मुंबई : महाराष्ट्र में ओबीसी आरक्षण विधेयक पर राज्यपाल ने हस्ताक्षर कर दिए हैं. महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम अजीत पवार ने इस बात की जानकारी देते हुए कहा कि इस बिल को सभी ने सर्वसम्मति से पारित कर दिया है. उन्होंने कहा कि हम इस फैसले से खुश हैं. उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने कहा है कि राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने यह सुनिश्चित करने के लिए एक विधेयक पर हस्ताक्षर किए हैं कि महाराष्ट्र में आगामी स्थानीय निकाय चुनाव ओबीसी आरक्षण के बिना नहीं होने चाहिए.
-
The OBC Reservation Bill has been signed by the Governor. This bill was unanimously passed by everyone. We are happy with this decision: Maharashtra Deputy CM Ajit Pawar pic.twitter.com/wcORPKkLhs
— ANI (@ANI) February 1, 2022 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data="
">The OBC Reservation Bill has been signed by the Governor. This bill was unanimously passed by everyone. We are happy with this decision: Maharashtra Deputy CM Ajit Pawar pic.twitter.com/wcORPKkLhs
— ANI (@ANI) February 1, 2022The OBC Reservation Bill has been signed by the Governor. This bill was unanimously passed by everyone. We are happy with this decision: Maharashtra Deputy CM Ajit Pawar pic.twitter.com/wcORPKkLhs
— ANI (@ANI) February 1, 2022
ये भी पढ़ें- PIL in Supreme Court: धोखाधड़ी से धर्मांतरण के खिलाफ दाखिल की गई जनहित याचिका
अधिकारियों के साथ बैठक के बाद राज्यपाल ने हस्ताक्षर किए. अजित पवार ने कहा कि, मैं इसके लिए राज्यपाल को धन्यवाद देता हूं. उनका कार्यकाल आज समाप्त हो रहा है.
विधान सभा और विधान परिषद दोनों में बिल को पारित किया गया. फिर अध्यादेश को कानून में बदल दिया गया. भाजपा समेत सभी ने उनकी बात मानी. हमने उस कानून को दिखाते हुए सुप्रीम कोर्ट से सहयोग करने को कहा. उन्होंने चुनाव स्थगित करने या ओबीसी आरक्षण के साथ चुनाव कराने का भी सुझाव दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कोई टिप्पणी नहीं की थी.
गौरतलब है कि 19 जनवरी 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को निर्देश दिया कि वह अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से संबंधित आंकड़े अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग के समक्ष पेश करे ताकि इनकी सत्यता की जांच की जा सके और वह स्थानीय निकायों के चुनावों में उनके प्रतिनिधित्व पर सिफारिशें कर सके.
शीर्ष अदालत ने राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग (एसबीसीसी) को यह निर्देश दिया कि वह राज्य सरकार से सूचना मिलने के दो हफ्ते के अंदर संबंधित प्राधिकारियों को अपनी अंतरिम रिपोर्ट सौंपे. न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति सीटी रविकुमार की तीन सदस्यीय पीठ ने कहा, महाराष्ट्र ने इस अदालत से अन्य पिछड़े वर्गों के संबंध में राज्य के पास पहले से उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर चुनाव की अनुमति देने के लिए कहा है. आंकड़ों की जांच करने की बजाय, इन आंकड़ों को राज्य द्वारा नियुक्त आयोग के समक्ष प्रस्तुत करना उचित कदम होगा जो इनकी सत्यता की जांच कर सकता है.
पीठ ने कहा, अगर वह उचित समझे तो राज्य को सिफारिशें करें जिसके आधार पर राज्य या राज्य चुनाव आयोग आगे कदम उठा सकता है... राज्य सरकार से सूचना/आंकड़े प्राप्त होने के दो हफ्ते के भीतर संबंधित प्राधिकारियों को अगर सलाह दी जाती है तो आयोग अपनी अंतरिम रिपोर्ट दे सकता है. हालांकि शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के संबंध में राज्य सरकार की ओर से तैयार की जाने वाली सूची केंद्र द्वारा की गई जनगणना से अलग होगी.
ये भी पढ़ें- केंद्र के हलफनामा दाखिल नहीं करने पर न्यायालय ने नाराजगी जताई
पीठ ने कहा, राज्य उपलब्ध जानकारी और आंकड़े संबंधित आयोग के समक्ष पेश कर सकता है जो इसकी प्रभावशीलता के बारे में निर्णय ले सकता है और राज्य सरकार को आवश्यकतानुसार सिफारिशें कर सकता है. यह स्पष्ट रूप से ओबीसी श्रेणी के लिए स्थानीय निकायों में सीटों का आरक्षण देने से पहले तीन स्तरीय जांच की कवायद को पूरा नहीं करेगा जो (2010 के फैसले के अनुसार) पूरी की जानी चाहिए थी.
शीर्ष अदालत ने कहा कि यह टिप्पणी उन विभिन्न राज्यों में लागू होगी जहां स्थानीय चुनाव होने हैं. उसने कहा कि जब तक तीन स्तरीय जांच पूरी नहीं होगी तब तक इन सीटों को सामान्य श्रेणी का माना जाएगा. महाराष्ट्र की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफड़े ने कहा कि राज्य के पास कुछ आंकड़े हैं जिनके आधार पर आरक्षण कायम रखा जा सकता है. उन्होंने कहा कि मार्च में चुनाव हैं और आंकड़ें आयोग के पास पहले से ही हैं. उन्होंने कहा कि आयोग से दो हफ्ते में रिपोर्ट देने के लिए कहा जा सकता है, ताकि सरकार मार्च में होने वाले चुनाव पर काम कर सके. उन्होंने कहा अन्यथा समुदाय का बड़ा वर्ग प्रतिधिनित्व से वंचित रह सकता है.
मध्य प्रदेश के संबंध में राज्य की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल केएम नटराज ने कहा कि चुनाव आयोग ने मध्य प्रदेश पंचायत राज और ग्राम स्वराज (संशोधन) अध्यादेश 2021 रद्द कर दिया है. उन्होंने आश्वासन दिया है कि नया अध्यादेश शीर्ष अदालत के निर्देश के मुताबिक होगा. शीर्ष अदालत ने 17 दिसंबर 2021 को महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के राज्य चुनाव आयोगों को स्थानीय निकायों में ओबीसी के लिए आरक्षित सीटों को सामान्य श्रेणी के तहत फिर से अधिसूचित करने का निर्देश दिया था.
(एक्सट्रा-इनपुट)