हैदराबाद : दिल्ली की यमुना इन दिनों दूर से अंटार्कटिक वाला फील दे रही है. दूर से देखने पर लगता है कि अंटार्कटिक के बड़े-बड़े ग्लेशियर जलवायु परिवर्तन के ताप में टूटकर, पिघलकर पानी में तैर रहे हों. लेकिन पास जाने पर वहां सेल्फी खींचने के लिए भी नाक पर कपड़ा रखना पड़ेगा, आर्कटिक का सारा फील एक पल में नाले में तब्दील हो चुकी यमुना के काले और बदबूदार पानी में डूब जाएगा. ये तस्वीरें अब सोशल मीडिया और दुनियाभर की मीडिया में सुर्खियां बटोर रही हैं.
भला हो छठ व्रतियों का...
वो तो भला हो छठ व्रतियों का, जो छठ पूजा के दौरान यमुना में डुबकी लगाने पहुंच रहे हैं और यमुना की ये डराने वाली तस्वीरें सोशल मीडिया से लेकर टीवी चैनल तक दिखने लगी. वरना रोजाना हजारों लाखों लोग यमुना के ऊपर से बगल से गुजर जाया करते हैं, नाक पर रुमाल रखकर और नेताओं को गालियां देते हुए. छठ की छुट्टी और पर्व मनाने की अनुमति देकर दिल्ली सरकार अपनी पीठ थपथपा रही थी लेकिन इन तस्वीरों ने सारे करे कराए पर यमुना का ही गंदा पानी फेर दिया. यमुना का गंदा बदबूदार पानी क्या कम था जो उसके झाग वाले पानी में छठ व्रतियों पूजा पाठ और डुबकी लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा.
यमुना के पानी में ये सफेद-सफेद क्या है ?
यमुना के काले रंग के पानी में हर जगह नजर आती बर्फ जैसी झाग जल प्रदूषण की वजह से है. जो यमुना में इतना बढ़ गया है कि हर जगह झाग ही झाग फैली दिख रही है. पर्यावरणविदों के मुताबिक यमुना में फॉस्फेट और अमोनिया का स्तर कई गुना बढ़ गया है. जो बताता है कि यमुना में बिना ट्रीट किया सीवेज का पानी बड़ी मात्रा में डाला जा रहा है. इस तरह का झाग घरों में इस्तेमाल होने वाले साबुन से भी आता है. जानकार मानते हैं कि यमुना में प्रदूषण का स्तर तो बढ़ ही रहा है, कम जलस्तर के चलते ये सफेद झाग और भी अधिक नजर आ रहा है.
इसका क्या नुकसान है ?
जानकार मानते हैं कि पेड़ पौधों की वसा से बनने वाली झाग नुकसान नहीं पहुंचाती लेकिन फॉरफोरस की मात्रा बढ़ने से यमुना में पैदा हुई झाग त्वचा के लिए ठीक नहीं है. छठ पूजा के दौरान लोगों को घंटों तक पानी में खड़ा रहना होता है, उसमें डुबकी लगानी होती है. डॉक्टरों के मुताबिक यमुना के पानी में प्रदूषण बढ़ने के सात-साथ लोहे जैसी धातुएं प्रचूर मात्रा में हैं. जो कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे सकती है. इससे कैंसर से लेकर तंत्रिका तंत्र को नुकसान तक हो सकता है. इस पानी के कुछ घूंट कई तरह की बीमारियां फैला सकते हैं, जबकि इसमें डुबकी लगाने भर से कई तरह से त्वचा रोग जैसे फंगस, खुजली, काले धब्बे हो सकते हैं. यमुना किनारे रहने वाले लोगों में त्वचा समेत कई तरह के रोगी सबसे ज्यादा पाए जाते हैं. कुल मिलाकर यमुना का पानी पीने लायक तो छोड़िये हाथ-पैर धोने लायक भी नहीं है, इसका इस्तेमाल इंसानों तो छोड़िये पशु-पक्षियों के लिए भी हानिकारक है.
