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आंदोलन की शुरुआत में कहीं नहीं थे राकेश टिकैत, धीरे-धीरे बिछाई चुनावी राजनीति की 'चौसर' - repeal of three agricultural laws

तीन कृषि कानूनों (Three Agricultural Laws) को संसद के शीतकालीन सत्र में रद्द किए जाने के बाद आंदोलन में शामिल ज्यादातर किसान संगठन घर वापसी का मन बना चुके (Farmer's organization has made up its mind to return home) हैं. वे चाहते हैं कि सरकार से बातचीत कर बाकी मांगों पर कुछ बीच का रास्ता निकले.

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Published : Dec 5, 2021, 9:00 PM IST

Updated : Dec 5, 2021, 10:17 PM IST

नई दिल्ली : तीन कृषि कानून रद्द (Repeal of Three Agricultural Laws) होने के बाद कुछ किसान तो घर वापसी करना चाहते हैं लेकिन कुछ संगठन और नेता ऐसे हैं जो बहरहाल गतिरोध बरकरार रखने के पक्ष में हैं. वे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव (Assembly elections in five states) तक मुद्दे को खींचना चाहते हैं.

किसान आंदोलन के भविष्य की दिशा तय करने के लिए 4 दिसंबर को केवल सिंघु बॉर्डर पर ही बैठक नहीं हुई बल्कि एक बैठक दिल्ली स्थित ऑल इंडिया किसान सभा के कार्यालय में भी हुई. यह बैठक अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (AIKSCC) की थी.

बता दें कि सबसे पहले 250 किसान संगठनों के साझा समूह AIKSCC ने ही तीन कृषि कानून को रद्द करने और एमएसपी को संवैधानिक रूप देने की मुहिम के साथ 26 नवंबर 2020 को किसानों को दिल्ली पहुंचने का आवाह्न किया था. आंदोलन की शुरुआत AIKSCC के बैनर तले हुई थी और दिल्ली के गुरुद्वारा रकाबगंज में सितंबर में हुई बैठक में यह तय किया गया था कि 400 से ज्यादा किसान संगठन एक साझा मुहिम चलाएंगे.

इनसे जुड़े किसान संगठनों में ज्यादातर संख्या पंजाब और हरियाणा तथा कुछ संख्या पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान संगठनों की भी थी लेकिन टिकैत बंधुओं का भारतीय किसान यूनियन कहीं से भी इसका हिस्सा नहीं था.

नाम न लिखने की शर्त पर AIKSCC से जुड़े पंजाब के एक किसान संगठन के नेता कहते हैं कि सरकार के साथ गतिरोध बनाए रखने में भारतीय किसान यूनियन (टिकैत), जय किसान आंदोलन के योगेंद्र यादव और ऑल इंडिया किसान सभा के नेता प्रमुख हैं क्योंकि उनके उद्देश्य राजनीति से जुड़े हैं.

राकेश टिकैत गाजीपुर बॉर्डर पर तब मोर्चा बनाने पहुंचे थे जब AIKSCC से जुड़े संगठन पहले ही आंदोलन को एक स्वरूप दे चुके थे. 28 जनवरी को मीडिया के कैमरों के सामने राकेश टिकैत द्वारा बहाए गए आंसूओं ने आंदोलन को ही नहीं बल्कि टिकैत की राजनीति को भी नया जन्म दे दिया.

तथ्यों पर बात करें तो टिकैत कभी समन्वय समिति या राष्ट्रीय किसान महासंघ के भी हिस्सा नहीं रहे और उनका आंदोलन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ने की समय से खरीद और उसके बाद बकाए का भुगतान तक सीमित था. लेकिन मुख्य रूप से पंजाब-हरियाणा और कुछ अन्य प्रदेशों के छुटपुट किसान संगठनों द्वारा आकार दिए गए आंदोलन में बाद में शामिल हुए टिकैत ने मौके को खूब भुनाया और इसमें उनका सबसे ज्यादा साथ मीडिया व सोशल मीडिया ने दिया.

संयुक्त किसान मोर्चा से ही जुड़े एक किसान नेता की मानें तो इन सबके बीच यदि किसी ने असली बाजी मारी है तक वह राकेश टिकैत ही हैं. कानून वापसी की घोषणा से टिकैत को झटका जरूर लगा लेकिन एमएसपी पर तत्काल कानून बनाने की मांग को मुद्दा बना कर उन्होंने आंदोलन जारी रखने की बात कर दी.

3 नवंबर को दिल्ली में हुई AIKSCC के आंतरिक बैठक में यह मुद्दा भी उठा और आंदोलन की आड़ में राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति पर नेताओं के बीच तीखी बहस हुई लेकिन बैठक में समन्वय समिति की तरफ से कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकल सका. पंजाब और हरियाणा के कुल 50 से ज्यादा किसान जत्थेबंदियां अब सरकार के साथ बातचीत कर आंदोलन वापस लेने के पक्ष में हैं.

