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Vandalism in Sambalpur court case : 'बार सदस्यों को व्यवहार करना सीखना चाहिए, माफी पर फैसला जल्दबाजी होगी'

ओडिशा में वकीलों के विरोध प्रदर्शन से संबंधित एक अवमानना ​​​​मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह कुछ बार संघों के सदस्यों की माफी को स्वीकार नहीं करेगा. शीर्ष कोर्ट ने जोर देकर कहा कि उन्हें 'व्यवहार करना सीखना चाहिए.' (Sambalpur lawyers case) पढ़ें पूरी खबर.

sc on Vandalism in Sambalpur court case
सुप्रीम कोर्ट
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Published : Feb 6, 2023, 10:53 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को स्पष्ट कर दिया कि वह संबलपुर के वकीलों के खिलाफ अवमानना ​​​​कार्यवाही को रद्द नहीं करेगा, जिन्होंने उड़ीसा उच्च न्यायालय की नई पीठों के गठन की मांग को लेकर अपनी हड़ताल के दौरान अदालत परिसर में तोड़फोड़ की थी. हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि उनके जमानत आवेदनों पर प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार कानून के अनुसार विचार किया जाएगा.

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने आज मामले की सुनवाई की. कोर्ट को आज बताया गया कि वकील 50 दिन से अधिक समय से जेल में हैं, उनके साथ मारपीट की जा रही है. कोर्ट ने कहा कि उन्हें पीटा नहीं जा रहा है बल्कि मौज मस्ती कर रहे हैं और उन्होंने किसी कोर्ट को जमानत देने से नहीं रोका है.

वकीलों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि यह स्वतंत्रता का मामला है जिस पर अदालत ने कहा कि वे कानूनी पेशे में हैं और वे व्यवधान डाल रहे हैं.

कोर्ट ने कहा कि 'हम सभी बार का हिस्सा रहे हैं लेकिन यह पूरी तरह से गुंडागर्दी है. यह वह मंच है जिस पर आप वादियों को राहत दिलाने की दलील देते हैं. यह तिरस्कार आपके साथ फिलहाल लटका रहेगा, हम किसी को राहत नहीं देंगे.'

अदालत को यह बताया गया कि सलाखों के पीछे कुछ महिला अधिवक्ता और बुजुर्ग अधिवक्ता भी हैं. यह बताया गया कि अधिवक्ताओं ने बिना शर्त माफी मांगी है, जिस पर अदालत ने कहा कि माफी पर विचार करना जल्दबाजी होगी और यह कार्यवाही बंद नहीं करेगी. कोर्ट ने कहा कि यह देखना होगा कि माफी दिल से है या केवल अवमानना ​​​​कार्यवाही से बाहर निकलने का प्रयास है.

कोर्ट ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा, एक पुरानी कहावत है. तुमने मुझे एक बार बेवकूफ बनाया, तुम पर शर्म आती है. तुमने मुझे दो बार बेवकूफ बनाया, मुझे शर्म आनी चाहिए.' कोर्ट ने कहा कि आंकड़ों के अनुसार जिला अदालतें ज्यादातर समय बंद रहती हैं. अदालत ने सवाल किया, 'वादी कहां जाएंगे?

पीठ ने कहा, 'बार के सदस्यों ने हमसे बेहद दर्दनाक फैसला लिया है. विचार यह है कि आपको व्यवहार करना सीखना चाहिए.' 'हम बहुत स्पष्ट हैं कि इस स्तर पर माफी स्वीकार करने का कोई सवाल ही नहीं है. हम अवमानना ​​कार्यवाही को बंद नहीं कर रहे हैं.'

अदालत ने कहा कि 10 जिलों में स्थापित की गई एचसी की वर्चुअल बेंच को देखते हुए वकीलों की अतिरिक्त बेंच स्थापित करने की मांग नहीं टिकती है. कोर्ट ने अपने आदेश में उल्लेख किया कि कोविड के समय में राज्यों और न्यायाधिकरणों के लिए वर्चुअल सुनवाई की सुविधा के लिए पर्याप्त धन खर्च किया गया था. मौजूदा बजट में भी तकनीकी बुनियादी ढांचे के लिए भारी आवंटन किया गया है, और पैसा बर्बाद नहीं किया जा सकता है. अधिवक्ताओं द्वारा सुविधाओं का उपयोग करने की आवश्यकता है.

गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने पिछले साल 14 दिसंबर को कुछ वकीलों को अवमानना ​​​​नोटिस जारी किया था, जिन्होंने पिछले साल 12 दिसंबर को अदालतों के बहिष्कार में भाग लिया था और राज्य में हिंसा में शामिल थे.

पढ़ें- ओडिशा : संबलपुर जिला अदालत परिसर में 'तोड़फोड़', 17 वकील गिरफ्तार

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को स्पष्ट कर दिया कि वह संबलपुर के वकीलों के खिलाफ अवमानना ​​​​कार्यवाही को रद्द नहीं करेगा, जिन्होंने उड़ीसा उच्च न्यायालय की नई पीठों के गठन की मांग को लेकर अपनी हड़ताल के दौरान अदालत परिसर में तोड़फोड़ की थी. हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि उनके जमानत आवेदनों पर प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों के अनुसार कानून के अनुसार विचार किया जाएगा.

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की खंडपीठ ने आज मामले की सुनवाई की. कोर्ट को आज बताया गया कि वकील 50 दिन से अधिक समय से जेल में हैं, उनके साथ मारपीट की जा रही है. कोर्ट ने कहा कि उन्हें पीटा नहीं जा रहा है बल्कि मौज मस्ती कर रहे हैं और उन्होंने किसी कोर्ट को जमानत देने से नहीं रोका है.

वकीलों की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने कहा कि यह स्वतंत्रता का मामला है जिस पर अदालत ने कहा कि वे कानूनी पेशे में हैं और वे व्यवधान डाल रहे हैं.

कोर्ट ने कहा कि 'हम सभी बार का हिस्सा रहे हैं लेकिन यह पूरी तरह से गुंडागर्दी है. यह वह मंच है जिस पर आप वादियों को राहत दिलाने की दलील देते हैं. यह तिरस्कार आपके साथ फिलहाल लटका रहेगा, हम किसी को राहत नहीं देंगे.'

अदालत को यह बताया गया कि सलाखों के पीछे कुछ महिला अधिवक्ता और बुजुर्ग अधिवक्ता भी हैं. यह बताया गया कि अधिवक्ताओं ने बिना शर्त माफी मांगी है, जिस पर अदालत ने कहा कि माफी पर विचार करना जल्दबाजी होगी और यह कार्यवाही बंद नहीं करेगी. कोर्ट ने कहा कि यह देखना होगा कि माफी दिल से है या केवल अवमानना ​​​​कार्यवाही से बाहर निकलने का प्रयास है.

कोर्ट ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा, एक पुरानी कहावत है. तुमने मुझे एक बार बेवकूफ बनाया, तुम पर शर्म आती है. तुमने मुझे दो बार बेवकूफ बनाया, मुझे शर्म आनी चाहिए.' कोर्ट ने कहा कि आंकड़ों के अनुसार जिला अदालतें ज्यादातर समय बंद रहती हैं. अदालत ने सवाल किया, 'वादी कहां जाएंगे?

पीठ ने कहा, 'बार के सदस्यों ने हमसे बेहद दर्दनाक फैसला लिया है. विचार यह है कि आपको व्यवहार करना सीखना चाहिए.' 'हम बहुत स्पष्ट हैं कि इस स्तर पर माफी स्वीकार करने का कोई सवाल ही नहीं है. हम अवमानना ​​कार्यवाही को बंद नहीं कर रहे हैं.'

अदालत ने कहा कि 10 जिलों में स्थापित की गई एचसी की वर्चुअल बेंच को देखते हुए वकीलों की अतिरिक्त बेंच स्थापित करने की मांग नहीं टिकती है. कोर्ट ने अपने आदेश में उल्लेख किया कि कोविड के समय में राज्यों और न्यायाधिकरणों के लिए वर्चुअल सुनवाई की सुविधा के लिए पर्याप्त धन खर्च किया गया था. मौजूदा बजट में भी तकनीकी बुनियादी ढांचे के लिए भारी आवंटन किया गया है, और पैसा बर्बाद नहीं किया जा सकता है. अधिवक्ताओं द्वारा सुविधाओं का उपयोग करने की आवश्यकता है.

गौरतलब है कि शीर्ष अदालत ने पिछले साल 14 दिसंबर को कुछ वकीलों को अवमानना ​​​​नोटिस जारी किया था, जिन्होंने पिछले साल 12 दिसंबर को अदालतों के बहिष्कार में भाग लिया था और राज्य में हिंसा में शामिल थे.

पढ़ें- ओडिशा : संबलपुर जिला अदालत परिसर में 'तोड़फोड़', 17 वकील गिरफ्तार

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