पानी में किया जा रहा पानी का छिड़काव
पढ़ने में अटपटा लगे लेकिन ये सच है. आपने सड़क पर या खेत में पानी के छिड़काव की बात सुनी होगी लेकिन दिल्ली में पानी पर पानी का छिड़काव हो रहा है. दरअसल दिल्ली में यमुना नदी में बन रहे झाग को खत्म करने के लिए अब पानी का छिड़काव किया जा रहा है. झाग को नदी के तटों तक आने से रोकने के लिए बैरिकेड्स लगाने के साथ साथ यमुना में फोम की सफाई के लिए दिल्ली प्रदूषण कंट्रोल कमेटी ने 15 नावें भी उतारी हैं. यमुना नदी के पास छिड़काव कर रहे दिल्ली जल बोर्ड के कर्मचारी ने कहा कि 'झाग मारने के लिए पानी का छिड़काव कर रहे हैं. दिल्ली जल बोर्ड से ऑर्डर मिला है'
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#WATCH | "We are sprinkling water in the Yamuna to dissipate toxic foam," says Ashok Kumar, Delhi Jal Board employee pic.twitter.com/4waL2VsM7T
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झाग नहीं 'झक मार' रही हैं सरकारें
यमुनोत्री से इलाहबाद तक यमुना 1376 किलोमीटर का सफर तय करती है और इस दौरान उत्तराखंड से लेकर हिमाचल, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कई इलाकों से बहती है और उन्हें जीवन देती है. लेकिन बदले में यमुना को सिर्फ और सिर्फ प्रदूषण मिलता है. दिल्ली तक पहुंचते पहुंचते यमुना का पानी जहरीला हो जाता है और एक नदी नाले में तब्दील हो जाती है. ये सालों से हो रहा है लेकिन राज्य से लेकर केंद्र की सरकारें बस सियासत में मशगूल हैं, आरोपों की टोपी पहनाने में व्यस्त है.
दिल्ली में इतनी मैली क्यों हैं यमुना ?
यमुनोत्री से निकलने वाली यमुना संगम तक पहुंचते-पहुंचते जितनी मैली होती है उसमें सबसे ज्यादा हिस्सेदारी दिल्ली की है. राजधानी दिल्ली का प्रदूषण यमुना को दिन-ब-दिन ज़हरीला बना रहा है. यमुना नदी का मात्र दो फीसदी हिस्सा ही दिल्ली से होकर गुजरता है लेकिन एक स्टडी की मानें तो 80 फीसदी यमुना सिर्फ और सिर्फ राजधानी दिल्ली में होती है. 1370 किलोमीटर की यमुना का दिल्ली में 22 किलोमीटर का हिस्सा है, जो वजीराबाद से ओखला के बीच सबसे ज्यादा जहरीली हो जाती है.
दिल्ली के यमुना के किनारे करीब 70 हजार झुग्गियां हैं जिनमें 4 से 5 लाख की आबादी रहती है. जिनकी फैलाई गंदगी रोज यमुना में पहुंचती है. दिल्ली की कुल आबादी नदी में इस कचरे को कई गुना बढ़ा देती है. दिल्ली के सैंकड़ों छोटे नाले 38 बड़े नालों के सहारे यमुना में मिलते हैं. इन सभी नालों पर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगना था लेकिन अब तक ऐसा हुआ नहीं है. दिल्ली सरकार द्वारा इसी साल एनजीटी में दिए एफिडेविट के मुताबिक दिल्ली में करीब 40 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट हैं और इन्हें यमुना के पानी को ट्रीट करने के लिए अपग्रेड करना था लेकिन इसके लिए 3 से 5 साल का वक्त लगेगा. फैक्ट्रियों से निकलने वाला कैमिकल युक्त वेस्ट भी यमुना के पानी को और भी जहरीला बना रहा है.
यमुना की सफाई पर बहे अरबों रुपये
यमुनोत्री से निकलता शीतल जल दिल्ली पहुंचते-पहुंचते जहर हुआ तो इसे साफ करने के लिए सराकारों ने बी खजाने खोल दिए लेकिन उसका फायदा कुछ नहीं हुआ. इसी साल दिल्ली सरकार ने यमुना से झाग रोकने के लिए 9 सूत्रीय योजना बनाई, बजट में 2074 करोड़ रुपये का प्रावधान यमुना की सफाई के लिए किया गया. इससे पहले भी 2018 से 2021 तक दिल्ली सरकार ने 200 करोड़ रुपये इस काम के लिए आवंटित किए थे लेकिन नतीजा ढाक के तीन पात ही साबित हुआ.