वहीं टिकैत का कहना है कि पहले एमएसपी पर कानून बनाकर फिर कमिटी गठित हो और आगे की चर्चा कमिटी में इस बात पर हो कि एमएसपी कानून को प्रभावी रूप से लागू कैसे किया जाए. हालांकि बहुतायत किसान संगठन टिकैत की इस राय से सहमत नहीं हैं और यही कारण है कि 4 दिसंबर को सिंघु बॉर्डर पर हुई बैठक में भी कोई बड़ा निर्णय सामने नहीं आया और 7 दिसंबर तक के लिए बैठक के नाम पर आंदोलन को यथावत स्थिति में जारी रखने की बात कही गई.

पंजाब के एक प्रमुख किसान संगठन नेता की मानें तो अब उनके साथ एक साल तक बॉर्डर पर अड़े किसान भी चाहते हैं कि बाकी मामलों को बातचीत से सुलझाया जाए और वह घर जाएं लेकिन आम सहमति नहीं बन पा रही.

इसके पीछे कुछ ऐसे किसान नेता और संगठन हैं जिनका उद्देश्य न केवल राजनीतिक है बल्कि वह आंदोलन की शुरुआत में कहीं भी नहीं थे.किसानों के संयुक्त मोर्चा में आज 500 से ज्यादा किसान संगठनों के समर्थन की बात कही जाती है लेकिन सरकार से बातचीत में कुल 42 प्रमुख किसान संगठनों के नेता शामिल रहे हैं.

आंदोलन के दौरान मृत हुए किसानों के परिवार के लिए पंजाब सरकार ने मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की बात कही है. पंजाब सरकार की तरफ से प्रक्रिया शुरू भी कर दी गई है और हरियाणा सरकार के साथ किसान संगठनों की बात अभी चल रही है. प्रमुख रूप से पंजाब और हरियाणा में धान और गेहूं की पैदावार होती है और देश में एमएसपी पर सबसे ज्यादा खरीद भी इन दो राज्यों में ही होती है.

यह भी पढ़ें- अभी खत्म नहीं हुआ किसान आंदोलन, पर कुंडली बॉर्डर से लौटने लगे निहंग

इस तरह ये तीन अन्य मुद्दों का भी लगभग समाधान तय होने के कारण ही इन दोनों राज्यों के किसान संगठन आंदोलन वापस लेने के पक्ष में हैं. बहरहाल संयुक्त किसान मोर्चा की बात करें तो रविवार को भी किसान मोर्चा ने सरकार को 7 दिसंबर तक की मियाद याद दिलाते हुए जल्द बातचीत शुरू करने और लिखित आश्वासन देने की मांग की है. संयुक्त किसान मोर्चा चाहता है कि मृत किसानों को परिवार को मुआवजा देने में केंद्र की भूमिका भी हो.

नई दिल्ली : तीन कृषि कानून रद्द (Repeal of Three Agricultural Laws) होने के बाद कुछ किसान तो घर वापसी करना चाहते हैं लेकिन कुछ संगठन और नेता ऐसे हैं जो बहरहाल गतिरोध बरकरार रखने के पक्ष में हैं. वे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव (Assembly elections in five states) तक मुद्दे को खींचना चाहते हैं.

किसान आंदोलन के भविष्य की दिशा तय करने के लिए 4 दिसंबर को केवल सिंघु बॉर्डर पर ही बैठक नहीं हुई बल्कि एक बैठक दिल्ली स्थित ऑल इंडिया किसान सभा के कार्यालय में भी हुई. यह बैठक अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (AIKSCC) की थी.

बता दें कि सबसे पहले 250 किसान संगठनों के साझा समूह AIKSCC ने ही तीन कृषि कानून को रद्द करने और एमएसपी को संवैधानिक रूप देने की मुहिम के साथ 26 नवंबर 2020 को किसानों को दिल्ली पहुंचने का आवाह्न किया था. आंदोलन की शुरुआत AIKSCC के बैनर तले हुई थी और दिल्ली के गुरुद्वारा रकाबगंज में सितंबर में हुई बैठक में यह तय किया गया था कि 400 से ज्यादा किसान संगठन एक साझा मुहिम चलाएंगे.

इनसे जुड़े किसान संगठनों में ज्यादातर संख्या पंजाब और हरियाणा तथा कुछ संख्या पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान संगठनों की भी थी लेकिन टिकैत बंधुओं का भारतीय किसान यूनियन कहीं से भी इसका हिस्सा नहीं था.

नाम न लिखने की शर्त पर AIKSCC से जुड़े पंजाब के एक किसान संगठन के नेता कहते हैं कि सरकार के साथ गतिरोध बनाए रखने में भारतीय किसान यूनियन (टिकैत), जय किसान आंदोलन के योगेंद्र यादव और ऑल इंडिया किसान सभा के नेता प्रमुख हैं क्योंकि उनके उद्देश्य राजनीति से जुड़े हैं.

