैं.

आपको बता दें कि पेसा कानून के उल्लंघन और ग्राम सभाओं को नजरअंदाज करने के कारण आदिवासी समुदाय सरकार से नाराज है.एक बार फिर राज्यभर में आंदोलन तेज हो रहा है. बीजापुर जिले के भैरमगढ़ इलाके में इंद्रावती नदी पर पुंडरी-ताडबाकरी गांव में एक पुल निर्माण कार्य किया जा रहा है. लेकिन स्थानीय आदिवासियों का आरोप है कि ग्राम सभा की अनुमति के बगैर यह निर्माण कार्य शुरू कर दिया . पिछले साल इसी काम का विरोध कर रहे आदिवासियों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया था. जिसमें 50 आदिवासी घायल हुए थे वहीं 8 आदिवासियों को जेल में डाला गया था.

एक बार फिर आंदोलन तेज : आदिवासियों ने एक बार फिर एकजुटता दिखाई है. 15 जनवरी से इंद्रावती नदी के किनारे रैली निकाली. फिर अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन शुरू किया. यहां करीब 11 ग्राम पंचायतों के 3 हजार से अधिक लोग शामिल हुए हैं. उनका कहना है कि जब तक सरकार पेसा कानून और ग्राम सभा की अनुमति नहीं लेती तब तक उनके इलाके में सरकारी निर्माण कार्य का विरोध किया जाएगा. यदि सरकार को आदिवासियों का विकास करना है तो उनके अधिकारों की रक्षा करनी होगी. ना तो सरकार नियम कानून का पालन कर रही है और ना ही आदिवासियों को लोकतांत्रिक तरीके से विरोध प्रदर्शन करने दे रही.

आदिवासी नेता लालसु नागोटी का बयान: इस आंदोलन के बारे में आदिवासी नेता लालसु नागोटी ने बताया कि "आंदोलन में बीस पच्चीस गांव के लोग शामिल हुए हैं. कुछ गांव के लोग छत्तीसगढ़ से हैं. कुछ महाराष्ट्र के लोग भी यहां शामिल हैं. हम सब यहां पर आए हैं. पुल के निर्माण का हम सब विरोध कर रहे हैं. जबकि यहां बेसिक सुविधा नहीं है. यहां स्कूल नहीं है, यहां आंगनबाड़ी नहीं है. इन सभी चीजों की मांगों को लेकर हम लोग आंदोलन कर रहे हैं. पुल का निर्माण कर के ये लोग यहां के जल जंगल जमीन को लूटना चाह रहे हैं."

महाराष्ट्र के भमरागढ़ के असिस्टेंट कलेक्टर का बयान: महाराष्ट्र के भमरागढ़ के असिस्टेंट कलेक्टर शुभम गुप्ता ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि "जो ब्रिज बन रहा है, वह छत्तीसगढ़ के अंतर्गत बन रहा है. इस ब्रिज के बनने से छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र दोनों ही राज्यों के बॉर्डर पर रहने वाले लोगों को सुविधा मिलेगी. उन्हें आने जाने में सहूलियत होगी. लोगों को दिक्कतें फेस नहीं करनी पड़ेगी.

उन्होंने आगे कहा कि "उनकी जो मांग है आंबनबाड़ी है, स्कूल है. मुझे भरोसा है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने इसका नियोजन किया होगा. वो भी कंसिडर किया जाएगा. लेकिन ब्रिज का बनना और आंगनबाड़ी का बनना दोनों आपस में लिंक नहीं है. तो ब्रिज के निर्माण को रोकना उचित नहीं है. दोनों ही चीजें आवश्यक हैं. इसलिए गांववालों और आदिवासियों को ब्रिज निर्माण के खिलाफ आंदोलन नहीं करना चाहिए". भमरागढ़ इलाका छत्तीसगढ़ महाराष्ट्र बॉर्डर पर है. जो कांकेर के पास गढ़चिरौली के पास है.

ये भी पढ़ें-आदिवासी आंदोलन की कमान युवाओं ने संभाली

भूपेश सरकार को चेतावनी : मूलवासी बचाओ मंच इंद्रावती क्षेत्र के पदाधिकारियों ने मांग पूरी नहीं होने तक आंदोलन करने की चेतावनी दी है. मंच ने कहा कि '' यदि सरकार पिछले साल की तरह शांतिपूर्ण आंदोलन को कुचलने का प्रयास करेगी तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतना पड़ सकता है. आने वाले दिनों में राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में यदि आदिवासियों पर अत्याचार बढ़ता है तो इसका खामियाजा कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार को भुगतना पड़ेगा.''आदिवासियों का दावा है कि बस्तर संभाग में कम से कम 13 जगहों पर अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन जारी है. घने जंगलों और पहाड़ों से घिरे हुए इलाके में हजारों आदिवासी दिन रात आंदोलन में डटे हुए हैं. अब इस आंदोलन को समर्थन देने दिल्ली के अलावा भी कई समाज सेवक लोगों के आने का दौर शुरू हुआ है.

इंद्रावती नदी पर पुल निर्माण का विरोध

बीजापुर: छत्तीसगढ़ में सुकमा से सरगुजा तक आदिवासियों ने राज्य की भूपेश बघेल सरकार के खिलाफ हल्ला बोल 15 जनवरी से शुरू किया. लेकिन इस आंदोलन ने 16 जनवरी से बड़ा का रूप ले लिया है. अब इस आंदोलन को स्थानीय लोगों का भी समर्थन मिलने लगा है.17 जनवरी को महाराष्ट्र राज्य के ग्रामीणों ने भी इस आंदोलन को अपना समर्थन देकर इसे व्यापक रुप दे दिया है. वहीं इस आंदोलन में सहयोग के लिए स्कूल के बच्चे और दिल्ली की एक टीम के साथ बेला भाटिया भी पहुंची हैं.

