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जूना अखाड़े में दीक्षा लेंगे 1000 से ज्यादा नागा संन्यासी, जानें प्रक्रिया

हरिद्वार कुंभ 2021 से पहले पांच अप्रैल को एक हजार से भी ज्यादा नागा संन्यासी दीक्षित किए जाएंगे. इस प्रक्रिया के दौरान नागा संन्यासियों को कई चरणों से गुजरना पड़ता है. जिसमें कई नागा संन्यासी बन पाते हैं और कई फेल हो जाते हैं. पढ़िए किन-किन प्रक्रियाओं से गुजरते हैं नागा संन्यासी...

नागा संन्यासी
नागा संन्यासी
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Published : Mar 31, 2021, 8:17 PM IST

हरिद्वार : नागा संन्यासियों के सबसे बड़े अखाड़े श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा में अगामी पांच अप्रैल को संन्यास दीक्षा का बृहद आयोजन किया जाएगा. यह जानकारी जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय सचिव व कुंभ मेला प्रभारी महंत महेशपुरी ने दी है.

संन्यास दीक्षा के लिए सभी चारों मढ़ियों, जिसमें चार, सोलह, तेरह और चौदह मढ़ी शामिल हैं, उन नागा संन्यासियों का पंजीकरण किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि जो भी पंजीकरण के आवेदन आ रहे हैं, उन सबकी बारीकी से जांच की जा रही है. केवल योग्य एवं पात्र साधुओं का ही चयन किया जा रहा है.

दीक्षा लेंगे 1000 नागा संन्यासी

महंत महेशपुरी ने बताया कि नागा संन्यासी बनने के लिए कई कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है. इसके लिए सबसे पहले नागा संन्यासी को महापुरुष के रूप में दीक्षित कर अखाड़े में शामिल किया जाता है. तीन सालों तक महापुरुष के रूप में दीक्षित संन्यासी को संन्यास के कड़े नियमों का पालन करते हुए गुरु सेवा के साथ-साथ अखाड़े में विभिन्न कार्य करने पड़ते हैं. तीन साल की कठिन साधना में खरा उतरने के बाद कुंभ पर्व पर उन्हें नागा बनाया जाता है.

उन्होंने बताया कि नागा संन्यास प्रक्रिया शुरू होने पर सबसे पहले सभी नागा साधु संन्यास लेने का संकल्प करते हुए पवित्र नदी में स्नान करेंगे. इतना ही नहीं उन्हें अपना श्राद्ध-तपर्ण कर मुंडन करवाना पड़ता है. तत्पश्चात सांसरिक वस्त्रों का त्याग कर कोपीन दंड, कंमडल धारण करते हैं. इसके बाद पूरी रात्रि धर्मध्वजा के नीचे बिरजा होम में सभी संन्यासी भाग लेते हैं. चारू दूध, अज्या यानि घी की पुरुष सुक्त के मंत्रों के उच्चारण के साथ रात भर आहूति देते हुए साधना करते हैं.

यह समस्त प्रक्रिया अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर की देख-रेख में संपन्न होती है. प्रातःकाल सभी संन्यासी पवित्र नदी तट पर पहुंचकर स्नान कर संन्यास घारण करने का संकल्प लेते हुए डुबकी लगाते हैं. गायत्री मंत्र के जाप के साथ सूर्य, चंद्र, अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, दशो-दिशाओं, सभी देवी-देवताओं को साक्षी मानते हुए खुद को संन्यासी घोषित कर जल में डुबकी लगाते हैं.

पढ़ें :- सनातन धर्म के अजेय योद्धा नागा साधु, आदि गुरू शंकराचार्य ने दी थी दीक्षा

वहीं, यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद आचार्य महामंडलेश्वर की ओर नव दीक्षित नागा संन्यासियों को प्रेयस मंत्र प्रदान किया जाता है. जिसे नव दीक्षित नागा संन्यासी तीन बार दोहराते हैं. इन समस्त प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद गुरु अपने शिष्य की चोटी काटकर विधिवत अपना शिष्य बनाते हुए नागा संन्यासी घोषित करता है.

चोटी कटने के बाद नागा शिष्य जल से नग्न अवस्था में बाहर आता है और अपने गुरु के साथ सात कदम चलने के पश्चात गुरु की ओर से दिए गए कोपीन दंड और कमंडल घारण कर पूर्ण नागा संन्यासी बन जाता है.