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What a beautiful sight from Delhi’s Yamuna river. Thanks to Kejriwal ji from importing snow directly from Rohtang Pass for the occasion of Chhatt Pooja. God bless him and every other environmentalist who fought day and night to save delhi from Air pollution caused by crackers. pic.twitter.com/lN4WFa2hjj
— Madhur Singh (@ThePlacardGuy) November 8, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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उधर केंद्र सरकार ने भी नमामि गंगे से लेकर ना जाने कौन-कौन की योजनाएं चलाई. साल 2018 में केंद्र सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले 25 साल में भारत सरकार ने यमुना की सफाई पर 1,514 करोड़ रुपये खर्च किए हैं लेकिन यमुना साफ होने की बजाय और भी मैली होती गई. नमामि गंगा योजना के तहत यमुना की सफाई के लिए 4,355 करोड़ रुपये के 24 प्रोजेक्ट लगने थे. दिल्ली में सबसे ज्यादा 13 प्रोजोक्ट लगने थे, जिनमें से सिर्फ दो का काम पूरा हो पाया है. यूपी ने 8 में से एक और हिमाचल का इकलौता प्रोजेक्ट भी शुरू नहीं हुआ है. केवल हरियाणा ने ही अपने दोनों प्रोजेक्ट का काम पूरा किया है.
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#WATCH Toxic foam floats on Yamuna river near Kalindi Kunj in Delhi
— ANI (@ANI) November 7, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
The national capital's overall air quality is in the 'severe' category today. pic.twitter.com/janktDxmg9
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— ANI (@ANI) November 7, 2021
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यमुना की सफाई के नाम पर सिर्फ सियासत
यमुना नदी हिमाचल से लेकर हरियाणा और दिल्ली से लेकर यूपी तक बहती है और हर राज्य में ये और मैली होती जाती है. हर राज्य की इसमें हिस्सेदारी है लेकिन नदी को साफ करने से ज्यादा जोर सियासत में होता है. केजरीवाल इस प्रदूषण के लिए हरियाणा को दोषी ठहराते हैं और यूपी की तरफ से दिल्ली पर उंगली उठती है. केंद्र सरकार अपना पल्ला झाड़कर विरोधी पार्टियों की सरकारों को घेरने में जुटी रहती है और गंगा-यमुना की सफाई का मुद्दा सिर्फ सियासी वादों और चुनावी घोषणा पत्रों तक ही सिमटा रह जाता है.
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This is very sad, very inhuman. Delhi Govt led by Arvind Kejriwal Ji should make a genuine effort to clean Yamuna.@IndiaToday reports the deadly toxic foam floating on the surface of polluted yamuna river. #ChhathPuja pic.twitter.com/jvveLQUlg4
— Kiren Rijiju (@KirenRijiju) November 9, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
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टेम्स नदी साफ हो सकती है तो गंगा-यमुना क्यों नहीं ?
लंदन में बहने वाली थेम्स नदी आज दुनिया की सबसे साफ नदियों में गिनी जाती है लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था. टेम्स नदी कभी दुनिया का सबसे व्यस्त जलमार्ग हुआ करता था. लंदन की आबादी बढ़ने के साथ ही नदी में प्रदूषण भी बढ़ा. कहते हैं 1850 तक लंदन की टेम्स नदी का हाल दिल्ली की यमुना नदी से भी बदतर था. जो नदी की गंदगी शहर में हैजा फैलने की वजह बनी. जिसके बाद 1958 में संसद ने एक मॉडर्न सीवेज सिस्टम की योजना बनाई गई. पूरी तैयारी के बाद लंदन शहर में जमीन के अन्दर 134 किलोमीटर का एक सीवेज सिस्टम बनाया गया, साथ ही टेम्स नदी के साथ-साथ सड़क बनाई गई, ट्रीटमेंट प्लांट्स लगाए गए. इस सीवेज सिस्टम में टेम्स का पानी ट्रीटमेंट के बाद लोगों के घरों में जाता है और लोगों के घरों में उपयोग किये गए जल मल को ट्रीटमेंट के बाद टेम्स में छोड़ा जाता है. लंदन के इस सीवेज सिस्टम को बने हुए 150 साल पूरे हो चुके हैं. लंदन शहर की जनसंख्या भी तब से 100 गुना बढ़ गई है लेकिन आज भी लंदन का सीवेज सिस्टम दुरुस्त है जो नेताओं ने नीति और नीयत के साथ भविष्य को देखते हुए बनाया था.
इसके बाद साल 2000 में टेम्स रिवर क्लीन अप अभियान शुरु हुआ. इस अभियान के तहत साल में तय एक दिन लंदन शहर में नदी जहां से गुजरती है लोग वहां इकट्ठा होकर नदी की सफाई करते हैं. बीते कई सालों से ये काम जारी है, हर साल एक तय दिन टेम्स नदी की सफाई होती है. जिसका नतीजा आज सबके सामने है. नतीजा दिल्ली से लेकर यूपी तक यमुना और अन्य नदियों का भी सबके सामने है, क्योंकि यहां ना नीति है ना नीयत, सिर्फ नेता हैं जो बयानबाजी और सियासत में मशगूल हैं.