श्रीनगर : कड़ी सुरक्षा के बीच भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने सोमवार को श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा झंडा फहराया. पार्टी ने करगिल विजय दिवस बाइक रैली निकाली थी. पिछले 70 सालों में कश्मीर की राजनीति में लाल चौक का विशेष स्थान रहा है.
इंटैक (INTACH) के संयोजक डॉ सलीम बेग कहते हैं, 'श्रीनगर का लाल चौक पिछले 70 सालों में कई राजनीतिक गतिविधियों का गवाह रहा है. यह कश्मीर के इतिहास का हिस्सा बन गया है.' उन्होंने कहा, 'नेशनल कॉन्फ्रेंस के संस्थापक शेख अब्दुल्ला के समय में रूस के 'रेड स्क्वॉयर' से प्रेरित होकर इसका नाम लाल चौक रखा गया था.' अपनी बात को बढ़ाते हुए बेग ने कहा, 'बाद में लाल चौक की शान को बढ़ाने के लिए यहां पर एक क्लॉक टावर बनाया गया ताकि इसकी पहचान दुनिया के बड़े शहरों में शुमार हो सके.' इस टावर को 1979 में एक निजी कंपनी ने बनाया था.
कहा जाता है कि शेख अब्दुल्ला ने यहीं पर देश के पहले प्रधानमंत्री प.जवाहर लाल नेहरू का स्वागत किया था. नेहरू ने यहां से अपना ऐतिहासिक भाषण भी दिया था. अब्दुल्ला ने अपना मशहूर नारा दिया था, 'मन तू शदम, तू मन शादी'. प्रासंगिक यह है कि 1992 में भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी और नरेंद्र मोदी ने यहां पर तिरंगा फहराने की कोशिश की थी. प्रशासन ने उन्हें इसकी इजाजत नहीं दी थी. उस समय जोशी भाजपा के अध्यक्ष थे और मोदी राष्ट्रीय एकता के संयोजक थे.
नब्बे के दशक में कश्मीर में जब उग्रवाद का उबाल आया, तब लाल चौक का घंटा घर अलगाववादियों के लिए एक महत्वपूर्ण स्थल बन गया था. लेकिन पांच अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 के हटने के बाद से यहां पर हर साल तिरंगा फहराया जाता है. हाल के महीनों में सेना ने यहां पर 'आखिर कब तक' प्रोग्राम के दौरान भी तिरंगा फहराया था. और अब भाजपा इसके जरिए अपना राजनीतिक आधार फैलाने की कोशिश कर रही है. भाजपा कहती है कि उसके लिए इसका महत्व है, क्योंकि उनके नेता जोशी से लेकर अनुराग ठाकुर तक यहां तिरंगा फहरा चुके हैं.
भाजपा नेता अरुण प्रबात ने कहा कि यहां पर कभी अलगाववाद का बोलबाला हुआ करता था. मुख्य धारा के नेताओं के लिए यहां पर कोई जगह नहीं थी. लेकिन हमने इस सोच को बदल दी. उन्होंने कहा कि हम लोगों के मन से अलगाववाद के बदनुमा दाग को हमेशा-हमेशा के लिए हटा देने के लिए तिरंगा फहराने का उत्सव मनाते हैं. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने 1999 के करगिल युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए सोमवार को यहां सिटी सेंटर के लाल चौक से पहली बार मोटरसाइकिल पर तिरंगा यात्रा निकाली. आपको बता दें कि सेना हर साल 26 जुलाई को करगिल विजय दिवस मनाती है. लेकिन अब भाजपा भी इस दिवस को मनाने लगी है. 1999 में भारतीय सेना की टुकड़ी ने पाकिस्तानियों को करगिल के द्रास सेक्टर से मार भगाया था.
केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के द्रास क्षेत्र में करगिल युद्ध स्मारक तक के लिए मोटरसाइकिल रैली को पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव तरुण चुग और बेंगलुरू दक्षिण सीट से सांसद तथा भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) अध्यक्ष तेजस्वी सूर्या ने हरी झंडी दिखाई. कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच लाल चौक के ऐतिहासिक घंटा घर से रैली को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया. इस दौरान पूरे इलाके को सील कर दिया गया था. वरिष्ठ अधिकारियों सहित बड़ी संख्या में सुरक्षा बल मौजूद थे.
सुरक्षा बलों ने घटना पर नज़र रखने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया. रैली के मद्देनज़र यातायात और सार्वजनिक आवाजाही को परिवर्तित किया गया था. शहर का यह केंद्र तत्कालीन राज्य जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों का गढ़ हुआ करता था. 2008 और 2010 के दौरान अलगाववादी स्वतंत्रता की मांग को लेकर लाल चौक तक लोगों के मार्च का आह्वान करते थे.
सोमवार को शहर के मध्य में आजादी के नारे लगाए गए. भाजपा नेताओं ने आजाद हिंदुस्तान जिंदाबाद, अखंड भारत जिंदाबाद और भारत माता की जय के नारे लगाए. इस दौरान तिरंगा लहराते हुए देशभक्ति के गीत गाए गए. कई राजनीतिक दलों ने पहले भी लाल चौक पर तिरंगा फहराने सहित कार्यक्रम आयोजित किए हैं. यह पहली बार है जब किसी राजनीतिक दल द्वारा करगिल युद्ध में शहीद हुए सैनिकों को श्रद्धांजलि देने के लिए इस तरह की रैली का आयोजन किया गया था.
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तिरंगा यात्रा 1992 में कन्याकुमारी से लेकर कश्मीर तक की वो यात्रा थी, जिसका समापन श्रीनगर के लाल चौक पर झंडा फहरा कर होना था. यात्रा उस समय के बीजेपी अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी के नेतृत्व में होनी थी. ईटीवी भारत की कोशिश थी कि वे आज अपने उस सपने पर हमसे बात करें जो उन्होंने तीस साल पहले देखा था और उसकी शुरुआत लाल चौक से की थी. लेकिन स्वास्थ्य कारणों से उनसे बात नहीं की जा सकी.
ईटीवी नेशनल ब्यूरो चीफ राकेश त्रिपाठी ने 1992 की उस यात्रा को याद करने के लिए एक ऐसे नेता से बात की जो अब काग्रेस का दामन थाम चुके हैं. आप भी पढ़िए, कैसे तिरंगा यात्रा को याद किया बिमल भाई शाह ने, जो अब गुजरात कांग्रेस के उपाध्यक्ष हैं. एयरपोर्ट पर उतरते ही माहौल खतरनाक दिखने लगा था. हम प्लेन में गए थे तो उतरते ही प्लेन पर भी फायरिंग हुई थी. फिर वहां एयरपोर्ट से गाड़ियों के हुजूम में हम निकले, तो जबरदस्त सुरक्षा में निकले.' ये उद्गार हैं 61 बरस के बिमल भाई शाह के जिन्होंने 1992 की बीजेपी की एकता यात्रा में हिस्सा लिया था. बाद में 2019 में बीजेपी छोड़ कर कांग्रेस का दामन थाम लिया और आज वे गुजरात प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष हैं.
तीस बरस पहले वे गुजरात यूथ बीजेपी के अध्यक्ष थे और मुरली मनोहर जोशी की उस एकता यात्रा का हिस्सा भी थे जो केरल से कश्मीर तक तिरंगा लेकर निकली थी. मकसद था श्रीनगर के लाल चौक पर तिरंगा झंडा फहराना. उस वक्त इस टीम में शंकर सिंह वाघेला, आनंदी बेन पटेल और सुरेश मेहता सरीखे नेता शामिल थे. हमारी गाड़ियों के आगे पीछे सिक्योरिटी फोर्सेज की गाड़ियां थीं। वहां हमे सुरक्षा बलों के कैंप में ही ठहराया भी गया. बिमल भाई शाह अचानक ठहर जाते हैं. उन्हें एहसास होता है कि अब वे एक धुर विरोधी पार्टी में हैं. कहते हैं, 'देखिए अब मैं उस वक्त को याद नहीं करना चाहता क्योंकि अब मैं कांग्रेस में हूं.
इसलिए मैं इन सब चक्करों में पड़ना नही चाहता। वो मेरे लिए ठीक नहीं होगा.' ये पूछते ही कि क्या सुरक्षा बलों के चलते ही मुरली मनोहर जोशी और आप लोग झंडा फहरा पाए, बिमल भाई की आवाज में जोश बढ़ जाता है, " नही ऐसी बात नहीं। हम तो अपने दम पर वहां पहुंचे थे। हमारे आसपास तो आतंकियों ने गड़बड़ करने की कोशिश भी की थी, लेकिन सफल नहीं हुए.' 'आज के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उसी टीम में थे..कभी याद करते हैं आप ? ' ये कुरेदने पर बिमल भाई शाह फूट पड़ते हैं- “ देखिए ये कहना ठीक नहीं होगा. असल में हम उनके साथ थे. और ये हमारा सपना था कि वहां पर हम तिरंगा फहराएंगे और फहरा भी दिया हमने.
बाद में पूरे देश में हमारे सम्मान से जुड़े कार्यक्रम हुए. नरेंद्र मोदी के साथ हमारा पुराना रिश्ता है, याद तो करेंगे ही. पार्टी चाहे अलग हो, लेकिन व्यक्तिगत रिश्ता तो है ही हमारा.' बिमल शाह कुछ ठहर कर कहते हैं- 'लेकिन अब वो बड़े आदमी हो गए हैं, क्या याद करेंगे हमें.' अचानक उदास हो गई इस आवाज़ के क्या मायने हैं, नहीं मालूम. लेकिन तिरंगा यात्रा की नींव रखने वालों में से एक बिमल भाई शाह को इस बार लाल चौक पर तिरंगा यात्रा की तस्वीरें टीवी पर देख कर संतोष करना पड़ा. अब बेशक एक मुखालिफ पार्टी में होने की वजह से मन की बात न कह पा रहे हों, लेकिन तीस बरस पहले जान हथेली पर लेकर लाल चौक पहुंचे बीजेपी नेताओं में से एक बिमल भाई को सुकून इस बात का भी है कि उनका तिरंगा अब वहां फहरा रहा है. सोमवार को श्रीनगर के उसी ऐतिहासिक लाल चौक से मोटर साइकिलों के एक हुजूम में तिरंगा रैली निकाली गई, जहां झंडा फहराने के लिए 1992 में हवाईअड्डे पर उतरते ही बीजेपी के नेताओं का स्वागत गोलियों की तड़तड़ाहट से हुआ था. उस दिन यात्रा में शामिल बिमल भाई शाह जैसे लोगों ने बीती 25 जुलाई को बेहद सुकून महसूस किया होगा.