मेरठः ये कहानी है उन तीन किरदारों कि है जिन्हें बचपन से लेकर किशोरावस्था तक ये ही नहीं मालूम था कि वे लड़का हैं या लड़की. जब घरवालों से उन्होंने अपनी चिंता को साझा किया तो मामला डॉक्टरों तक पहुंच गया. जांच पड़ताल के बाद एक ऐसी समस्या उजागर हुई जो बेहद जटिल थी. डॉक्टरों की टीम ने कुछ ऐसा किया जिनसे इन तीनों के जीवन में बड़ा परितवर्तन आ गया. ये तीनों अब अपनी नई पहचान के साथ जी सकते हैं. डॉक्टरों ने ऐसा क्या चलिए आगे जानते हैं.
जिले के लाला लाजपतराय मेडिकल कॉलेज में पहली बार तीन मरीजों की लिंग पुनर्निर्धारण सर्जरी (gender reassignment surgery) की गई है. इस ऑपरेशन के जरिए दो लड़कियों और एक लड़के का जेंडर विकसित किया गया है. यहां के डॉक्टरों का दावा है कि ऐसी सर्जरी पहली बार हुई है.
डॉक्टरों के मुताबिक सोनिका, अमानिया एवं शहजादी (बदला हुआ नाम) ने तीन माह पूर्व ग्रन्थि रोग विभाग (glandular department) में परामर्श लिया था कि उनके जननांग विकसित नहीं हो पा रहे हैं. इस वजह से उन्हें पता नहीं चल पा रहा है कि वह लड़का है या फिर लड़की. डॉक्टरी जांच में पता चला था कि उनका जेंडर लड़का या फिर लड़की में विकसित किया जा सकता है.
मेडिकल कॉलेज के सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष सुधीर राठी ने बताया कि ये डिसआर्डर आफ सेक्सुअल डिफरेंसिएशन (Disorders of Sex Differentiation) के मरीज होते हैं. इस बीमारी में कुछ लड़की की तरह तो कुछ लड़के की तरह रहते हैं. ये तीनों 17 से 19 साल के बीच के हैं. ये तीनों लड़कियों की तरह रहते थे. इनके जननांग पूर्ण रूप से विकसित नहीं होते हैं. बाकी सब काम यह सामान्य रूप से करते हैं. 13 से 14 साल बाद किशोरावस्था में परिवर्तन आने के बाद उन्हें यह समस्या मालूम पड़ पाती है. जब इनके जननांग विकसित नहीं होते हैं तो वे अस्पताल का रुख करते हैं. इनकी हारमोन समेत कई जांचें की जाती हैं. डिसआर्डर आफ सेक्सुअल डिफरेंसिएशन की डायग्नोसिस की जाती है. इसके बाद इनकी जेनेटिक जांच की जाती है. इसका मतलब है कि या तो XX क्रोमोसोम या फिर YY क्रोमोसोम पता लगाया जाता है. जांच में तीन जेनेटिकली XY क्रोमोसोम के निकले यानी तीनों में लड़के के क्रोमोसोम मिले. इसके बाद तीनों को काउंसिलिंग की गई. इसमें दो ने लड़की बनने और एक ने लड़के बनने की इच्छा जताई.
इसके बाद जिसे लड़का बनना था उसके लिए डॉक्टरों की टीम गठित की गई. उसका पैनाइल रिकंस्ट्रक्शन प्लास्टिक सर्जरी से किया गया. वहीं, न्यू वजाइना को बड़ी आंत से बनाया गया. पहले यह त्वचा से बनाई जाती थी, तब यह सिकुड़ जाती थी. पहली बार ऐसा किया गया.
उन्होंने बताया कि न्यू वजाइना के ऑपरेशन में 3.5 से चार घंटे लगे. इसमें पांच से छह डॉक्टरों की टीम लगी. इसमें मरीज को 15 से 20 दिन तक भर्ती रहना पड़ता है. ये मरीज बच्चे नहीं पैदा कर सकेंगे बाकी यह सामान्य जीवन जी सकेंगे. उन्होंने बाताय कि इस समस्या से ग्रस्त बच्चे जब 12 साल के बाद देखते हैं कि उनमें परिवर्तन नहीं आ रहा है तो वे यह समस्या जान पाते हैं. पूरी प्रक्रिया में तीन से आठ महीने लगते हैं.
मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आरसी गुप्ता ने बताया कि डॉक्टरों की टीम ने बड़ी सफलता हासिल की है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश का यह अपने तरह का ऐसा पहला ऑपरेशन है. यह काफी लंबा प्रोसेस था. इसमें काउंसिलिंग के साथ घर वालों को राजी करना आदि शामिल हैं. उन्होंने कहा कि बहुत सी चीजें अभी भी बाकी हैं. तीन मरीजों के कई दिनों के परीक्षण के बाद मीडिया से यह जानकारी साझा की गई. बताया कि ऐसे ऑपरेशन में 20 से 25 लाख रुपए का खर्च आता है जबकि मेडिकल कॉलेज में 15 से 20 हजार रुपये का खर्चा आता है.
डॉ. भानु प्रताप ने कहा कि ये मरीज हमारे सामने चुनौती के रूप में सामने आए थे. ये मरीज वास्तव में एमीकोस जैनेटेलिया (Amicus genitalia) के हैं. इनमें जननांग विकसित नहीं होते हैं. मरीज बचपन से फीमेल की तरह विकसित हुई. जेनेटिक जांच में वह मेल पाई गई. उनके सामने दो आप्शन थे, वे चाहे मेल बन सकते थे या फिर फीमेल बन सकते थे. मेल बनाने की प्रक्रिया बेहद जटिल है. इसकी सर्जरी आठ से दस घंटे लंबी रही. मरीज इसके लिए तैयार था. इस वजह से सर्जरी सफल हुई. उन्होंने कहा कि यदि खून की नसों में थक्का जम जाता तो सारी मेहनत बेकार जा सकती थी. यही इस सर्जरी का रिस्क है. अब उसकी हारमोन थेरेपी की जाएगी. इससे दाढ़ी का उगना, पुरुषों की आवाज की तरह भारीपन आदि विकसित हो जाएंगे.
वार्ता में मेडिकल कॉलेज प्रधानाचार्य डॉ. आरसी गुप्ता, सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. सुधीर राठी, प्लास्टिक सर्जरी विभाग के डॉ. भानू प्रताप, डॉ. कनिका, ग्रन्थि रोग विभाग के डॉ. अविनाश, डॉ. वीडी पांडेय शामिल रहे.
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप