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अदालत ने मंदिर की मूर्ति को नाबालिग बालक के समान करार दिया, संपत्ति बहाल की

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Published : Jun 28, 2021, 7:48 PM IST

मंदिर की मूर्ति को नाबालिग बालक के समान करार देते हुए मद्रास उच्च न्यायालय ने पलनी में स्थित मशहूर श्रीधन्दयुथापनी स्वामी मंदिर की लाखों रुपये की संपत्ति बहाल कर उसे मंदिर को सौंपने के निर्देश दिए हैं.

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चेन्नई : मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति आरएमटी टीका रमण ने अपने हालिया आदेश में कहा कि कानून के विचार में मंदिर की मूर्ति एक नाबालिग बालक के समान है और अदालत व्यक्ति एवं संपत्ति दोनों ही मामलों में नाबालिग बालक की अभिभावक है. उन्होंने कहा कि अदालत व्यक्ति एवं संपत्ति दोनों ही मामलों में एक नाबालिग बालक की अभिभावक है. इसी तरह अदालत मंदिर की मूर्ति की संपत्ति की अभिभावक है.

अदालत ने उन व्यक्तियों की दूसरी अपील को खारिज करते हुए उक्त टिप्पणी की जोकि पीढ़ियों से मंदिर की संपत्ति पर काबिज हैं. न्यायाधीश ने कहा कि मूर्ति का अभिभावक होने के नाते यह अदालत यह महसूस करती है कि अपीलकर्ता, प्रतिवादी संदिग्ध तरीके से पीढ़ियों से संपत्ति का लाभ उठा रहे हैं इसलिए इन्हें हटाया जाना चाहिए. अदालत ने हिन्दू रिलीजियस एंड चैरिटेबल एंडॉमेंट डिपार्टमेंट के आयुक्त और सचिव को पूर्व के आदेश के अनुसार मंदिर के कार्यकारी अधिकारी को चार सप्ताह के भीतर संपत्ति का कब्जा देने के लिए उचित निर्देश देने को भी कहा. साथ ही कहा कि ऐसा करने में नाकाम रहने की दशा में आयुक्त को जल्द से जल्द कब्जा दिलाने के संबंध में कार्रवाई करनी होगी.

यह भी पढ़ें-कैद में 'रिवाल्डो', रिहा करने के लिए विधायक ने लिखी चिट्ठी

उल्लेखनीय है कि ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1863 में अपीलकर्ताओं के पुरखों को तिरुपुर जिले में धर्मपुरम के पेरियाकुमारपलायम गांव में 60 एकड़ से अधिक भूमि इनाम के तौर पर दी थी, जिसे लेकर विवाद था. न्यायाधीश ने कहा कि प्रतिवादी ब्रिटिश सरकार द्वारा अनुदान के माध्यम से मिली मंदिर की जमीन पर पीढ़ियों से काबिज रहे.

(पीटीआई-भाषा)

चेन्नई : मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति आरएमटी टीका रमण ने अपने हालिया आदेश में कहा कि कानून के विचार में मंदिर की मूर्ति एक नाबालिग बालक के समान है और अदालत व्यक्ति एवं संपत्ति दोनों ही मामलों में नाबालिग बालक की अभिभावक है. उन्होंने कहा कि अदालत व्यक्ति एवं संपत्ति दोनों ही मामलों में एक नाबालिग बालक की अभिभावक है. इसी तरह अदालत मंदिर की मूर्ति की संपत्ति की अभिभावक है.

अदालत ने उन व्यक्तियों की दूसरी अपील को खारिज करते हुए उक्त टिप्पणी की जोकि पीढ़ियों से मंदिर की संपत्ति पर काबिज हैं. न्यायाधीश ने कहा कि मूर्ति का अभिभावक होने के नाते यह अदालत यह महसूस करती है कि अपीलकर्ता, प्रतिवादी संदिग्ध तरीके से पीढ़ियों से संपत्ति का लाभ उठा रहे हैं इसलिए इन्हें हटाया जाना चाहिए. अदालत ने हिन्दू रिलीजियस एंड चैरिटेबल एंडॉमेंट डिपार्टमेंट के आयुक्त और सचिव को पूर्व के आदेश के अनुसार मंदिर के कार्यकारी अधिकारी को चार सप्ताह के भीतर संपत्ति का कब्जा देने के लिए उचित निर्देश देने को भी कहा. साथ ही कहा कि ऐसा करने में नाकाम रहने की दशा में आयुक्त को जल्द से जल्द कब्जा दिलाने के संबंध में कार्रवाई करनी होगी.

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उल्लेखनीय है कि ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1863 में अपीलकर्ताओं के पुरखों को तिरुपुर जिले में धर्मपुरम के पेरियाकुमारपलायम गांव में 60 एकड़ से अधिक भूमि इनाम के तौर पर दी थी, जिसे लेकर विवाद था. न्यायाधीश ने कहा कि प्रतिवादी ब्रिटिश सरकार द्वारा अनुदान के माध्यम से मिली मंदिर की जमीन पर पीढ़ियों से काबिज रहे.

(पीटीआई-भाषा)

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