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ओडिशा : आदिवासी समुदाय ने धूम-धाम से मनाया 'पाटा' त्योहार, दिया स्वच्छता का संदेश

ओडिशा के मयूरभंज में आदिवासी समुदाय की ओर से पाटा त्योहार मनाया गया. पड़ोसी राज्य झारखंड के सैकड़ों लोग इस त्योहार को मनाने के लिए गांव में एकत्रित हुए थे. ग्रामीण इस त्योहार के माध्यम से समाज को स्वच्छता का संदेश दिया. विस्तार से पढ़ें पूरी खबर..

पाटा उत्सव
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Published : Mar 17, 2021, 3:28 PM IST

भुवनेश्वर : ओडिशा के मयूरभंज जिले के बिश्नोई ब्लॉक में बड़ें ही धूम-धाम से पाटा उत्सव मनाया गया. गांव के संताली आदिवासी समुदाय द्वारा महाशिवरात्रि के दिन से ही तीन दिनों तक पाटा त्योहार मनाया जाता है.

पाटा उत्सव

रिश्तेदारों और दोस्तों के अलावा पड़ोसी जिलों और पड़ोसी राज्य झारखंड के सैकड़ों लोग इस त्योहार को मनाने के लिए गांव में इकट्ठा होते हैं. ग्रामीण इस त्योहार के माध्यम से समाज को स्वच्छता का संदेश देते हैं. दूसरी ओर गांव की युवतियां और महिलाएं पास की नदियों और पहाड़ियों से मिट्टी लाती हैं और इसमें पानी मिलाकर और प्राकृतिक रंग तैयार करती है, जो गांव की दीवारों में आकर्षित चित्र मनाने में मदद करता है. दीवार पर तस्वीरें आदिवासी समुदाय की संस्कृति और परंपरा के बारे में बयां करती हैं.

पढ़ें : ओडिशा का पारंपरिक कपड़ागुंदा शॉल विलुप्त होने की कगार पर

इस त्योहार का एक अन्य मुख्य आकर्षण पारंपरिक आदिवासी नृत्य है, जो युवा लड़कियों और महिलाओं के द्वारा किया जाता है. युवा लड़कियों और महिलांए पारंपरिक पोशाक पहनकर ड्रम और तंबुओं बजाकर नृत्य करती है.

केंद्र और राज्य सरकार दोनों स्वच्छ भारत अभियान की सफलता के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रहे हैं और लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक करते हैं, लेकिन इस गांव के लोगों ने अपने गांव को स्वच्छ रखने के लिए सरकार से कोई वित्तीय सहायता नहीं ली है.

गांव की गलियां और सड़क, घाट हर स्थान पूरी तरह से साफ है. रायरंगपुर गांव निवासी संजय कुमार ने बताया कि सरकार के स्वच्छ भारत अभियान की तुलना में गांव की साफ-सफाई और स्वच्छता कहीं ज्यादा बेहतर है.

भुवनेश्वर : ओडिशा के मयूरभंज जिले के बिश्नोई ब्लॉक में बड़ें ही धूम-धाम से पाटा उत्सव मनाया गया. गांव के संताली आदिवासी समुदाय द्वारा महाशिवरात्रि के दिन से ही तीन दिनों तक पाटा त्योहार मनाया जाता है.

पाटा उत्सव

रिश्तेदारों और दोस्तों के अलावा पड़ोसी जिलों और पड़ोसी राज्य झारखंड के सैकड़ों लोग इस त्योहार को मनाने के लिए गांव में इकट्ठा होते हैं. ग्रामीण इस त्योहार के माध्यम से समाज को स्वच्छता का संदेश देते हैं. दूसरी ओर गांव की युवतियां और महिलाएं पास की नदियों और पहाड़ियों से मिट्टी लाती हैं और इसमें पानी मिलाकर और प्राकृतिक रंग तैयार करती है, जो गांव की दीवारों में आकर्षित चित्र मनाने में मदद करता है. दीवार पर तस्वीरें आदिवासी समुदाय की संस्कृति और परंपरा के बारे में बयां करती हैं.

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इस त्योहार का एक अन्य मुख्य आकर्षण पारंपरिक आदिवासी नृत्य है, जो युवा लड़कियों और महिलाओं के द्वारा किया जाता है. युवा लड़कियों और महिलांए पारंपरिक पोशाक पहनकर ड्रम और तंबुओं बजाकर नृत्य करती है.

केंद्र और राज्य सरकार दोनों स्वच्छ भारत अभियान की सफलता के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रहे हैं और लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक करते हैं, लेकिन इस गांव के लोगों ने अपने गांव को स्वच्छ रखने के लिए सरकार से कोई वित्तीय सहायता नहीं ली है.

गांव की गलियां और सड़क, घाट हर स्थान पूरी तरह से साफ है. रायरंगपुर गांव निवासी संजय कुमार ने बताया कि सरकार के स्वच्छ भारत अभियान की तुलना में गांव की साफ-सफाई और स्वच्छता कहीं ज्यादा बेहतर है.

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