महंत महेशपुरी बताते हैं कि यह सारी प्रक्रिया अत्यंत कठिन होती है, जिसके चलते कई संन्यासी अयोग्य भी घोषित कर दिए जाते हैं. उन्होंने बताया कि पांच अप्रैल को एक हजार से भी ज्यादा नागा संन्यासी दीक्षित किए जाएंगे. इसके बाद 25 अप्रैल को पुनः संन्यास दीक्षा का कार्यक्रम होगा.

हरिद्वार : नागा संन्यासियों के सबसे बड़े अखाड़े श्री पंच दशनाम जूना अखाड़ा में अगामी पांच अप्रैल को संन्यास दीक्षा का बृहद आयोजन किया जाएगा. यह जानकारी जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय सचिव व कुंभ मेला प्रभारी महंत महेशपुरी ने दी है.

संन्यास दीक्षा के लिए सभी चारों मढ़ियों, जिसमें चार, सोलह, तेरह और चौदह मढ़ी शामिल हैं, उन नागा संन्यासियों का पंजीकरण किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि जो भी पंजीकरण के आवेदन आ रहे हैं, उन सबकी बारीकी से जांच की जा रही है. केवल योग्य एवं पात्र साधुओं का ही चयन किया जा रहा है.

दीक्षा लेंगे 1000 नागा संन्यासी

महंत महेशपुरी ने बताया कि नागा संन्यासी बनने के लिए कई कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है. इसके लिए सबसे पहले नागा संन्यासी को महापुरुष के रूप में दीक्षित कर अखाड़े में शामिल किया जाता है. तीन सालों तक महापुरुष के रूप में दीक्षित संन्यासी को संन्यास के कड़े नियमों का पालन करते हुए गुरु सेवा के साथ-साथ अखाड़े में विभिन्न कार्य करने पड़ते हैं. तीन साल की कठिन साधना में खरा उतरने के बाद कुंभ पर्व पर उन्हें नागा बनाया जाता है.

उन्होंने बताया कि नागा संन्यास प्रक्रिया शुरू होने पर सबसे पहले सभी नागा साधु संन्यास लेने का संकल्प करते हुए पवित्र नदी में स्नान करेंगे. इतना ही नहीं उन्हें अपना श्राद्ध-तपर्ण कर मुंडन करवाना पड़ता है. तत्पश्चात सांसरिक वस्त्रों का त्याग कर कोपीन दंड, कंमडल धारण करते हैं. इसके बाद पूरी रात्रि धर्मध्वजा के नीचे बिरजा होम में सभी संन्यासी भाग लेते हैं. चारू दूध, अज्या यानि घी की पुरुष सुक्त के मंत्रों के उच्चारण के साथ रात भर आहूति देते हुए साधना करते हैं.

यह समस्त प्रक्रिया अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर की देख-रेख में संपन्न होती है. प्रातःकाल सभी संन्यासी पवित्र नदी तट पर पहुंचकर स्नान कर संन्यास घारण करने का संकल्प लेते हुए डुबकी लगाते हैं. गायत्री मंत्र के जाप के साथ सूर्य, चंद्र, अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, दशो-दिशाओं, सभी देवी-देवताओं को साक्षी मानते हुए खुद को संन्यासी घोषित कर जल में डुबकी लगाते हैं.

पढ़ें :- सनातन धर्म के अजेय योद्धा नागा साधु, आदि गुरू शंकराचार्य ने दी थी दीक्षा

वहीं, यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद आचार्य महामंडलेश्वर की ओर नव दीक्षित नागा संन्यासियों को प्रेयस मंत्र प्रदान किया जाता है. जिसे नव दीक्षित नागा संन्यासी तीन बार दोहराते हैं. इन समस्त प्रक्रियाओं से गुजरने के बाद गुरु अपने शिष्य की चोटी काटकर विधिवत अपना शिष्य बनाते हुए नागा संन्यासी घोषित करता है.

चोटी कटने के बाद नागा शिष्य जल से नग्न अवस्था में बाहर आता है और अपने गुरु के साथ सात कदम चलने के पश्चात गुरु की ओर से दिए गए कोपीन दंड और कमंडल घारण कर पूर्ण नागा संन्यासी बन जाता है.

महंत महेशपुरी बताते हैं कि यह सारी प्रक्रिया अत्यंत कठिन होती है, जिसके चलते कई संन्यासी अयोग्य भी घोषित कर दिए जाते हैं. उन्होंने बताया कि पांच अप्रैल को एक हजार से भी ज्यादा नागा संन्यासी दीक्षित किए जाएंगे. इसके बाद 25 अप्रैल को पुनः संन्यास दीक्षा का कार्यक्रम होगा.

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