आपको बता दें कि पेसा कानून के उल्लंघन और ग्राम सभाओं को नजरअंदाज करने के कारण आदिवासी समुदाय सरकार से नाराज है.एक बार फिर राज्यभर में आंदोलन तेज हो रहा है. बीजापुर जिले के भैरमगढ़ इलाके में इंद्रावती नदी पर पुंडरी-ताडबाकरी गांव में एक पुल निर्माण कार्य किया जा रहा है. लेकिन स्थानीय आदिवासियों का आरोप है कि ग्राम सभा की अनुमति के बगैर यह निर्माण कार्य शुरू कर दिया . पिछले साल इसी काम का विरोध कर रहे आदिवासियों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया था. जिसमें 50 आदिवासी घायल हुए थे वहीं 8 आदिवासियों को जेल में डाला गया था.

एक बार फिर आंदोलन तेज : आदिवासियों ने एक बार फिर एकजुटता दिखाई है. 15 जनवरी से इंद्रावती नदी के किनारे रैली निकाली. फिर अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन शुरू किया. यहां करीब 11 ग्राम पंचायतों के 3 हजार से अधिक लोग शामिल हुए हैं. उनका कहना है कि जब तक सरकार पेसा कानून और ग्राम सभा की अनुमति नहीं लेती तब तक उनके इलाके में सरकारी निर्माण कार्य का विरोध किया जाएगा. यदि सरकार को आदिवासियों का विकास करना है तो उनके अधिकारों की रक्षा करनी होगी. ना तो सरकार नियम कानून का पालन कर रही है और ना ही आदिवासियों को लोकतांत्रिक तरीके से विरोध प्रदर्शन करने दे रही.

आदिवासी नेता लालसु नागोटी का बयान: इस आंदोलन के बारे में आदिवासी नेता लालसु नागोटी ने बताया कि "आंदोलन में बीस पच्चीस गांव के लोग शामिल हुए हैं. कुछ गांव के लोग छत्तीसगढ़ से हैं. कुछ महाराष्ट्र के लोग भी यहां शामिल हैं. हम सब यहां पर आए हैं. पुल के निर्माण का हम सब विरोध कर रहे हैं. जबकि यहां बेसिक सुविधा नहीं है. यहां स्कूल नहीं है, यहां आंगनबाड़ी नहीं है. इन सभी चीजों की मांगों को लेकर हम लोग आंदोलन कर रहे हैं. पुल का निर्माण कर के ये लोग यहां के जल जंगल जमीन को लूटना चाह रहे हैं."

महाराष्ट्र के भमरागढ़ के असिस्टेंट कलेक्टर का बयान: महाराष्ट्र के भमरागढ़ के असिस्टेंट कलेक्टर शुभम गुप्ता ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि "जो ब्रिज बन रहा है, वह छत्तीसगढ़ के अंतर्गत बन रहा है. इस ब्रिज के बनने से छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र दोनों ही राज्यों के बॉर्डर पर रहने वाले लोगों को सुविधा मिलेगी. उन्हें आने जाने में सहूलियत होगी. लोगों को दिक्कतें फेस नहीं करनी पड़ेगी.

उन्होंने आगे कहा कि "उनकी जो मांग है आंबनबाड़ी है, स्कूल है. मुझे भरोसा है कि छत्तीसगढ़ सरकार ने इसका नियोजन किया होगा. वो भी कंसिडर किया जाएगा. लेकिन ब्रिज का बनना और आंगनबाड़ी का बनना दोनों आपस में लिंक नहीं है. तो ब्रिज के निर्माण को रोकना उचित नहीं है. दोनों ही चीजें आवश्यक हैं. इसलिए गांववालों और आदिवासियों को ब्रिज निर्माण के खिलाफ आंदोलन नहीं करना चाहिए". भमरागढ़ इलाका छत्तीसगढ़ महाराष्ट्र बॉर्डर पर है. जो कांकेर के पास गढ़चिरौली के पास है.

ये भी पढ़ें-आदिवासी आंदोलन की कमान युवाओं ने संभाली

भूपेश सरकार को चेतावनी : मूलवासी बचाओ मंच इंद्रावती क्षेत्र के पदाधिकारियों ने मांग पूरी नहीं होने तक आंदोलन करने की चेतावनी दी है. मंच ने कहा कि '' यदि सरकार पिछले साल की तरह शांतिपूर्ण आंदोलन को कुचलने का प्रयास करेगी तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतना पड़ सकता है. आने वाले दिनों में राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं. ऐसे में यदि आदिवासियों पर अत्याचार बढ़ता है तो इसका खामियाजा कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार को भुगतना पड़ेगा.''आदिवासियों का दावा है कि बस्तर संभाग में कम से कम 13 जगहों पर अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन जारी है. घने जंगलों और पहाड़ों से घिरे हुए इलाके में हजारों आदिवासी दिन रात आंदोलन में डटे हुए हैं. अब इस आंदोलन को समर्थन देने दिल्ली के अलावा भी कई समाज सेवक लोगों के आने का दौर शुरू हुआ है.

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