राकेश टिकैत गाजीपुर बॉर्डर पर तब मोर्चा बनाने पहुंचे थे जब AIKSCC से जुड़े संगठन पहले ही आंदोलन को एक स्वरूप दे चुके थे. 28 जनवरी को मीडिया के कैमरों के सामने राकेश टिकैत द्वारा बहाए गए आंसूओं ने आंदोलन को ही नहीं बल्कि टिकैत की राजनीति को भी नया जन्म दे दिया.

तथ्यों पर बात करें तो टिकैत कभी समन्वय समिति या राष्ट्रीय किसान महासंघ के भी हिस्सा नहीं रहे और उनका आंदोलन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ने की समय से खरीद और उसके बाद बकाए का भुगतान तक सीमित था. लेकिन मुख्य रूप से पंजाब-हरियाणा और कुछ अन्य प्रदेशों के छुटपुट किसान संगठनों द्वारा आकार दिए गए आंदोलन में बाद में शामिल हुए टिकैत ने मौके को खूब भुनाया और इसमें उनका सबसे ज्यादा साथ मीडिया व सोशल मीडिया ने दिया.

संयुक्त किसान मोर्चा से ही जुड़े एक किसान नेता की मानें तो इन सबके बीच यदि किसी ने असली बाजी मारी है तक वह राकेश टिकैत ही हैं. कानून वापसी की घोषणा से टिकैत को झटका जरूर लगा लेकिन एमएसपी पर तत्काल कानून बनाने की मांग को मुद्दा बना कर उन्होंने आंदोलन जारी रखने की बात कर दी.

3 नवंबर को दिल्ली में हुई AIKSCC के आंतरिक बैठक में यह मुद्दा भी उठा और आंदोलन की आड़ में राजनीतिक उद्देश्य की पूर्ति पर नेताओं के बीच तीखी बहस हुई लेकिन बैठक में समन्वय समिति की तरफ से कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकल सका. पंजाब और हरियाणा के कुल 50 से ज्यादा किसान जत्थेबंदियां अब सरकार के साथ बातचीत कर आंदोलन वापस लेने के पक्ष में हैं.

वहीं टिकैत का कहना है कि पहले एमएसपी पर कानून बनाकर फिर कमिटी गठित हो और आगे की चर्चा कमिटी में इस बात पर हो कि एमएसपी कानून को प्रभावी रूप से लागू कैसे किया जाए. हालांकि बहुतायत किसान संगठन टिकैत की इस राय से सहमत नहीं हैं और यही कारण है कि 4 दिसंबर को सिंघु बॉर्डर पर हुई बैठक में भी कोई बड़ा निर्णय सामने नहीं आया और 7 दिसंबर तक के लिए बैठक के नाम पर आंदोलन को यथावत स्थिति में जारी रखने की बात कही गई.

पंजाब के एक प्रमुख किसान संगठन नेता की मानें तो अब उनके साथ एक साल तक बॉर्डर पर अड़े किसान भी चाहते हैं कि बाकी मामलों को बातचीत से सुलझाया जाए और वह घर जाएं लेकिन आम सहमति नहीं बन पा रही.

इसके पीछे कुछ ऐसे किसान नेता और संगठन हैं जिनका उद्देश्य न केवल राजनीतिक है बल्कि वह आंदोलन की शुरुआत में कहीं भी नहीं थे.किसानों के संयुक्त मोर्चा में आज 500 से ज्यादा किसान संगठनों के समर्थन की बात कही जाती है लेकिन सरकार से बातचीत में कुल 42 प्रमुख किसान संगठनों के नेता शामिल रहे हैं.

आंदोलन के दौरान मृत हुए किसानों के परिवार के लिए पंजाब सरकार ने मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की बात कही है. पंजाब सरकार की तरफ से प्रक्रिया शुरू भी कर दी गई है और हरियाणा सरकार के साथ किसान संगठनों की बात अभी चल रही है. प्रमुख रूप से पंजाब और हरियाणा में धान और गेहूं की पैदावार होती है और देश में एमएसपी पर सबसे ज्यादा खरीद भी इन दो राज्यों में ही होती है.

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इस तरह ये तीन अन्य मुद्दों का भी लगभग समाधान तय होने के कारण ही इन दोनों राज्यों के किसान संगठन आंदोलन वापस लेने के पक्ष में हैं. बहरहाल संयुक्त किसान मोर्चा की बात करें तो रविवार को भी किसान मोर्चा ने सरकार को 7 दिसंबर तक की मियाद याद दिलाते हुए जल्द बातचीत शुरू करने और लिखित आश्वासन देने की मांग की है. संयुक्त किसान मोर्चा चाहता है कि मृत किसानों को परिवार को मुआवजा देने में केंद्र की भूमिका भी हो.

Last Updated : Dec 5, 2021, 10:17 PM IST
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